पंथ यात्रा
ईश्वर, धर्म एवं उसके भेजे हुये दूत एक बहुत बडा कैमीकल लोचा है, जो भी गहरायी में जाने की कोशिष करेगा, बेटा सीधे आगरे के मैन्टल ईश्वरीय केन्द्र में पहुंच कर सलमान की तरह " तेरे नाम " कर रहा होगा।
सारे धर्म "एक ईश्वर" की मान्यता पर सहमत होने के वावजूद अपनी अपनी कितावों और सिद्धांतों को लेकर आपस में भिडते रहे हैं और केवल खुद को ही ईश्वर का भेजा हुआ दूत बताते रहे हैं ।
भला हो डार्विन का जिसने हमें कम से कम तर्क करके मनन करने पर विवश कर दिया वरना हम भी इन फर्जी किताबों को ईश्वरीय आदेश मानकर रट्टा मारते रहते।
अब्राहम पंथ के अनुसार अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की । कुरआन में नाम से 25 नबी और 4 किताबों का ज़िक्र है। इंग्लिश में वो ही नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में है।
जबकि हिन्दू पंथ ब्रम्हा विष्णु महेश एवं उनके सैकडों अवतारों और लिखित ग्रंथों को ईश्वर का भेजा हुआ बताते रहे हैं।
यीशु ने तो एक कदम आगे बढकर खुद को ईश्वर पुत्र बता दिया। खैर ये कोई खास बात नहीं है, कुंवारी कन्याओं के मां बन जाने पर उसे ईश्वर के मत्थे मढ देने की परम्परा तो सनातन में भी खूव रही है।
अब दिक्कत यहां है कि ईसा तो स्वंय को ईश्वर का बेटा कहते हैं जबकि उसी खानदान के चिराग मुहम्मद साहव जो खुद चल कर सातवें आसमान में फरिश्ते जिब्राईल के साथ ईश्वर से साक्षात मुलाकात करके आये हैं, कहते हैं कि ईश्वर ना तो किसी का बाप है और ना ही उसका कोई बाप है।
सनातन कहता है कि कण कण में ईश्वर है जबकि कुरान कहती है कि कण कण उसका बनाया हुआ है।
कुरान बाईबिल वेद अवेस्ता आदि ग्रथों में वर्णित ईश्वर के दूतों के नाम एक दूसरे से अलग है जबकि ईश्वर एक ही है।
इसके अलावा हर दूत ने खुद को ईश्वर का दूत बताकर अपने समकालीन राजनीतिक प्रतिद्वदियों को मार गिराया है एवं इसे धर्म की अधर्म पर जीत बतायी है, जबकि मारे गये लोग भी ईश्वर की ही सन्तान थे या उसने बनाये थे।
अब बडा प्रश्न ये है कि ईश्वर अपने एक पुत्र को दूसरे पुत्र से क्यूं मरवायेगा ? उसको क्या डर लगता है उनसे ? वो खुद ही क्यूं नहीं मार देता उन्हें ?
इतिहास के अनुसंधानों से पता चला है कि पृथ्वी पर सभ्यता शुरू हुये मात्र दस बारह हजार साल ही हुये हैं। इससे पहले पाषाण युग में तो मनुष्य जंगलों में भोजन की तलाश में भटकता रहता था। चूंकि शिकार करके ही जीवन यापन करना था, समूह में रहना आवश्यक था। समूह में रहने की प्रव्रति ने कबीलों का निर्माण कर दिया जो सामाजिक जीवन की पहली सीढी थी।
घनघोर जंगलों में खुले आसमान के नीचे घूमते हुये मानव प्राक्रतिक आपदाओं से विशेष खौफजदा था, इसके अलावा इन्ही प्राक्रतिक संसाधनों का उसे उपयोग भी करना था। जहां एक ओर उसे पेड पौधे, पर्वत, जल, सूर्य , प्रथ्वी , बायु और आकाश की उपयोगिता एवं महत्ता समझ आयी वहीं दूसरी ओर इनसे इनकी अधिकता या कमी के कारण डर भी उत्पन्न हुआ और यहीं से ईश्वर एवं रहस्यमयी देवी देवताओं की अवधारणा का श्रीगणेश होता है।
बहुत सी ऐसी द्शाये आती हैं जब मनुष्य, मनुष्य से नहीं डरता, तो ऐसी दशा में उसे "निराकार" से डराया जाता है, जिसे वह कभी देख नहीं सकता,
मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह जिसे देख सकता है, कभी भी ऐसी दशा उत्पन्न हो सकती है कि वह उससे न डरे, और "डर के आगे जीत है", इसी लिये ईश्वर "निर्गुण" है।
