Friday, January 13, 2017

Kashmir yatra: shrinagar to Gulmarg

हनुमान मंदिर से लौटते हुये अंधेरा हो चला था, हल्के से कोहरे की चादर ने शहर को लपेटना शुरू कर दिया था, ठंड भी हो चली थी, हम अपने रुम की ओर बढने लगे, झेलम नदी पर बने पुल पर थोडी थोडी दूर पर तैनात सैनिकों को देखकर थोडे सहमे लेकिन उन्हौने हम से कुछ भी पूछताछ नहीं की। बापस लालचौक पर आये तो बहां भी बहुत सारे सैनिकों को तैनात देखा। शायद कल की बजह से ऐतिहातन चौकसी होगी। अंधेरा होते ही दुकानों के शटर खिंच गये थे और दिन भर काम से थके हारे कश्मीरी भाई नौनवेज मोमोज की थडी को घेरे बडी बडी लोहे की सलाखों से अंगीठी से खींच कर खाने में मस्त थे। इधर हमें भी भूख लग आयी थी, नरेन्द्र टिफिन लेकर होटल चला आया था। फौजी खाना बहुत शानदार था। फौजी मेस में वैज और नौनवेज दोनों तरह का खाना बनता है। हम पनीर की सब्जी खाकर एकदम मस्त हो गये। एकदम शानदार खाना। हमारे खाने के लिये नरेन्दर् न मैस कोे एकस्टरा पे किया होगा शायद। अगले ही दिन शुक्रवार को हमें जल्दी ही गुलमर्ग की तरफ निकलना था अत: खा पीकर सो गये।
सुवह नजदीकी बस स्टैन्ड से गुलमर्ग के लिये बस तलाशने निकले लेकिन बस शायद निकल चुकी थी अत: टैक्सी से ही निकलना पडा। हालांकि हम डायरैक्ट टैक्सी भी हायर कर सकते थे लेकिन पैसा काफी मांग रहे थे जबकि शेयर टैक्सी में मात्र चालीस रुपये ही जा रहे थे और फिर लोकल लोगों से बात करने का मौका भी चाहिये था। ये सभी टैक्सियां सिर्फ टंगमार्ग तक ही छोडती हैं। यहां से आगे पहियों में चैन लगी गाडियां ही जा पाती हैं अत: सबको परमीशन नहीं मिलता। यहां से आगे गुलमर्ग तक वर्फीली चडाई शुरु हो जाती है जिसमें सिर्फ ट्रैन्ड ड्राईवर्स ही सफल हो पाते हैं। हालांकि निजी वाहन ऊपर तक जा रहे थे लेकिन दिक्कत भी काफी आयी होगी उन्हैं। मैंने बहुत सी कारों को रपटते हुये देखा था। श्रीनगर से टंगमार्ग तक के रास्ते में दो कश्मीरी युवकों एवं एक युवती से वार्ता करने में इतने मशगूल हुये कि एक घंटे का पता ही नहीं चला। बातों ही बातों में हम उनके मन की बहुत सी बातें जान चुके थे। हालांकि युवती पूरी तरह भारत के साथ रहने में ही भला मानती थी जबकि युवकों का कहना था कि स्वतंत्र रहकर ही काश्मीर की तरक्की हो सकती है। फिलहाल खुद को गुलाम कश्मीर का निवासी कह रहे थे। सेना इसी वजह से उनकी दुश्मन थी क्यूं कि सेना उन्हें भारतीय नियंत्रण में होने का एहसास करा रही थी। टंगमार्ग पहुंचे ही थे कि चश्मे जूते और ओवरकोट किराये पर देने बालों ने घेर लिया। जूते और ओवरकोट सौ रुपये किराये में तय हो गये जबकि शुरुआत चार सौ से हुयी थी। ये जैकेट सिर्फ वर्फ के बचाव के लिये है, ठंड इसमें नहीं रुक सकती। यदि आप वर्फ में गिरना पडना नहीं चाहते हैं तो फिर इन ओवरजैकट्स की कोई आवश्यकता भी नहीं है।
टंगमार्ग से थोडी सी परेशानी के बाद शेयरिगं में गाडी मिल गयी, मात्र सौ रुपये में। हालांकि बस में सिर्फ चालीस ही लगते लेकिन बस का कोई अता पता नहीं, कब आयेगी। टंगमार्ग से गुलमर्ग तक का सफर काफी सुखद होता है। रोड के दोनों ओर वर्फ ही वर्फ। पेडों पर, पहाडों पर , रोड पर चारों तरफ सिर्फ वर्फ। मानो सफेद चादर ओढा रखी हो। एकदम खूबसूरत घाटी। लगभग आधा पौन घंटा लगा होगा ऊपर पहुंचने में।
