Saturday, January 14, 2017

Kashmir yatra: shrinagar to udhampur

हमें श्रीनगर लौटते थोडी देर हो चली थी, अंधेरा हो चला था। बापस होटल पहुंचे तो फौजी भाई नरेन्द्र थोडा चितिंत हो रहा था, हमारे पास एक पोस्टपेड फौन था जिस पर वो बार बार हमारी कुशलता पूछ रहा था, शाम को होटल लौटने पर पता चला कि नमाज के बाद दिन भर पथराव हुआ था, सेना को हल्का बल प्रयोग करना पडा था तब जाकर भीड छंटी। ये पत्थरबाज किराये के युवक होते हैं जिनको पाकिस्तान सै पांच सौ प्रति युवक दिया जाता है। बदले की कार्यवाही में अक्सर वेकसूर लोग मारे जाते हैं और हुडदंगी युवक निकल जाते हैं।
काश्मीर की इस अल्पकालीन यात्रा में भी करीब सौ दौ लोगों से बात करने का मौका मिला होगा। उनकी विचारधारा के आधार पर तीन तरह के लोग थे। एक वर्ग पाकिस्तान को शुभचिंतक मानता है और दूसरा भारत को जबकि तीसरा और सबसे बडा वर्ग आजाद होने की चाह रखता है। श्रीनगर के कुछ व्यापारिक लोगों को नजर अदांज कर दें तो अधिकांश कश्मीरी सिर्फ पर्यटन पर ही केन्द्रित है जो आंतकवाद के कारण मृतप्राय पडा है।
गुलमर्ग में भूखे प्यासे बुजुर्गों को अपने बच्चों की खातिर पर्यटकों के आगे पीछे दौडते और विनती करते देखा था मैंने। गुलमर्ग के रोप वे से बस स्टैन्ड की तरफ लौटते हुये का वाक्या सुनाता हूं।
साहब, कुछ कमाने का मौका दीजिये न , साब ? बच्चों ने दो दिन से खाना नहीं खाया साब "" गिडगिडाती आवाज कानों में पडी।
पीछे देखा तो एक वुजुर्ग स्लेज पर बैठने की विनती कर रहा था।
हमें वर्फ पर पैदल चलने में इतना आनंद आ रहा था कि अब तक हम करीब तीन किमी पैदल चल कर वापस टैक्सी स्टैन्ड की तरफ बढ रहे थे जो अब मात्र आधा किमी ही दूर रह गया था पर बच्चों के भूखे होने की बात कानों में पढी तो मैं पूछ बैठा,
चाचा जान , कितने रूपये लोगे ?
साब , बस पचास रूपये साब ।" बुजुर्ग ने जबाब दिया।
चचे जान, ये लो पचास रूपये , आप ये रख लो । हम पैदल ही जायेंगे, मैंने कहा ।
"नहीं साब , हम मेहनत का ही पैसा लेंगे, ऐसे नहीं लेंगे साब" वुजुर्ग बोला ।
 चचे की ईमानदारी देख, ना चाहते हुये भी मैं स्लेज पर बैठ गया।
आधा किमी की उसकी मेहनत देख कर मैं चचे को पचास की जगह सौ रूपये देने लगा।
हांफती हुयी आवाज में चचे ने हाथ जोड शुक्रिया देते हुये कहा,
साब आज हम भी भरपेट खाना खायेंगे।।
इसी तरह डल लेक पर भी पचास सौ रुपये को तरषते गरीब लोगों को देखा था मैंने।
जम्मू और कश्मीर राज्य मुखतः तीन भागो से मिल कर बना  है, पहला जम्मू , दूसरा कश्मीर और तीसरा लद्दाख । जम्मू हिंदू एवं सिख बाहुल्य है जबकि लद्दाख में बौद्ध, कश्मीर घाटी मुस्लिम बाहुल्य है। इन तीनों में कश्मीर घाटी ही सबसे ज्यादा अशांत है क्यूं कि हम मजहब के चलतै पाकिस्तानी आतंकी उन्हें बरगलाने में सफल हो जाते हैं।इस राज्य के पश्चिम दिशा में पाकिस्तान, उत्तर में अफगानिस्तान, उत्तर और पूर्व में तिब्बत, चीन और दक्षिण में भारतीय राज्य पंजाब और हिमाचल प्रदेश है । जम्मू कश्मीर की राजधानी "श्रीनगर" पर सर्दियों में अत्यधिक ठण्ड और वर्फ पड़ने के कारण सर्दियों में राज्य के सभी प्रशासनिक कार्य  "जम्मू" से ही निस्तारित किये जाते है, एक तरह से जम्मू सर्दियों में इस राज्य की बन जाती है।
