शिरडी मंदिर से बाहर मेला लगा हुआ था, रोड के सहारे फलों की डलिया लिये कुछ किसान भी खडे थे । केले अमरुद गन्ना इन फसलों में तो महाराष्ट्र का कोई सानी नहीं है। बडे बडे अमरूद भी सेब का स्वाद दे रहे थे। बाजार में घूमते घामते अंधेरा हो चला था। भूख भी लगने लगी थी। पास में ही एक सांई ट्रस्ट भोजनालय है जहां मात्र दस रूपये की भोजन थाली थी। अब चूंकि उस कस्वे में कुछ और घूमने लायक जगह हमें पता न चली तो सुवह ही शनि शिगणापुर जाने की सोच सोने का प्लान करने लगे। रुम तो कहीं मिला नहीं इसलिये हम तो उसी धर्मशाला में गद्दों का जुगाड कर गैलरी में ही लमलेट हो गये। मेरा तो ये हाल है कि नींद गहरी हो तो घूरे पर ही सुला दो वो भी डनलप का मजा देगा। पडते ही नींद आ गयी। किसी ने बहीं पर बताया था कि नजदीक ही शनिमहाराज का मंदिर है और उस गांव के घरों में किबाड नहीं होते, शनि रक्षा करते हैं, बस फिर क्या था उत्सुकता जाग गयी और चल दिये शनिमहाराज की तरफ । मंदिर के अलाबा गन्ने की खेती शनि सिंगनापुर की पहचान है।
शिगनापुर मंदिर की महिमा अपरंपार है। महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास स्थित शिगनापुर गाँव में शनिदेव के प्राचीन मंदिर में शनिदेव की अत्यंत प्राचीन पाषाण प्रतिमा है। प्रतिमा को स्वयंभू माना जाता है। वास्तव में इस प्रतिमा का कोई आकार नहीं है। मूलतः एक पाषाण को शनि रूप माना जाता है। यहाँ शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है परंतु दरवाजा नहीं। वृक्ष है लेकिन छाया नहीं। शनिदेव की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए हैं। माना जाता है इस गाँव के राजा शनिदेव हैं, इसलिए यहाँ कभी चोरी नहीं होती। इस गाँव के लोग अपने घर में ताला नहीं लगाते हैं, लेकिन उनके घर से कभी एक कील भी चोरी नहीं होती। यहाँ के लोगों का मानना है कि शनि की इस नगरी की रक्षा खुद शनिदेव का पाश करता है। कोई भी चोर गाँव की सीमारेखा को जीवित अवस्था में पार नहीं कर सकता। गाँव के बड़े-बुजुर्गों को जोर देने पर भी याद नहीं आता कि उनके गाँव में चोरी की कोई छोटी-सी भी घटना हुई हो। इसके साथ ही लोगों की आस्था है कि शिगनापुर गाँव के अंदर यदि किसी व्यक्ति को जहरीला साँप काट ले तो उसे शनिदेव की प्रतिमा के पास लाना चाहिए। शनिदेव की कृपा से जहरीले से जहरीले साँप का विष भी बेअसर हो जाता है।
शनि शिगनापुर मंदिर में शनिदेव के दर्शन करने, उनकी आराधना करने के कुछ नियम हैं। चूँकि शनिदेव बाल ब्रह्मचारी हैं, इसलिए महिलाएँ दूर से ही उनके दर्शन करती हैं। वहीं पुरुष श्रद्धालु स्नान करके, गीले वस्त्रों में ही शनि भगवान के दर्शन करते हैं। तिल का तेल चढ़ाकर पाषाण प्रतिमा की प्रदक्षिणा करते हैं। दर्शन करने के बाद श्रद्धालु यहाँ स्थित दुकानों से घोड़े की नाल और काले कपड़ों से बनी शनि भगवान की गुड़िया जरूर खरीदते हैं। लोक मान्यता है कि घोड़े की नाल घर के बाहर लगाने से बुरी नजर से बचाव होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
हाल ही में तृप्ति देसाई के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा प्रवेश करने के मामले में यह मंदिर काफी चर्चित रहा था।
