धौलपुर राजस्थान से चलकर उत्तर प्रदेश के मथुरा नोएडा रुकते रुकाते दिल्ली और हरियाणा पार करते हुये अहमदगढ पंजाब सिर्फ इसलिये पहुंचा था कि बहां मेरा एक भाई रहता है जिससे मेरा पता नहीं कब का रिश्ता है। एक अनजान शक्ति मुझे बार बार उनकी ओर खींच रही थी। फेसबुक पर मिले कुछ ही दिन हुये हैं पर कुछ तो है हम दोनों के बीच। उनके शिक्षक होने बाली तो बाद में पता चली, हमखयाली ही दोनों के जुडने की बजह बनी। विचार मिल जांय तो विदेश में बैठा भी भाई बन जाय और विचार न मिले तो सगा भाई भी पराया हो जाय। कुछ चीजें हमारे हाथ में नहीं होती, ऊपरबाले पर ही छोड देनी चाहिये। सही बात तो ये है कि करने बाले हम नहीं है, बस सब कुछ अपने आप हो रहा है। यही प्रकृति है जो निरंतर चले जा रही है।
असोदा से आगे बढते ही मौसम ने एकदम जोरदार करबट ले ली, जोरदार आंधी और तूफान , जिसकी बजह से हजारों पेड धराशायी हो गये और रास्ता ब्लाक हो गया। पंजाब लगते ही रोड पूरी तरह खराब हो चुका था। जींद और संगरूर के बीच तो रास्ता बहुत खराब मिला हालांकि मलेरकोटला से अच्छा मिला। दरअसल निर्माणाधीन हाईवे था। गाडी इतनी स्लो चलानी पडी कि अहमदगढ पहुंचते पहुंचते रात के बारह बज गये। पर कहते हैं न कि सर मुंडाये ही ओले पढे। अहमदगढ से मात्र पांच किमी पहले ही पैट्रोल खत्म हो गया। संजू भाई ने टंकी फुल करते समय भी रिजर्व जो लगा रखा था। अच्छा हुआ कि पैट्रोल पंप नजदीक ही था वरना पूरी रात गाडी खींचते ही निकल जाती पर डर नहीं था क्यूं कि मेरे बडे वीर जी हाईवे पर कार खडी कर मेरी राह तक रहे थे। बडे वीर जी फोन पे फोन किये जा रहे थे। हर पल की खबर थी उनके पास मेरी। खराब रास्ते और बिगडे मौसम की बजह से रात को बारह बजे अहमदगढ पहुंच पाया। पर क्या मजाल कि बंदा सो जाये। खराब मौसम में हाईवे पर अपनी कार खडी कर दो घंटे तक मेरा इंतजार करता रहा। खैर जैसे तैसे मैं अहमदगढ पहुंच गया। ऐसा लगा जैसे कुंभ के मेले में बिछुडे दो भाई मिले हों। अहमदगढ पहुंचते ही वीरजी ने अपनी कार आगे आगे दौडा ली और संकरी संकरी गली में उनका पीछा करते हम बीच बाजार से होकर निकले ही थे कि पुलिश ने रोक लिया। कार की चेंकिगं की। हमारा भी परिचय लिया और फिर वैलकम करते हुये जाने दिया। ये भी संयोग था कि यहां भी वीरजी अकेले थे। बच्चे और भाभीजी विदेश में थे। इसलिये पूरी तरह घर पर राज हमारा था। घर पर पहुंच कर सबसे पहले तो नहा धोकर थकान दूर की और फिर खाते पीते बतियाते हुये सुवह के तीन बजा लिये। काफी लेट जगे। वीर जी को छुट्टी लेनी पडी। अगले दिन नहा धोकर वीरजी के स्कूल गये जो बहुत ही शानदार स्थल था। स्कूल में स्टाफ से मिलना और बच्चों से बतियाना मुझे बहुत पंसद आया। भाई पंजाब सरकार में लैक्चरर हैं,भाभीजी प्रसींपल हैं और बेटियां अपनी योग्यता से