Thursday, March 30, 2017

राजस्थान दिवस की शुभकामनाएं ।।

तोडने में तो वक्त ही कितना लगता है जोडने में पसीना आ जाता है। आज सत्ता सुंदरी के इर्द गिर्द मंडराते लार टपकाते सियासी भेडिये चाहे कितना ही देशभक्ति का दिखावा कर लें, सच तो ये है 562 कबीलों के इस जंगल को उपवन बनाने में सिर्फ और सिर्फ जमीन से जुडे किसानों, मजदूरों और बंचितों का खून बहा है। भारत के एकीकरण के समय कुल 562 रियासत थी जिसमें सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद व सबसे छोटी रियासत बिलवारी (मध्यप्रदेश) थी। केवल काश्मीर, जूनागढ और हैदराबाद ही नहीं थे बल्कि और भी बहुत से लालची सियासी भेडिये थे जिनकी समझ में सिर्फ जूते की भाषा आयी थी वरना ये तो अपने ऐशो आराम के लिये इस देश को जहन्नुम में धकलने जा रहे थे। आज राजस्थान दिवस है इसलिये मैं आज सिर्फ राजस्थान के एकीकरण की ही बात करूंगा। 
राजस्थान के एकीकरण के समय कुल 19 रियासतें व 3 ठिकाने- लावा(जयपुर), कुशलगढ़(बांसवाड़ा) व नीमराना(अलवर) तथा एक चीफशिफ अजमेर-मेरवाड़ा थे। रियासती विभाग की स्थापना जुलाई 1947 में की गई जिसके अध्यक्ष दृण इच्छा शक्ति के धनी लोहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल बने और रियासती विभाग का सदस्य सचिव- वी. पी. मेनन को एवं अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का अध्यक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरू को बनाया गया।राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पुरा हुआ। इसके एकीकरण में 8 वर्ष 7 महीने और 14 दिन का समय लगा। राजस्थान की सबसे प्राचीन रियासत मेवाड़(उदयपुर) थी। टोंक व जोधपुर रियासतें एकीकरण के समय पाकिस्तान में मिलना चाहती है। जोधपुर नरेश ने तो धौलपुर नरेश को भी बहकाने में कोई कसर न छोडी थी। ऐन टाईम पर जनता ने जूते न फटकारे होते तो आज मैं पाकिस्तान में भीख मांग रहा होता। तब जाकर अलवर, भरतपुर व धौलपुर रियासतों ने भाषायी समानता के आधार पर उत्तरप्रदेश में मिलने की इच्छा जतायी। दो मुस्लिम रियासतें टोंक व पालनपुर(गुजरात) थी। एकीकरण के समय एक शर्त रखी गयी थी कि जिस रियासत की जनसंख्या 10 लाख व वार्षिक आय एक करोड़ रूपये हो वो रियासतें चाहे तो स्वतंत्र रह सकती हैं या किसी में मिल सकती है। उपर्युक्त शर्त को पुरा करने वाली राजस्थान की केवल चार ही रियासतें थीं - बीकानेर, जोधपुर, जयपुर,उदयपुर।
अलवर, भरतपुर, धौलपुर, डुंगरपुर, टोंक व जोधपुर ये रियासतें राजस्थान में नही मिलना चाहती थी। अलवर रियासत का सम्बंध महात्मा गांधी की हत्या से जुडा हुआ है महात्मा गांधी की हत्या के संदेह में अलवर के शासक तेजसिंह व दीवान एम.बी. खरे को दिल्ली में नजर बंद करके रखा था।अलवर रियासत ने भारत का प्रथम स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया।बांसवाड़ा के शासक चन्द्रवीर सिंह ने तो एकीकरण विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय कहा था," मैं अपने डेथ वारन्ट पर हस्ताक्षर कर रहा हुँ।" उदयपुर के भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख न बनाते तो यह एकीकरण संभव ही नहीं था। राजाओं महाराजाओं की गद्दियां खतरे में थी और उनका दिल रो रहा था जबकि गरीब जनता ठहाके लगाते हुये कह रही थी," उसके घर में देर है अंधेर नहीं।" 
एकीकरण कुल सात चरणों में 17/18 मार्च, 1948 से प्रारम्भ होकर 1 नवम्बर, 1956 को सम्पन्न हुआ, राजस्थान का एकीकरण का प्रथम चरण - मत्स्य संघ 17/18 मार्च, 1948 को शुरू हुआ जिसमें  4 रियासते अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली एवं एक नीमराणा(अलवर)ठिकाना था।महाभारत काल में यह मत्स्य प्रदेश ही हुआ करता था। इस क्षेत्र की भाषा, खानपान, भेषभूषा मथुरा आगरा मतलब बृज क्षेत्र से ही मिलती है अत: यहां के लोगों की मांग थी कि इसे यूपी में ही मिलाया जाय।इस संघ की राजधानी बनी
