घुमक्कडी भी दो प्रकार की होती है। एक तो वो घुमक्कड हैं जो रास्ते को अनदेखा करते हुये सिर्फ लक्ष्य पर पहुंचना चाहते हैं, और दूसरे वो जिनके लिये हर अगला पौईंट ही लक्ष्य होता है, दोस्तों से मिलते मिलाते खुशी गम में शरीक होते आगे बढते जाते हैं। मैं चाहता तो दिल्ली से सीधे ही नैना देवी मंदिर आ सकता था पर मेरे चाहने बाले तो हरियाणा पंजाब बुला रहे थे इसलिये रास्ता घुमा दिया। बैसे भी हरियाणा पंजाब भारत की शान हैं और मेरी सांसो में बसते हैं, तो क्यूं न पांच नदियों की सिंचित भूमि के हरे भरे खेतों से होकर गुजरा जाय।
मुंबई आगरा NH-3 , आगरा के रौहता चौराहे पर NH-2 वाईपास से मिल जाता है जो रुनकता गांव ( सूरदास की जन्मस्थली ) से होते हुये मथुरा दिल्ली के लिये निकलता है। अगर आप आप मथुरा से यमुना एक्सप्रैस हाईवे पर जाना चाहते हैं तो मथुरा के टाउनसिप चौराहे से यमुना पार कर हाथरस रोड पर 12 km चलना होगा। सुवह पांच बजे अपने दोस्त संजू Raghav Rupendra और उसकी 150 cc हीरो वाईक लेकर नोएडा के लिये रवाना । मथुरा से हीरो वाइक लेकर यमुना एक्सप्रैस वे से ग्रेटर नोएडा होते हुये नोएडा पहुंचना है जहां रात्रि विश्राम मित्र पंकज परिहार के यहां हुआ। ग्रेटर नोएडा में मित्र अजय शर्मा जी से मिलते हुये आगे बढा जायेगा। मेरी यात्रा का उद्देश्य कभी स्थानों को छूना भर नहीं होता। मैं उस स्थान को जीता हूं। मित्रों से मिलते मिलाते आगे बढना था। घुमक्कडी का उद्देश्य ज्ञान और रिश्तों की डोर को जोडना हो तो बात ही अलग है।
यात्रा के पहले दिन सोचा था कि दिल्ली पार कर जायेंगे लेकिन अजय भैया के यहां काफी समय हो गया था। उधर गाडी में भी थोडा काम कराया था।
मैंने तो बस इतना लिखा था कि मुझे बस मुहब्बत करना आता है, दोस्त बनाना अच्छा लगता है, क्या पता था कि दुनियां ऐसे मुहब्बती लोगों से भरी पडी है।
नोएडा के अजय शर्मा जी जो बिजनेसमैन हैं और उनकी पत्नि किसी कंपनी में चीफ मैनेजर हैं, मेरे नोएडा आने की खबर सुनते ही खुश हो गये। उनसे ज्यादा खुशी मुझे थी क्यूं कि मैं एक बार किसी पोस्ट के सिलसिले में फोन पर बात कर चुका था और मिलने का इच्छुक था। एक सैनिक के बेटे से कौन मिलना नहीं चाहेगा। शहर के मैन चौराहे पर ही कार लेकर हमें रास्ता बताने आ गये ताकि हमें कोई परेशानी न हो। मैंने सोचा था कि मैं इनके पास केवल एक घंटे ही रुकुगां क्यूं कि मेरे तीन चार जिगरी मेरा इंतजार कर रहे थे और मेरे इंतजार में अपना पूरा दिन खराब कर बैठे थे, पर क्या बताऊं यार ? भैया भाभी , दोनों ही एक जैसे निकले। उठने ही न दें। जब भी चलने की बात आय , अपने ज्ञान और अनुभव के भंवरजाल में लपेट लें। भाभीजी भी मां शारदे की पुजारिन निकलीं। उनकी पुस्तकों के शौक ने बहुत प्रभावित किया मुझे। खैर
