Wednesday, January 25, 2017

Amarkantak tour : शहडोल से अमरकंटक की ओर रवाना

अब चलते हैं मां नर्मदा की जन्मदात्री पवित्र भूमि अमरकंटक की ओर। हालांकि रिमझिम रिमझिम बूंदा बांदी जारी थी कितुं अनंत तिवारी जी को इस बार कुछ अलग करना था। कुछ ऐडवेंचर टाईप। स्कार्पियो की जगह बाइक चुनी करिज्मा। करिज्मा शानदार बाइक है रीयली।



 दोनों भाईयों ने सुवह ही सुवह दो दो इडली बडा खींचे और निकल लिये अमरकंटक की ओर।



 शहडोल से अमरकंटक लगभग 125 km पडता है। शुरू के साठ किमी निकलने के बाद पठारी उतार चडाव शुरू हो जाते हैं और वहीं से शुरू होता है सफर का असली रोमांच। अभी ज्यादा आगे भी न बढ पाये थे कि हमको देवहरा से पहले ही केरर घाट की चढाई करनी पडी। मऊआ और टीक के पेडों के बीच सांप सी रेंगती सडकें और रिमझिम वारिष में बलखाती हमारी करिज्मा करिश्मा ही कर रही थी। उस आनंद को शायद शब्दों में न बयां कर सकूं मैं क्यूं कि ये आनंद तो आत्मिक अनुभूति है जो एक प्रकृतिप्रेमी ठीक बैसे ही फील करता है जैसे कोई ईश्वर का भक्त खुद को खुदा में खो देने पर करता है। मेरे हिसाव से तो सनातनी शिव की प्राप्ति भी ऐसी ही जगह हो सकती हैं जहां चारों ओर घने वृक्षों की हरियाली ही हरियाली हो और उनमें सैकडों जीव उसका गुणगान कर रहे हों। कहते हैं कि नर्मदे मां के हरेक कंकर में शंकर है। और हो भी क्यूं न ? आखिर उसी की तो बेटी है मां। पर आत्मा से परमात्मा के मिलन की घडी चिर स्थायी न रह सकी। स्वार्थी मनुष्य आत्मा की सुनता ही कब है जो परमात्मा की सुने। हम घाट पार कर अभी देवहरा पहुंचे ही थे कि पता चला कि कोयला पाने के लिये सडक को काट दिया गया है। कोल सिम को काटने के लिये सैकडों जेसीवी मशीनों को जमीन चीर देने के लिये उतार दिया गया है। हमारी बाइक रुक गयी और धरती मां के साथ किये गये इस मजाक को देखने हम भी नीचे उतर पडे। यहां प्रचुर मात्रा में कीमती खनिजों का मिलना, इस सुरम्य प्राकृतिक सुषमा के लिए दुश्मन साबित हो रहा है। तेजी से कटते जंगलों, कंक्रीट के जंगलों की बढ़ोतरी और खदानों से बाक्साइट के अंधाधुंध उत्खनन के चलते यह पावनभूमि तिल  तिल विनाश और आत्मघात की ओर अग्रसर है। हमने उन पावन वनों को काट डाला है जिनमें शिव का वास है और पशु-पक्षियों को खदेड़ दिया है या मार डाला है। धरती मां के साथ यह कैसा विश्वासघात है, हमारी तो समझ से परे है। मैकल पर्वत श्रेणी की अमरकंटक पहाड़ी समुद्र की सतह से कोई 3,500 फीट ऊंचाई पर है। अमरकंटक के जिन घने अरण्यों का वर्णन प्राचीन साहित्य में मिलता है, उनकी हरियाली अब यहां देखने को नहीं मिलती है। इस विनाश का मुख्य जिम्मेदार यहां की जमीन में पाया जाने वाला एल्यूमीनियम का अयस्क 'बाक्साइट" और कोयले की सिम है। पर्यावरण के सबसे बड़े दुश्मन मनुष्य ने अपनी भौतिक सुविधाओं की खातिर इस तपोभूमि को यहां-वहां खूब उजाड़ा। जंगल के जंगल साफ कर दिये।  डायनामाइट लगाकर गहराई तक जमीन को छेदा गया। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सहायक पहाड़, पेड़ और कई छोटे-बड़े जल-स्रोत इस खनन की चपेट में आ गए। मुझे अचानक से ट्रैन में ज्ञान वघारते उस ज्ञानी की याद आ गयी जो उत्तराखंड त्रासदी के लिये हनीमून को जिम्मेदार ठहरा रहा था। हमें ऐसे पाप क्यूं नहीं नजर आते जो स्वार्थी मानव हर रोज कर रहा है। यदि यही हाल रहा तो पुण्य सलिला नर्मदा मां का अस्तित्व भी खतरे में आ जाएगा।
