मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी मध्य भारत का पहाडों की गोद में बसा सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल है। इंदौर से रात को ही निकल लिया था जिसने मुझे सुवह ही पिपरिया स्टेशन छोड दिया। पंचमढी जाने के लिये सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पिपरिया ही है जो बहां से करीब 47 km दूर है। यहां जबलपुर से दो घंटे में एवं इटारसी से एक घंटे में पहुंचा सकता है। पिपरिया से टैक्सी बस कार आदि साधनों से आप पंचमढी पहुंच सकते हैं।जबलपुर और इटारसी के बीच पिपरैया स्टेशन से पचमढी किसी टैक्सी या बस से पहुंच कर आप कोई बाइक या जिप्सी हायर कर सकते हैं।
मात्र पांच सौ एवं पैट्रोल में बाइक एवं जिप्सी करीब चार सौ में शेयर कर सकते हैं और पहाडों में राईडिगं का लुत्फ उठा सकते हैं। मैंने जिप्सी शेयर करने की बजाय चार सौ प्लस पैट्रोल में पल्सर लेना उचित समझा था क्यूं कि मेरे पास सिर्फ एक ही दिन था और बाइक से मैं अपनी मनपंसद जगहों को घूम सकता था। हालांकि पंचमढी के दर्शनीय स्थलों में बहुत ज्यादा कुछ खास नहीं था मेरे लिये क्यूं कि जिसने हिमालय ही बाइक से नाप डाला हो तो सतपुडा और बिध्यांचल उसके सामने थोडा हल्का ही नजर आता है फिर भी हमें यहां की कल्चर तो जाननी ही थी। रही बात मंदिरों की तो पूरे देश में कहीं चले जाओ , जहां जंगल पहाड नदियां होंगी बहां किसी न किसी गुफा में भोले जरूर विराजमान होंगे। कोई समझे तो यही असली शिव है। हर कंकर में शंकर है। हर पहाड की तरह यहां भी हर दो कदम पर भोले विराजमान हैं। यहां के हरे-भरे और शांत वातावरण में बहुत-सी नदियों और झरनों के गीत पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इसके साथ ही यहां शिवशंकर के कई मंदिर भी हैं। इसलिये पचमढ़ी को कैलाश पर्वत के बाद महादेव का दूसरा घर कह सकते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भस्मासुर (जिसे खुद महादेव ने यह वरदान दिया था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा और भस्मासुर ने यह वरदान खुद शिवजी पर ही आजमाना चाहा था) से बचने के लिए भगवान शिव ने जिन कंदाराओं और खोहों की शरण ली थी वह सभी पचमढ़ी में ही हैं।शायद इसलिए यहां भगवान शिव के कई मंदिर दिखते हैं। मुझे लगता है कि पौराणिक कथाओं की डिकोडिंग होनी चाहिये। उस समय के पंडितों ने कूट भाषा में कुछ बातें कहीं हैं जिनका शब्दार्थ नहीं भावार्थ निकाला जाना चाहिये।
मात्र पांच सौ एवं पैट्रोल में बाइक एवं जिप्सी करीब चार सौ में शेयर कर सकते हैं और पहाडों में राईडिगं का लुत्फ उठा सकते हैं। मैंने जिप्सी शेयर करने की बजाय चार सौ प्लस पैट्रोल में पल्सर लेना उचित समझा था क्यूं कि मेरे पास सिर्फ एक ही दिन था और बाइक से मैं अपनी मनपंसद जगहों को घूम सकता था। हालांकि पंचमढी के दर्शनीय स्थलों में बहुत ज्यादा कुछ खास नहीं था मेरे लिये क्यूं कि जिसने हिमालय ही बाइक से नाप डाला हो तो सतपुडा और बिध्यांचल उसके सामने थोडा हल्का ही नजर आता है फिर भी हमें यहां की कल्चर तो जाननी ही थी। रही बात मंदिरों की तो पूरे देश में कहीं चले जाओ , जहां जंगल पहाड नदियां होंगी बहां किसी न किसी गुफा में भोले जरूर विराजमान होंगे। कोई समझे तो यही असली शिव है। हर कंकर में शंकर है। हर पहाड की तरह यहां भी हर दो कदम पर भोले विराजमान हैं। यहां के हरे-भरे और शांत वातावरण में बहुत-सी नदियों और झरनों के गीत पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इसके साथ ही यहां शिवशंकर के कई मंदिर भी हैं। इसलिये पचमढ़ी को कैलाश पर्वत के बाद महादेव का दूसरा घर कह सकते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भस्मासुर (जिसे खुद महादेव ने यह वरदान दिया था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा और भस्मासुर ने यह वरदान खुद शिवजी पर ही आजमाना चाहा था) से बचने के लिए भगवान शिव ने जिन कंदाराओं और खोहों की शरण ली थी वह सभी पचमढ़ी में ही हैं।शायद इसलिए यहां भगवान शिव के कई मंदिर दिखते हैं। मुझे लगता है कि पौराणिक कथाओं की डिकोडिंग होनी चाहिये। उस समय के पंडितों ने कूट भाषा में कुछ बातें कहीं हैं जिनका शब्दार्थ नहीं भावार्थ निकाला जाना चाहिये।
पौराणिक कथाओं से बाहर आकर आज की बात करें तो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी समुद्रतल से 1,067 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का भाग होने के कारण यहां चारो ओर घने जंगल हैं। पचमढ़ी के जंगल खासकर जंगली भैंसे के लिए प्रसिद्ध हैं। इस स्थान की खोज कैप्टन जे. फॉरसोथ ने 1862 में की थी। पचमढ़ी की गुफाए पुरातात्विक महत्व की हैं क्योंकि इन गुफाओं में शैलचित्र भी मिले हैं। पचमढ़ी से निकलकर जब आप सतपुड़ा के घने जंगलों में जाएंगे तो आपको बाघ, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू आदि अनेक प्रकार के जंगली जानवर मिलते हैं। पचमढ़ी का ठंडा सुहावना मौसम इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। सर्दियों में यहां तापमान लगभग 4 से 5 डिग्री तक रहता है और गर्मियों में तापमान 35 डिग्री से अधिक नहीं जाता। यहां की सदाबहार हरियाली घास और हर्रा, जामुन, साज, साल, चीड़, देवदारु, सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर, जेकेरेंडा और अन्य छोटे-बड़े सघन वृक्षों से आच्छादित वन गलियारे तथा घाटियां मनमोहक है। यहां आप कई जलप्रपात का मजा ले सकते हैं जिसमें रजत प्रपात, बी फॉल्स तथा डचेज फॉल्स सबसे लोकप्रिय हैं। इसका बी फॉल्स नाम इसलिए पड़ा है क्योंकि पहाड़ी से गिरते समय यह झरना बिलकुल मधुमक्खी की तरह दिखता है। यह पिकनिक स्पॉट भी है, जहां आप नहाने का भी मजा ले सकते हैं। रास्ते में आम के पेड़ बहुतायत में दिखते हैं। डचेज फॉल पचमढ़ी का सबसे दुर्गम स्पॉट है। यहां जाने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है। इसमें से 700 मीटर घने जगलों के बीच से और करीब 800 मीटर का रास्ता पहाड़ पर से सीधा ढलान का है।
और तो सब ठीक है मास्टर साहब पर भस्मासुर वाली कहानी पर थोड़ा संसय है एक बार गुप्तेश्वर नाथ धाम को भी पढ़े और देखे। बाकि पचमढ़ी तो एक सुंदर पर्यटक स्थल है ही
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