भारत की आजादी के समय यहाँ के शासक राजा हरी सिंह थे और वे इस राज्य को स्वतंत्र रखना चाहते थे । आजादी के बाद भारत के धर्म निरपेक्ष देश होने के कारण बहुत से नेता इसे भारत में शामिल रखना चाहते पर पाकिस्तान को ये मंजूर न था और सन 1947-48 में कश्मीर पर आक्रमण कर यहाँ का काफी हिस्सा हथिया लिया तो महाराज हरी सिंह ने कुछ शर्तो पर इस राज्य को भारत में विलय कर दिया । उस समय भारतीय सेना ने भी आक्रमण कर इस राज्य का काफी हिस्सा बचा लिया और पाक द्वारा  हथियाये कश्मीर पर यही विवाद आज तक सयुक्त राष्ट्र में चल रहा है ।
श्रीनगर से लौटते समय हमने बस की वजाय ट्रैन से आना उचित समझा। ट्रैन श्रीनगर से बनिहाल तक आती है जो मात्र बीस रूपये में सौ किमी की यात्रा कराती है। दो दिन की घुमक्कडी के बाद अगले दिन
सुवह ही छ बजे कडकडाती ठंड में लाल चौक श्रीनगर स्थित अपने होटल से जब हमने टैक्सी पकडी तो स्टेशन तक छोडने का दो सौ रुपये किराया हमें ज्यादा लगा लेकिन जब हम रेलवे स्टेशन पहुंचे तो किराया हमें बहुत कम लग रहा था। दर असल हमारे होटल से रेलवे स्टेशन लगभग बीस किमी था और माईनस चार की ठंडी सुबह इतनी दूरी का दो सौ रूपये कोई ज्यादा न था। इस बीच मेरी टैक्सी ड्राईवर फिरोज भाई से बात होती रही, बडा ताज्जुब हुआ कि एक अनपढ ड्राईवर दहशतगर्दों और पाकिस्तान सरकार को गाली दे रहा था और सेना की तारीफ कर रहा था। हमारे साथ ही कुछ दूर तक एक कामबाली महिला भी बैठी थी जिसका पति सेना की गोली का शिकार हो गया था जब वह सुवह अपने काम पर जा रहा था और अचानक दंगा छिड गया था। उस महिला ने भी ड्राईवर की हां में हां मिलायी तो और आश्चर्य हुआ। कुल मिलाकर निष्कर्ष ये निकला कि काश्मीरी आवाम तीन पाटों के बीच पिस रही है।
स्टेशन पहुंचते ही हमें ट्रैन मिल गयी जो हमें कई लम्बी सुरंगों को पार कराती , काश्मीरी खेतों, गावों, क्षेत्रीय नजारों के दर्शन कराती बनिहाल ले आयी।
बनिहाल पर इतनी तेज शीत लहर चल रही थी कि हम दो दो कोट और जैकेट में भी कंपकपा रहे थे ।
बनिहाल से इस बार हमने कार की बजाय रोडवेज बस से आना उचित समझा जिसने हमें मात्र चार पांच घंटे में ऊधरपुर रेलवे स्टेशन छोड दिया।
बनिहाल से चिनाव नदी के किनारे किनारे चले अभी मुश्किल से एक घंटा भी न हुआ होगा कि सर्दी गायब हो गयी। एक एक करके कपडे कम होते गये जो ऊधमपुर में तो मात्र एक टी शर्ट में रह गये।
ऊधमपुर में भी मेरे गांव का एक फौजी भाई मुझे बुला रहा था, भले ही समय कम था पर उसकी आत्मीयता को कैसे ठुकरा सकता था जो मेरी बस के इंतजार में एक घंटे पहले से ही ऊधमपुर बस स्टैन्ड पर मेरे इतंजार में दसों बार फौन कर चुका था। जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं कि मेरा पूरा परिवार, पूरा गांव और पूरा चाहरवाटी क्षेत्र फौजी है जो काश्मीर के चप्पे चप्पे पर तैनात देश की रक्षा कर रहा है, गांव में छुट्टी पर आये उन्हें एक एक साल भी हो जाती है , ऐसे में यदि कोई उनसे बिना मिले चले जाये, ऐसा कैसे हो सकता है।
मिलट्री पुलिस मैन राजकुमार चाहर , मेरा चचेरा भाई , हमें अपनी यूनिट कैम्प ले गया जहां हम फ्रैस व्रैस हुये और शाम को मैस में खाना खाकर फौजी गाडी से ही रेलवे स्टेशन तक आये। राजकुमार ने हमें अपने बहुत सारे फौजी साथियों से मिलवाया जो हमें बार बार कम से कम एक दिन रूकने की जिद कर रहे थे पर हमें हमारी ड्यूटी बुला रही थी। स्कूल खुल चुके हैं । कल से अपनी ड्यूटी पर पहुंचना है इसलिये चाह कर भी फौजी भाईयों के पास रूक न पाये ।













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