Tuesday, January 24, 2017

Amarkantak tour ; Bhojpur , Bhimbetka Bhopal

कुछ दिनों पहले टीवी पर एक नागलोक के बारे में सुना था। छत्तीसगढ का एक आदिवासी इलाका जहां न केवल भूख से लडाई लड रहे जनजातियां रहतीं हैं वरन इंसानों से अपना घर बचाये जाने की जद्दोजहद कर रहे सांपों की सैकडों प्रजातियां भी रहती हैं। साबन के महीने में ये पहाडी क्षेत्र हरियाली से भरपूर होकर अपने परम यौवन को प्राप्त कर लेता है तो सापों के बाबियों में पानी भर जाने के कारण सांप भी लोगों की झोपडियों और घरों में अपना बसेरा बना लेते हैं। मैं न केवल आदिवासियों से बल्कि सापों से मिलने की चाह रखे था। इससे पहले कि मैं आदिवासियों का पक्ष जानूं , बहुत जरूरी था कि मैं ये जानूं कि आदिवासियों ने हथियार क्यूं उठा रखे हैं ? देश के रक्षक नक्सलियों के लिये परम दुश्मन क्यूं हैं , सोचा सैनिकों से भी मिला जाय ताकि उनके दूसरे पहलू को भी जाना जा सके।
 
CRPF की एक उन्नत शाखा RAF  बटालियन के डिप्टी कमाडेंट श्री जितेन्द्र सिंह यादव न केवल मेरे फेसबुक मित्र हैं वरन मेरे बडे भाई भी हैं। पिछले एक साल से मिलने मिलाने की प्लानिगं चल रही थी इस बार उन्हौने मुझे बुला ही लिया भोपाल। पहले तो ये यात्रा भी बाइक से ही करने का प्लान था लेकिन लगातार होती हुई रिमझिम बूंदाबांदी और जगह जगह फेसबुक मित्रों के द्वारा बाइक उपलब्ध कराने की बजह से बाइक की योजना कैंसल हो गयी और ट्रैन से ही चल पडा अपने जीवन के सफर पर। इस सफर में भोपाल की मस्जिदें , सांची का स्तूप, भोजपुर और आशापुरी के मंदिर, भीमबेटका की गुफायें, बेतवा सोन नर्मदा महानदी में स्नान, बिध्यांचल की हरी भरी बादियां, छत्तीसगढिया मंदिर और लोक संस्कृति और आदिवासियों का जीवन जानने की इच्छा थी जो काफी हद तक पूरी भी हुई। इस सबसे अलग मेरे फेसबुक परिवार के भाई बहिनों अनंत तिवारी जी राकेश शर्मा जी आलोक पांडेय जी विकाश शर्मा जी स्मिता तांडी जी महेश जी दुर्गा प्रसाद अग्रवाल जी आदि से भी मिलना था।
पहला पडाव भोपाल रहा मेरा इस बार। भोपाल के नजदीक भोजपुर के प्राचीन शिव मंदिर, आशापुरी मंदिर समूह एवं सलकनपुर की देवी मां का मंदिर के अलावा पाषाणकालीन मानव की भीमबेटका गुफायें, सांची स्तूप और भोपाल के नबाबों की इस्लामी विरासत के बजाय फेसबुक मित्र जितेन्द्र सिंह भैया से मिलना ज्यादा महत्वपूर्ण था मेरे लिये।
फेसबुक पर मेरे जितने भी मित्र हैं, जानते होंगे कि मैं हर रोज सुवह कुछ बोलती तस्वीरों को लाईक करता हूं। इन तस्वीरों पर बस एक लाईन का कैप्सन होता है लेकिन होता ऐसा है कि सब कुछ कह देता है। गहरे अर्थ बाली तस्वीरों को पोस्ट करने बाले मित्र जितेन्द्र भैया ही हैं।
