तौमरों की कुलदेवी भवेश्वरी देवी मंदिर के बाद मेरा अगला स्पाट था ककनमठ मंदिर जिसके लिये मैंने सौर्ट रास्ता चुना था जबकि ये मुरैना भिंड हाईवे के नजदीक ही है।
तोमर राजवंश का भव्य शिव मंदिर, जो सिंहोनिया के पास स्थापित है। तोमर राजवंश के राजा सोनपाल तोमर नें इसे 11वीं सदी में बनवाया था। कहा जाता है, कि इस मंदिर को भूतों ने एक रात में बनाया था, लेकिन बनते-बनते सुबह का उजाला हो गया, इसलिए यह मंदिर अधूरा रह गया। आज भी इस मंदिर को देखने पर यही लगता है कि जल्दबाजी में इसका निर्माण अधूरा रह गया। उत्तर भारतीय नागर शैली में 8वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान बने इस मंदिर का वास्तु अंचंभित करने वाला है। पूरी एक 300 फीट ऊंची चट्टान पर उत्कीर्ण कर क्विंटलों बजनी पत्थरों को एक के ऊपर एक रखते हुए बने इस मंदिर में जोड़ने के लिए चूने का गारा इस्तेमाल नहीं हुआ। पुरातत्वविदों के मुताबिक इन पत्थरों को जोड़ने के लिए पिघला हुआ लोहा, शीशा व चूना मिला कर गारा बनाया गया था।
मैं देखकर अचंभित था क्विंटलों वजनी ऊबड़खाबड़ पत्थरों को उठाकर 300 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंचाया होगा ?
सिहोनिया पहुंचते पहुंचते मुझे शाम हो चली थी
ईसा से 200 साल पहले का है आज का सिहोनिया गांव, ईसा के जन्म से 200 साल पहले बल्कि उससे भी पुरानी समृद्ध नगर सभ्यता थी। सिहोनिया कभी भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में शुमार था। आसन, सोन व चंबल नदियों के मार्ग से व्यापारिक काफिले यहां से गुजरा करते थे। ककनमठ मंदिर के परिसर में चारों और कई अवशेष रखे हैं।
ककनमठ मंदिर सिहोनिया कस्वे से कुछ किमी दूर एकदम एकांत में खेतों के बीचोंबीच है इसलिये खुद के वाहन से ही जाना ठीक रहेगा। मंदिर के चारों ओर लहलहाती सरसों और पीले पीले फूल आपको बाध्य करेंगे बहां कुछ और वक्त विताने के लिये। मंदिर परिसर में ही घने पेडों की छाया में बैठकर आप अपना खानापीना भी बना सकते हैं और खा सकते हैं लेकिन सामान आपको लेकर जाना पडेगा क्यूं कि आसपास कोई घर या दुकान नहीं है हालांकि मंदिर परिसर में खाना बनाने का साधन है। पुरातत्व विभाग के कर्मचारी के अलावा एक दो ग्रामीण भी रहते हैं वहां।
शहर की दौडधूप से दूर कुछ पल एकांत में प्रकृति की गोद में विताने का मूड हो तो ककनमठ मंदिर चले जाईये।
मंदिर से लौटते लौटते रात हो गयी, सिहोनिया में एक सरकारी गैस्ट हाऊस देखकर रुकने का मूड बना लिया, तभी पता चला शहर के कौने में भगवान शांतिनाथ जी का एक विशाल जैन मंदिर भी है जहां विशाल धर्मशाला भी है तो सीधे जैनमंदिर ही चला गया। शाम की आरती में शामिल भी हुआ और रात विश्राम करने के लिये बढिया रुम भी मिल गया।
जारी है ......
तोमर राजवंश का भव्य शिव मंदिर, जो सिंहोनिया के पास स्थापित है। तोमर राजवंश के राजा सोनपाल तोमर नें इसे 11वीं सदी में बनवाया था। कहा जाता है, कि इस मंदिर को भूतों ने एक रात में बनाया था, लेकिन बनते-बनते सुबह का उजाला हो गया, इसलिए यह मंदिर अधूरा रह गया। आज भी इस मंदिर को देखने पर यही लगता है कि जल्दबाजी में इसका निर्माण अधूरा रह गया। उत्तर भारतीय नागर शैली में 8वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान बने इस मंदिर का वास्तु अंचंभित करने वाला है। पूरी एक 300 फीट ऊंची चट्टान पर उत्कीर्ण कर क्विंटलों बजनी पत्थरों को एक के ऊपर एक रखते हुए बने इस मंदिर में जोड़ने के लिए चूने का गारा इस्तेमाल नहीं हुआ। पुरातत्वविदों के मुताबिक इन पत्थरों को जोड़ने के लिए पिघला हुआ लोहा, शीशा व चूना मिला कर गारा बनाया गया था।
मैं देखकर अचंभित था क्विंटलों वजनी ऊबड़खाबड़ पत्थरों को उठाकर 300 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंचाया होगा ?
सिहोनिया पहुंचते पहुंचते मुझे शाम हो चली थी
ईसा से 200 साल पहले का है आज का सिहोनिया गांव, ईसा के जन्म से 200 साल पहले बल्कि उससे भी पुरानी समृद्ध नगर सभ्यता थी। सिहोनिया कभी भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में शुमार था। आसन, सोन व चंबल नदियों के मार्ग से व्यापारिक काफिले यहां से गुजरा करते थे। ककनमठ मंदिर के परिसर में चारों और कई अवशेष रखे हैं।
ककनमठ मंदिर सिहोनिया कस्वे से कुछ किमी दूर एकदम एकांत में खेतों के बीचोंबीच है इसलिये खुद के वाहन से ही जाना ठीक रहेगा। मंदिर के चारों ओर लहलहाती सरसों और पीले पीले फूल आपको बाध्य करेंगे बहां कुछ और वक्त विताने के लिये। मंदिर परिसर में ही घने पेडों की छाया में बैठकर आप अपना खानापीना भी बना सकते हैं और खा सकते हैं लेकिन सामान आपको लेकर जाना पडेगा क्यूं कि आसपास कोई घर या दुकान नहीं है हालांकि मंदिर परिसर में खाना बनाने का साधन है। पुरातत्व विभाग के कर्मचारी के अलावा एक दो ग्रामीण भी रहते हैं वहां।
शहर की दौडधूप से दूर कुछ पल एकांत में प्रकृति की गोद में विताने का मूड हो तो ककनमठ मंदिर चले जाईये।
मंदिर से लौटते लौटते रात हो गयी, सिहोनिया में एक सरकारी गैस्ट हाऊस देखकर रुकने का मूड बना लिया, तभी पता चला शहर के कौने में भगवान शांतिनाथ जी का एक विशाल जैन मंदिर भी है जहां विशाल धर्मशाला भी है तो सीधे जैनमंदिर ही चला गया। शाम की आरती में शामिल भी हुआ और रात विश्राम करने के लिये बढिया रुम भी मिल गया।
जारी है ......
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