Thursday, January 26, 2017

Amarkantak tour: नर्मदा कुंड

अमरकंटक धाम ।।

कहा जाता है कि नर्मदा भगवान शिव की पुत्री जीवनदायिनी नदी है। रेवा नर्मदा का दूसरा नाम है और नर्मदा को माँ क्यूँ कहा जाता है, ये बात गुजरात, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ के बियाबान जंगलों के गर्मी से तपते हुए ‘आदिवासियों’ से बेहतर कोई नहीं जानता। नर्मदा नदी पुरे भारत की प्रमुख नदियों में से एक ही है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा कहलाती है। मैकाल या महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर मानी जाती है।
शीघ्र ही हम अमरकंटक के पहले और मुख्य बिदुं नर्मदा के उदगम स्थान पर पहुंच गये। पंडों की ऊटपटांग कारस्तानी देखकर यहां भी मुझे बडा दुख हुआ कि जिस पठार के नीचे से नर्मदा का पानी निकल रहा था बहां एक छोटा सा कुंड और ढेर सारे मंदिर खडे कर दिये है कि बेचारी माता का दम घुटने लगा है। स्वतंत्र रुप से विचरण कर ही नहीं पा रही वो। कुंड में तो हमें नर्मदा मां के दर्शन न हो पाये कितुं थोडा आगे बढकर एक चौडा मैदान बना दिया गया है जहां शांति से बहती हुई मां के दर्शन कर सकते हैं आप। अलस गति से बहती शांत, नीरव नर्मदा। नदी बहती हुई भी रुकी सी जान पड़ती है और उसके बाद फिर एक छोटी सी धारा के रूप में चली गयी है सीधे कपिलधारा की ओर। नर्मदा तट के छोटे से छोटे तृण और छोटे से छोटे कण न जाने कितने परव्राजकों, ऋषि मुनियों और साधु संतों की पदधूलि से पावन हुए होंगे। यहां के वनों में अनगिनत ऋषियों के आलम रहे होंगे। वहाँ उन्होंने धर्म पर विचार किया होगा, जीवन मूल्यों की खोज की होगी और संस्कृति का उजाला फैलाया होगा। हमारी संस्कृति आरण्यक संस्कृति रही।
हमें बहुत से लोग ऐसे भी दिखे जो गुजरात से मां नर्मदा की पैदल परिक्रमा करते आये थे। कभी चट्टानों से जूझते, कभी झाड़ी से उलझते तो कभी सामने तट की पर्वत-माला से आते हवा के झोंकों का आनंद उठाते आगे बड़ रहे थे। कभी रुक जाते माथे का पसीना पोंछते और बाबा लोग , नंगे पाँव , महिला – पुरुष सब एक साथ। गुजरात में अरब की खाड़ी (भड़ूच)  से अमरकंटक तक – 2600 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा |
नर्मदा के उदगम कुंड और उसके चारों ओर बने मंदिरों को घूमने निहारने के बाद मैं काफी देर तक यही ढूंडता रहा कि ये पानी आ कहां से रहा है। सोचा शायद पीछे कोई पहाडी से बह कर आ रहा हो कितुं पीछे भी गया तो बहां पानी की एक बूंद तक न मिली। दर असल यह पवित्र जल अत: प्रवाही धारा से निकल रहा था जहां कि गोमुख बना दिया गया था और ढेर सारे मंदिर बना दिये गये थे मानो कि प्रकृति के उपहार का टैक्स वसूल रहे हों। नर्मदाकुंड नर्मदा नदी का उदगम स्‍थल माना जाता है। इसके चारों ओर अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में नर्मदा और शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, अन्‍नपूर्णा मंदिर, गुरू गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्‍वर महादेव मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्‍वर महादेव मंदिर, श्रीराधा कृष्‍ण मंदिर और ग्‍यारह रूद्र मंदिर आदि प्रमुख हैं। पूछने पर बताया जाता है कि भगवान शिव