भोपाल पहुंचते ही मुझे रिसीव करने को गाडी लेकर एक सिपाही चौहान साहब भेज दिये थे उन्होने। चौहान साहब बहुत ही आज्ञाकारी सैनिक हैं भैया के । पूरे दिन मेरे साथ रहे । भीमबेटका और भोजपुर भी घुमाकर लाये।
रास्ते में जब बार बार भैया का फौन आये,"गाडी धीमे चलाना और ध्यान रखना सत्यपाल को कोई परेशानी न हो" यस सर यस सर राईट सर ओके सर के अलावा कुछ भी शब्द न निकालें।
बच्चों जैसे चितां करने पर जब मैं हंस पडा तो चौहान साहब ने कहा,
" साब आप हंसिये मत । ऐसे ही हैं साब हमारे । वो आपकी ही नही अपने हर सिपाही की ऐसे ही केयर करते हैं बच्चों जैसी। दिन में तीन बार तो खाने की पूछते हैं।
रास्ते में चौहान साहब ने मुझे बटालियन के कायदे कानून और अनुशाषन के बारे में भी बहुत कुछ बताया तो सैनिकों के कठोर नौकरी के बारे में भी। जब उन्होने बताया कि सिर्फ दस प्रतिशत ही सैनिक भाग्यशाली होते हैं जो सही सलामत घर पहुंचते हैं वरना अधिकांशत या तो शहीद हो जाते हैं या फिर कट फट कर अपंग हो जाते हैं।
चौहान साब से बात करते करते मैं एक ऊंची और हरी भरी पहाडी पर स्थित बहुत बडे एरिया में फैले बटालियन कैंप में पहुंच गया। भैया मुझे अपने होटलनुमा बडे भवन के गेट पर ही इंतजार करते मिले। जब उन्हौने मुझे बैग पीठ पर टांगे हुये देखा तो चौहान साब की तरफ देखा।
इससे पहले कि भैया चौहान साहब से कुछ कहते, मैंने उन्हें बता दिया कि भैया चौहान साब ने मुझसे बहुत जिद की थी पर मैंने बैग नही दिया। मैं अपना काम खुद करता हूं। देश के रक्षक पर एक मास्टर साहबी दिखायेगा क्या ? मैं तो खुद इनका बैग उठाने को तत्पर रहता हूं। भैया की नाराजगी बस मुस्कुराहट में बदल गयी और बोले, चल अदंर चल पहले नहा धो ले फिर बैठ कर बातें करते हैं। सोचा था कि भैया सपरिवार रहते होंगे पर अदंर पहुंच कर पता चला कि फक्कडी जीवन जीते हैं। भाभी और दोनों बच्चियां दिल्ली में रहते हैं। जानकर खुशी हुई कि दोनों बच्चियां अपने अपने कालेज की टौपर हैं। नहाने धोने के बाद हम दोनों ने साथ ही खाना खाया और मेरे सबसे पंसदीदा टौपिक धर्म और अध्यात्म पर खूब गहरी चर्चा हुई। मानना पडेगा भैया को बहुत ज्ञान है। बहुत सारे विचारकों की पुस्तकें भी मिलीं बहां। उनमें से एक मुझे भी दी पढने को। ओशो से काफी प्रभावित लगे भैया। मुझे भीमबेटका घूमने निकलना था और भैया को अपने आफिस। भैया मुझे अपने औफिस भी ले गये। बडा शानदार भवन है। पूरे कैंपस में सैनिक फाबडे लेकर साफ सफाई करते और पौधे लगाते मिले । देर हो रही थी इसलिये चौहान साहब की डिस्कवर लेकर निकल पडा घूमने। भैया की जिप्सी की बजाय मुझे चौहान साब की डिस्कवर पर अधिक मजा आया।






