खाते रहे पीते रहे और भाई का गाना भी सुनते रहे। किशोर दा मैं तो जबर्दस्त फैन हूं और ये ठहरे गजब के सिंगर । एक बार सुना तो बस सुनता ही गया।
अजय भैया ने जब हमारी फरमाईश पर किशोर दा का " ये लाल रंग मुझे कब छोडेगा " गाया न तो बस पूछो ही मत । मैं तो जैसे खो कर ही रह गया ।
मेरे पार्टनर Raghav Rupendra भी बहुत अच्छे सिगंर हैं । देखा देखी वो भी शुरू हो गये। मजा आ गया। अन्य दोस्तों के बुलावे पर बुलावे आ रहे थे । न चाहते हुये भी वो संगीत की स्वीट महफिल छोडनी पडी।
तभी मेरे जैसे ही फक्कड मित्र पंकज परिहार का फौन आता है। पता चलते ही कि पंकज कुंवारा है और अकेला रहता है अपने फ्लैट में, मैंने वहीं रात बिताने का पक्का मन बना लिया था। मुझे फक्कडों के पास रुकने में बडा आनंद आता है। जो मन में आये वो करो। कोई रोकटोक नहीं। पंकज भी इतना मस्त लडका है कि मुझे किसी भी काम से हाथ नहीं लगाने दिया। रसोई में खुद ही बनाया। अब क्या बनाया, ये नहीं बताऊगां मैं। कह रहा था एक दिन और रुक जाओ, मैं छुट्टी ले लुगां, अभी मन नहीं भरा। हहहह अब बताओ क्या नाम दूं इन रिश्तों को ? क्या ये आभाषी रिश्ते हैं ? रात को इतना लेट सोये फिर भी सुवह चार बजे ही जगकर नहाना धोना और फिर चल देना, ये सब घुमक्कडी में ही संभव है और अकेले ही संभव है परिवार के साथ नहीं।
नोएडा से निकलते ही हमें रिंग रोड पर दिल्ली का चक्कर लगाते हुये NH-10 रोहतक रोड पर मूंडका पहुंचना था जहां मेरे एक और जिगरी Anwar Bharti जाने कब से मेरी राह तक रहे थे पर मिलने का संयोग ही नहीं बैठ रहा था।
संयोग कुछ ऐसा था कि अनवर भाई भी अकेले थे क्यूंकि उनके बच्चे एक दिन पहले ही रिश्तेदारी में गये थे। नास्ते का समय हो चला था। इस से पहले कि वो बाजार से कुछ लाते हमने उनकी रसोई पर कब्जा कर लिया। बहुत दिनों बाद मौका मिला था रसोई में काम करने का। कालेज के दिन याद आ गये। शानदार मोटे मोटे बडे बडे पराठे बनाये। दही के साथ खुद भी खाये और भाई को भी खिलाये। मजा आ गया। पंकज परिहार एकदम बिंदास लडका है। एकदम मस्त। अकेला रहता है फ्लैट में। मेरे लाख कोशिषों के वावजूद किसी काम से हाथ न लगाने दिया। खुद ने ही खाना बनाया। मस्त खाना । मजा आ गया।