इन्हीं प्राक्रतिक आपदाओं के फलस्वरूप हरेक कबीले में एक देवता का जन्म हो गया और अपने स्थानीय नाम से पूजे जाने लगा। बाद में यही प्राक्रतिक देवी देवताओं का मानवीयकरण कर उनका विवाह कर उनकी संतान भी उत्पन्न कर दी गयी। बहुत सारे मिथकों कहानी किस्सों में लपेट कर उन्हें जनता के सामने परोषा गया और हमारे दिमाग में भर दिया गया।
लगभग 6000 ईपू से लेकर 1000 ईपू के बीच आयी मिश्र सभ्यता रोमन सभ्यता यूनानी सभ्यता सिधुं सभ्यता, वैदिक सभ्यता और अब्राहम सभ्यता के अनगिनत देवी देवताओं का अध्ययन करें तो पायेंगे कि सारे देवता प्राक्रतिक हैं या फिर उनके लोक देवता हैं। प्राक्रतिक शक्तियां तो पूरे विश्व की एक ही हैं बस हर सभ्यता में क्षेत्रीय भाषा के आधार पर उनके नाम अलग अलग दे दिये गये हैं ।
सनातन में सबसे पहले त्रिदेव ब्रम्हा विष्णु महेश की अवधारणा का पता चलता है। हिन्दू ग्रंथों में इन तीनों को साक्षात ईश्वर की संज्ञा दी गयी है । जहां एक ओर ईश्वर को रूप रंग आकार सुख दुख मोह काम क्रोध से दूर एक प्रकाश पुंज बताया गया है वहीं दूसरी ओर इन तीनों देवों को काम क्रोध व्यसन एवं अन्य सांसारिक क्रियाओं में लिप्त बताकर शरीरधारी मनुष्य घोषित बताया गया है तो पहले तो ये ही पता कर लिया जाय कि ये तीनों साक्षात ईश्वर हैं या मनुष्य ?
ईश्वर, धर्म एवं उसके भेजे हुये दूत एक बहुत बडा कैमीकल लोचा है, जो भी गहरायी में जाने की कोशिष करेगा, बेटा सीधे आगरे के मैन्टल ईश्वरीय केन्द्र में पहुंच कर सलमान की तरह " तेरे नाम " कर रहा होगा।
सारे धर्म "एक ईश्वर" की मान्यता पर सहमत होने के वावजूद अपनी अपनी कितावों और सिद्धांतों को लेकर आपस में भिडते रहे हैं और केवल खुद को ही ईश्वर का भेजा हुआ दूत बताते रहे हैं ।
भला हो डार्विन का जिसने हमें कम से कम तर्क करके मनन करने पर विवश कर दिया वरना हम भी इन फर्जी किताबों को ईश्वरीय आदेश मानकर रट्टा मारते रहते।
अब्राहम पंथ के अनुसार अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की । कुरआन में नाम से 25 नबी और 4 किताबों का ज़िक्र है। इंग्लिश में वो ही नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में है।
जबकि हिन्दू पंथ ब्रम्हा विष्णु महेश एवं उनके सैकडों अवतारों और लिखित ग्रंथों को ईश्वर का भेजा हुआ बताते रहे हैं।
यीशु ने तो एक कदम आगे बढकर खुद को ईश्वर पुत्र बता दिया। खैर ये कोई खास बात नहीं है, कुंवारी कन्याओं के मां बन जाने पर उसे ईश्वर के मत्थे मढ देने की परम्परा तो सनातन में भी खूव रही है।
अब दिक्कत यहां है कि ईसा तो स्वंय को ईश्वर का बेटा कहते हैं जबकि उसी खानदान के चिराग मुहम्मद साहव जो खुद चल कर सातवें आसमान में फरिश्ते जिब्राईल के साथ ईश्वर से साक्षात मुलाकात करके आये हैं, कहते हैं कि ईश्वर ना तो किसी का बाप है और ना ही उसका कोई बाप है।
सनातन कहता है कि कण कण में ईश्वर है जबकि कुरान कहती है कि कण कण उसका बनाया हुआ है।
कुरान बाईबिल वेद अवेस्ता आदि ग्रथों में वर्णित ईश्वर के दूतों के नाम एक दूसरे से अलग है जबकि ईश्वर एक ही है।
इसके अलावा हर दूत ने खुद को ईश्वर का दूत बताकर अपने समकालीन राजनीतिक प्रतिद्वदियों को मार गिराया है एवं इसे धर्म की अधर्म पर जीत बतायी है, जबकि मारे गये लोग भी ईश्वर की ही सन्तान थे या उसने बनाये थे।
अब बडा प्रश्न ये है कि ईश्वर अपने एक पुत्र को दूसरे पुत्र से क्यूं मरवायेगा ? उसको क्या डर लगता है उनसे ? वो खुद ही क्यूं नहीं मार देता उन्हें ?