गुलमर्ग का अर्थ है "फूलों की वादी"। जम्मू - कश्मीर के बारामूला जिले में लगभग 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग, की खोज 1927  में अंग्रेजों ने की थी। यह पहले “गौरीमर्ग” के नाम से जाना जाता था, जो भगवान शिव की पत्नी "गौरी" का नाम है। फिर कश्मीर के  राजा, राजा युसूफ शाह चक ने इस स्थान की खूबसूरती और शांत वारावरण में मग्न होकर इसका नाम गौरीमर्ग से गुलमर्ग रख दिया। गुलमर्ग का सुहावना मौसम, शानदार परिदृश्य, फूलों से खिले बगीचे, देवदार के पेड, खूबसूरत झीले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। गुलमर्ग अपनी हरियाली और सौम्य वातावरण के कारण आज एक पिकनिक और कैम्पिंग स्पॉट बन गया है। वैसे तो सैलानी साल के किसी भी मौसम में गुलमर्ग घूमने जा सकते हैं पर गुलमर्ग की खूबसूरती देखने का सबसे बढिया समय मार्च और अक्टूबर के बीच है। हम चूंकि जनवरी में गये थे, हमें चारों ओर सिर्फ सफेद चादर ही दिखाई पडी।
गुलमर्ग पहुंचते ही स्लैज बालों ने घेर लिया। हम मना करते रहे, पर वो हमारा पीछा करते रहे। पर्यटन कार्यालय पर हमने अपना पंजीकरण कराया और स्लैज एवं घुडसवारी की सरकारी रेट्स भी पता कर ली। लेकिन हमें तो पैदल चलने का आनंद लेना था। चार पांच फुट की वर्फ के बीचों बीच रास्ता जो बना हुआ था। स्लैज बाले दो किमी दूर गंडोला स्टेशन तक खींच कर ले जाने के ही आठ सौ रुपये मांग रहे थे जबकि वो मात्र आधा घंटे का भी रास्ता न था। पौइंट्स के नाम पर खूब लूट होती है गुलमर्ग में जबकि चारों ओर सिर्फ वर्फ ही वर्फ है, कहीं भी लोटपोट हो लो। क्या फर्क पडता है, वर्फ में मजे ही लेने हैं, जहां शुरू हो जाओ वहीं पौईंट्स हैं।
बस स्टैन्ड से रोप वै काऊन्टर मात्र दो किमी है जिसका रास्ता बहुत मजेदार है । वर्फ में कूदते फांदते दो किमी का पता ही नहीं चलता, वर्फ में गिरते पडते चलने का अपना अलग ही एक मजा है। हम तो तीनों चलते चलते ही कुस्ती लडना भी शुरू हो गये। चार पांच फुट तक गहरी वर्फ रही होगी किसी किसी जगह पर तो। रोपवे स्टेशन से थोडा पहले ही स्की जिजार्ट है जहां सैकडों लोग स्की करने के चक्कर मेँ पटक खा खा कर गिर पड रहे थे। न तो मुझे अनुभव था और न ही हाथ पैर तुडवाने का शौक इसलिये बस दूर से ही गिरते पडते शौकियों की वीडियो बनाता रहा।
आज यह सिर्फ पहाड़ों का शहर नहीं है, बल्कि यहाँ विश्‍व का सबसे बड़ा गोल्‍फ कोर्स और देश का प्रमुख स्‍की रिज़ाॅर्ट है। अंग्रेज यहां अपनी छुट्टियाँ बिताने आते थे। उन्‍होंने ही गोल्‍फ के शौकीनों के लिये इन गोल्‍फ कोर्स की स्‍थापना की थी। स्‍कींग में रुचि रखने वालों के लिए गुलमर्ग देश का ही नहीं बल्कि इसकी गिनती विश्‍व के सर्वोत्तम स्‍कींग रिजॉर्ट में की जाती है। दिसंबर में बर्फ गिरने के बाद यहाँ बड़ी संख्‍या में पर्यटक स्‍कींग करने आते हैं। यहाँ स्‍कींग करने के लिए ढ़लानों पर स्‍कींग करने का अनुभव होना चाहिए। जो लोग स्‍कींग सीखना शुरु कर रहे हैं, उनके लिए भी यह सही जगह है। यहां स्‍कींग की सभी सुविधाएं और अच्‍छे प्रशिक्षक भी मौजूद हैं।
