Jaatland journey: खाटूश्याम टू अजीतगढ त्रिवैणीधाम ।।
शीश के दानी नाम से प्रसिद्ध बर्बरीक खाटूश्याम जी मंदिर में सैकडों हजारों लोग की भीड देखकर कभी कभी तो मैं ये सोचता हूं कि कुछ ही मंदिरों पर अन्य की अपेक्षा इतनी भीड क्यूं होती है ? जबकि मूर्ति सभी मंदिरों में समान महत्व के भगवानों की ही होती है। ये पहेली हमारे आज तक समझ नहीं आयी। यदि बात आस्था की नहीं केवल गुणों की होती तो खाटूजी को श्याम नाम से पूजने का क्या औचित्य था क्यूं कि श्याम ने अपने राजनीतिक हित के लिये बर्बरीक की हत्या की थी। वह तो निर्बल पक्ष के साथ लडने को आया था, श्याम ने उसका सिर ही काट दिया। यहां बर्बरीक महान नजर आता है बजाय श्याम के। फिर भी मैं इसे सनातन की खूबी ही मानूगां कि एक राक्षसी के पुत्र को भी भगवान का दर्जा दिया। चाहे हिरण्यकश्यप का पुत्र हो या हिडिम्बा का, चाहे विभीषण हो या बरबरीक , असुर जाति के गुणवान और वीर योद्धाओं की कद्र सनातन ने अवश्य की है या यूं कहो कि अपने पक्ष में रहने बाले असुरों को सम्मान दिया है। खैर ये धार्मिक कथायें न तो हमारे कभी समझ आयीं थीं और न आयेंगी , क्यूं कि जैसे ही मैं इनमें तर्कक्षलगाने लगता हूं लोग मुझे वामपंथी कहने लगते हैं, सौ बातों की एक बात है कि धर्म और आस्था में दिमाग नहीं बस दिल लगाना है।
खाटू श्याम जी मंदिर पर खूब सारे धक्के खाने के बाद मैं निकल पडा अजीतगढ की ओर जहां मेरा जाटवीर अनिल बांगड मुझे बुला रहा था। खाटूश्यामजी से रींगस और फिर श्रीमाधोपुर होते हुये अजीतगढ रोड जो शाहपुरा होते हुये सीधे सरिस्का / दिल्ली के NH-8 से मिल जाता है। अजीतगढ में ही अरावली की पहाडियों में जगदीश जी का मंदिर और किला है। इन्हीं पहाडियों पर चीन की दीवार टाईट एक दीवार भी बनी है जो सीकर और जयपुर की सीमाओं को अलग करती है। ऊंची पहाडी पर स्थित इस मंदिर पर श्री नारायण स्वामी संत पुरुष ने तप किया था, आज उनकी उम्र करीब सौ के आसपास होगी, अजीतगढ से थोडा ही आगे त्रिवैणीधाम मंदिर में शरण लिये हुये हैं। काफी तपश्वी ज्ञानी सिद्ध पुरूष रहे हैं जो दूर दूर तक जाने जाते हैं और भगवान की तरह पूज्य हैं। त्रिवैणीधाम के मुख्य मंहत कभी गुर्जर समुदाय से तो कभी ब्राह्मण तो कभी जाट समुदाय से होते रहे हैं, मतलब योग्यता ही इस पद की जरुरत है जन्म नहीं। मैं अनिल और गणेश जैसे घुमक्कड मित्रों के साथ जगदीश धाम की ऊंची उ
ऊंची पहाडियों पर चडता ही गया और दीवार पार कर जयपुर सीमा पर झंडा लहरा आये। ऊंचाई से दुनियां कितनी छोटी नजर आती है, मैं ऊंचाई पर पहुंच कर कितना इतरा रहा था जानते हुये भी कि आना नीचे ही है हम को एक दिन। खैर जगदीश धाम की पहाडियों में काफी देर उछल कूद करने के बाद हम अनिल के सीमेंट गोदाम पर चले आये, चाय की चुस्कियों के साथ गप्प सडाके मारते रहे और फिर घर चले गये। अनिल के पिता इस दुनियां में नहीं है अत: घर की पूरी जिम्मेदारी अनिल को ही देखनी होती है। लंबा चौडा घर, खेत खलियान, पशुओं का बाडा, ट्रैकटर मशीनों आदि से फुल फ्लैस किसान , भरा पूरा संपन्न किसान। शेखावाटी के किसानों की ये स्थिति आजादी के बाद ही हुई है पहले तो इन्हौने जमींदारों