कनाडा के विश्वविद्यालय में भारत का नाम ऊंचा कर रहीं हैं। शिक्षक पिता के बेटे बहू भी शिक्षक ही हैं। सुवह वीर जी मुझे अपने विध्यालय कंगनवाल स्कूल ब्लाक अहमदगढ ले गये । ये यहां व्याख्याता हैं। ये पंजाब का एक ऐसा सरकारी स्कूल है जो अच्छे अच्छे निजी कान्वेन्ट स्कूलों को मात देता है। शानदार भवन, गजब की साफ सफाई, सारी सुविधाओं से युक्त, पेड पौधों की ठंडी छांव, बेहतर शिक्षा और जानदार स्टाफ । शिक्षक मित्र G N Singh Grewal एवं भाभीजी Jaswinder Kaur Grewal के स्कूलों में जाने का मौका मिला। कसम से सरकारी स्कूलों की इतनी अच्छी स्थिति देखकर दिल खुश हो गया। काश राजस्थान में भी बेहतर स्थिति में आ पाते ।
कंगनबाल स्कूल का बहुत लम्बा चौडा मैदान, उसमें शारीरिक शिक्षकों की उपस्थिति में अलग अलग कौनों पर अलग अलग बेसबाल से खेलते बच्चे बच्चियां, राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीतने बाले खिलाडियों से मिलना मेरे लिये बहुत सुखद था लेकिन थोडी जलन पैदा करने बाला भी था क्यूं कि हमारे यहां शारीरिक शिक्षकों की सारी योग्यता नेतागीरी में ही दिखाई देती है, मैदान में नहीं। टूर्नामैंट और खेल सामग्री सिर्फ कागजों में ही दिखाई जाती है, मैदान में नहीं।
आफिस, रसोईघर, लैब ही नहीं बल्कि पूरा प्रांगण ही एकदम cleanly decorated और well arranged मिला। हरे हरे पेड पौधों ने स्कूल की सुंदरता में चार लगा रखे हैं। कम्प्यूटर लैब में करीब पचास साठ कम्प्यूटर और शिक्षिका की सतर्क उपस्थिति में काम करते बच्चे मेरी जलन को और बढा रहे थे क्यूंकि हमारे यहां तो बच्चे कभी कम्प्यूटर की शक्ल तक नहीं देख पाते।
मध्यान्ह भोजन हेतु साफ सुथरे बर्तनों की एक ट्रौली, खाने के लिये प्रौपर स्थान और एकदम चमचमाती रसोई ने मुझे गुरुद्वारों के लंगर प्रसादा की याद दिला दी। बेहद अनुशाषित तरीके से भोजन गृहण करना निसंदेह लंगर से ही सीखा जा सकता है। कंगनबाल स्कूल के प्राचार्य तो मुझे कोई धार्मिक गुरू जैसे लगे। बेहद सौम्य और शांत स्वभाव । कंगनवाल स्कूल अहमदगढ के लतीफ मौहम्मद जी की बेटी परवीन ने छोटी सी उम्र में बाक्सिंग में राष्ट्रीय स्तर पर दो बार गोल्ड मेडल जीत कर निसंदेह ना केबल पंजाब का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है।
रसीन स्कूल की प्राचार्य तो स्वंय भाभीजी ही हैं जिन्हौने अपने पूरे स्कूल को अपने घर जैसा सजा रखा है। केवल दो तीनों स्कूलों की विजिट ने ही पूरे पंजाब के स्कूलों का एक चित्र खींच दिया है। सारी शैक्षिक विशेषताओं और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर सुवह सुवह बडी सी नहर के किनारे हरे भरे पेडों के बीच सुनसान सडक पर कार खडी कर पैदल चलना और वीर जी से आध्यात्म सीखना बहुत ही यादगार पल था मेरे लिये। पूरा दिन अहमदगढ घुमने में ही व्यतीत कर दिया। वीरजी के मम्मी पापा से भी मिले। आशीर्वाद लिया। भाभीजी के स्कूल भी गये तो एक दो गांव का भी भ्रमण किया। रास्ते में एक दो मंदिर भी गये। गुग्गामेडी मंदिर। मूलत: हनुमानगढ के गोगाजी राजस्थान के लोकदेवता हैं जो जाहरपीर के नाम से भी जाने जाते हैं। पास ही एक गांव था बहरामपुर जिसकी हर दीवार रंगीन थी। किसी कनाडावासी सिख भाई ने हर घर की दीवार रंगने में लाखों रुपया खर्च किया था। हम गांव में घूम ही रहे थे कि एक सरदारजी ने हमारा परिचय लिया। जैसे ही वीरजी ने हमारे बारे में बताया, वो हमें अपने घर रोटी पानी के लिये ले जाने लगे। पूरा सम्मान मिला हमें गांव में। मुझे जूते भी खरीदने थे। बाजार में जब मुस्ताक खान साहब की दुकान पर हम पहुंचे तो हिन्दू मुस्लिम सिख की त्रिवेणी हो गयी। संयोग कुछ ऐसा बना कि धार्मिक और आध्यात्मिक चर्चा चल पडी। बातों ही बातों में खानसाहब ने अल्लाहताला द्वारा "हक " की दस्तूर निभानी की बात बतायी। थोडी देर बाद जब हम जाने लगे तो उन्हौने पैसे लेने से इंकार कर दिया । तभी बडे वीरजी ने उन्ही की "हक" बाली बात याद दिलायी तो वे रुपये लेने को तैयार हो गये पर शायद उन्हौने मुझसे केवल जूतों की खरीद ही ली थी। मुनाफा नहीं लिया था मुझसे। ये मुहब्बत थी खान साहब की अपने मेहमान के प्रति। एक दो और दोस्तों से भी मिले। कुल मिलाकर अहमदगढ में मुझे बिल्कुल भी नहीं लगा कि मैं अपने घर से बाहर हूं। वीरजी ने पहले ही कह रखा था कि यही समझो तुम धौलपुर बाले घर में ही हो। एक दिन रुकने में सारी थकान भी चली गयी। कपडे भी धुल गये और पंजाबी जीवन का आनंद भी मिल गया। मजा आ गया। मेरी घुमक्कडी सफल रही। दिल खुश हो गया पंजाब आकर । दिल जीत लिया पंजाब ने।
carry on......
असोदा से आगे बढते ही मौसम ने एकदम जोरदार करबट ले ली, जोरदार आंधी और तूफान , जिसकी बजह से हजारों पेड धराशायी हो गये और रास्ता ब्लाक हो गया। पंजाब लगते ही रोड पूरी तरह खराब हो चुका था। जींद और संगरूर के बीच तो रास्ता बहुत खराब मिला हालांकि मलेरकोटला से अच्छा मिला। दरअसल निर्माणाधीन हाईवे था। गाडी इतनी स्लो चलानी पडी कि अहमदगढ पहुंचते पहुंचते रात के बारह बज गये। पर कहते हैं न कि सर मुंडाये ही ओले पढे। अहमदगढ से मात्र पांच किमी पहले ही पैट्रोल खत्म हो गया। संजू भाई ने टंकी फुल करते समय भी रिजर्व जो लगा रखा था। अच्छा हुआ कि पैट्रोल पंप नजदीक ही था वरना पूरी रात गाडी खींचते ही निकल जाती पर डर नहीं था क्यूं कि मेरे बडे वीर जी हाईवे पर कार खडी कर मेरी राह तक रहे थे। बडे वीर जी फोन पे फोन किये जा रहे थे। हर पल की खबर थी उनके पास मेरी। खराब रास्ते और बिगडे मौसम की बजह से रात को बारह बजे अहमदगढ पहुंच पाया। पर क्या मजाल कि बंदा सो जाये। खराब मौसम में हाईवे