मौइन के गांव से बस दो घंटे में ही बनारस पहुंच गया था और घाट से कोई एक किमी दूरी पर ही रुम ले लिया था। हालांकि नजदीक भी लिया जा सकता था पर रिक्से बाले की बदमाशी से ऐसा हुआ था। खैर मात्र चार सौ रुपये बाले रूम में अपना बैग रख सीधा घाट की तरफ निकल लिया। स्नान जो करना था।
गंगा मैया को देखते ही भूल गया कि यहां कोई मंदिर भी है, ऐसा लगा जैसे ईश्वर से मुलाकात हो गयी, मंदिर जाना तो बस वास्तुकार की कला को निहारने एवं प्रशषां करने का एक नैतिक दायित्व भर है।
प्राकृतिक सौदंर्य को देखने के बाद फिर किसी भगवान की आवश्यकता भी नहीं रह जाती क्यूं कि ये तत्व ही साक्षात ईश्वर हैं बाकी तो इनका मानवीयकरण और मानव की कल्पना है।
गंगा में स्नान करने के लिये आपको नाव से उस पार जाना होता है, जहां दूर दूर तक रेत ही रेत नजर आयेगा। ठंडी ठंडी रेत में लोटपोट होने पर जो असीम आनंद मिलता है उसे या तो मेरे जैसा कोई पागल समझ सकता है या फिर विवेकानंद जी जैसा विद्धान जो शिकागो से लौटते ही भावविभोर होकर अपनी मातभूमि पर लोट पोट हो गये थे। नाव के दूसरी पार रूकते ही कपडे उतारे और कूद पडा मैया की गोद में। मैंने बैग से साबुन निकाला ही था कि एक बुजुर्ग बोले , बेटा मैया के पास सबकुछ है, थोडा ध्यान से खोजो। बस फिर क्या , मैं समझ गया, खूब सारी रेत शरीर पर लपेटी और घिस घिस के नहाया , कसम से शरीर चमक गया, उस रेत के आगे तो लक्स डव पीयर्स भी फेल हो गये। नदी की गहरायी की तरफ बढ रहा था तो थोडा डर लगा, कि तैरना नहीं आता है कहीं मां हमेशा के लिये तो नहीं सुला देगी पर मैया को भी पता था कि उसके नाती उसके बेटे की बाट जोह रहे हैं, उसने तो मुझे लहरों पर सुला दिया। मंदिरों की साईड बहुत सारे घाट बना रखे हैं जहां आप स्नान कर सकते हैं कितुं यहां नाव बालों एवं लोगों की इतनी भीड होती है कि स्नान करने का मन भी नहीं होता जब कि दूसरी ओर समुद्री बीच जैसा रेतीला तट है जहां दूर दूर तक सिर्फ स्नान करने बालों की ही भीड मिलेगी आपको।
आनंद की चरम सीमा भक्ति बन जाती है। ये मेरे लिये उसी आराधना साधना प्रार्थना और कामना के पल थे जिन्हें छोडने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। वर्फ जैसा ठंडा जल मुझे आनंदित कर रहा था और गंगा मैया की गोद से निकलने का मन भी नहीं कर रहा था पर अभी मुझे अन्य भगवानों से मिलने की औपचारिक ड्यूटी भी पूरी भी करनी थी इसलिये तरोताजा होकर बापस घाट की तरफ चल दिया। मैं ये पल कभी न भूल पाऊगां ।
यदि आप सनातन के मूल में जायेंगे तो पायेंगे कि इसकी रग रग में सिर्फ प्रकृति ही समायी है। ये मंदिर ये घंटे घडियाल आरती पूजा ये सब तो सिर्फ बाहरी आबरण है जिसने कुछ हद तक दुनियां को सनातन से दूरी बनाने का एक बहाना भी दिया है। वाराणसी महज एक शहर नहीं अपितु आस्था विश्वास और मान्यताओं की ऐसी केन्द्र भूमि है जहां तर्को के सभी मिथक टूट जाते हैं, जीवंत रहती है तो सिर्फ समर्पण भरी आस्था। वाराणसी आस्था, विश्वास और पर्यटन का केन्द्र है। वाराणसी मौज मस्ती और अपने फन का अलग शहर है। इसका एक नाम काशी है तो दूसरा बनारस भी। यह नगरी धर्म, कर्म, मोक्ष की नगरी मानी जाती है। गंगा के मुहाने पर बसे इस शहर की छटा को निखारने वाले सौ से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुषाकार का स्वरूप प्रदान करते हैं।काशी को यह गौरव प्राप्त है कि यह नगरी विद्या, साधना व कला तीनों का अधिष्ठान रही है।
धार्मिक महत्ता के साथ-साथ काशी अपने प्राचीनतम एवं मनोरम घाटों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ये घाट देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र हैं। प्रात:काल सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देखने योग्य होती है। गंगा के किनारे काशी के हर घाट का अपना अलग वैशिष्टय है। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध घाट है। सन् 1735 में इस घाट को सर्वप्रथम बाजीराव पेशवा ने बनवाया।प्रशस्त पत्थरों से निर्मित यह घाट पंचतीर्थो में एक है। कुछ साल पहले तक बनारस के घाटों का भी वही हाल था जो अन्य का है लेकिन पिछले कुछ सालों में स्वच्छता के प्रति आश्चर्यजनक चेतना आयी है लोगों में। बापूजी के सपने को साकार करने का पूरा पूरा श्रेय मोदीजी को ही जाता है। बस एक बार कोई कुछ करने की ठान ले, राह तो बनती चली जाती हैं। यह भी एक मनोबैज्ञानिक प्रभाव की बात है, सौ टका सही है क्यों की एक हाथी जिसके अंदर अपार शक्ति होती है सब जानते है लेकिन हाथी अपनी क्षमता नही जान पाता है जो पैर में पड़ी बेड़ी की वजह से एक जगह जमा रहता है। अगर चाहे तो एक झटके में बेडियां तोड़ दे लेकिन नही उसके मन में बैठ गया है कि वो अब कहीं नही जा सकता। ठीक उसी प्रकार हम अपने मन में बिठा लिए हैं कि मेरे एक सफाई करने या रखने से देश में सफाई नही हो सकती है जो गलत है। हम अपने को सक्रिय कर सकते है कि हम से गंदगी न हो और न होने दे।
बनारस के नजदीक ही मुगलसराय के मित्र सज्जाद अली भाई जी मेरी पता चलते ही भागे चले आये। आज पूरा दिन इन्हीं के साथ बनारस की गलियां छान मारेंगे। मंदिर भी घूमेंगे। घाट पर गंगा आरती का भी आनंद लेंगे। खायेंगे पीयेंगे साथ घूमेंगे फिरेंगे। कुछ अपनी कहेंगे कुछ इनकी सुनेंगे। आज धर्म और आध्यात्म की बातें होंगी। आज गीता और कुरान एक साथ रखी जायें । शेष अगले ब्लाग में।
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