और राजाओं के बहुत जुल्म झेले हैं। धर्मेन्द्र और मिथुन अभिनीत फिल्म " गुलामी" शेखावाटी के जाटों के दर्द को बयां करती हुयी फिल्म है जिसमें जाटों को नीच जात कहकर कुंए से पानी तक न लेने देने को बताया गया है। चीमूचणा और सीकर किसान आन्दोलन इसी श्रंखला के आन्दोलन थे। रात को भाई ने सारा प्यार उंडेल दिया, घी पिलैवां भोजन कराने के बाद ढेर सारा दूध ले आया, खूब कोशिष की पर पूरा दूध पी ही नहीं पाया। सुवह जल्दी ही तीनों दोस्तों का प्लान बना कि त्रिवैणी धाम और शाहपुरा तक साथ चलेंगे और फिर बहां से मैं भानगढ के भूतिया किले की ओर चला जाऊंगा, वे लोग लौट आयेंगे। रोड पर आये तो कुछ भी दिखाई न दे, भयंकर कोहरा। ऐसी घुमक्कडी सिर्फ दिवाने ही कर पाते हैं। त्रिवैणी धाम पर दर्शन कर बाबा की शरण में भी गया, बाबा का आशीर्वाद भी लिया, संत पुरुषों योगियों का आशीर्वाद भगवान की कृपा से ही मिलता है, वरना आजकल ऐसे योगी सिद्ध बचे ही कितने हैं, चारों तरफ भोगियों की लाईन लगी पडी है।
त्रिवैणी धाम से आगे बढते ही अरावली दिखाई देने लगती है। इसका उत्तरी विस्तार जयपुर जिले के उत्तरी-पश्चिमी भागों में तथा अलवर जिले के अधिकांश भागों में है। अरावली के इस भाग में चट्टानी एवं प्रपाती पहाड़ियों के कई समानान्तर कटक शामिल हैं। अरावली का यह भाग फाइलाईट तथा क्वार्टज से निर्मित है। इस क्षेत्र में दिल्ली क्रम की अन्य चट्टानें चूने के पत्थर से निर्मित है। दिल्ली के दक्षिण में स्थित पहाड़ियों की ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 306 मीटर है। अन्य प्रमुख पहाड़ियों में भैराच (792 मीटर), बैराठ (704 मीटर) अलवर जिले में, बाबाई (792 मीटर) व खौ (920 मीटर) जयपुर जिले में तथा रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) सीकर जिले में है। शेखावटी निम्न पहाड़ी प्रदेश में सबसे लंबी पर्वत श्रेणी झुंझुनू जिले में सिहना तक जाती है, जो सांभर झील से प्रारंभ होती है। इनके अतिरिक्त यहाँ कई छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जिनमें नाहरगढ़, पुराना धाट, आड़ा, डूंगर, तोरावाटी, राहोड़ी आदि हैं। इस प्रदेश की औसत ऊँचाई 400 मीटर है। इस क्षेत्र में अरावली की श्रेणियाँ अनवरत न होकर दूर-दूर होती जाती हैं। इनमें शेखावाटी की पहाडियाँ, तोरावाटी की पहाड़ियों तथा जयपुर और अलवर की पहाड़ियाँ सम्मलित हैं। इस क्षेत्र में पहाड़ियों की सामान्य ऊँचाई 450 से 750 मीटर है। इस प्रदेश के प्रमुख उच्च शिखर सीकर जिले में रघुनाथगढ़ (1055मीटर), अलवर में बैराठ (792 मीटर) तथा जयपुर में खो (920मीटर) है। अन्य उच्च शिखर जयगढ़, नाहरगढ़, अलवर किला और बिलाली है।
शाहपुरा जयपुर में पडता है, यहां राजस्थान का सबसे लंबा सुपर हाईवे NH-8 गुजरता है जो दिल्ली से राजस्थान पार करता हुआ अहमदाबाद को निकल जाता है। यहां की कढी कचौडी बहुत ही लजीज है, इतनी स्वादिस्ट कि खाकर भी मन न भरा तो पैक भी करा ली। बस यहीं से अनिल और गणेश मुझे गले लगकर विदा किया और अजीतगढ लौट लिये और मैं विराटनगर और सरिस्का के बगल होता हुआ सीधे भूतिया किला भानगढ की ओर रवाना हो लिया।
यात्रा जारी है ......
