गर्मियों की छुट्टियों का तो मुझे ही नहीं बच्चों को भी बेसब्री से इंतजार रहता है ताकि मैं पहाडों की तरफ दौड लगा सकूं और बच्चे नानी के गांव की तरफ लेकिन इस बार अलग कुछ ये रहा कि नानी के यहां सिर्फ बच्चे ही गये, श्रीमति जी मेरे साथ हो लीं। इस बार मेरा डेस्टीनेशन थोडा दूर ज्यादा था। पूर्वोत्तर राज्यों को नजदीक से जानने और समझने की इच्छा थी। मेरे पास पूरा एक महीना था घूमने को आसानी से सातों राज्यों के साथ साथ सिक्किम और भूटान भी कवर कर सकता था लेकिन दिक्कत ये कि पत्नी के साथ बाइक से कैसे जाऊं ? दिमाग में विचार आया कि बाइक को ट्रैन से पार्सल करा देता हूं। नौ मई की शाम को धौलपुर से आगरा पहुंचा लेकिन ट्रेन 28 किमी दूर टूंडला स्टेशन से थी अत: टूंडला पहुंच गया। पहुंचते पहुंचते रात के आठ बज चले थे लेकिन टूंडला स्टेशन पर पार्सल मैन ने बताया कि यहां से यदि आप पार्सल करायेंगे तो आपकी बाइक को पहुंचने में बहुत वक्त लग सकता है, आगरा फोर्ट से ही कराना ठीक रहेगा। आगरा फोर्ट से कल शाम को गुवाहाटी के लिये सीधे ट्रेन है, आप आगरा फोर्ट जाईये। मुझे उसकी सलाह ठीक लगी अत: बापस आगरे के लिये चल दिया। आगरा लौटते लौटते रात के दस बज चले थे, दिन भर स्कूल में भी भागमभाग करी थी, थका हुआ था, सोचा आज यहीं रुकते हैं, कल सुवह फोर्ट स्टेशन जाकर पूछताछ कर लेंगे। टूंडला रोड पर ट्रांस यमुना कालोनी में ही मेरे भाई का घर है, रात को वहीं विश्राम किया। सुवह तडके ही आगरा फोर्ट पहुंच कर जानकारी ली, नौ दस बजे तक औफिस के कर्मचारी एक्टिव हो पाते हैं फिर भी मुझे बाइक पैकिंग करने बाले से सारी जानकारी मिल गयी। उसने गुवाहाटी तक बाइक पार्सल खर्चा 3200 रुपये बताया और हजार रुपये की हम दोनों की टिकट। कुल मिलाकर दोनों तरफ का खर्चा करीब 8500 रुपये आ रहा था जबकि मेरा बजट कम था क्यूं कि पूरा एक महीना घूमना था तो पैसे सोच समझ कर ही खर्च करने थे।बाइक साथ में ले जाना कैंसल कर दिया।सोचा गुवाहाटी जाकर बाइक किराये पर ले लुंगा , यहां से ट्रैन से चलते हैं लेकिन ट्रैन के जनरल में खचाखच भीड देखकर दिमाग खराब हो गया। अकेले तो मैं कैसे भी एडजस्ट कर लेता हूं लेकिन बीबी को इस नर्क में कैसे धकेलूं ? बडी असमंजस में था क्या करें क्या न करूं ! मेरी छुट्टियों का एक घंटे पहले तक का निश्चित नहीं था वरना रिजर्वेशन भी करा लेता। जैसे तैसे करके तो ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण से अपनी ड्यूटी कटवा पाया था मैं। यही सोचते सोचते सुवह के नौ बज गये।
ट्रैन की धक्कामुक्की में जाने की इच्छा तो राजो (राजकुमारी ) की भी नहीं थी। यही समय था जब बाइक से घूमने की मेरी इच्छा प्रबल हो उठी। राजो से पूछा तो तुरंत तैयार हो गयी । चलो कुछ ऐडवैंचरस करते हैं, पक गये यार घर में रोटी पकाते पकाते। बस फिर क्या था , बीबी तैयार तो हम भी तैयार । तुरंत दौड पडे यमुना एक्सप्रेस वे पर सीधे लखनऊ की ओर। एक्सप्रेस वे निसंदेह शानदार रोड है। गाडी एक ही चौथे गियर में दौड रही थी। दोपहर तक गरमी अपने पूरे चरम पर आ गयी। दूर दूर तक पानी और पेड का नामोनिशां नहीं क्यूं कि हाईवे पर कट मिले तो नीचे उतरें । गंगा नदी पार करने से पहले एक कट आया। नीचे देखा तो पेडों का एक समूह एक छोटा सा बगीचा नजर आया। पानी की भी सुविधा थी। एक छोटी सी दुकान भी थी। दोपहर में आराम करने को सही जगह थी। नीचे उतरे और दोनों बोतल भर कर बगीचे की तरफ चल दिये। चादर बिछायी और आराम करने लगे। भूख भी लगी थी। घर से रास्ते के लिये पूडी बनवा कर लाये थे। देशी घी की पूडी और आलू की सब्जी और हरे भरे खेत की मेंड । प्राकृतिक हवा । खाना खाते ही राजो तो गहरी निद्रा में चली गयी और मैं लेटे लेटे फेसबुक चलाने लगा। करीब तीन बजे तक थकान भी जाती रही और धूप भी क्यूं कि आसमान में बादल जाने लगे थे। बारिस हो सकती थी। हमने कपडे समेटे । बैग पैक किया और फिर दौड पडे लखनऊ की ओर।
