अयोध्या के मुख्य मुख्य स्थल हमने ग्यारह मई के दोपहर एक दो बजे तक ही कवर कर लिये थे। मेरा दोस्त प्रमोद त्रिपाठी भी अपनी कोचिंग से फ्री हो चुका था। हम तीनों नजदीक ही एक रेस्ट्रां में बैठे थे कि घर से फोन आया कि बाबूजी राजो की बजह से बहुत चिंतित हैं। उनकी तबियत बिगड रही है। बाबूजी नहीं चाहते थे कि हम बाइक से इतनी दूर की यात्रा करें। घुमक्कडी में पहली बाधा मां बाप ही होते हैं। इस बाधा को पार करना हमारे लिये बहुत कठिन काम होता है। माता के बाद पिता ही होते हैं जो हमारे घुमक्कडी संकल्प को तोडने का प्रयास करते हैं। मां आंसुओं से रोकती है तो पिता डंडे से। घुमक्कड के लिये पहली चुनौती तो यही है कि वह घर परिवार समाज की जंजीरों को तोडना सीख ले। जंजाल तोडकर बाहर आना पहली आवश्यकता है।
मैंने छुपाना नहीं सीखा। जो भी करना है खुल कर करेंगे। गांधी जी का अनुयायी हूं। उनके अहिंसा और सत्यागृह ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है। खुद को बेपर्दा करने की हिम्मत मैंने उनसे ही ली है।
केवल एक खुदा ही है जिसके सामने आप खुद को नंगा कर सकते हैं, आतंरिक एवं बाहरी रूप में एकदम नंगा , कोई परदा नहीं, कोई हिचक नहीं, बिल्कुल ठीक बैसे ही जैसे मां के सामने एक मासूम सा अवोध बच्चा अपने मन की हर बात कहता जाता है।
भौतिकवादी संसार में लिप्त मनुष्य के सामने जब हम अपना बाहरी आवरण उठाने लगते हैं, जाने कैसा कौनसा अनजाना भय उसे सताता है कि वह हमें विभिन्न प्रकार से रोकने की कोशिष करने लगता है। बहुत सारे लोगों को गांधी जी के निजी जीवन पर भद्दी टिप्पणियां करते पढता हूं, अब अजीव नहीं लगता। पहले लगता था। अब समझ चुका हूं कि सत्य की नियति यही है। खुद के बारे में सत्य बोलना इतना ही सुखदायी होता तो आज संपूर्ण दुनियां सत्यवादी हरिश्चंद्र होती। हम जहां तेज आवाज में सैक्स जैसे शब्द को बोलते समय भी इधर उधर निगाह करके धीमी आवाज में बोलते हैं कहीं कोई सुन तो नहीं रहा, उस इंसान ने सारी दुनियां के सामने सच बोलने का साहस जुटाया कैसे होगा यह जानते भी कि दुनियां में सर्वाधिक बच्चे पैदा करने बाले देश में सैक्स का प्रयोग महा पाप का कार्य होगा।
वह विद्वान कैसे रहे होंगे जिन्हौने योनि/ कामइच्छा / कामाख्या को पूज्य माना होगा। शिव और शक्ति को लिंग एवं योनि के रुप में भी स्वीकारा होगा। संभोग को व्यावहारिक रूप देने के लिये खजुराओ के मंदिर में विभिन्न आसनों को प्रदर्शित करती मूर्तियों का निर्माण किया होगा। कुछ साल पहले " सच का सामना " करने आये प्रतिभागियों को सैक्स संवधी प्रश्नों पर तिल तिल मरते देखा था। सत्य कडवा ही नहीं बहुत ज्यादा कठिन भी होता है।
भौतिकवादी संसार में लिप्त मनुष्य के सामने जब हम अपना बाहरी आवरण उठाने लगते हैं, जाने कैसा कौनसा अनजाना भय उसे सताता है कि वह हमें विभिन्न प्रकार से रोकने की कोशिष करने लगता है। बहुत सारे लोगों को गांधी जी के निजी जीवन पर भद्दी टिप्पणियां करते पढता हूं, अब अजीव नहीं लगता। पहले लगता था। अब समझ चुका हूं कि सत्य की नियति यही है। खुद के बारे में सत्य बोलना इतना ही सुखदायी होता तो आज संपूर्ण दुनियां सत्यवादी हरिश्चंद्र होती। हम जहां तेज आवाज में सैक्स जैसे शब्द को बोलते समय भी इधर उधर निगाह करके धीमी आवाज में बोलते हैं कहीं कोई सुन तो नहीं रहा, उस इंसान ने सारी दुनियां के सामने सच बोलने का साहस जुटाया कैसे होगा यह जानते भी कि दुनियां में सर्वाधिक बच्चे पैदा करने बाले देश में सैक्स का प्रयोग महा पाप का कार्य होगा।