घुमक्कडी और पर्यटन में अतंर होता है। पर्यटन जहां पूरी तरह छुट्टियों का आनंद लेने के लिये होता है और जीवन की भागदौड से अलग कुछ समय परिवार के साथ बिताने के लिये किया जाता है वहीं दूसरी ओर घुमक्कडी पूरी तरह फक्कडी जुनून है। उसमें परिवार को साथ नहीं ले जाया सकता। घुमक्कडी का उद्देश्य आत्मसंतुष्टि, नये नये दोस्तों से मिलना मिलाना और भारत के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्राप्त करना होता है। घुमक्कडी कष्टप्रद होती है। चैलेंजेवल होती हैं। सर्दी गर्मी वरसात आंधी तूफान झेलते हुये आगे बढना होता है। शरीर भी टूट जाता है। गाडी पर बैठे बैठे पिछबाडा भी सुन्न पड जाता है। इस यात्रा एक दो बार तो ऐसी नौबत आयी कि मैंने और संजू ने खून दौडाने के लिये गाडी पर से उठकर एक दूसरे के पिछबाडे पर लातों की वर्षा करी थी। हम दोनों एक दूसरे के लात मारे जा रहे थे और आसपास के लोग हमें आगरा के पागल समझ हंसे जा रहे थे।
नोएडा में अजयभैया, पंकज परिहार भाई और मूंडका में अनवर भाई से मिलकर NH- 10 पर सांपला बहादुरगढ रोहतक की ओर रवाना हो गये।
हालांकि काफी तेज धूप हो चली थी पर हमने निकलने में ही भलाई समझी क्यूंकि पराठे खाते ही अनवर भाई का एअरकन्डीशन्ड रुम शरीर में आलस पैदा करने जो लगा था। घुमक्कडी के दौरान शरीर को आराम देना बहुत बडा गुनाह है। आरामतलबी लक्ष्य से भटका सकती है अत: जाटों के गढ हरियाणा की ओर निकलने में ही भलाई समझी।
चूंकि मैं पेड पौधों , हरे भरे खेतों, देहाती लोगों एवं उनके ग्रामीण जीवन एवं नदी नहर के पानी आदि का बहुत भूखा हूं, इसलिये हरियाणा पंजाब को नजदीक से देखने का शुरु से ही इच्छुक रहा हूं।
हालांकि हरियाणा में ज्यादा समय बिताने का मौका नहीं मिला फिर भी एक दिन में इसकी झलक तो पा ही ली थी। कहने को तो NH-10 पर मूंडका निकलते ही बहादुरगढ रोहतक हरियाणा की शुरुआत कर देते हैं, फिर भी दिल्ली का असर बहुत ज्यादा है। बहादुरगढ तक बडी बडी बिल्डिगं और फर्म्स हाईवे को घेरे हुये हैं। असली हरियाणा के दर्शन तो बहादुरगढ से रोहतक की ओर निकलने के बाद ही होते हैं। चूंकि मैं जाट हूं और हरियाणा पंजाब जाटों के गढ हैं, अपने समुदाय के रहन सहन बोली भाषा आदि की संस्कृति को जानने की इच्छा मेरे मन में भी थी। अमेरिका में परिवार समेत बस चुके भाई रणवीर दलाल जी को जैसे ही मालुम चला कि मैं उनके गांव की ओर जा रहा हूं, मुझसे बोले,
" सत्यपाल भाई गांव में अब मेरा परिवार तो नहीं रहता पर मुझे अपने गांव के खेतों गलियों बाग बगीचों चौपाल मंदिर आदि की बहुत याद आती है। यदि हो सके तो हाईवे पर पडने बाले गांवों के फोटो भेज देना। दिल को तसल्ली हो जायेगी।"
परदेश में जाकर अपने देश की मिट्टी के लिये कैसे हूक सी उठती है, ये मैं मेहसूस कर चुका हूं अत: उन्ही के गांव आसोदा की तरफ गाडी मोड दी। हाईवे से बस दो किमी अदंर ही तो चलना था और मेरा ये काम किसी को बहुत ज्यादा आत्मिक खुशी देने जा रहा था तो ये काम मैं क्यूं न करुं ?