दस मई के सुवह नौ बजे से चलकर शाम तक 335 किमी दूर लखनऊ पहुंचना हमारा टार्गेट था और हम शाम छ बजे तक लखनऊ पहुंच भी गये लेकिन शहर पार करने में दो घंटे लग गये। गोरखपुर रोड पर ही फेसबुक मित्र प्रतीक बाजपेयी जी हमारा इंतजार कर रहे थे। प्रतीक भाई के पास पहुंचा जब तक रात के आठ बज चुके थे।मिलने का स्थान हमने रोड किनारे ही एक रेस्ट्रां चूज किया था। भाभीजी भी साथ में थी।आधा घंटे तक खाते पीते बतियाते रहे। भाई जी और भाभीजी दोनों ही बहुत अच्छे स्वभाव के मालिक हैं। ये मेरी खुशकिस्मती है कि यात्रा के दौरान मुझे मित्रों का स्नेह और सहयोग बहुत मिलता है।पहला ही दिन था तो थकान बिल्कुल भी नहीं थी, इसलिये दिमाग में अचानक से रात्रि विश्राम अयोध्या करने का विचार आ गया। प्रतीक भाई से मिल कर सीधे दौड पडे अयोध्या की तरफ। अयोध्या 125 किमी दूर था। रात के नौ बजे थे, सोचा हाईवे शानदार है, दो घंटे में खींच दूंगा। हालांकि मेरा यह कदम मूर्खतापूर्ण ही था, मुझे रात को लखनऊ ही रुकना चाहिये था लेकिन वो क्या है कि जाट की मोटी खोपडी में बाद में घुसता है। जोश ही जोश में हम आगे बढ तो गये लेकिन अयोध्या पहुंचते पहुंचते हालत खराब हो गयी हमारी। मुझे तो बाइक पर चलने की आदत है पर आज बेचारी रजिया फंस गयी गुंडे के साथ। दिन भर की थकी राजो झपकी लेने लगी। बीच रास्ते में भी होटल लेने की कोशिष की लेकिन माहौल कुछ ठीक सा नहीं लगा मुझे। एक दो लोग मिले जिनकी नजरें कुछ ठीक नहीं थीं तो आगे चलना ही ठीक समझा। पहली बार मुझे लगा कि महिला को साथ लेकर देर रात तक घुमक्कडी करना इतना आसान भी नहीं है यदि आपके पास फोर व्हीलर न हो तो। खैर ऊंघते आंघते बिना रुके रात बारह बजे अयोध्या पहुंच गये हम। हनुमानगढी के सामने ही एक लौज मिल गया। बढिया कमरा था। किराया 1500 रुपये । अमूमन मैं 500 रुपये तक कमरा ढूंडता हूं पर आज इमरजेंसी थी, आधी रात और साथ में लेडीज। नो बार्गेनिंग। चुपचाप आई डी की कौपी दी और रूम में औंधे मुंह जा पडा। थोडी देर में होश आया तो नहाया धोया तब जाकर कुछ जान में जान आयी। सुवह घर से शुद्ध देशी की पूडी सब्जी लेकर चला था अत: खाने की फिक्र नहीं थी । खाना खाकर बहुत गहरी नींद आयी। सुवह पांच बजे ही नींद खुल गयी।राजो ने सारे गंदे कपडे धोकर सुखा दिये और हम नहा धोकर निकल पडे श्री राम जन्म भूमि की ओर ।
अयोध्या में होटल श्रीराम
अयोध्या में होटल श्रीराम
आपकी इस यात्रा वृतान्त की इंतजारी थी....बहुत खूब चहर साहब।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत ही अच्छा लिखा है चाहर जी....बढ़िया शुरुआत यात्रा की....और धन्यवाद जो इतनी धुप में गर्मी में आपने घुमक्कडी की
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट चाहर जी । मुझे बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteबहुत ही बढिया चाहर साहब।अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।
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ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन है आपकी यात्रा का भाई साहब
ReplyDeleteचाहरजी आपके जज्बे को सलाम ।
ReplyDeleteबाइक से पूर्वोत्तर टूर वो भी भाभी जी को साथ लेकर !!
बहुत बड़े जिगर वाले हो आप।
बहुत साहसिक यात्रा व श्रीमती जी के साथ ने इस यात्रा में चार चाँद लगा दिए अपनी सुंदर लेखनी है जिसने यात्रा को एक रोमांचक यात्रा का रूप दे दिया बहुत अच्छें चाहर साहब हिम्मत वाले तो आप है ही ज़बरदस्त विवरण
ReplyDeleteफोटो का साइज कुछ बड़ा कीजिये ......
ReplyDeleteकैसे
DeleteBahut badhiya , aagey ki yatra ka intazar rehega
ReplyDeleteBahut badhiya , aagey ki yatra ka intazar rehega
ReplyDeleteपल पल रोमांच महसूस होता है। शानदार हैं। इस यात्रा वृतांत की बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
ReplyDeleteहौसला आफजाई के लिये शुक्रिया। कोशिष रहेगी कि आगे भी आपको संतुष्ट कर सकूं। ब्लाग लेखन में अभी नयी शुरूआत है मेरी इसलिये तकनीकी खामियां हैं। धीरे धीरे सुधार कर लुंगा। धन्यवाद आप सभी का ।
ReplyDeleteआप लोगों के कमेंट्स के रिप्लाई भी यहां टाईप नहीं कर पा रहा।फेसबुक पर टाईप करके यहां कौपीपेस्ट कर रहा हूं
ReplyDeleteबहुत ही बढिया चाहर साहब।अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteएकदम जोरदार यात्रा ... हम श्रीमती जी के पीछे है जी ��
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