वह विद्वान कैसे रहे होंगे जिन्हौने योनि/ कामइच्छा / कामाख्या को पूज्य माना होगा। शिव और शक्ति को लिंग एवं योनि के रुप में भी स्वीकारा होगा। संभोग को व्यावहारिक रूप देने के लिये खजुराओ के मंदिर में विभिन्न आसनों को प्रदर्शित करती मूर्तियों का निर्माण किया होगा। कुछ साल पहले " सच का सामना " करने आये प्रतिभागियों को सैक्स संवधी प्रश्नों पर तिल तिल मरते देखा था। सत्य कडवा ही नहीं बहुत ज्यादा कठिन भी होता है।
यह जानते हुये भी कि इतनी दूरी तक पत्नि को बाइक पर घुमक्कडी के लिये साथ ले जाना परिवारीजनों को हजम न होगा, फेसबुक पर मैंने एक पोस्ट डाल दी। परिणाम के लिये मानसिक तौर पर तैयार था। विरोध भी होगा। डांट भी पडेंगी और गालियां भी सुनने को मिलेंगी । पहले से ही मालुम था। हालांकि ऐसा ज्यादा कुछ तो नहीं हुआ। बडे भैया ने कमेंट किया," it's height of your वेवकूफी " । ऐसे हल्के फुल्के कमेंट सुनने को तो घुमक्कड तैयार रहता है। घुमक्कडी में थोडी सी बेशर्मी और थोडी ढीठता आ जाती है। घुमक्कडी की आदत भी नशे की लत जैसी है। दुनियां कुछ भी कहती रहे हमें ज्यादा फर्क नहीं पडता। लेकिन परिवार बालों के पास हमें घुमक्कडी से रोकने का एक और हथियार है, सबसे घातक हथियार , इमोशनल अत्याचार । यह ऐसा हथियार है जिसमें नब्बे प्रतिशत लोग समर्पण कर देते हैं। मैंने भी कर दिया पर पूर्ण समर्पण नहीं सिर्फ आधा। पहले तो दिमाग में विचार आया कि बाइक को प्रमोद के पास अयोध्या ही छोड दूं लेकिन अयोध्या से गुवाहाटी के लिये सीधे कोई ट्रेन नहीं थी और फिर गोरखपुर के मित्र अजय पांडेय जी से भी मिलना था तो गोरखनाथ मंदिर भी घूमना था। अत: निर्णय लिया कि ट्रेन गोरखपुर से ही पकडी जायेगी। करीव तीन बजे 135 किमी दूर गोरखपुर के लिये रवाना हो गया। अयोध्या से बस्ती कबीरनगर मगहर होते हुये गोरखपुर बाला हाइवे एकदम मस्त है। गाडी अस्सी पर दौडती है। बीच में हम केवल संत कबीर की मजार मगहर में ही रुके। आधे घंटे में ही हमने संत कबीर की मजार और समाधि स्थल को घूम डाला। शांतिप्रिय स्थान है। एक तरफ हिंदू तो दूसरी तरफ मुस्लिम । कोई विवाद नहीं। विवाद सिर्फ स्वार्थ पर होता है। यहां दोनों का अलग अलग ठिकाना था। बीच में कोई दीवार भी नहीं। ऐसे पीर फकीर संत मुझे हमेशा से ही पंसद आते हैं जो बीच का रास्ता निकालते हैं।
गोरखपुर के मित्र अजय पांडेय जी गोरखपुर से सौ किमी दूर किसी स्थान पर नौकरी पर थे और घर के लिये रवाना हो लिये थे। बाइक छोडने की चिंता नहीं थी क्यूं कि Ajay Pandey जी लगातार फोन पर थे और मेरी सकुशल यात्रा के लिये ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे। गोरखपुर में निवास है लेकिन मूलत: बिहार के रहने बाले हैं और वहीं न्यायालय सेवा में हैं। मेरे गोरखपुर मंदिर पहुंचने की खबर पाकर तुरंत गोरखनाथ मंदिर पहुंच गये। मेरा फौन न लगने के कारण घंटे भर तक मंदिर के गेट पर बैठकर मेरा इंतजार करते रहे। आखिरकार हमारी मुलाकात हुई।