बनारस से सीधे घर के लिये निकल ही रहा था कि लखनऊ में तैयारी कर रहे एक छात्र Ravishankar Jaiswal जी मिलने की जिद करने लगे। और उधर तुषार भैया भी न मिल पाये थे पहले लेकिन अब वो भी दिल्ली से लौट आये थे। आखिरकार इनके प्रेम के कारण मुझे बापस आना पडा। इनके प्रेम की पराकाष्ठा तो तब समझ आयी जब ये कडकडाती ठंड की रात के दो बजे बीस किमी बाइक चलाकर मुझे स्टेशन लेने आये और अपने रूम पर ले आये। ये मुहब्बत थी जो एक अजनबी को भी इतना खींचे जा रही थी। अब बताईये ये प्रेम नहीं तो क्या है ? रिश्ते कहीं भी बन सकते हैं मेरी समझ आ रहा था अब। बस ह्रदय साफ होना चाहिये हमारा। श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,राह बहुत पथरीली और कंटीली थी कि यकायक श्री राम के चरणों मे कांटा चुभ गया ! श्रीराम रूष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे , "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप नरम हो जाना ! कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छूपा लेना ! मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे अघात मत करना क्यूंकि भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा ! लेकिन "अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये शूल उनके पगों मे भी चुभे होंगे ! मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता।
ऐसे होते हैं रिश्ते ! रिश्ते अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं । जहाँ गहरी आत्मीयता नही, वहां वो रिश्ता शायद हो ही नही सकता सिर्फ एक दिखावा हो सकता है। इसीलिए कहा गया है कि...रिश्ते खून से नहीं, परिवार से नही, मित्रता से नही, व्यवहार से नही, सिर्फ और सिर्फ आत्मीय "एहसास" से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं। जहाँ एहसास ही नहीं, आत्मीयता ही नहीं ..
वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा ? मानवता कहां से आयेगी।
रवि के रुम पर आकर पहले तो एक दो घंटे नींद निकाली और फिर नहा धोकर बाइक ले उडे भूल भुलैया की ओर जहां कि तुषार भैया हमसे मिलने आ रहे थे। भूलभुलैया पर हम पहुंचे तो तुषार भैया गेट पर ही हमारा इंतजार करते मिले। हमारे लिये आइस्क्रीम ले कर आये थे। हम भूलभुलैया में प्रवेश किये तो देखा कि बहुत सारी फोर्स इकट्ठा हो रही है। शायद मुसलमानों के शिया सुन्नी का कुछ मामला था। कभी कभी मुझे ये धरम वरम सब नौटंकी ही लगता है। पहले तो चलो इस बात का खून खरावा था कि तुम मूर्तिपूजक हो पर अब तो दोनों निराकार आस्था बाले ही हैं न ? अब काहै की लडाई ? दर असल ये लडाई स्वार्थ की है। संसाधनों पर कब्जा करने की है। ये कभी नहीं रुकने बाली। दुनिया के अंत तक संघर्ष होता ही रहेगा। कभी जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर।
खैर हम तो इमामबाडा में तो टहलते रहे और दुख सुख की बतियाते रहे। तुषार भैया का व्यवसाय चाहे कुछ भी हो पर उनकी जान साहित्य में ही अटकी है। बहुत ही उच्च कोटि के कलमकार हैं। फिल्मों के लिये कहानियां लिखते हैं। फेसबुक पर भी अक्सर तुषारापात करते रहते हैं। ऐसे बडे साहित्यकार के साथ मैं घूम रहा था। तभी ताबिस सिद्दिकी भाई से भी बात हो गयी। अम्बेडकर पार्क पर मिलना तय हुआ। मैं तुषार भैया के साथ कार में चल दिया जबकि रवि बाइक लेकर पीछे चला आ रहा था। कार में काफी देर हम साथ चलते रहे और रवि भी दिखाई न दे तभी अचानक से तुषार भैया की छठी इन्द्रिय कुछ आशंका व्यस्त करने लगी। बोले कुछ तो गडबड है। पता लगा रवि की बाइक खराब हो गयी है। तुषार भैया एक ज्योतिषाचार्य भी हैं। लोगों की कुंडली बनाते हैं। एक शब्द में कहूं तो पंड्डज्जी हैं। भाभी शिक्षिका हैं। फेसबुक पर दोनों के बीच खट्टी मीठी नोंकझोंक चलती रहती है। दोंनों के औनलाईन प्रेमालाप के बीच हम भी थोडा फुलझडी छोड आते हैं। जोडा जानदार है।
आपस में हंसी ठहाके लगाते तीनों अंबेडकर पार्क पहुंच गये और उधर तवी भाई एवं रोहित गुप्ता भी आ गये। तब हुआ पांच दोस्तों का महासंगम। वो
दिन तो वाकई मेरे लिये यादगार बन गया । Tushar Singh भैया दिन भर Tabish Siddiqui भैया पर तुषारापात करते रहे और हमें खूव हंसाते भी रहे।
यदि मैं तुषार भाई की आम के पेड से तुलना करुं तो गलत न होगा। जितने बडे लेखक उतने ही विनम्र Down to Earth.