 वर्फ में कूदते फांदते और लडते लडाते रोपवे स्टेशन तक पहुंचे तो बुरी तरह थक चुके थे, भूख भीलग आयी तभी नजदीकी एक थडी पर नजर पडी, चाय बेच रहा था। चाय की बजाय मैंने तो कश्मीरी कहवा लेना पंसद किया। पत्तियों को उबाल कर कहवा एक पात्र में रख लिया जाता है जिसे समय समय पर गर्म करके ग्राहकों को पिलाया जाता है। देखने में यह बिल्कुल शराब सा दिखता है लेकिन होता लाजबाब है, स्वाद तो कोई खास नहीं लेकिन थकान मिटा देता है। साथ में मैदा की बनी नान या रोटी जो नमकीन और मीठी दोनों प्रकार की होतीं हैं, ली जा सकतीं हैं हालांकि कहवा के अलावा चाय या काफी भी उपलब्ध होतीं हैं ।
गुलमर्ग से भी ऊपर एक और ऊंची पहाडी पर जाना चाहते हैं , फेस वन या फेस टू पर पहुंचने के लिये आपको रोपवे / गंडोला लेना होगा जिसकी कीमत 700 और फेस टू पहाडी का 1500 रुपये है। गोंडोला राईड जो कि केबल कार सिस्टम है, गुलमर्ग का प्रमुख आकर्षक स्थल है। यह दो और पांच कि.मी लम्बी राईड है, गुलमर्ग से कौंगडोर और कौंगडोर से अफरात। इस राईड में आप पूरे हिमालय पर्वत और गोंडोला गाँव को देख सकते हैं। कौंगडोर का गोंडोला स्टेशन 3099 मीटर और अफरात 3979 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गोंडोला राईड भ्रमण के लिए बहुत ही बढिया साधन है।लेकिन हम इतने थक चुके थे कि अब और वर्फ देखने की इच्छा नहीं बची थी और फिर सबसे बडी बात रोपवे के लिये हमें काफी वेट करना था, समय की कमी थी इसलिये न जाना ही ठीक लगा।
कश्मीरी भाई सर्दी से वचाव हेतु एक ओवरकोट टाईप वस्त्र पहनते हैं जिसे फेरन कहा जाता है जिसके अदंर एक गर्म कोयले से भरी अंगीठी रखते हैं जिसे कांगडी कहा जाता है। खासियत है कि कांगडी का ऊपरी कबर भी लकडी का होता है पर वह गर्म कोयले से जलता नहीं है। कांगडी से कश्मीरी भाई दिन भर शरीर को गर्माहट प्रदान करते रहते हैं।
कश्मीरी भाईयों की एक और खासियत है कि शराव नहीं पीते पर हां काजू बादाम जमकर खाते हैं। ईमान के पक्के और मेहनती लोग हैं कश्मीरी। टंगमार्ग में ड्रैस लेते समय हमने अपना बैग वहीं रख छोडा था, जिसमें एक रम की बोतल भी थी पर किसी ने उससे हाथ तक नहीं लगाया। हां हमसे काजू बादाम जरूर मांगते रहे थे।
गुलमर्ग में सर्दी तो बिल्कुल भी नहीं थी। चलते चलते पसीना भी आ गया। वर्फ में गीले होने का डर न होता तो सारे कपडे उतार फेंक देता। लेकिन मौसम का कोई भरोषा नहीं रहता कि कब बिगड जाय। शाम हो चली थी, श्रीनगर भी लौटना था। मौसम बिगडने पर ये ही टैक्सी बाले रेट चौगुनी कर देते। हम तो समय रहते नीचे आ गये। ड्रैस बालों को ड्रैस लौटायीं और श्रीनगर के लिये निकल लिये।
गुलमर्ग जब तक देखा नहीं था ..चित्रों में देखा हुआ सुन्दर होगा यही विचार था दिल में ..पर कोई जगह इत्तनी खूबसूरत हो सकती है। यह वहां जा कर ही जाना जा सकता है, चित्र से कहीं अधिक सुन्दर, कहीं अधिक मनमोहक , अपनी सुन्दरता से मूक कर देने वाला , जैसे ईश्वर ने खुद इसको बैठ के बनाया है। कश्‍मीर का एक खूबसूरत हिल स्‍टेशन, यहां के हरे भरे ढलान बहुत सुन्दर हैं।इसकी सुंदरता के कारण इसे धरती का स्‍वर्ग भी कहा जाता होगा। हालांकि हमने इसकी पूर्ण यौवन काल का समय नहीं चुना था, हमें विंटर वैकेशन की बजाय समर वैकेशन में जाना चाहिये था।
इसमें कोई शक नहीं कि हम स्वर्ग में आये थे बस समय का चुनाव थोडा ठीक न था। समय की भी कमी थी। गुलमर्ग को ठीक से घूमने के लिये कम से कम दो तीन दिन का समय तो चाहिये। गुलमर्ग में बहुत कुछ है देखने और घूमने को।
