Thursday, January 12, 2017

Kashmir yatra : dholpur to shri nagar

जाने कब से स्वर्ग में जाने की इच्छा पाले बैठा था। धार्मिक किताबों ने तो यही बताया था कि या तो देवता ही स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं, या फिर जेहादी फिदायीन। आम इंसान तो पुण्य करते करते मर जाय तभी स्वर्ग के दर्शन नहीं कर पायेगा, पर मैं तो " त्रिशकुं " की तरह शसरीर स्वर्ग में जाने की जिद पर अडा हुआ था। आखिरकार अपने दोनों जिगरी अरविन्द और भगवती को साथ लेकर निकल पडा धरती के स्वर्ग काश्मीर की यात्रा पर। विंटर वैकेशन थी, साल का अतिंम दिन, लोग रजाईयों में दुबके पडे थे और मैं गुलमर्ग की वर्फ में खेलने के सपने लिये हिदुंस्तान की जन्नत की तरफ बढे चले जा रहा था।






झेलम एक्सप्रैस ने हमें दिन में ही जम्मू पहुंचा दिया था, लेकिन जम्मू में भी हमें वो ऐहसास नहीं हुआ था जो मुझे चाहिये था। कोई खास सर्दी नहीं, या कहूं तो गर्मी लग रही थी दिन में। अभी हमारे पास एक दो घंटे थे, सोचा जम्मू के प्रसिद्ध गार्डन बागे बाहु को घूम लिया जाय। तवी नदी के किनारे पर स्थित यह बगीचा बहुत खूवसूरत है पर इतना ऊंचा है कि सीढियां चडने में सांस फूल जाती है। फुआरों फूलों और मनोरंजन के साधनों की बजह से यह बगीचा लोगों को बहुत पंसद आता है, खासकर युवाओं युवतियों को। मुंबई के सी बीच की तरह यहां भी लवर्स पेयर्स को आप हर पेड के नीचे गुफ्तगू करते पाओगे। कुछ युवतियों की तो मम्मियां भी नजर आयीं जो हाथ में डंडा लिये हर पेड के नीचे बैठे जोडों का मुखडा उठा उठा कर देख रहीं थीं, कहीं मेरी वाली तो नहीं है, हम तो सरक लिये जल्दी से, कहीं हम लपेटे में न आ जायें, पंजाबण का हाथ बडा दमदार होता है।
मुझे बस में दिक्कत होती है अत: जम्मू से काश्मीर के लिये हमें टैक्सी हायर करनी थी। हालांकि बाद में पता चली कि हमें ऊधमपुर रेलवे स्टेशन से बनिहाल स्टेशन तक ही गाडी करनी चाहिये थी जो मात्र 150km की दूरी पर है पर जानकारी के अभाव में हमने सीधे श्रीनगर( 300 किमी)  के लिये कार ले ली। जम्मू बस स्टैन्ड से शेयरिगं में भी मात्र 300-400 रुपये में आप टैक्सी ले सकते हैं और पूरी गाडी हायर करनी हो तो 1500 रु में मिल जायेगी। हमने एक छोटी कार हायर कर ली ताकि हम तीनों के अलावा कोई और न शामिल हो, किसी और के शामिल होने पर बोलने बात करने की आजादी छिन जाने का डर रहता है।
हमारा ड्राईवर एक नवयुवक सरदार था जो वाकई असरदार था। इतनी खतरनाक सडकों पर भी कार को ऐसे दौडा रहा था मानों मैदान में रेस कर रहा था। हालांकि मैंने उसे धीमे चलाने का अनुरोध भी किया था लेकिन उसका कहना था कि दो घंटे में हमें अगली सैनिक चौकी पार करनी होगी वरना जाम लगने का खतरा है, और फिर इस रास्ते पर मौसम का भी कोई भरोषा नहीं कि कब बिगड जाय।
पटनीटाप(90किमी) तक हमें कोई दिक्कत नहीं आयी, वर्फीली चोटियों को निहारने के लिये हम एक दो जगह रूके भी थे। पर चूंकि अंधेरा हो चला था और ठंडी हवा हमें बापस कार की तरफ धकेल रही थी, बैसे भी ऊंचे नीचे रास्तों पर दौडने से मेरे मित्र भगवती को वौमिट होने लगी थी और अरविदं भी परेशानी मेहसूस कर रहा था। बंद कार या बस में मुझे भी बहुत चक्कर उल्टी की शिकायत होती है लेकिन सर्दी की बजह से मैं ठीक था पर मेरे दोस्त बीमार हो चले थे। दोनों की तवियत बिगडने के कारण पटनीटाप से बनिहाल का रास्ता हमारे लिये बहुत कष्टप्रद रहा था। एक जगह रूक कर हमने नमकीन चाय भी पी जिससे हाजमा थोडा ठीक होता था और उल्टिया होने से भी रोकती थी। जगह जगह पर प्राक्रतिक रूप से निकलते पानी के चश्में और झरने भी बार बार रूकने को कह रहे थे पर अब हम लेट होते जा रहे थे, मौसम बिगडने और जाम लगने का खतरा था, चाह कर भी नहीं रुक पाये। रात के अंधकार में हमें बाहर कुछ भी नजर आ रहा था लेकिन इतना जरूर पता पड गया कि हम एक नदी के साथ साथ आगे बढ रहे थे। एक तरफ गहरी नदी की खाई थी तो दूजी तरफ ऊंची ऊंची पर्वत चोटियां। शाम को चार बजे जम्मू से चले थे, श्रीनगर पहुंचते पहुंचते रात का एक बज गया था। कुल मिलाकर उसने हमें 8-9 घंटे में श्रीनगर पहुंचा दिया था। श्रीनगर जैसी संवेदनशील जगह पर रात के एक बजे होटल ढूंडना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन हमें चितां नहीं थी क्यूं मेरा भाई नरेन्द्र चाहर भी एक फोजी जवान है जो उस समय लालचौक पर ही तैनात था, लालचौक स्थित भोले मंदिर और अखाडे में उसकी यूनिट का बैरक था, जैसे ही कार चालक सरदार ने हमें लालचौक पर छोडा, नरेन्द्र सामने ही इंतजार करता मिला। कार से बाहर निकलते ही कडाके की ठंड का एहसास हुआ लेकिन मेरा भाई हमें मंदिर स्थित अपने एक कमरे में ले गया जिसमें रुम हीटर चल रहा था और कमरा गर्म था। फिर भी यात्रा की थकान और सर्दी की कडकडाहट दूर करने के लियै फौजी रम के दो घूंट मारे और फिर जम कर खाना खाया। खाने पीने के बाद नींद भी बहुत गहरी आयी।
अगली ही सुवह जल्दी फौजी भाई हमें बैरक से निकाल कर नजदीकी एक होटल रुम में ले गया। उसका कहना था कि आज जुम्मे की नमाज के बाद भयंकर पथराव होगा इसलिये मैं तुम्हें खतरे में नहीं डाल सकता, हमें तो हर शुक्रवार पत्थर झेलने की आदत पड गयी है।

जारी है ....

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