अब चलते हैं आपको भोजपुर के प्राचीन मंदिर  और प्राचीनतम मानव के आश्रय स्थल भीमबेटका के दर्शन कराते हैं। मेरी स्वाभाविक इच्छा रहती है प्राचीन मानव के बारे में जानने की। भोपाल के निकट भीमबेटका की आदिमानव गुफाओं को देखने निकल पडा। भोपाल से अभी मुस्किल से बीस किमी ही चला हुगां कि बेतवा नदी की सुंदर हरी भरी घाटियों के किनारे शिव जी के एक प्राचीन मंदिर के दर्शन हुये। जाने क्यूं मुझे आजकल के मंदिर बिल्कुल भी पंसद नही आते। बंद गलियों में । किचकिचाती भीड । शंख घंटों का कानफोडू शोर । पंडो की सजी दुकानें । भगवान की मूर्ति तो जैसे उस शोर कहीं खो सी जाती है। जैसे ही कोई प्राचीन मंदिर देखता हूं दिल खुश हो जाता है। किसी नदी के किनारे विशाल भवन । हरे भरे पेड । चारों तरफ फैली हरियाली। प्राचीन लोगों ने वास्तव में समझा होगा कि शिव का असली स्वरुप तो प्रकृति के बीच ही है। इस टूर में मैंने बहुत सारी नदियों के किनारे मंदिरों मठों आश्रमों का अध्ययन किया है। विलासपुर में तो एक पहली ईश्वी का शिवमंदिर भी घुमा था। और सबसे सुखद बात यह है कि ऐसे ऐतिहासिकों मंदिरों पर भीड भी केवल मुझ जैसे किसी जिज्ञासु प्रकृति प्रेमी लोगों की ही मिली जो बहुत ही कम होंगे।
बेतवा नदी के किनारे भोजपुर में शिवजी का एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण सुबह होने के कारण रह गया अधूरा था । भोजपुर की एक ऊंची पहाडी पर बने इस विशाल शिवलिगं के चारों ओर गजब की खूबसूरती है और यही कारण था कि मुझे बहां परम्परागत भक्तों के बजाय कालेज के लडकों की भीड ज्यादा मिली जिनकी भक्ति शिवशक्ति के बजाय अपनी अपनी गर्लफ्रैन्ड्स के प्रति ज्यादा नजर आ रही थी। यहां तो वे पर्यटन के लिये आये थे। और सच पूछो तो प्राचीन काल में भी इन धार्मिक स्थानों का उद्देश्य देशाटन और सामाजिक मेल ही हुआ करता था।
भोजपुर से कुछ दूरी पर कुमरी गाँव के निकट सघन वन में इस  नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी एक कुण्ड से निकलकर बहती है। भोपाल ताल भोजपुर का ही एक तालाब है। इसके बाँध को मालवा के शासक होशंगशाह (१४०५ - १४३४) में अपनी संक्षिप्त यात्रा में अपने बेगम की मलेरिया संबंधी शिकायत पर तुड़वा डाला था। इससे हुए जलप्लावन के बीच जो टापू बना वह द्वीप कहा जाने लगा। वर्तमान में यह "मंडी द्वीप' के नाम से जाना जाता है। इसके आस- पास आज भी कई खंडित सुंदर प्रतिमाएँ बिखरी पड़ी हैं। यहाँ मकर- संक्रांति पर मेला भी लगता है। यह भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। भोजपुर के इस शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई – 1055 ई ) द्वारा किया गया था। 22 फीट उंचा यह शिवलिंग दक्षिण भारत के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर के शिवलिंग से भी उंचा है। राजा भोजदेव कला, स्थापत्य और विद्या के महान संरक्षक थे। मंदिर के गर्भगृह की अधूरी छत 40 फीट उंचे विशालकाय चार स्तंभों पर आधारित है। मंदिर से प्रवेश के लिए पश्चिम दिशा में सीढ़ियां हैं। गर्भगृह के दरवाजों के दोनों ओर नदी देवी गंगा और यमुना की मूर्तियां लगी हुईं हैं। इसके साथ ही गर्भगृह के विशाल शीर्ष स्तंभ पर उमा-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, ब्रह्मा-सावित्री और सीता-राम की मूर्तियां स्थापित हैं। सामने की दीवार के अलावा बाकी सभी तीन दीवारों में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं हैं। मंदिर के बाहरी दीवार पर यक्षों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। 17 फीट उंचे चबूतरे पर बने इस मंदिर की ऊंचाई 106 फीट और चौड़ाई 77 फीट है। 22 फीट उंचा यह शिवलिंग छत का पत्थर गिरने से यह दो भागों में टूट गया था। यह मंदिर एक ही रात में निर्मित होना था परन्तु छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई, इसलिए काम अधूरा रह गया। भोजपुर शिव मंदिर के बिलकुल सामने पश्चमी दिशा में एक पार्वती गुफा हैं।
भोजपुर मंदिर तो विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन इसके महज 4 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम आशापुरी को शायद ही कोई जानता हो। भोजपुर के प्रसिद्ध शिव मंदिर के पास आशापुरी गांव में मिले हैं। आशापुरी गांव में भूतनाथ मंदिर के अलावा आशापुरी मंदिर, बिलोटा मंदिर, सतमसिया मंदिर आदि मिले हैं। इन मंदिरों में ब्रह्मा, नृवराह, नृसिंह, विष्णु, सूर्य, गणेश, उमा-महेश्वर, नटराज, सदाशिव, कृष्ण, महिषासुर मर्दिनी, नायिकाओं और अप्सराओं की प्रतिमाएं मिली हैं। आशापुरी क्षेत्र मध्यभारत के मध्यकालीन वटेसर, खजुराहो, कदवाहा आदि की तरह अहम हैं।  प्राचीन मंदिरों में कोई उत्तराभिमुख है तो कोई दक्षिणाभिमुख। कोई पूर्वाभिमुख है तो कोई पश्चिमाभिमुख।