निंगली नल्लाह और ऑटर सर्कल वाक, गुलमर्ग के दो प्रमुख आकर्षक स्थल है। अफरात पहाड़ी की पिघलती बर्फ निंगली नल्लाहे में बहती है। आगे यह पहाडों से गुजरते हुए सोपोर में झेलम नदी संग जुड जाता है। खिलनमर्ग में बने पुल से यात्री इस नल्लाहे को देख सकते हैं, जो गुलमर्ग का एक और पर्यटक स्थल है। “ऑटर सर्कल वाक” भी कश्मीर का पर्यटक स्थल है। इस वाक में, सैलानी कश्मीर की वादियों की सैर के साथ साथ 8500 मीटर ऊँची विश्व की चोथी ऊँची पहाडी नंगा पर्वत को देख सकते हैं।
गुलमर्ग का सुहावना मौसम, शानदार परिदृश्य, फूलों से खिले बगीचे, देवदार के पेड, खूबसूरत झीले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। गुलमर्ग अपनी हरियाली और सौम्य वातावरण के कारण आज एक पिकनिक और कैम्पिंग स्पॉट बन गया है। निंगली नल्लाह, वरिनग और फिरोजपुर नल्लाह यहाँ के कुछ प्रमुख नल्लाहे हैं। कहा जाता है कि वरिनग नल्लाहे के पानी में कुछ औषधीय गुण मौजूद है, जिसके कारण यहाँ कई सैलानी आते हैं। बायोस्पीयर रिज़र्व भी गुलमर्ग का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है।
दृंग, जिसकी खोज हाल ही में हुई है, गुलमर्ग का सबसे बढिया पिकनिक स्पॉट है। सैलानी यहाँ कि खूबसूरती के साथ - साथ मछली पकड़ने का भी लुफ्त उठा सकते हैं। लिंमर्ग, गुलमर्ग का एक और पर्यटक स्थल है, जो अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए प्रसिद्ध है। देवदार के पेडों और सुन्दर फूलों से ढक्का यह प्रदेश कैम्पिंग और पर्यटक के लिए उत्तम स्थल हैं।
अलपाथर झील गुलमर्ग से 13 कि.मी दूर है, और यह गुलमर्ग का पर्यटक स्थल भी है। इस झील की खासियत यह है कि, जून तक इसमें बर्फ जमी रहती है और गर्मियों में इसका पानी बर्फ के टुकडो संग निंगली नल्लाह में बहने लगता है। इस झील के आस पास बर्फ से ढक्की पहाडियाँ इसे और भी आकर्षक बनती है।
खिलनमर्ग गुलमर्ग के आंचल में बसी एक खूबसूरत घाटी है। यहां के हरे मैदानों में जंगली फूलों का सौंदर्य देखते ही बनता है। खिलनमर्ग से बर्फ से ढ़के हिमालय और कश्‍मीर घाटी का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है।
चीड़ और देवदार के पेड़ों से घिरी यह झील अफरवात चोटी के नीचे स्थित है। इस खूबसूरत झील का पानी मध्‍य जून तक बर्फ की बना रहता है।
गुलमर्ग से आठ किमी दूर स्थित निंगली नल्‍लाह एक धारा है जो अफरात चोटी से पिघली बर्फ और अलपाथर झील के पानी से बनी है। यह सफेद धारा घाटी में गिरती है और अंतत: झेलम नदी में मिलती है। घाटी के साथ बहती यह धारा गुलमर्ग का एक प्रसिद्ध पिकनिक स्‍पॉट है।
हमें श्रीनगर लौटते थोडी देर हो चली थी, अंधेरा हो चला था। बापस होटल पहुंचे तो फौजी भाई नरेन्द्र थोडा चितिंत हो रहा था, हमारे पास एक पोस्टपेड फौन था जिस पर वो बार बार हमारी कुशलता पूछ रहा था, शाम को होटल लौटने पर पता चला कि नमाज के बाद दिन भर पथराव हुआ था, सेना को हल्का बल प्रयोग करना पडा था तब जाकर भीड छंटी। ये पत्थरबाज किराये के युवक होते हैं जिनको पाकिस्तान सै पांच सौ प्रति युवक दिया जाता है। बदले की कार्यवाही में अक्सर वेकसूर लोग मारे जाते हैं और हुडदंगी युवक निकल जाते हैं।

जारी है....










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