पर अपनी कार खडी कर दो घंटे तक मेरा इंतजार करता रहा। खैर जैसे तैसे मैं अहमदगढ पहुंच गया। ऐसा लगा जैसे कुंभ के मेले में बिछुडे दो भाई मिले हों। अहमदगढ पहुंचते ही वीरजी ने अपनी कार आगे आगे दौडा ली और संकरी संकरी गली में उनका पीछा करते हम बीच बाजार से होकर निकले ही थे कि पुलिश ने रोक लिया। कार की चेंकिगं की। हमारा भी परिचय लिया और फिर वैलकम करते हुये जाने दिया। ये भी संयोग था कि यहां भी वीरजी अकेले थे। बच्चे और भाभीजी विदेश में थे। इसलिये पूरी तरह घर पर राज हमारा था। घर पर पहुंच कर सबसे पहले तो नहा धोकर थकान दूर की और फिर खाते पीते बतियाते हुये सुवह के तीन बजा लिये। काफी लेट जगे। वीर जी को छुट्टी लेनी पडी। अगले दिन नहा धोकर वीरजी के स्कूल गये जो बहुत ही शानदार स्थल था। स्कूल में स्टाफ से मिलना और बच्चों से बतियाना मुझे बहुत पंसद आया। भाई पंजाब सरकार में लैक्चरर हैं,भाभीजी प्रसींपल हैं और बेटियां अपनी योग्यता से कनाडा के विश्वविद्यालय में भारत का नाम ऊंचा कर रहीं हैं। शिक्षक पिता के बेटे बहू भी शिक्षक ही हैं। सुवह वीर जी मुझे अपने विध्यालय कंगनवाल स्कूल ब्लाक अहमदगढ ले गये । ये यहां व्याख्याता हैं। ये पंजाब का एक ऐसा सरकारी स्कूल है जो अच्छे अच्छे निजी कान्वेन्ट स्कूलों को मात देता है। शानदार भवन, गजब की साफ सफाई, सारी सुविधाओं से युक्त, पेड पौधों की ठंडी छांव, बेहतर शिक्षा और जानदार स्टाफ । शिक्षक मित्र G N Singh Grewal एवं भाभीजी Jaswinder Kaur Grewal के स्कूलों में जाने का मौका मिला। कसम से सरकारी स्कूलों की इतनी अच्छी स्थिति देखकर दिल खुश हो गया। काश राजस्थान में भी बेहतर स्थिति में आ पाते ।
कंगनबाल स्कूल का बहुत लम्बा चौडा मैदान, उसमें शारीरिक शिक्षकों की उपस्थिति में अलग अलग कौनों पर अलग अलग बेसबाल से खेलते बच्चे बच्चियां, राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीतने बाले खिलाडियों से मिलना मेरे लिये बहुत सुखद था लेकिन थोडी जलन पैदा करने बाला भी था क्यूं कि हमारे यहां शारीरिक शिक्षकों की सारी योग्यता नेतागीरी में ही दिखाई देती है, मैदान में नहीं। टूर्नामैंट और खेल सामग्री सिर्फ कागजों में ही दिखाई जाती है, मैदान में नहीं।
आफिस, रसोईघर, लैब ही नहीं बल्कि पूरा प्रांगण ही एकदम cleanly decorated और well arranged मिला। हरे हरे पेड पौधों ने स्कूल की सुंदरता में चार लगा रखे हैं। कम्प्यूटर लैब में करीब पचास साठ कम्प्यूटर और शिक्षिका की सतर्क उपस्थिति में काम करते बच्चे मेरी जलन को और बढा रहे थे क्यूंकि हमारे यहां तो बच्चे कभी कम्प्यूटर की शक्ल तक नहीं देख पाते।