गांव में घुसते ही साक्षात गांव के दर्शन हो गये जिसकी चाह में मैंने NH-1 की जगह NH-10 पकडा था।
एक बडा सा मंदिर बहुत सारे पेड पेडों के नीचे बने चबूतरों पर बैठीं घूंघट में बतियाती महिलाएं, तालाब से स्नान कर निकलती भैंसें । तू तडाक बाली अक्खड जाटों की बोली भाषा, सपाट व्यवहार , ये सब ही तो देखने आया था। मैं जब इस पूरे माहोल की वीडियो रिकार्डिंग कर रहा था, तालाब से निकलती भैंसों ने मुझे घेर लिया। भैंसों को हांकती हुयी लडकी एकदम खडी बोली में दहाडी,
" अरे कैमरे बाडे ताऊ, कै कर रिया सै। तन्नै दीखै कौन्नी, परे हट जा, पता नहीं चडेगा तेरा।"
हहहहह मजा आ गया । ठेठ हरियाणवी सुनकर पर दुख इस बात का था कि जाटनी मुझसे ताऊ बोल गयी ।
हहह खैर समय की कमी थी और अभी जाटों के सरताज सर छोटूराम जी की जन्मस्थली गढी सांपला भी जाना था। उनके परिवार से मिलना था। उस गांव की गलियों में डोलना था जिसने ऐसी महान आत्मा को पैदा किया था।
हालांकि हमने नियम बनाया था कि दोपहर में आराम किया करेंगे लेकिन हरियाणे के गांवों में भटकने में इतना खो गया कि पूरी दुपहरी सर पर होकर निकल गयी।
पुन: हाईवे पर आकर रोहतक की ओर आगे बढने लगा ही था कि खाटू श्याम मंदिर रोबर का बोर्ड लगा देखा। मैं उसे अनदेखा कर आगे बढ गया पर संजू तो बंशीबारे का परम भक्त है। तुरंत लौटा लिया। बोला, चाहे कितना ही दूर हो अब तो बंशीबारे से मिलकर ही चलेंगे। मात्र एक किमी पर ही तालाब के किनारे रोवर गांव में खाटूश्याम जी एवं माता मंदिर स्थित है। बहुत ही रमणीक जगह। शांत प्राकृतिक धार्मिक स्थल। हमारी वीडियो रिकार्डिगं देखकर गांव के बंदे आ गये। घर ले जाने एवं रोटी खिलाने की जिद करने लगे पर हम उनका शुक्रिया अदा कर आगे बढ गये।
बहां गढी सांपला को गड्डी बोला जाता है तब उनके समझ आता है। थोडा सा ही आगे चलकर हाईवे पर एक मंदिर और उससे सटी बडी सी नहर में कूद कूद कर नहाते जाटों के पहलवान लौंडे। मेरी आत्मा कुदबुदाने लगी। बार बार मन कर रहा था कूद जाऊं मैं भी। टीकाटीक दुपहरी में पसीने में नहाना बीमार कर सकता था। जैसे तैसे मन को साधा और सामने ही गांव गढी की उस हवेली की ओर बढ गया जिससे देश के एक सच्चे सपूत सर छोटूराम को पैदा किया था। हाईवे पर ही इनके नाम का एक बहुत बडा पार्क और संगृहालय बना हुआ है । देश में और भी बहुत सी जगह इनके स्मारक बने हैं। मेरी खुशकिस्मती रही कि मैं उनके परिवार के साथ उनकी हवेली में बैठ कर उनसे बतिया कर आया हूं। पार्क में भी घूमा।
रोहतक के नजदीक से ही एक शिक्षक मित्र अनिल वर्मा जी मिलने को सुवह से फोन पर थे।
रोहतक पार कर लाखन माजरा निकला ही था कि जोरदार आंधी तूफान बरसात ने अपने चपेटे में ले लिया। एक घंटे के बाद शांत तो हुआ पर सब कुछ उजाड गया। रोड पर चारों और टूटे हुये पेड, उजडी हुयी झौंपडियां और टीन टप्पर। पेडों को रोड से जेसीबी से जाम खुलबाती पुलिस। जैसे तैसे अनिल भाई के दोस्त अजय के होटल पहुंचे जो खुद तूफान की बदनियती की कहानी गा रहा था। खैर कुछ भी हो तूफान की बजह से धूप गायब हो गयी थी। मौसम सुहावना हो गया था। पर अंधकार बढता जा रहा था और रोड खराब होता जा रहा था। कुल मिलाकर यात्रा का ये दिन बहुत ही ज्यादा उठापटक बाला लेकिन रोमांचक रहा।
