Saturday, February 11, 2017

इंदौर यात्रा : राहुल तिवारी और सौरभ रघुवंशी के साथ ।

इंदौर में मेरे कजिन्स रहते हैं। रवि भाई रेलवे में टीटीई हैं। जब मैं छोटा था तब अक्सर रतलाम में अपने ताऊजी के पास आता रहता था लेकिन जब से ताईजी ताऊजी स्वर्ग सिधारे हैं, रवि भाई इंदौर आकर रहने लगे।लेकिन अब आना जाना कम ही हो पाता है हम लोगों का। साल बीत जाते हैं। जीवन की गुत्थियों में ऐसे उलझे कि फिर उलझ कर ही रह गये।
इस बार भैया घर आये थे। बोल कर गये थे कि आने जाने से ही संबध जीवित रहते हैं। इंदौर आना घूमने।
उज्जैन के बाद मैं और विकी इंदौर पहुंच गये। विकी पहली बार अपने ताऊजी और बुआजी के घर गया था। भैया भाभी और एकता दीदी ने खूब सारा लाड प्यार दिया उसे।
अगले ही सुवह भैया तो ड्यूटी पर चले गये और मैं भैया की डिस्कवर लेकर इंदौर घूमने निकल पडा। दरअसल मुझे मेरे फेसबुक मित्र तिवारी जी से भी मिलना था। सबसे पहले पहुंचा खजराना गणेश मंदिर। खजराना मंदिर इन्दौर का प्रसिद्ध गणेश मंदिर है। यह मंदिर विजय नगर से कुछ दूरी पर खजराना चौक के पास में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण अहिल्या बाई होल्कर द्वारा किया गया था। इस मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवान गणपति की है, जो केवल सिन्दूर द्वारा निर्मित है। इस मंदिर में गणेश जी के अतिरिक्त माता दुर्गा जी, महाकालेश्वर की भूमिगत शिवलिंग, गंगा जी की मगरमच्छ पर जलधारा मूर्ति, लक्ष्मी जी का मंदिर, साथ ही हनुमान जी की झाँकी मन मुग्ध करने वाली है। यहाँ शनि देव मंदिर एवं साई नाथ का भी भव्य मंदिर विराजमान है, यहाँ इस तरह की अनुभूति होती है ,जैसे सारे देवी, देवता एक स्थान पर उपस्थित हो गये हों। यहाँ की मंदिर व्यवस्था बहुत ही उत्तम कोटि की है। इस मंदिर मे 10,000 से लोग हर दिन दर्शन करते है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ जो भी भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये गणेश जी के पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाता है,गणपति जी उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात पुनः सीधा स्वास्तिक बनाते हैं।
काली मां और खजुराना मंदिर दर्शन करते हुये सबसे पहले दीदी के घर पहुंच कर विकी को छोडा और फिर तिवारी जी की कार में निकल लिया इंदौर की सैर पर। तिवारी जी ने एक और मित्र सौरभ रघुवंशी को फौन कर होल्कर पैलेश लालबाग पर ही बुला लिया था। जब तक सौरभ भाई पीतमपुरा से आये तब तक हम टिकट लेकर लालबाग महल में घूम आये थे। बडा शानदार महल है यह। लाल बाग महललाल बाग महल, इंदौर के सबसे शानदार महलों में से एक है। यह महल, खान नदी के तट पर तीन मंजिला इमारत के रूप में खड़ी एक शानदार संरचना है। इस महल का निर्माण महाराजा शिवाजी राव होलकर ने करवाया था। इस महल का इस्तेमाल होलकर शाही परिवार के द्वारा मेजबानी में किया जाता था। लाल बाग पैलेस, इंदौर के सबसे अनूठे व प्रसिद्ध महलों में से एक है जिसकी वास्तुकला बेहद अनूठी है। इस महल में होलकर शासकों की जीवन शैली की झलक स्पष्ट तौर पर देखने को मिलती है। इस महल में भारत का सबसे सुंदर गुलाबों का बगीचा भी स्थित है। महल का प्रवेश द्वार बेहद सुंदर है। लाल बाग महल को भारत और इटली के कई अन्नय चित्रों व मूर्तियां से सजाया गया है। इस महल की दीवारों पर व छत पर नक्काशी बनी हुई है। महल में एक सिक्का संग्रहालय भी है। 28 एकड़ में फैले इस महल को एक संग्रहालय में बदल दिया गया है।
