Monday, January 16, 2017

चंबल के भरके

चम्बल घाटी की यात्रा ।।
आगरा और ग्वालियर के बीच धौलपुर मुरैना घुमक्कडों एवं पर्यटकों की नजर में आ गया होता तो आज यहां सैलानियों की कतार लग रही होती। डाकुओं के लिये कुख्यात इस क्षेत्र में घूमने की बहुत सारी जगहें हैं। राजपूतों के बनाये हुये प्राचीन मंदिर ककनमठ, बटेश्वर, चौसठ योगिनी एवं शनिश्चरा मंदिर हैं, मुगलों द्वारा बनवाये हुये स्मारक हैं तो चंबल के नजदीक ही बहुत बडा वन क्षेत्र भी है।
तौमर महाराज अनंगपाल जी ने दिल्ली के बाद अपना अतिंम समय चंबल की तलहटी में बिताया और यहीं उन्हौने अपना महल एवं अपनी देवी भवेश्वरी का मंदिर बनबाया।
धौलपुर से महज पचास किमी क्षेत्र में होने के वावजूद मैं कभी अपनी प्राचीन विरासतों को नहीं देख पाया। कुछ दिनों पहले Switzerland से आये संजय कोटियाल भैया ने ककनमठ और मितावली की इन अमूल्य धरोहरों की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया। होली की छुट्टियां थीं तो सोचा , क्यूं न चंबल की घाटी का भ्रमण किया जाय। ऐसे तो धौलपुर से सीधा हाईवे NH-3 मुरैना की तरफ जाता है जहां से मितावली की लिये सीधा रास्ता है कितुं मुझे तो हमेशा उबड खाबड डगर पर चलने की आदत है इसलिये मैंने दूसरा रास्ता चुना। एकदम सोर्टकट , चंबल के वीहडों को पार करते हुये।
धौलपुर राजाखेडा रोड पर जाटौली मोड होते हुये शंकलपुरा घाट और फिर नाव से चंबल पार कर सीधे भवेश्वरी देवी का मंदिर।
चंबल के किनारे घनघोर वीहडों में काफी ऊंचाई पर स्थित तौमर राजा अनंगपाल की कुलदेवी भवेश्वरी या चिल्ला माता का मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से भले ही महत्वपूर्ण न हो लेकिन प्राकृतिक सौदंर्य के मामले बहुत कीमती है। मंदिर के एक तरफ राजस्थान है दूसरी तरफ मध्यप्रदेश तो थोडा सा आगे चलकर ही उत्तरप्रदेश भी है। इस क्षेत्र में चंबल के दोनों ही तरफ तौमर बसते हैं।
मंदिर एक ऊंची पहाडी पर स्थित है जिसके चारों ओर दूर दूर तक डरावने चंबल के भरखा / खादर नजर आते हैं। एकदम सुनसान कच्चा रास्ता। चंबल के अलावा पानी का और कोई श्रोत न होने के वावजूद मुझे  प्रकृति का एक चमत्कार भी नजर आया। मंदिर के नीचे से एक झरना अनवरत पानी फैंके जा रहा है जिसका मुझे पता नहीं चल पाया कि इसका श्रोत क्या होगा। प्रक्रति में ऐसे हजारों अजूवे भरे पडे हैं जिन्हें हम आस्था के चलते देवी का वरदान मान लेते हैं।
डाकू जगजीवन परिहार इस मंदिर पर अक्सर आता रहता था। एक बार उसने एक लाख रूपये दान कर भंडारा भी कराया था। उसी भंडारे में एसपी साहब भी पहुंचे थे पर डाकू और पुलिस में से कोई भी अपना हथियार ऊपर न ले जा सके। हजारों ग्रामीणों की श्रद्धा के चलते पुलिष को भी खाली हाथ लौटना पडा । मैया का प्रसाद लेकर जगजीवन भी चला गया।
इतनी खतरनाक जगह पर मंदिर होने के वावजूद मुझे वहां वैश्य परिवार की काफी महिलायें और बच्चे मैया का आशीर्वाद लेते नजर आये। ऊंची पहाडी, ठंडी ठंडी वयार के झोंके, एक तरफ हरे भरे खेत और दूजी तरफ चंबल के खतरनाक टीलों के बीच नागिन सी लहराती चंबल मुझे स्वर्गलोक का अनुभव दे रहीं थीं।
जारी है ...... 












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