मुंबई आगरा NH-3 , आगरा के रौहता चौराहे पर NH-2 वाईपास से मिल जाता है जो रुनकता गांव ( सूरदास की जन्मस्थली ) से होते हुये मथुरा दिल्ली के लिये निकलता है। अगर आप आप मथुरा से यमुना एक्सप्रैस हाईवे पर जाना चाहते हैं तो मथुरा के टाउनसिप चौराहे से यमुना पार कर हाथरस रोड पर 12 km चलना होगा। सुवह पांच बजे अपने दोस्त संजू Raghav Rupendra और उसकी 150 cc हीरो वाईक लेकर नोएडा के लिये रवाना । मथुरा से हीरो वाइक लेकर यमुना एक्सप्रैस वे से ग्रेटर नोएडा होते हुये नोएडा पहुंचना है जहां रात्रि विश्राम मित्र पंकज परिहार के यहां हुआ। ग्रेटर नोएडा में मित्र अजय शर्मा जी से मिलते हुये आगे बढा जायेगा। मेरी यात्रा का उद्देश्य कभी स्थानों को छूना भर नहीं होता। मैं उस स्थान को जीता हूं। मित्रों से मिलते मिलाते आगे बढना था। घुमक्कडी का उद्देश्य ज्ञान और रिश्तों की डोर को जोडना हो तो बात ही अलग है।
यात्रा के पहले दिन सोचा था कि दिल्ली पार कर जायेंगे लेकिन अजय भैया के यहां काफी समय हो गया था। उधर गाडी में भी थोडा काम कराया था।
मैंने तो बस इतना लिखा था कि मुझे बस मुहब्बत करना आता है, दोस्त बनाना अच्छा लगता है, क्या पता था कि दुनियां ऐसे मुहब्बती लोगों से भरी पडी है।
नोएडा के अजय शर्मा जी जो बिजनेसमैन हैं और उनकी पत्नि किसी कंपनी में चीफ मैनेजर हैं, मेरे नोएडा आने की खबर सुनते ही खुश हो गये। उनसे ज्यादा खुशी मुझे थी क्यूं कि मैं एक बार किसी पोस्ट के सिलसिले में फोन पर बात कर चुका था और मिलने का इच्छुक था। एक सैनिक के बेटे से कौन मिलना नहीं चाहेगा। शहर के मैन चौराहे पर ही कार लेकर हमें रास्ता बताने आ गये ताकि हमें कोई परेशानी न हो। मैंने सोचा था कि मैं इनके पास केवल एक घंटे ही रुकुगां क्यूं कि मेरे तीन चार जिगरी मेरा इंतजार कर रहे थे और मेरे इंतजार में अपना पूरा दिन खराब कर बैठे थे, पर क्या बताऊं यार ? भैया भाभी , दोनों ही एक जैसे निकले। उठने ही न दें। जब भी चलने की बात आय , अपने ज्ञान और अनुभव के भंवरजाल में लपेट लें। भाभीजी भी मां शारदे की पुजारिन निकलीं। उनकी पुस्तकों के शौक ने बहुत प्रभावित किया मुझे। खैर
खाते रहे पीते रहे और भाई का गाना भी सुनते रहे। किशोर दा मैं तो जबर्दस्त फैन हूं और ये ठहरे गजब के सिंगर । एक बार सुना तो बस सुनता ही गया।
अजय भैया ने जब हमारी फरमाईश पर किशोर दा का " ये लाल रंग मुझे कब छोडेगा " गाया न तो बस पूछो ही मत । मैं तो जैसे खो कर ही रह गया ।
मेरे पार्टनर Raghav Rupendra भी बहुत अच्छे सिगंर हैं । देखा देखी वो भी शुरू हो गये। मजा आ गया। अन्य दोस्तों के बुलावे पर बुलावे आ रहे थे । न चाहते हुये भी वो संगीत की स्वीट महफिल छोडनी पडी।