हम लोग आधे घंटे में ही मंदिर से फ्री होकर अहमदनगर रेलवे स्टेशन के लिये निकल पडे जहां से हमें गोवा के लिये वास्को एक्सप्रेस पकडनी थी। पिछली यात्राओं में बहुत कुछ खोने के बाद यह सीखा है कि यात्रा हमेशा अपने निजी वाहन से ही करनी चाहिये वरना यात्रा का मूल उद्देश्य समाप्त हो जाता है। हालांकि हम लोगों ने एकाध जगह टैक्सी रुकवा कर गन्ने का रस आदि का रसास्वादन किया था पर वो बात नहीं आ पायी जो अपने निजी वाहन से आ पाती है।
यहां वायुयान से भी आया जा सकता है । यहाँ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पूना में है, जो यहाँ से 160 किमी दूर है। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन श्रीरामपुर है।
शिगनापुर मंदिर की महिमा अपरंपार है। महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास स्थित शिगनापुर गाँव में शनिदेव के प्राचीन मंदिर में शनिदेव की अत्यंत प्राचीन पाषाण प्रतिमा है। प्रतिमा को स्वयंभू माना जाता है। वास्तव में इस प्रतिमा का कोई आकार नहीं है। मूलतः एक पाषाण को शनि रूप माना जाता है। यहाँ शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है परंतु दरवाजा नहीं। वृक्ष है लेकिन छाया नहीं। शनिदेव की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए हैं। माना जाता है इस गाँव के राजा शनिदेव हैं, इसलिए यहाँ कभी चोरी नहीं होती। इस गाँव के लोग अपने घर में ताला नहीं लगाते हैं, लेकिन उनके घर से कभी एक कील भी चोरी नहीं होती। यहाँ के लोगों का मानना है कि शनि की इस नगरी की रक्षा खुद शनिदेव का पाश करता है। कोई भी चोर गाँव की सीमारेखा को जीवित अवस्था में पार नहीं कर सकता। गाँव के बड़े-बुजुर्गों को जोर देने पर भी याद नहीं आता कि उनके गाँव में चोरी की कोई छोटी-सी भी घटना हुई हो। इसके साथ ही लोगों की आस्था है कि शिगनापुर गाँव के अंदर यदि किसी व्यक्ति को जहरीला साँप काट ले तो उसे शनिदेव की प्रतिमा के पास लाना चाहिए। शनिदेव की कृपा से जहरीले से जहरीले साँप का विष भी बेअसर हो जाता है।
शनि शिगनापुर मंदिर में शनिदेव के दर्शन करने, उनकी आराधना करने के कुछ नियम हैं। चूँकि शनिदेव बाल ब्रह्मचारी हैं, इसलिए महिलाएँ दूर से ही उनके दर्शन करती हैं। वहीं पुरुष श्रद्धालु स्नान करके, गीले वस्त्रों में ही शनि भगवान के दर्शन करते हैं। तिल का तेल चढ़ाकर पाषाण प्रतिमा की प्रदक्षिणा करते हैं। दर्शन करने के बाद श्रद्धालु यहाँ स्थित दुकानों से घोड़े की नाल और काले कपड़ों से बनी शनि भगवान की गुड़िया जरूर खरीदते हैं। लोक मान्यता है कि घोड़े की नाल घर के बाहर लगाने से बुरी नजर से बचाव होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
हाल ही में तृप्ति देसाई के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा प्रवेश करने के मामले में यह मंदिर काफी चर्चित रहा था।
हम लोग आधे घंटे में ही मंदिर से फ्री होकर अहमदनगर रेलवे स्टेशन के लिये निकल पडे जहां से हमें गोवा के लिये वास्को एक्सप्रेस पकडनी थी। पिछली यात्राओं में बहुत कुछ खोने के बाद यह सीखा है कि यात्रा हमेशा अपने निजी वाहन से ही करनी चाहिये वरना यात्रा का मूल उद्देश्य समाप्त हो जाता है। हालांकि हम लोगों ने एकाध जगह टैक्सी रुकवा कर गन्ने का रस आदि का रसास्वादन किया था पर वो बात नहीं आ पायी जो अपने निजी वाहन से आ पाती है।
यहां वायुयान से भी आया जा सकता है । यहाँ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पूना में है, जो यहाँ से 160 किमी दूर है। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन श्रीरामपुर है।
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