मध्यान्ह भोजन हेतु साफ सुथरे बर्तनों की एक ट्रौली, खाने के लिये प्रौपर स्थान और एकदम चमचमाती रसोई ने मुझे गुरुद्वारों के लंगर प्रसादा की याद दिला दी। बेहद अनुशाषित तरीके से भोजन गृहण करना निसंदेह लंगर से ही सीखा जा सकता है। कंगनबाल स्कूल के प्राचार्य तो मुझे कोई धार्मिक गुरू जैसे लगे। बेहद सौम्य और शांत स्वभाव । कंगनवाल स्कूल अहमदगढ के लतीफ मौहम्मद जी की बेटी परवीन ने छोटी सी उम्र में बाक्सिंग में राष्ट्रीय स्तर पर दो बार गोल्ड मेडल जीत कर निसंदेह ना केबल पंजाब का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है।
रसीन स्कूल की प्राचार्य तो स्वंय भाभीजी ही हैं जिन्हौने अपने पूरे स्कूल को अपने घर जैसा सजा रखा है। केवल दो तीनों स्कूलों की विजिट ने ही पूरे पंजाब के स्कूलों का एक चित्र खींच दिया है। सारी शैक्षिक विशेषताओं और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर सुवह सुवह बडी सी नहर के किनारे हरे भरे पेडों के बीच सुनसान सडक पर कार खडी कर पैदल चलना और वीर जी से आध्यात्म सीखना बहुत ही यादगार पल था मेरे लिये। पूरा दिन अहमदगढ घुमने में ही व्यतीत कर दिया। वीरजी के मम्मी पापा से भी मिले। आशीर्वाद लिया। भाभीजी के स्कूल भी गये तो एक दो गांव का भी भ्रमण किया। रास्ते में एक दो मंदिर भी गये। गुग्गामेडी मंदिर। मूलत: हनुमानगढ के गोगाजी राजस्थान के लोकदेवता हैं जो जाहरपीर के नाम से भी जाने जाते हैं। पास ही एक गांव था बहरामपुर जिसकी हर दीवार रंगीन थी। किसी कनाडावासी सिख भाई ने हर घर की दीवार रंगने में लाखों रुपया खर्च किया था। हम गांव में घूम ही रहे थे कि एक सरदारजी ने हमारा परिचय लिया। जैसे ही वीरजी ने हमारे बारे में बताया, वो हमें अपने घर रोटी पानी के लिये ले जाने लगे। पूरा सम्मान मिला हमें गांव में। मुझे जूते भी खरीदने थे। बाजार में जब मुस्ताक खान साहब की दुकान पर हम पहुंचे तो हिन्दू मुस्लिम सिख की त्रिवेणी हो गयी। संयोग कुछ ऐसा बना कि धार्मिक और आध्यात्मिक चर्चा चल पडी। बातों ही बातों में खानसाहब ने अल्लाहताला द्वारा "हक " की दस्तूर निभानी की बात बतायी। थोडी देर बाद जब हम जाने लगे तो उन्हौने पैसे लेने से इंकार कर दिया । तभी बडे वीरजी ने उन्ही की "हक" बाली बात याद दिलायी तो वे रुपये लेने को तैयार हो गये पर शायद उन्हौने मुझसे केवल जूतों की खरीद ही ली थी। मुनाफा नहीं लिया था मुझसे। ये मुहब्बत थी खान साहब की अपने मेहमान के प्रति। एक दो और दोस्तों से भी मिले। कुल मिलाकर अहमदगढ में मुझे बिल्कुल भी नहीं लगा कि मैं अपने घर से बाहर हूं। वीरजी ने पहले ही कह रखा था कि यही समझो तुम धौलपुर बाले घर में ही हो। एक दिन रुकने में सारी थकान भी चली गयी। कपडे भी धुल गये और पंजाबी जीवन का आनंद भी मिल गया। मजा आ गया। मेरी घुमक्कडी सफल रही। दिल खुश हो गया पंजाब आकर । दिल जीत लिया पंजाब ने।
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