तभी मेरे जैसे ही फक्कड मित्र पंकज परिहार का फौन आता है। पता चलते ही कि पंकज कुंवारा है और अकेला रहता है अपने फ्लैट में, मैंने वहीं रात बिताने का पक्का मन बना लिया था। मुझे फक्कडों के पास रुकने में बडा आनंद आता है। जो मन में आये वो करो। कोई रोकटोक नहीं। पंकज भी इतना मस्त लडका है कि मुझे किसी भी काम से हाथ नहीं लगाने दिया। रसोई में खुद ही बनाया। अब क्या बनाया, ये नहीं बताऊगां मैं। कह रहा था एक दिन और रुक जाओ, मैं छुट्टी ले लुगां, अभी मन नहीं भरा। हहहह अब बताओ क्या नाम दूं इन रिश्तों को ? क्या ये आभाषी रिश्ते हैं ? रात को इतना लेट सोये फिर भी सुवह चार बजे ही जगकर नहाना धोना और फिर चल देना, ये सब घुमक्कडी में ही संभव है और अकेले ही संभव है परिवार के साथ नहीं।
नोएडा से निकलते ही हमें रिंग रोड पर दिल्ली का चक्कर लगाते हुये NH-10 रोहतक रोड पर मूंडका पहुंचना था जहां मेरे एक और जिगरी Anwar Bharti जाने कब से मेरी राह तक रहे थे पर मिलने का संयोग ही नहीं बैठ रहा था।
संयोग कुछ ऐसा था कि अनवर भाई भी अकेले थे क्यूंकि उनके बच्चे एक दिन पहले ही रिश्तेदारी में गये थे। नास्ते का समय हो चला था। इस से पहले कि वो बाजार से कुछ लाते हमने उनकी रसोई पर कब्जा कर लिया। बहुत दिनों बाद मौका मिला था रसोई में काम करने का। कालेज के दिन याद आ गये। शानदार मोटे मोटे बडे बडे पराठे बनाये। दही के साथ खुद भी खाये और भाई को भी खिलाये। मजा आ गया। पंकज परिहार एकदम बिंदास लडका है। एकदम मस्त। अकेला रहता है फ्लैट में। मेरे लाख कोशिषों के वावजूद किसी काम से हाथ न लगाने दिया। खुद ने ही खाना बनाया। मस्त खाना । मजा आ गया।
घुमक्कडी और पर्यटन में अतंर होता है। पर्यटन जहां पूरी तरह छुट्टियों का आनंद लेने के लिये होता है और जीवन की भागदौड से अलग कुछ समय परिवार के साथ बिताने के लिये किया जाता है वहीं दूसरी ओर घुमक्कडी पूरी तरह फक्कडी जुनून है। उसमें परिवार को साथ नहीं ले जाया सकता। घुमक्कडी का उद्देश्य आत्मसंतुष्टि, नये नये दोस्तों से मिलना मिलाना और भारत के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्राप्त करना होता है। घुमक्कडी कष्टप्रद होती है। चैलेंजेवल होती हैं। सर्दी गर्मी वरसात आंधी तूफान झेलते हुये आगे बढना होता है। शरीर भी टूट जाता है। गाडी पर बैठे बैठे पिछबाडा भी सुन्न पड जाता है। इस यात्रा एक दो बार तो ऐसी नौबत आयी कि मैंने और संजू ने खून दौडाने के लिये गाडी पर से उठकर एक दूसरे के पिछबाडे पर लातों की वर्षा करी थी। हम दोनों एक दूसरे के लात मारे जा रहे थे और आसपास के लोग हमें आगरा के पागल समझ हंसे जा रहे थे।
नोएडा में अजयभैया, पंकज परिहार भाई और मूंडका में अनवर भाई से मिलकर NH- 10 पर सांपला बहादुरगढ रोहतक की ओर रवाना हो गये।
