Thursday, January 5, 2017

Jaatland journey


( धौलपुर से मथुरा, हाथरस, दिल्ली, मेरठ, हरियाणा, शेखावाटी , भरतपुर एवं बापस धौलपुर)

इस बार कुल 1500 किमी बाईक चलायी और दिल्ली को घेरे हुये जाट बैल्ट को देख आया। मेरी घुमक्कडी अन्य मित्रों से इस सेंस में थोडी सी अलग है कि मैं प्रकृति के भौतिक स्वरुप के साथ साथ सामाजिक एवं धार्मिक पहलू को जानने में भी उतनी ही रुचि रखता हूं। मेरी इस यात्रा का मकसद  ना केवल अपने मित्रों से मिलना था बल्कि दिल्ली के दक्षिणी किसानों की जीवन शैली में आये परिवर्तन को जानना भी था। जैसे पिछली वार आदिवासियों के जीवन शैली से परिचित होने के लिये भोपाल, शहडोल, अमरकंटक और रायपुर, विलासपुर दुर्ग गया था, बैसे ही इस वार शेखावाटी के  उन जाटों के बारे में जानने की उत्कंठा थी जो कल तक शोषित किसान की श्रेणी में आते थे, जिन्हें बहुत सारे आन्दोलन भी करने पडे थे और आज उन्हीं किसानों के घर में से IAS, IPS एवं कैप्टन कर्नल निकल रहे हैं, जबकि दूसरी ओर धौलपुर भरतपुर के लोग सत्ता पर काबिज होकर राज कर रहे थे, आज सिपाही बनने तक को तरष रहे हैं।
समाज के इस काल चक्र में जीवन का फलसफा छिपा है कि समय बदलते देर नहीं लगती, फकीर राजा बन जाते हैं और राजा फकीर, बस कुछ सकारात्मक चेन्जेज लाने होते हैं। जानना था कि इस उतार चडाव के क्या कारण रहे। सामाजिक, धार्मिक या फिर राजनैतिक ? 
यात्रा में दिल्ली के बहुत बडे ब्लागर्स से भी मिला तो हरियाणा के पहलवानों एवं बौक्सर्स से भी मुलाकात हुई। शेखावाटी के किसानों के घर में रुक कर उनकी सामाजिक धार्मिक परंपरायें भी जानीं। रास्ते में न जाने कितने महलों, किलों, हवेलियों एवं मंदिर मस्जिदों को देखा जो अब काल की भेंट चड चुके थे । सनातनी परंपरा के परिष्कृत रुप को प्रदर्शित करते एवं गुरु शिष्य की पावन परंपरा का पालन करते गुरुद्वारों एवं आर्य गुरुकुलों में भी गया जो इस भौतिकवादी युग में भी उस प्राचीन विरासत को संजोये हुये हैं। इस बीच जीणमाता राणी सती जैसी लोक देवियों एवं  तेजाजी, पावूजी, गोगाजी जैसे लोक देवताओं के प्रति असीम श्रद्धा एवं जुनून भी देखा, तो खाटू श्याम एवं मेंहदीपुर बालाजी की एक झलक मात्र पाने को बेताब धक्का खाते, गिरते पडते लोगों को एवं भीड में पिसते मासूम बच्चों को भी देखा, तो मानसिक बीमारियों से निजात पाने हेतु प्रेतराज बालाजी की शरण में आये बीमारों से भी मुलाकात हुई। 
पूर्व प्रचलित सनातनी परंपराओं एवं मान्यताओं से कुछ हटकर अलग राह बनाती एवं अन्य समुदायों से परहेज करती मस्जिदें भी देखीं तो इस्लाम से विद्रोह कर पीरों फकीरों वली औलियाओं की मजार पर माथा पटकते सभी धरमों के दुखियारे भी देखे। ये सभी धार्मिक स्थानों पर भगवान मिले कि न मिलें पर हां विभिन्न रीति रिवाजों बाले लोगों का मिलन तो हो ही जाता है, कुछ वक्त घर से दूर उत्सव में बिताने पर मन उल्लास से भर जाता है, नयी ऊर्जा से परिपर्ण इंसान खोये हुये आत्मविश्वास को प्राप्त कर जीवन पथ पर फिर से चल देता है। मैं अक्सर कहता हूं कि ये पवित्र स्थल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक हैं। यहां भगवान नहीं लोग मिलते हैं आपस में, मन का मेल होता है यहां, मन का मैल साफ होता है यहां और जहां दिलों का मेला लगता है, ईश्वर आ ही जाता है, बशर्ते मन मैले न हों और दिल साफ हो। जहां एक ओर जीवन के कष्टों से मुक्त होने को छटपटाते व्यथित देखे तो दूजी ओर उसी छटपटाहट का मोल लगाते पंडे भी देखे मानों ईश्वर कोई सर्कस का जानवर है जिसका कमाल दिखाने हेतु ये टिकट कांउटर पर बैठे कष्ट निवारण पत्र वितरित कर रहे हों। मानों भगवान इनकी निजी प्रौपर्टी है जिसकी नीलामी हेतु ऊंची ऊंची बोली लगा रहे हों। मस्जिद के बाहर सर्द रात में ठिठुरते महिलायें भी देखी मानो रात को यदि महिलायें अंदर प्रवेश कर गयीं तो ईश्वर का लंगोट कच्चा पड जायेगा। ऐसे भगवानों के तथाकथित आशियानों का भी क्या फायदा जहां मौला का बीमा सिर्फ मुल्लाओं ने ही करा रखा हो। इससे तो लाख गुना बेहतर पीर फकीर वलियों की मजारें हैं जहां रंग जाति लिंग के भेदभाव से इतर किसी भी समुदाय का दुखियारा बाबा के दरबार में अपनी अर्जी लगा सकता है और बाबा को अपने दुख दर्द की कहानी सुना कर अपने मन को हल्का कर सकता है। 

शेष आगे जारी है .......

1 comment:

  1. सभी धर्मों के ठेकेदारों ने भगवान बनाये ही अपने लाभ के लिये है

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