शीश के दानी नाम से प्रसिद्ध बर्बरीक खाटूश्याम जी मंदिर में सैकडों हजारों लोग की भीड देखकर कभी कभी तो मैं ये सोचता हूं कि कुछ ही मंदिरों पर अन्य की अपेक्षा इतनी भीड क्यूं होती है ? जबकि मूर्ति सभी मंदिरों में समान महत्व के भगवानों की ही होती है। ये पहेली हमारे आज तक समझ नहीं आयी। यदि बात आस्था की नहीं केवल गुणों की होती तो खाटूजी को श्याम नाम से पूजने का क्या औचित्य था क्यूं कि श्याम ने अपने राजनीतिक हित के लिये बर्बरीक की हत्या की थी। वह तो निर्बल पक्ष के साथ लडने को आया था, श्याम ने उसका सिर ही काट दिया। यहां बर्बरीक महान नजर आता है बजाय श्याम के। फिर भी मैं इसे सनातन की खूबी ही मानूगां कि एक राक्षसी के पुत्र को भी भगवान का दर्जा दिया। चाहे हिरण्यकश्यप का पुत्र हो या हिडिम्बा का, चाहे विभीषण हो या बरबरीक , असुर जाति के गुणवान और वीर योद्धाओं की कद्र सनातन ने अवश्य की है या यूं कहो कि अपने पक्ष में रहने बाले असुरों को सम्मान दिया है। खैर ये धार्मिक कथायें न तो हमारे कभी समझ आयीं थीं और न आयेंगी , क्यूं कि जैसे ही मैं इनमें तर्कक्षलगाने लगता हूं लोग मुझे वामपंथी कहने लगते हैं, सौ बातों की एक बात है कि धर्म और आस्था में दिमाग नहीं बस दिल लगाना है।
खाटू श्याम जी मंदिर पर खूब सारे धक्के खाने के बाद मैं निकल पडा अजीतगढ की ओर जहां मेरा जाटवीर अनिल बांगड मुझे बुला रहा था। खाटूश्यामजी से रींगस और फिर श्रीमाधोपुर होते हुये अजीतगढ रोड जो शाहपुरा होते हुये सीधे सरिस्का / दिल्ली के NH-8 से मिल जाता है। अजीतगढ में ही अरावली की पहाडियों में जगदीश जी का मंदिर और किला है। इन्हीं पहाडियों पर चीन की दीवार टाईट एक दीवार भी बनी है जो सीकर और जयपुर की सीमाओं को अलग करती है। ऊंची पहाडी पर स्थित इस मंदिर पर श्री नारायण स्वामी संत पुरुष ने तप किया था, आज उनकी उम्र करीब सौ के आसपास होगी, अजीतगढ से थोडा ही आगे त्रिवैणीधाम मंदिर में शरण लिये हुये हैं। काफी तपश्वी ज्ञानी सिद्ध पुरूष रहे हैं जो दूर दूर तक जाने जाते हैं और भगवान की तरह पूज्य हैं। त्रिवैणीधाम के मुख्य मंहत कभी गुर्जर समुदाय से तो कभी ब्राह्मण तो कभी जाट समुदाय से होते रहे हैं, मतलब योग्यता ही इस पद की जरुरत है जन्म नहीं। मैं अनिल और गणेश जैसे घुमक्कड मित्रों के साथ जगदीश धाम की ऊंची उ
ऊंची पहाडियों पर चडता ही गया और दीवार पार कर जयपुर सीमा पर झंडा लहरा आये। ऊंचाई से दुनियां कितनी छोटी नजर आती है, मैं ऊंचाई पर पहुंच कर कितना इतरा रहा था जानते हुये भी कि आना नीचे ही है हम को एक दिन। खैर जगदीश धाम की पहाडियों में काफी देर उछल कूद करने के बाद हम अनिल के सीमेंट गोदाम पर चले आये, चाय की चुस्कियों के साथ गप्प सडाके मारते रहे और फिर घर चले गये। अनिल के पिता इस दुनियां में नहीं है अत: घर की पूरी जिम्मेदारी अनिल को ही देखनी होती है। लंबा चौडा घर, खेत खलियान, पशुओं का बाडा, ट्रैकटर मशीनों आदि से फुल फ्लैस किसान , भरा पूरा संपन्न किसान। शेखावाटी के किसानों की ये स्थिति आजादी के बाद ही हुई है पहले तो इन्हौने जमींदारों और राजाओं के बहुत जुल्म झेले हैं। धर्मेन्द्र और मिथुन अभिनीत फिल्म " गुलामी" शेखावाटी के जाटों के दर्द को बयां करती हुयी फिल्म है जिसमें जाटों को नीच जात कहकर कुंए से पानी तक न लेने देने को बताया गया है। चीमूचणा और सीकर किसान आन्दोलन इसी श्रंखला के आन्दोलन थे। रात को भाई ने सारा प्यार उंडेल दिया, घी पिलैवां भोजन कराने के बाद ढेर सारा दूध ले आया, खूब कोशिष की पर पूरा दूध पी ही नहीं पाया। सुवह जल्दी ही तीनों दोस्तों का प्लान बना कि त्रिवैणी धाम और शाहपुरा तक साथ चलेंगे और फिर बहां से मैं भानगढ के भूतिया किले की ओर चला जाऊंगा, वे लोग लौट आयेंगे। रोड पर आये तो कुछ भी दिखाई न दे, भयंकर कोहरा। ऐसी घुमक्कडी सिर्फ दिवाने ही कर पाते हैं। त्रिवैणी धाम पर दर्शन कर बाबा की शरण में भी गया, बाबा का आशीर्वाद भी लिया, संत पुरुषों योगियों का आशीर्वाद भगवान की कृपा से ही मिलता है, वरना आजकल ऐसे योगी सिद्ध बचे ही कितने हैं, चारों तरफ भोगियों की लाईन लगी पडी है।
त्रिवैणी धाम से आगे बढते ही अरावली दिखाई देने लगती है। इसका उत्तरी विस्तार जयपुर जिले के उत्तरी-पश्चिमी भागों में तथा अलवर जिले के अधिकांश भागों में है। अरावली के इस भाग में चट्टानी एवं प्रपाती पहाड़ियों के कई समानान्तर कटक शामिल हैं। अरावली का यह भाग फाइलाईट तथा क्वार्टज से निर्मित है। इस क्षेत्र में दिल्ली क्रम की अन्य चट्टानें चूने के पत्थर से निर्मित है। दिल्ली के दक्षिण में स्थित पहाड़ियों की ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 306 मीटर है। अन्य प्रमुख पहाड़ियों में भैराच (792 मीटर), बैराठ (704 मीटर) अलवर जिले में, बाबाई (792 मीटर) व खौ (920 मीटर) जयपुर जिले में तथा रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) सीकर जिले में है। शेखावटी निम्न पहाड़ी प्रदेश में सबसे लंबी पर्वत श्रेणी झुंझुनू जिले में सिहना तक जाती है, जो सांभर झील से प्रारंभ होती है। इनके अतिरिक्त यहाँ कई छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जिनमें नाहरगढ़, पुराना धाट, आड़ा, डूंगर, तोरावाटी, राहोड़ी आदि हैं। इस प्रदेश की औसत ऊँचाई 400 मीटर है। इस क्षेत्र में अरावली की श्रेणियाँ अनवरत न होकर दूर-दूर होती जाती हैं। इनमें शेखावाटी की पहाडियाँ, तोरावाटी की पहाड़ियों तथा जयपुर और अलवर की पहाड़ियाँ सम्मलित हैं। इस क्षेत्र में पहाड़ियों की सामान्य ऊँचाई 450 से 750 मीटर है। इस प्रदेश के प्रमुख उच्च शिखर सीकर जिले में रघुनाथगढ़ (1055मीटर), अलवर में बैराठ (792 मीटर) तथा जयपुर में खो (920मीटर) है। अन्य उच्च शिखर जयगढ़, नाहरगढ़, अलवर किला और बिलाली है।
शाहपुरा जयपुर में पडता है, यहां राजस्थान का सबसे लंबा सुपर हाईवे NH-8 गुजरता है जो दिल्ली से राजस्थान पार करता हुआ अहमदाबाद को निकल जाता है। यहां की कढी कचौडी बहुत ही लजीज है, इतनी स्वादिस्ट कि खाकर भी मन न भरा तो पैक भी करा ली। बस यहीं से अनिल और गणेश मुझे गले लगकर विदा किया और अजीतगढ लौट लिये और मैं विराटनगर और सरिस्का के बगल होता हुआ सीधे भूतिया किला भानगढ की ओर रवाना हो लिया।
यात्रा जारी है ......
It is nice that you started blog.
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