Saturday, January 28, 2017

छत्तीसगढ टूर : दुर्ग

शहडोल से रात को ही ट्रैन थी जो मुझे सुवह तक विलासपुर पहुंचा सकती थी। हालांकि मुझे जसपुर की तरफ जाना था जहां मुझे नागों की दुनियां देखनी थी। कहते हैं कि सावन के महीनों में चारों ओर सांप ही सांप नजर आते हैं। बच्चे खेलते हैं सापों से। मुझे मिलना था नागलोकवासियों से। लेकिन मित्र राकेश शर्मा का आगृह था कि मैं उनके पास ही रुकूं और फिर उनकी गाडी लेकर जसपुर चला जाऊं।मैं सुवह ही विलासपुर स्टेशन पहुंच गया पर राकेश जी से फौन की गडबडी के कारण संपर्क स्थापित न हो सका। समय की भी कमी थी। रायपुर और दुर्ग भी जाना था। दो एक मित्रों से मिलना था। राकेश जी से बात नहीं हुयी तो सोचा कि दुर्ग बाले दोस्तों से मिल आऊं। दुर्ग में एक तो मित्र विकाश शर्मा जी से एंव दूसरे पुलिसकर्मी स्मिता टांडी जी से मिल कर आना था।



अमरकंटक टूर पर गया तो छत्तीसगढ घूमने के उद्देश्य से ही था जिसमें मुझे बहुत सारे मित्रों के अलावा आदिवासियों की जीवन शैली से भी परिचित होना था लेकिन विलासपुर पहुंचते पहुंचते मेरी सारी छुट्टियां समाप्त हो चलीं थीं। बस एक दिन था मेरे पास। अगले ही दिन स्कूल पहुंचना बहुत ज्यादा जरूरी था। अब इस एक ही दिन में क्या क्या हो सकता था इसलिये नागलोक की दुनियां घूमना रद्द हो गया। अब तो बस विलासपुर के राकेश शर्माजी एवं दुर्ग के विकाश भाई और स्मिता बहिन से मिलना बाकी था। विलासपुर स्टेशन पर मोबाईल की तकनीकी खराबी के कारण राकेश भाई से संपर्क नहीं हो पाया तो सोचा कि दुर्ग हो आता हूं। रायपुर बाले मित्रों से भी संपर्क नहीं हो पाया उस समय। इसलिये दुर्ग पहुंच गया। मैंने दुर्ग जाने का समय गलत चुना था। पर करता भी क्या मुझे छुट्टियों के हिसाब से चलना पडता है। राष्ट्रीय पर्व के एक दिन पहले स्मिता जी भी बहुत व्यस्त थीं। आधा घंटा ही सही पर मुलाकात अवश्य हुई। विकाश जी मैसेज मिलते ही मुझे लेने स्टेशन आ गये थे। विकाश शर्मा जी बहुत ही शालीन व्यक्ति हैं। पेशे से फोटोग्राफर हैं और दिल से घुमक्कड। बहुत ही जानदार विचारों के मालिक। विचारों में काफी गंभीरता और परिपक्वता लिये हुये हैं। विकाश जी के साथ ही भोजन किया था उस दिन। तभी स्मिता जी भी आ गयीं स्टूडियो पर ही। तीनों की काफी अच्छी मुलाकात रही। विकाश जी ने मुझे घुमक्कड गुरू राहुल सांस्कृतयन की एक पुस्तक भी भेंट की जिसे मैं सारे रास्ते पढते आया। विकाश जी का प्रेम पाकर बहुत अभिभूत हुआ मैं।
रिस्तों का पता नहीं है कि कब और कहां बन जायें। विचार न मिलें तो घर के सदस्यों से भी न पटे और मन मिल जायें तो हजारों किमी दूर बैठे लोग भी आपके इतने करीब आ जायें कि खून के रिश्ते भी उनके आगे छोटे पड जायें। स्मिता तांडी छत्तीसगढ पुलिसकर्मी हैं जो जीवनदीप नामक सामाजिक संस्था के माध्यम से समाज की सहायता करती हैं। न कितने गरीवों असहायों मजलूमों की मदद की होगी अब तक। न जाने कितने रोगियों के लिये आर्थिक सहायता जुटाई होगी। दुर्ग छत्तीसगढ पुलिस महकमा में रहकर समाज के हित में कार्य करना किसी विशेष इच्छाशक्ति के तहत ही हो पाता है। शायद यही कारण है कि आज सोशल मीडिया में स्मिता आठ लाख फोलोवर्स के साथ दुनियां को एक परिवार बनाये बैठी हैं। बहुत खुशी हुई दोनों से मिलकर। शाम को ही बापसी ट्रैन थी। उधर राकेश भाई से भी बात हो गयी थी जो मुझे बार बार बुला रहे थे। समय की कमी के चलते नागलोक तो रद्द हो चुका था। अब तो विलासपुर से ही लौटना था घर।

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