और उनकी पुत्री नर्मदा यहां निवास करते थे और नर्मदा उदगम की उत्‍पत्ति शिव की जटाओं से हुई है, इसीलिए शिव को जटाशंकर कहा जाता है। नर्मदा कुण्ड और मंदिर, नर्मदा नदी का उद्गम यहीं है जबकि हकीकत ये है कि माता नर्मदा ने भी इन पंडो की ठेकेदारी से व्यथित होकर अपना रास्ता बदल लिया है। उदगम परिसर के मुख्य गेट के सामने ही नहाने के लिये सीढियां भी बनायीं गयीं हैं और थोडा आगे जाकर मैदान को चौडा कर नर्मदा को फैलने का अवसर भी प्रदान कर दिया गया ताकि लोग उसमें वोटिगं कर सकें । हालांकि थोडा ही आगे निकलने पर नर्मदा पुन: एक नाली के समान बहने लगती है और कपिलधारा तक ऐसे ही बहती है। कपिलधारा के झरने में पहली वार नर्मदा का असली स्वरुप नजर आता है।
अमरकंटक की यात्रा में नर्मदाकुंड मंदिर , श्रीज्वालेश्वर महादेव, सर्वोदय जैन मंदिर, बौद्ध मंदिर, सोनमुदा ,कबीर चबूतरा , कपिलाधारा दूध धारा एवं कलचुरी काल के मंदिर आदि पवित्र स्थान न केवल धार्मिक , आध्यात्मिक स्थल हैं बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर हैं। बौद्धिक विचारकों एवं विद्धानों के लिये भी ये स्थान महत्वपूर्ण रहा है। यहाँ पर दुर्वासा, मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था। तपस्वियों, योगियों और ध्यानियों के लिए अमरकंटक बहुत ही महत्व का स्थान है। इस पवित्र धाम का उल्लेख न केवल मेघदूतम में है बल्कि रामायण और महाभारत में भी है।
नर्मदा कुंड मैन गेट से बाहर निकलते ही हमें एक सुंदर हरा भरा पार्क और उसमें बने कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर नजर आते हैं जहां भीड न के बरावर थी। आजकल भक्त लोग प्राचीन वास्तु या मूर्ति कला में कम और आजकल के किचकिचाते तंग मंदिरों में चढावा चढा कर जल्दी से स्वर्ग की सीट पक्की कराने में ज्यादा विश्वास करते हैं। खैर मुझे तो हमेशा ऐसे ही मंदिरों में सुकून मिलता है ।
नर्मदाकुंड के दक्षिण में कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा कर्णदेव ने 1041-1073 ई. के दौरान बनवाया था। मछेन्‍द्रथान और पातालेश्‍वर मंदिर इस काल के मंदिर निर्माण कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
कर्णदेव मंदिर भी अमरकंटक की वेहतरीन वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। शाम होने जा रही थी और हमें अभी बहुत सी जगह जाना था अत: जल्दी से निकल पडे सौन नदी के उदगम स्थल की ओर । हालांकि अमरकंटक जैसे सुंदर और पवित्र धाम के लिये कम से कम तीन चार दिन का समय निकालना चाहिये अन्यथा भागमभाग में आनंद नहीं आ पाता।
ऐसे तो पूरा अमरकंटक ही एक सुंदर बगीचा है पर मां की बगिया माता नर्मदा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस हरी-भरी बगिया से स्‍थान से शिव की पुत्री नर्मदा पुष्‍पों को चुनती थी। यहां प्राकृतिक रूप से आम, केले और अन्‍य बहुत से फलों के पेड़ उगे हुए हैं। साथ ही गुलबाकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करती हैं। यह बगिया नर्मदाकुंड से एक किमी. की दूरी पर है बिना कोई समय गंवाये हम निकल लिये सीधे सोनमुदा की ओर।








2 comments:

  1. सुंदर पोस्ट व जानकारी से परिपूर्ण।

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