शाम के सात बज चले थे। बाइक उन्हीं के पास छोड देने का निश्चय हुआ। मंदिर से घर की सात किमी दूरी पार कर हम लोग घर गये । स्नान कर खाना खा पीकर हम लोगों ने रात को ग्यारह बजे ट्रैन पकडी। हम जितने भी दिन आसाम में रहे। लगातार फोन कर हमारी कुशलक्षेम भी पूछते रहे और हम जब लौट कर आये तो हमें जबर्दस्ती रोक लिया घर पर। ये तो रही इनकी मेजबानी और इनका प्रेम इसके अलावा फेसबुक पर मैंने इन्हें बहुत ही बाजिब मुद्दे उठाते देखा है। मित्र मंडली गिनी चुनी है लेकिन हैं सारे के सारे अच्छे चितंक और विचारक। मुझे लगता है एकमात्र मैं ही ऊटपटांग लिखने बाला हूं इनकी लिस्ट में। काफी धार्मिक आस्थावान व्यक्ति हैं पता नहीं मुझ जैसे काफड को कैसे झेलते होंगे। दोनों बेटों को अच्छी तालीम दिये हैं। भाभीजी का नेचर तो बहुत ही गजब का है। प्यार से जब चंदा कह कर आबाज लगाते हैं न तो ऐसा लगता है मानो चकोर पुकार रहा हो । ये दो दिन की मुलाकात अमिट यादें दे गयीं। ऐसी मुलाकातों से मुझे बहुत ताकत मिलती है क्यूंकि घर में अपनी बूझ हो न हो पर बाहर तो प्रेम मिल ही जाता है। बस यही काफी है अपनी घुमक्कडी के लिये। ईश्वर से दुआ करता हूं कि पांड्डेय परिवार बस ऐसा ही हंसता खेलता रहे और दुनियां में मुहब्बत बांटता रहे।
मेरी खुशकिस्मती ही है कि मुझे कोई भी शहर बेगाना नहीं लगता। कोई न कोई अपना मिल ही जाता है। रात को ग्यारह बजे गोरखपुर स्टेशन से गुवाहाटी के लिये ब्रम्हपुत्र मेल पकड ली। बिकलांग डिब्बे में भीड नहीं थी अत: हम तो उसी में घुस गये। सौभाग्य से गुवाहाटी तक हमें सीट की कोई परेशानी नहीं हुई। ग्यारह की पूरी रात बारह मई का दिन और रात गाडी में सफर करने के बाद तेरह मई के सुह पांच बजे हम कामाख्या स्टेशन पर उतर गये।
सत्य की खोज
bahut acha vivran sir jee, photo ne niche caption likh dete to jyada maza aata
ReplyDeleteइसमें अभी सीख रहा हूं आगे जरूर लिखूंगा
Deleteआपके लेख एक विशिष्ट शैली हैं। यात्रा वृतांत के दौरान जीवन के सत्य का उल्लेख हमें जीवन के तथ्यों से भी अवगत कराता है।
ReplyDeleteThanks brother
Deleteघरवालों को चिंता नहीं होगी तो क्या पडोसियों को होगी।
ReplyDeleteएक बार भैया को भी लम्बी यात्रा पर ले जाओ।
खैर, लेखन सदाबहार,
शुक्रिया भैया
ReplyDeletePheli bar aap ka blog pada.. acha laga bhut acha likhte hian
ReplyDelete"घुमक्कडी में पहली बाधा मां बाप ही होते हैं। इस बाधा को पार करना हमारे लिये बहुत कठिन काम होता है। माता के बाद पिता ही होते हैं जो हमारे घुमक्कडी संकल्प को तोडने का प्रयास करते हैं। मां आंसुओं से रोकती है तो पिता डंडे से"
yeh bilkul theek baat likhi hai aapne
बहुत अच्छा लिख रहे हैं सर। घटनाओं, तथ्यों व उलझनों को आपस में मिलाकर भी तारतम्य बनाये रखना अच्छे लेखक की निशानी है।
ReplyDeleteघर परिवार ही जंजीर ओर रुकावट है ,ओर महिलाओं के लिए तो ओर भी ज्यादा , हम तो इस रुकावट को खेद है बोलकर अलग भी नही हो सकते।
ReplyDeleteट्रेन यात्रा सुखद।
आज की पोस्ट थोड़ी स्वछन्द और बोल्ड लगी हर किसी में ऐसा लिखने की हिम्मत नहीं होती....आप बिलकुल परिवार के साथ जुनूनी घुमक्कडी कर रहे हो कोई रिजर्वेशन नहीं कही भी पहुच जाना और कही भी यात्रा कर लेना कैसे भी कर लेना...ग़ज़ब दिल से घुमक्कडी है सर
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