हालांकि काफी तेज धूप हो चली थी पर हमने निकलने में ही भलाई समझी क्यूंकि पराठे खाते ही अनवर भाई का एअरकन्डीशन्ड रुम शरीर में आलस पैदा करने जो लगा था। घुमक्कडी के दौरान शरीर को आराम देना बहुत बडा गुनाह है। आरामतलबी लक्ष्य से भटका सकती है अत: जाटों के गढ हरियाणा की ओर निकलने में ही भलाई समझी।
चूंकि मैं पेड पौधों , हरे भरे खेतों, देहाती लोगों एवं उनके ग्रामीण जीवन एवं नदी नहर के पानी आदि का बहुत भूखा हूं, इसलिये हरियाणा पंजाब को नजदीक से देखने का शुरु से ही इच्छुक रहा हूं।
हालांकि हरियाणा में ज्यादा समय बिताने का मौका नहीं मिला फिर भी एक दिन में इसकी झलक तो पा ही ली थी। कहने को तो NH-10 पर मूंडका निकलते ही बहादुरगढ रोहतक हरियाणा की शुरुआत कर देते हैं, फिर भी दिल्ली का असर बहुत ज्यादा है। बहादुरगढ तक बडी बडी बिल्डिगं और फर्म्स हाईवे को घेरे हुये हैं। असली हरियाणा के दर्शन तो बहादुरगढ से रोहतक की ओर निकलने के बाद ही होते हैं। चूंकि मैं जाट हूं और हरियाणा पंजाब जाटों के गढ हैं, अपने समुदाय के रहन सहन बोली भाषा आदि की संस्कृति को जानने की इच्छा मेरे मन में भी थी। अमेरिका में परिवार समेत बस चुके भाई रणवीर दलाल जी को जैसे ही मालुम चला कि मैं उनके गांव की ओर जा रहा हूं, मुझसे बोले,
" सत्यपाल भाई गांव में अब मेरा परिवार तो नहीं रहता पर मुझे अपने गांव के खेतों गलियों बाग बगीचों चौपाल मंदिर आदि की बहुत याद आती है। यदि हो सके तो हाईवे पर पडने बाले गांवों के फोटो भेज देना। दिल को तसल्ली हो जायेगी।"
परदेश में जाकर अपने देश की मिट्टी के लिये कैसे हूक सी उठती है, ये मैं मेहसूस कर चुका हूं अत: उन्ही के गांव आसोदा की तरफ गाडी मोड दी। हाईवे से बस दो किमी अदंर ही तो चलना था और मेरा ये काम किसी को बहुत ज्यादा आत्मिक खुशी देने जा रहा था तो ये काम मैं क्यूं न करुं ?
गांव में घुसते ही साक्षात गांव के दर्शन हो गये जिसकी चाह में मैंने NH-1 की जगह NH-10 पकडा था।
एक बडा सा मंदिर बहुत सारे पेड पेडों के नीचे बने चबूतरों पर बैठीं घूंघट में बतियाती महिलाएं, तालाब से स्नान कर निकलती भैंसें । तू तडाक बाली अक्खड जाटों की बोली भाषा, सपाट व्यवहार , ये सब ही तो देखने आया था। मैं जब इस पूरे माहोल की वीडियो रिकार्डिंग कर रहा था, तालाब से निकलती भैंसों ने मुझे घेर लिया। भैंसों को हांकती हुयी लडकी एकदम खडी बोली में दहाडी,
" अरे कैमरे बाडे ताऊ, कै कर रिया सै। तन्नै दीखै कौन्नी, परे हट जा, पता नहीं चडेगा तेरा।"
हहहहह मजा आ गया । ठेठ हरियाणवी सुनकर पर दुख इस बात का था कि जाटनी मुझसे ताऊ बोल गयी ।
हहह खैर समय की कमी थी और अभी जाटों के सरताज सर छोटूराम जी की जन्मस्थली गढी सांपला भी जाना था। उनके परिवार से मिलना था। उस गांव की गलियों में डोलना था जिसने ऐसी महान आत्मा को पैदा किया था।
हालांकि हमने नियम बनाया था कि दोपहर में आराम किया करेंगे लेकिन हरियाणे के गांवों में भटकने में इतना खो गया कि पूरी दुपहरी सर पर होकर निकल गयी।
