कामाख्या मंदिर से निकलते निकलते हमें शाम के तीन बज चले थे। सोचा क्यूं न रूम लेने से पहले कामाख्या मंदिर से आठ किमी पर ही उमानंद शिव जी का मंदिर घूम लिया जाय। चूंकि उमानंद मंदिर ब्रम्हपुत्र नदी के बीचोंबीच पीकौक आईलेंड पर स्थित है जिसके लिये हमें फैरी / नाव पकडनी पडती है, अंधेरा होने से पहले ही जाया जा सकता था अत: कामाख्या से बाहर निकल सीधे पान बाजार की तरफ एम जी रोड स्थित फैरी स्टैंड की तरफ की बस पकड ली जिसने हमें नदी के तट पर छोड दिया। इस तट के अलावा अन्य तट भी हैं जहां से नाव चलती हैं हालांकि ये नजदीक है। करीब आधे किमी सफर के लिये ये नाव सौ रुपये प्रति व्यक्ति (आना जाना) लेती है। टापू पर घूमने को एक घंटा रुकने का समय देती है। यदि आप चाहें तो एक तरफा बोट भी ले सकते हैं। ब्रम्हपुत्र नदी बहुत विशाल है। जगह जगह इसमें छोटे छोटे टापू बने हुये हैं। विश्व का सबसे बडा नदी द्वीप माजुली भी इसी नदी में है। उमानंदा मंदिर भी ऐसे ही एक बडे टापू पीकौक द्वीप पर बना है। नदी के बींचो बीच हरा भरा पेड पौधों से आच्छादित एक खूबसूरत द्वीप। जिस पर्वत पर इस मंदिर का निर्माण हुआ है, उसे भस्मशाला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की आराधना में खलल डालने के कारण कामदेव को भस्म हो जाने का श्राप मिला था, जिसके चलते इस पर्वत का नाम भस्मशाला पड़ा।
उमा मां पार्वती का ही नाम है तो उमानंद हैं आदि देव शिव। इस मंदिर से नीलांचल पहाड़ी भी दिखाई देती है जहां स्थित है माँ कामाख्या देवी का मंदिर। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव यहाँ ध्यान कर रहे थे तब माता पार्वती नीलांचल पहाड़ी पर उन की प्रतीक्षा कर रही थी। इस लिए इस मंदिर का नाम उमानंद पड गया। कहानी किस्से किवदंतियां मान्यताओं के अनुसार बन जाती हैं लेकिन एक सर्वमान्य सत्य जो मैंने अपने भारतवर्ष के भ्रमण में पाया वो ये है कि पेड पौधों पहाडों गुफाओं नदियों और झरनों की जहां जहां आपको खूबसूरती मिलेगी वहां शिव का वास जरूर मिलेगा। मेरा निजी अनुभव तो यही कहता है कि ये प्रकृति ही शिव है। हर कंकर में शंकर है। शिव ही सत्य है तभी तो यह सुंदर है।
श्रावण महीने में जहां महीने भर भगवान शिव का अभिषेक होता है वहीं फाल्गुन महीने में आयोजित होने वाले शिवरात्रि को शिव स्वरूप “पति” और पार्वती स्वरुप “पत्नी” की चाहत का पर्व मनाते हैं।
नाव खडी करने के स्थान पर यहां प्रौपर घाट नहीं था जो हमें नीचे की ओर बडी सावधानी से उतरना पडा। पैर फिसलता तो लुढकते हुये जाते सीधे ब्रम्हपुत्र में। सावधानी से नीचे उतरते हुये नाव में सवार हुये। मोटरवोट करीब बीस मिनट का समय लेती है। लेकिन यह सफर बहुत ही आनंददायक होता है। दिन भर की शहरी भागदौड और बसों की चढा उतरी के बाद मुझे इस यात्रा में जितना सुकून मिला उतना सुवह से अभी तक मिला नहीं था। हालांकि अभी शाम की धूप थी लेकिन हवा चल रही थी। विशाल नदी में बहुत सारी नावें ! बहुत ही मनमोहक दृश्य ! शहर से दूर जाते हुये। मैं चलकर नाव के एक दम जोर पर आ बैठा । बिल्कुल टाईटैनिक पोज। सामने बीसीयों हरे भरे टापू। उमानंद मंदिर टापू भी सामने ही था। एकदम हरा भरा। घने पेडों से मंदिर दिखाई नहीं देता दूर से। केवल विशाल जल राशि में खडे हुयी विशाल चट्टान और हरे भरे पेड दिखाई देते हैं।और फिर हम पहुंच जाते हैं टापू के किनारे। नाव से उतरते ही सीढियों का एक प्रवेश द्वार दिखाई देता है और वहीं बैठे हैं नारियल बेचने बाले जो आपको पानी की कमी पूरी कर सकते हैं। टापू तक पहुँचने के बाद सीढियां शुरू हो जाती हैं। बीस सीढियों के बाद मार्ग दो भागों में विभाजित हो जाता है। एक आने का और दूसरा जाने का। यहीं से शुरू हो जाता है उमानंद मंदिर परिसर। प्रवेश द्वार के दोनों ओर नंदी बैठे हैं।यहीं पर आसाम की भेषभूषा लिये एक महिला बैठी हैं जहां आप फोटो खिंचा सकते हैं। आसाम की पारंपरिक परिधान में हम दोनों बिल्कुल आसाम के कबीले परिवार से ही नजर आ रहे थे। हालांकि ये कपडे सर्दियों में ही पहन सकते हैं। हमें तो पांच मिनट में ही पसीना आ गया। सीढियां चढ़ते हुए जब आप आधी ऊंचाई पार कर लेंगे तब आप को पूजा सामग्री खरीदने के लिए कुछ दुकाने मिलेंगी और एक छोटा सा होटल जहां अक्सर लोग सुस्ताने और पानी पीने के बाद आगे बढ़ते हैं। फिर कुछ सीढियां चढ़ने के बाद आप को उजले रंग का उमानंद मंदिर का प्रवेश द्वार मिल जाएगा जहां प्रवेश कर आप मंदिर परिसर में पहुँच जाएंगे। यहीं सीढियों पर कुछ साधु संत भी बैठे मिलेंगे।