भोजपुर के आसपास सभी मंदिरों को घूमते हुये हम भीमबेटका पहुंच ही गये। भोपाल होसिगांबाद हाईवे पर अबैदुल्लागंज से थोडा ही आगे चलकर राईट हैंड पर मुडकर तीन किमी चलना होता है। मुस्किल से एक किमी चले थे कि भीमबेटका बैरियर आ गया जहां हमने पचास रुपये प्रति व्यक्ति टिकट ली। बैरियर पार करते ही रोड के दोनों ओर घने पेडों के साथ ही चडाई भरा जगंल शुरू हो गया। एक तरफ कल कल बहती हुई नदी और शांत एकांत  प्राकृतिक सौंदर्य देखकर मैं अभिभूत हो गया और बाइक पर साथ बैठे फौजी भाई चौहान से कहने लगा, मन करता है कि यहां कुछ दिन टिक जाऊं और आदिमानवों की तरह इन्ही गुफाओं में समय बिताऊं। पर फौजी भाई ने जैसे ही कहा, ठीक है रुक जाओ पर ध्यान को भंग करने के लिये कभी कभी यहां बाघ आ जाते हैं, अब तो मुझे गाडी चलाते हर मोड पर बाघ ही दिखने लगे। बैसे भी सिस्टम तो ये है कि ध्यान भंग करने के लिये अप्सरायें आया करतीं थीं, और अब बाघ ? न बाबा न ! बिना ध्यान ही सही है।
हहहह खैर दस मिनट में हम बडी बडी चट्टानों की गुफाओं में स्थिति मुख्य मंदिर पर पहुंचे। बहुत ही रमणीक जगह है। ऊंची ऊंची चट्टानों और विशाल बरगद के वृक्षों के बीच एक छोटा सा मंदिर, सिर्फ मोरों और चिडियाओं के चहकने भर से ही पता चल रहा था कि ये जगह भी इस कानफोडू पृथ्वी पर ही है । इतना शांत माहौल मिल जाय तो मेरी आत्मा जैसे वहीं खो कर रह जाती है। मंदिर के दर्शन कर हम बापस गुफाओं की तरफ आगे बढे। गुफाओं की तरफ आगे बढने से पहले आपको कोई गाईड ले लेना चाहिये वरना सारी चट्टानें एक सी लगेंगी। घने जंगल के बीच इतनी विशाल चट्टानें और उन पर बने लाल व सफेद रंग के चित्र जिनमें अधिकतर पशुओं पक्षियों और पेडों के हैं, गजब ही जान पडती हैं। शिकार करते हुये मनुष्य भी चित्रित हैं जो ये सिद्ध करते हैं कि आदिमानव पूर्णत: प्राकृतिक था और कंदमूल फल के अलावा कच्चा मांस भी खाता था। जहां तक बात धर्म की है। उनका भगवान भी प्रकृति ही थी क्यूं कि वो उसी से डरते थे और भगवान वही होता है जो आपको डरा कर रखे। हालांकि बाद में वो लोग पशुपालन और खेती करने लगे। प्रकृति के अलावा एक पुरुष और एक स्त्री की पूजा करने लगे। माना जाता है कि वह पुरुष स्त्री आदम और हब्बा / एडम ईव/ शिव पार्वती ही होंगे। भीमबेटका की एकांत गुफाएं प्रेमी युगलों के लिये बहुत ही सटीक जगह है जहां वे जमाने की कठोर और काली निगाहों से दूर हरियाली के बीच एकांत में अपने प्रेम का बेखौफ प्रदर्शन कर सकते हैं। हम जहां जहां गये भोपाल के कालेजों से आये हुये आधुनिक लैला मजनूओं के कटपीस हमें चुपके मिले। हमने भी उनके प्रेमालाप में दखल देना उचित नहीं समझा, बिना कोई व्यवधान किये आगे बढ लिये।









शाम को शहडोल भी निकलना था और फिर भोपाल में दो अन्य मित्र गोविंद सिंह और राहुल तिवारी मेरा इंतजार कर रहे थे अत: निकलना ही मुनासिब समझा। अबैदुल्लागंज के गुलाबजामुन वाकई लाजवाव हैं जायें तो जरूर रसास्वदन कीजियेगा।

No comments:

Post a Comment