पुन: हाईवे पर आकर रोहतक की ओर आगे बढने लगा ही था कि खाटू श्याम मंदिर रोबर का बोर्ड लगा देखा। मैं उसे अनदेखा कर आगे बढ गया पर संजू तो बंशीबारे का परम भक्त है। तुरंत लौटा लिया। बोला, चाहे कितना ही दूर हो अब तो बंशीबारे से मिलकर ही चलेंगे। मात्र एक किमी पर ही तालाब के किनारे रोवर गांव में खाटूश्याम जी एवं माता मंदिर स्थित है। बहुत ही रमणीक जगह। शांत प्राकृतिक धार्मिक स्थल। हमारी वीडियो रिकार्डिगं देखकर गांव के बंदे आ गये। घर ले जाने एवं रोटी खिलाने की जिद करने लगे पर हम उनका शुक्रिया अदा कर आगे बढ गये।
बहां गढी सांपला को गड्डी बोला जाता है तब उनके समझ आता है। थोडा सा ही आगे चलकर हाईवे पर एक मंदिर और उससे सटी बडी सी नहर में कूद कूद कर नहाते जाटों के पहलवान लौंडे। मेरी आत्मा कुदबुदाने लगी। बार बार मन कर रहा था कूद जाऊं मैं भी। टीकाटीक दुपहरी में पसीने में नहाना बीमार कर सकता था। जैसे तैसे मन को साधा और सामने ही गांव गढी की उस हवेली की ओर बढ गया जिससे देश के एक सच्चे सपूत सर छोटूराम को पैदा किया था। हाईवे पर ही इनके नाम का एक बहुत बडा पार्क और संगृहालय बना हुआ है । देश में और भी बहुत सी जगह इनके स्मारक बने हैं। मेरी खुशकिस्मती रही कि मैं उनके परिवार के साथ उनकी हवेली में बैठ कर उनसे बतिया कर आया हूं। पार्क में भी घूमा।
रोहतक के नजदीक से ही एक शिक्षक मित्र अनिल वर्मा जी मिलने को सुवह से फोन पर थे।
रोहतक पार कर लाखन माजरा निकला ही था कि जोरदार आंधी तूफान बरसात ने अपने चपेटे में ले लिया। एक घंटे के बाद शांत तो हुआ पर सब कुछ उजाड गया। रोड पर चारों और टूटे हुये पेड, उजडी हुयी झौंपडियां और टीन टप्पर। पेडों को रोड से जेसीबी से जाम खुलबाती पुलिस। जैसे तैसे अनिल भाई के दोस्त अजय के होटल पहुंचे जो खुद तूफान की बदनियती की कहानी गा रहा था। खैर कुछ भी हो तूफान की बजह से धूप गायब हो गयी थी। मौसम सुहावना हो गया था। पर अंधकार बढता जा रहा था और रोड खराब होता जा रहा था। कुल मिलाकर यात्रा का ये दिन बहुत ही ज्यादा उठापटक बाला लेकिन रोमांचक रहा।
बहादुरगढ से ऐन निकलते ही सांखौल गांव आता है। यह NH-10 पर ही है। जैसे ही यह गांव खत्म होता है, तुरंत बाद NH-10 से एक सङक बराही गांव की ओर मुङती है। मैं इसी गांव का बाशिंदा हूं। NH-10 से बराही की दूरी है तीन किलोमीटर है। आसौदा मेरा पङोसी गांव है, यही कोई दो किलोमीटर दूरी पर।
ReplyDeleteजो मंदिर आपने देखा वो दादा बुढे का मंदिर है। हर साल रक्षाबंधन के बाद विशाल मेला भी वहांं लगता है जिसमें आधे भारत के राज्यों से लोग आते हैं।
छोटूराम जी जन्मस्थली तक आसौदा से अन्य रास्ता भी जाता है जो जाटों के गांवों से बीच से निकलता है। अगर दोबारा कभी आना हो तो मिलियेगा।
बाकि जाटलैंड की मेरी अागामी यात्रा में...
राम राम।
बहुत खूब भाई
ReplyDeleteकिस महीने में की तिनके यात्रा ?
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