मंदिर परिसर में दाखिल होने पर सब से पहले टिन के छत वाला एक छोटा सा झोंपड़ी नुमा गणेश मंदिर मिलता है। भक्त पहले वहाँ माथा टेकने के बाद ही उमानंद मंदिर की ओर बढ़ते हैं। मंदिर के अंदरूनी परिसर का निर्माण काले, सफेद और लाल पत्थरों से किया गया है। उमानंद मंदिर में दाखिल होते ही मुख्य गर्भ ग्रह से सटे एक बड़े हॉल के बीचों बीच विराजमान हैं ब्रह्मा और विष्णु। ब्रह्मा और विष्णु की पूजा करने के बाद आगे बढ़ने पर मंदिर का मुख गर्भ ग्रह मिलता है जिस के द्वार के दोनों ओर राधे श्याम लिखा हुआ है और ऊपर कांसे के पतरी पर शिवजी की खुदी हुई तस्वीर लगी हुई है। यहाँ से आप मुख्य गर्भ ग्रह में प्रवेश करते हैं। इसके लिये हमें थोडा नीचे उतरना पडता है। संकरा मार्ग है । आराम से जाना ही ठीक है वरना घिसपिच हो जाती है। ठीक से दर्शन भी नहीं हो पाते। गर्भगृह में शिवलिंग के एक ओर फूल पत्तियां का ढेर दिखाई देता है तो दूसरी ओर नोटों का। गर्भ ग्रह के अंदर अखंड दीप जल रहा है जिसमें रोजाना एक लीटर तेल जलता है। यह दीप उस दिन से जल रहा है जब से इस मंदिर का निर्माण हुआ था। अहोम राजा गदाधर सिंह ने इस मंदिर को वर्ष 1694 में बनवाया था। वर्ष 1897 के विनाशकारी भूकंप के दौरान मूल मंदिर छतिग्रस्त हो गया था। बाद में एक स्थानीय व्यापारी ने फिर से मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर से जैसे ही बाहर निकलते हैं मूल मंदिर से सटा एक और लाल रंग का मंदिर दिखाई देता है जिसे महाकाल शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। महाकाल मंदिर से सटा हुआ एक और उजले रंग का छोटा सा मंदिर है जिसे बद्रीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। नगाडों की आवाज़ का मतलब है कि अब भोग का समय हो गया है। पहले बाबा को भोग लगाया जाता है और उसके बाद भक्तगण या पुजारी भोग ग्रहण करते हैं।
ये मंदिर इतने एकांत और सुंदर स्थान पर हैं कि बैठे ही रहने का मन करता है। द्वार के बगल से ही पेयजल व्यवस्था भी है।शाम हो चली थी। सूरज भी अब छिपने की चेतावनी दे चुका था। हमें भी अभी रात का ठिकाना ढूंडना था। नावबाला भाई भी पुकार रहा था अत: चल दिये नीचे की ओर। एक बार फिर नाव चल दी बापस शहर की ओर। अबकी बार नजारा और मजेदार था। सूरज नदी में समाता जा रहा था। हवा ठंडी हो चली थी। मौसम भी मस्त हो चला था। तट पर आते ही बस तैयार मिली पलटन बाजार की। पलटन बाजार गुवाहाटी स्टेशन से सटा हुआ बाजार है जहां कमरे भी खूब मिलते हैं तो हर जगह के लिये वाहन भी। स्टेशन के नजदीक ही मात्र पांच सौ रुपये में रूम ले लिया हमने। उसी भवन में नीचे होटल भी था जहां पचास रुपये में शाकाहारी थाली ले सकते हैं। रूम पर आकर नहा धोकर शाम सात बजे पलटन बाजार की रौनक देखने पैदल ही निकल पडे। अगली सुवह गुहावाटी घूमने का विचार था।
satyapalchahar.blogspot.in
बढ़िया यात्रा !
ReplyDeleteआखिरकार लिंक डालना सीख गये ।
हहह हां जी आपने सिखा दिया
Deleteअसम की इस यात्रा में आपके लेख पढते हुए, फिल्म देखने जैसा अनुभव हो रहा है।
ReplyDeleteमहाराज फोटो का कैप्शन भी लिख दिया करो, editing mode में जाने पर फोटो पर click करोगे तो caption का विकल्प आयेगा।
ओके कोशिष करता हूं
Deleteपौराणिक किवदंतियां सुन कर अच्छा लगा...बढ़िया वृतान्त
ReplyDeleteमहानदी ब्रम्हपुत्र बिल्कुल समुंदर की तरह विशाल दिख रही है। जोरदार पोस्ट। अपना लिंक घुमक्कड़ी पर भी पोस्ट किया कीजिये
ReplyDeleteबहुत भी खूबसूरत और चित्रात्मक विवरण , पहली फोटो बहुत बढ़िया लगा, जिसमे आप वहां के पारम्परिक परिधान में हैं
ReplyDelete