इतिहास के अनुसंधानों से पता चला है कि पृथ्वी पर सभ्यता शुरू हुये मात्र दस बारह हजार साल ही हुये हैं। इससे पहले पाषाण युग में तो मनुष्य जंगलों में भोजन की तलाश में भटकता रहता था। चूंकि शिकार करके ही जीवन यापन करना था, समूह में रहना आवश्यक था। समूह में रहने की प्रव्रति ने कबीलों का निर्माण कर दिया जो सामाजिक जीवन की पहली सीढी थी।
घनघोर जंगलों में खुले आसमान के नीचे घूमते हुये मानव प्राक्रतिक आपदाओं से विशेष खौफजदा था, इसके अलावा इन्ही प्राक्रतिक संसाधनों का उसे उपयोग भी करना था। जहां एक ओर उसे पेड पौधे, पर्वत, जल, सूर्य , प्रथ्वी , बायु और आकाश की उपयोगिता एवं महत्ता समझ आयी वहीं दूसरी ओर इनसे इनकी अधिकता या कमी के कारण डर भी उत्पन्न हुआ और यहीं से ईश्वर एवं रहस्यमयी देवी देवताओं की अवधारणा का श्रीगणेश होता है।
बहुत सी ऐसी द्शाये आती हैं जब मनुष्य, मनुष्य से नहीं डरता, तो ऐसी दशा में उसे "निराकार" से डराया जाता है, जिसे वह कभी देख नहीं सकता,
मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह जिसे देख सकता है, कभी भी ऐसी दशा उत्पन्न हो सकती है कि वह उससे न डरे, और "डर के आगे जीत है", इसी लिये ईश्वर "निर्गुण" है।
इन्हीं प्राक्रतिक आपदाओं के फलस्वरूप हरेक कबीले में एक देवता का जन्म हो गया और अपने स्थानीय नाम से पूजे जाने लगा। बाद में यही प्राक्रतिक देवी देवताओं का मानवीयकरण कर उनका विवाह कर उनकी संतान भी उत्पन्न कर दी गयी। बहुत सारे मिथकों कहानी किस्सों में लपेट कर उन्हें जनता के सामने परोषा गया और हमारे दिमाग में भर दिया गया।
लगभग 6000 ईपू से लेकर 1000 ईपू के बीच आयी मिश्र सभ्यता रोमन सभ्यता यूनानी सभ्यता सिधुं सभ्यता, वैदिक सभ्यता और अब्राहम सभ्यता के अनगिनत देवी देवताओं का अध्ययन करें तो पायेंगे कि सारे देवता प्राक्रतिक हैं या फिर उनके लोक देवता हैं। प्राक्रतिक शक्तियां तो पूरे विश्व की एक ही हैं बस हर सभ्यता में क्षेत्रीय भाषा के आधार पर उनके नाम अलग अलग दे दिये गये हैं ।
सनातन में सबसे पहले त्रिदेव ब्रम्हा विष्णु महेश की अवधारणा का पता चलता है। हिन्दू ग्रंथों में इन तीनों को साक्षात ईश्वर की संज्ञा दी गयी है । जहां एक ओर ईश्वर को रूप रंग आकार सुख दुख मोह काम क्रोध से दूर एक प्रकाश पुंज बताया गया है वहीं दूसरी ओर इन तीनों देवों को काम क्रोध व्यसन एवं अन्य सांसारिक क्रियाओं में लिप्त बताकर शरीरधारी मनुष्य घोषित बताया गया है तो पहले तो ये ही पता कर लिया जाय कि ये तीनों साक्षात ईश्वर हैं या मनुष्य ?
No comments:
Post a Comment