तिवारी जी और सौरभ भाई दोनों ही कट्टरवादी विचारधारा के हैं और मेरे जैसे सेकुलर्स को हर रोज गालियां देते हैं। मैं अक्सर सोचता था कि एकेश्वरवादी मुस्लिम्स या सेकुलर्स से ये कट्टरपंथी क्या सिर्फ उनकी इबादत की प्रक्रिया को लेकर रुष्ठ हैं ? नहीं बिल्कुल नहीं । तिवारी जी का साधना स्थल देखकर तो मुझे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगा। वो मुझे अपने गुरु की समाधि स्थल पर ले गये और उन्हौने मुझे बताया कि यही मेरी प्रार्थना है। यही मेरी पूजा है। सिर्फ एक ईश्वर का ध्यान। कोई मूर्तिपूजा नहीं और कोई दिखावा नहीं। बस एकांत में बैठकर खुद में खो जाओ। खुद को जान लो खुदा मिल ही जायेगा। तो फिर क्या बजह हो सकती थी इतने बिखराव की ? मुझे जो बजह नजर आयी वो सिर्फ इतनी थी कि एक कट्टरपंथी दूसरे कट्टरपंथी को सहन नहीं कर सकता। दोनों अपना मार्ग ही श्रेष्ठ समझते हैं। और हर जगह अपना राज ही चाहते हैं। लेकिन यहां तो मार्ग भी लगभग समान थे तो फिर क्या कारण था कि वो रात दिन कट्टरपंथी मुस्लिम्स को गरियाते रहते हैं ? इसका जवाब तो उन्ही से मांगियेगा ।
पीतमपुर से सौरभ भाई होल्कर के लालबाग पैलेश आ चुके थे। हरे भरे बगीचे में बैठकर हमारी बातें होती रहीं। वो गांधी जी को शैतान साबित करने की कोशिष करते रहे और मैं महात्मा। गांधी जी को समझना साधारण मनुष्य के वश में भी नहीं है। वो एक व्यापक विचारधारा है और इसे वही समझ पायेगा जिसके दिल में खूब सारी मुहब्बत भरी होगी। पैलेश घूमने के बाद हम लोग एक ढाबे पर बैठ कर खाते पीते एक दूसरे को समझाते रहे पर कोई भी समझने को तैयार न था। हालांकि मैं उनकी बहुत सारी बातों से सहमत भी था। उन्होने कहा कि पहले हम भी सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने बाले थे लेकिन राजनीति की तुष्टिकरण की नीति ने हमें असंतुष्ट बना रखा है। जहां सनातनी अपने धर्म के चरम पर पहुंच कर ईश्वर की तलाश में जंगल की ओर गमन कर जाता है वहीं दूसरी ओर मुस्लिम मजहबी चरम में बंदूक थाम लेता है। ये लोग उन्ही चरमपंथियों के विरोधी हैं आम इंसान के नहीं जो भारत की संस्कृति में अपना विश्वास व्यक्त करता है। करीब दो घंटे की मुलाकात में हम कभी उखडे नहीं।शायद ये सनातनी संस्कृति का ही असर था कि विपरीत विचारधारा को भी सुनने और समझने की शक्ति आ गयी है।
सौरभ और राहुल भाई के साथ बिताये गये मौज मस्ती और नोंकझोंक के कुछ खट्टे मीठे पल यादगार हैं मेरे लिये। दोनों भाईयों से मिलकर काफी अच्छा लगा था। जैसा कि डर था कि दोंनों मिलकर मुझे कूटेंगे पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। बाल बाल बच गया। जैसा कि पहले ही बता चुका हूं कि ये दोनों भाई अपनी कट्टर हिन्दू छवि के रुप में फेसबुक पर बहुत प्रसिद्ध हैं। लेकिन इन चार पांच घंटों में मैंने राहुल भाई की गहरी आध्यात्मिक समझ, जीवन से लडने की आत्मशक्ति, वुजुर्गों के प्रति आदर भाव और व्यावहारिक जीवन में कहीं न कहीं मानवता के प्रति प्रेम भी मेहसूस किया। सौरभ रघुवंशी तो पक्के ठाकुर आदमी हैं बिल्कुल नारियल की तरह। ऊपर से कडक जबकि अंदर से मुलायम। रही बात विचारात्मक भिन्नता की तो वो एक तरफ और सामाजिक प्रेम एक तरफ। मैं अपने विचारों को अपने निजी संबधों के बीच कभी नहीं आने दे सकता। चाहे संघी हो या मुसंघी, मैं मानवता के नाते प्रेम का पाठ पढाता रहूगां। शाम को तिवारी जी ने मुझे मेरी बहन के घर छोड दिया जहां रात को मुझे रुकना था। कुछ भी हो पर ये Rahul Tiwari नाम की बीमारी लगती बडी जोर से है । मुझे सबसे बडी चिड तो इस बात की है कि बंदा बुढापे में भी स्मार्ट लगता है और मेरे जैसे नये लौंडे को भी पीछे छोड देता है। रात को Sanjay द्विवेदी जी के शोरूम पर एक बार फिर मुलाकात हुयी। माल भी गये पर बहां तो बहुत सारे नये नये लोंडे अपने अपने माल के चक्कर में अपना माल उडा रहे थे जबकि अपने पास तो माल था ही नहीं , ना तो ये माल और ना वो माल , सो बिना माल उडाये माल से उड लिये। पर यारों की यारी से जरूर मैं मालामाल हो गया। कुछ भी हो बहुत मजा यार । सच में कसम से।








1 comment:

  1. आपका वैचारिक वृत्तांत बहुत अच्छा लगता है ।
    आशा करता हूँ हमे ऐसे ही ही सामाजिक वैचारिक मंथन का वृत्तांत पढने को मिलता रहेगा।

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