अम्बेडकर पार्क में इन बडे विचारकों के साथ घूमते देखा कि महात्मा बुद्ध की मूर्तियां उनके निर्माता मायावती की अपेक्षा छोटीं थीं। इन मूर्तियों के द्वारा खुद के व अपने राजनीतिक दल के प्रचार प्रसार पर काफी रूपया बहाया गया है,इसके एक गेट की कीमत में मेरा पूरा घर खरीद लिया जायेगा। मैं अष्ट धातु की एक अगूंठी नहीं खरीद पाता, यहां तो कई क्विटंल अष्ट धातु थी। मुझे लगता है कि ठीक ऐसा ही पूर्व में हुये भगवान और पैगबंर बने राजाओं के साथ भी हुआ होगा जिनके फालोवर्स ने ही इनके विचार या मान्यता को इतने बडे लेवल पर पहुंचा दिया होगा और ये खुद भगवान या ईश्वर के दूत बन बैठे जबकि हजारों लाखों गरीब ऋषि मुनि संत पीर फकीर जो इन तथाकथित दूतों से बडे ज्ञानी विचारक थे, लोगों तक अपने विचार पहुंचा भी नहीं पाये। आज जिन लोगों को हम ईश्वर के समकक्ष रख कर उनकी भक्ति कर रहे हैं और उनके नाम पर आपस में कट मर रहे हैं, वो भी कभी राजनीतिक व्यक्तित्व ही हुआ करते थे जिनके अपने कुछ फायदे नुकसान होते थे। आज के पांच सौ साल बाद अम्बेडकर काशीराम मायाबती भी अवतारवाद की चपेट में आ चुके होंगे जैसे कि आज महात्मा वुद्ध और मुहम्मद आ गये हैं। दलितों के आने बाली पीढियां अपने बच्चों को देवी के दसवें अवतार सुसरी मायावती की चमत्कारिक कहानियां सुना रहे होंगे। हो सकता है आगे जाकर , काली मां की तरह इनकी भी लपलपाती जीभ दिखा दी जाये और दस हाथ दिखा दिये जायं जिसके एक हाथ में मनु नामक राक्षस का सिर हो तो दूसरे में गांधी नामक भस्मासुर का ।
अंबेडकर पार्क में काफी देर मौज मस्ती करने के बाद तुषार भैया तो घर की तरफ निकल पडे लेकिन तवी भाई और रोहित गुप्ता जी हमें माल में Star wars दिखाने ले गये। दो दो चश्मा लगाकर मैंने जिन्दगी में पहली बार कोई फिल्म देखी। फिल्म शुरू होने में देर थी तो माल में घूमते रहे। भाईयों के साथ खूब जम के मस्ती किये। खाया पीया । बहुत आनंद आया।
Ravishankar Jaiswal भी कमाल का लडका है यार, हरदम मुस्कुराता ही रहता है। मुझे एहसास भी न था कि मुझसे इतना प्रेम करता होगा। सारा दिन घुमाया, दोस्तों से मिलवाया और शाम को ट्रैन तक छोड कर गया। जाते जाते भी भावुक कर गया, एक पैन गिफ्ट करते हुये बोल रहा था, सर आप बहुत याद आओगे। एक अध्यापक के लिये पैन से बडा और क्या उपहार हो सकता था।
इस प्रकार अयोध्या बनारस सारनाथ इलाहावाद और लखनऊ के बहुत सारे दोस्तों की बहुत सारी खट्टी मीठी यादों को संजोये मैं घर के लिये रवाना हो गया।
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