पचमढ़ी पांडवों के लिए भी जानी जाती है। यहां की मान्यताओं के अनुसार पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ काल यहां भी बिताया था और यहां उनकी पांच कुटिया या मढ़ी या पांच गुफाएं थीं जिसके नाम पर इस स्थान का नाम पचमढ़ी पड़ा है। एक छोटी पहाड़ी पर ये पांचों गुफाएं हैं। वैसे इन्हें बौद्धकालीन गुफाएं भी कहा जाता है। इस प्रकार की गुफाओं मंदिरों को अक्सर पांडवों से जोड दिया गया है। देशभर में घूमते हुये हजारों स्थान देख लिये जो पांडवों से संबधित बताये जाते हैं। सच्चाई क्या है ईश्वर जाने लेकिन जगह बहुत ही रमणीक हैं। पचमढी की इन गुफाओं के आगे एक बहुत सुंदर बगीचा भी है जिसमें सैकडों प्रजाति के फूल और पोधों हैं। गुफाओं के मेनगेट के बाहर ही बच्चों की छोटी छोटी बाइक्स हैं जो मात्र पचास रुपये में किराये पर दी जाती हैं। विकी ने गाडी ली और पीछे गाडी मालिक को बिठा लिया। सौ मीटर दूर एक पुराना चर्च है बहां तक चला कर ले गया और लौटा लाया।
शिवशंकर के मंदिर सबसे अधिक हैं यहां जिनमें सबसे प्रसिद्ध हैं, जटाशंकर महादेव और गुप्त महादेव। - गुप्त महादेव जाने के लिए दो बिलकुल सटी हुई पहाड़ियों के बीच से गुजरना होता है जबकि जटाशंकर मंदिर पचमढ़ी बस स्टैंड से महज डेढ़ किलोमीटर दूर है और वहां जाने के लिए पहाड़ी से नीचे उतरकर खोह में जाना होता है। कहा जाता है कि भस्मासुर से बचने के लिए ही भोले शंकर इन दोनों जगहों पर छिपे रहे थे। - इसके अलावा तीसरा प्रसिद्ध मंदिर महादेव मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि भस्मासुर से बचते हुए अंत में शिवजी यहां छिपे और यहीं पर भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर भस्मासुर को अपने ही सिर पर हाथ रखने के लिए मजबूर कर उसका विनाश किया था। महादेव गुफा आकर्षण का बडा केंद्र है, जहां पत्थरों पर की गई अनूठी चित्रकारी बरबस ही आपका ध्यान आकर्षित करती है। कहते हैं कि यह चित्रकारी 5 से 8वीं शताब्दी के बीच की गई थी। कुछ चित्र तो इससे भी दस हजार साल पुराने बताये जाते हैं।
महादेव गुफा मंदिर की ओर चलते हुये बीच रास्ते में जिप्सी रुकी हुई दिखाई दी तो हमने भी अपनी बाइक पार्क कर दी और चल पडे हरे भरे पेडों के बीच ऊंची नीची पगडंडियों पर। करीब पांच सौ मीटर चलने के बाद एक गहरी खाई आती है और रास्ता समाप्त। हम दोनों के अलावा दस लोग और थे। दुकान के नाम पर बस एक ठेली थी जिस पर रख कर एक औरत फल इत्यादि बेच रही थी। बंदरों से थोडा सावधान रहना होता है यहां झपट्टा मार ले जाते हैं। जमुना प्रपात, रजत प्रपात और जलावतरण प्रपात तो जैसे पचमढी की अल्हडता के गीतों का सामुहिक गान हैं। जमुना प्रपात में जहां आप झरने के किनारे बैठने से लेकर नहाने तक का लुत्फ उठा सकते हैं, वहीं हांडी खोह के पेड-पौधे तो आपको किसी और ही दुनिया का आभास करायेंगे। भगवान शिव से जुडे हजारों साल पुराने मन्दिरों जटाशंकर गुफा, महादेव और छोटा महादेव मन्दिर की प्राकृतिक मनोहारी छटा जहां धार्मिक लोगों को आकर्षित करती है, वहीं प्रकृति प्रेमियों को भी। हम थोडी देर बाद चहलकदमी करने के बाद निकल पडे गुफा की ओर। करीब दस किमी की पहाडों में बाइक राइडिगं में जो मजा आया वो शायद ही किसी मंदिर को घूमने में आया हो। महादेव गुफा के पास ही बाहर कमल के फूल बेचने बाली बैठी थी। हमने बाइक वहीं पार्क कर दी। चल दिये गुफा की ओर। सौ मीटर की दूरी पर ही है। चारों ओर बस त्रिशूल ही त्रिशूल। निगाह लगाये बंदर। घने पेडों की छांव। चहचहाते पक्षियों का मधुर कलरव। जरा भी शोर शरावा नहीं। एकदम शांति। गुफा में घनघोर अंधेरा और ऊपर से टपकता जल। गुफा के अतं में रखी हुई पिंडी। बीच में जल कुंड। प्राकृतिक करिश्मा को हम बहुत अच्छे से भुनाना जानते हैं। बिठा दो एक शिवलिंग और पूजापाठ शुरू। जो भी है हम प्रकृतिपूजक हैं इसमें हमें गर्व है बस ये ध्यान रहे कि हम प्रकृति के संरक्षण के लिये इन्हें भगवान माने हैं इन्हें उजाडने के लिये नहीं। गुप्तेश्वर गुफा भी बहां से अधिक दूर नहीं थी। दस मिनट में ही पहुंच गये। थोडा दूर जंगल में पैदल भी चलना पडा। एकदम संकरी गुफा। मुश्किल से दो चार लोग ही घुस सकते थे एक बार में। प्रकृति का एक और अजूबा सामने था हमारे। आप बस एक बार घर से निकल तो पडो फिर देखो प्रकृति के कितने चमत्कार भरे पडे हैं दुनियां में। मैं तो सीधे भी नहीं चल पा रहा था। आडे आडे गया और बैसे ही आया। अदंर थोडी सी जगह मिली तब थोडा डर दूर हुआ। बाहर से एक्जास्ट फैन से हवा भी डाली जा रही है ताकि दम न घुटे।
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