अलवर जिसके राजप्रमुख बने धौलपुर नरेश उदयमान सिंह और प्रधानमंत्री बने शोभाराम कुमावत। लेकिन यह संघ अभी राजस्थान एकीकरण से दूर ही रहा। संयुक्त राजस्थान बन जाने के बाद इसमें मिला। इसने तो एकीकरण की नींव डाल दी थी।
एक सप्ताह बाद ही  25 मार्च 1948 को दूसरा चरण प्रारंभ हो गया । पूर्व राजस्थान बना जिसमें 9 रियासतें डुंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, किशनगढ़, टोंक, बुंदी, कोटा, झालावाड़ व एक कुशलगढ़(बांसवाड़ा)ठिकाना। इसकी राजधानी बनी कोटा जिसके राजप्रमुख- भीमसिंह(कोटा) एवं प्रधानमंत्री- गोकुल लाल असावा(शाहपुरा) कोटा के महाराज को प्रमुख बनाये जाने से मेबाड के अपाहिज शाषक भोपाल सिंह खपा हो गये और उन्हौने इस संघ में मिलने से इंकार कर दिया। एक महीना उन्हें मनाने में निकल गया और खुद को राजप्रमुख बनाये जाने पर ही राजी हुये। और इस प्रकार 18 अप्रैल, 1948 को एकीकरण का तीसरा चरण- संयुक्त राजस्थान हुआ जिसमें पूर्व राजस्थान संघ के नौ रियासतों में उदयपुर को शामिल कर 10 रियासतें एवं एक ठिकाना थे। इसकी राजधानी- उदयपुर राजप्रमुख- भोपालसिंह (उदयपुर) उपराजप्रमुख- भीमसिंह और  प्रधानमंत्री- माणिक्यलाल वर्मा को पं. जवाहरलाल नेहरू की सिफारिश पर बनाया गया। इसके एक साल बाद बास्तविक और वर्तमान राजस्थान की नींव रखी गयी और  30 मार्च, 1949 को वृहद राजस्थान बन गया। इस वृहद राजस्थान में संयुक्त राजस्थान + जयपुर + जोधपुर + जैसलमेर + बीकानेर + लावा ठिकाना को मिलाकर कुल 14 रियासतें एवं 2 ठिकाने हो गये।मत्स्य संघ अभी भी इस राजस्थान निर्माण से दूरी बनाये था और यूपी में मिलने के अवसर तलाश रहा था। इसकी राजधानी- जयपुर, महाराज प्रमुख- भोपाल सिंह, राजप्रमुख- मान सिंह द्वितीय(जयपुर), उपराजप्रमुख- भीमसिंह और प्रथम प्रधानमंत्री- हीरालाल शास्त्री को बनाया गया। 30 मार्च 1949 को अधिकांश राजस्थान एक हो चुका था अत: इसी तिथि को हम राजस्थान दिवस के रूप में मनाते हैं। 
आखिरकार मत्स्य संघ को भी राजस्थान विलय के लिये तैयार कर लिया गया और पांचवें चरण के तहत 15 मई, 1949 को संयुक्त वृहद् राजस्थान निर्माण हुआ जिसमें शंकरादेव समिति की सिफारिश पर मत्स्य संघ को वृहद राजस्थान में मिला लिया गया।राजधानी- जयपुर महाराज प्रमुख- मानसिंह द्वितीय प्रधानमंत्री- हीरालाल शास्त्री।
अब बस आबू बचा था।काफी मशक्कत के बाद छठे चरण में  26 जनवरी, 1950 को राजस्थान संघ- वृहतर राजस्थान + आबु दिलवाड़ा को छोडकर आधा सिरोही मिलाकर बन गया जिसकी राजधानी- जयपुर, महाराज प्रमुख- भोपाल सिंह, राजप्रमुख- मानसिंह और पहले मुख्यमंत्री- हीरालाल शास्त्री को बना दिया गया। 26 जनवरी,1950 को राजपुताना का नाम बदलकर राजस्थान रख 'B' या 'ख' श्रेणी का राज्य बनाया गया।
और अतं में सातवें चरण के तहत 1 नवम्बर, 1956 को वर्तमान राजस्थान बन कर तैयार हो गया जिसमें आबु दिलवाड़ा एवं अजमेर मेरवाड़ा + सुनेल टपा को मिलाकर सिरोज क्षेत्र को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।


राज्य पुर्नगठन आयोग के अध्यक्ष- फैजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुर्नगठन आयोग का गठन 1952 में किया गया था और इसने अपनी रिपोर्ट 1956 में दी थी । इसकी सिफारिश पर अजमेर-मेरवाड़ा आबू दिलवाड़ा तथा सुनेल टपा को राजस्थान में मिला दिया गया।

No comments:

Post a Comment