देवहरा के बाद राजेन्द्रग्राम का घाट पार करने के बाद हमें अगला पठार मिला , अमरकंटक का पठार , एक बिध्यांचल तो दूजी तरफ सतपुडा। बहुत ही सुंदर दृश्य। मनमोहक। पठार की विशेषता ही ये है कि ऊपर चढने के बाद एकदम समतल सा दिखाई देता है। अभी अमरकंटक से आठ दस किमी ही पहले थे कि एक बहुत बडा औषधि पार्क नजर आया। तिवारी जी ने बताया कि यहां हिमालय से भी कीमती जडीबूटियां प्राप्त होतीं हैं। अमरकंटक की औषधीय वनस्पतियाँ निसंदेह मानवजाति के लिये परमपिता परमेश्वर शिवजी की बेटी मां नर्मदे का प्रसाद है जिसके हर कंकर में शंकर समाहित है। अमरकंटक बहुत से आयुर्वेदिक पौधों के लिए  प्रसिद्ध है‍, जिन्‍हें  जीवनदायी गुणों से भरपूर माना जाता है। पांच नदियों के उद्गम अमरकंटक के चप्पे-चप्पे प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिकता और समृद्ध परम्पराओं की सुगंध देते हैं। अमरकंटक एक तीर्थस्थान व पर्यटन केंद्र ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक चमत्कार भी है। हिमाच्छादित न होते हुए भी यह पांच नदियों का उद्गम स्थल है जिनमें से दो सदानीरा, विशाल नदियां हैं जिनका प्रवाह परस्पर विपरीत दिशाओं में है। अभी थोडा सा ही आगे बढे तो दांयें हाथ पर श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर का बोर्ड लगा देखा। मुस्किल से एक किमी की दूरी तय करके हम मंदिर पहुंचे तो चारों तरफ से हरी भरी वादियों, खेतों और घने पेडों को देखकर जैसे आत्मा तृप्त हो गयी और साथ ही भोले के नाम पर की जा रही दुकानदारी देख कर थोडा मन खिन्न भी हुआ पर कुल मिलाकर भोले अभी जीवित हैं, भले ही फूल मालाओं , प्रसाद की थैलियों और पैसों के ढेर के वीच से सांस लेने का प्रयास कर रहे हों। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला नदी की उत्‍पत्ति होती है जिसकी वजह से सौन और नर्मदा के बीच खटास बढी और नर्मदा रुठ कर पहाडों को काटकर लैंडस्लाईडिगं करती हुई विपरीत दिशा में चली गयी मानी जाती है।
पुराणों में इस स्‍थान को महा रूद्र मेरू कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्‍थान पर निवास करते थे। मंदिर के निकट की ओर सनसेट प्‍वाइंट भी है और यहीं होकर निकटतम रेलवे स्टेशन पेन्ड्रा के लिये सडक निकलती है। चारों तरफ की हरियाली में साक्षात भोले के दर्शन करने और उसे नमन करने के बाद पंडों के पीछे दबी दम घुटती मूर्ति के दूर से ही हाथ जोडने के बाद हम निकल पडे सीधे पावन भूमि अमरकंटक की ओर ।
अमरकंटक नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थान है। यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है। यह हिंदुओं का पवित्र स्थल है। मैकाल की पहाडियों में स्थित अमरकंटक मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर जिले का लोकप्रिय हिन्‍दू तीर्थस्‍थल है। समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्‍थान पर ही मध्‍य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडियों का मेल होता है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदा और सोन नदी की उत्‍पत्ति होती है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडियों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्‍ध कर देते हैं। प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह स्‍थान काफी पसंद आता है।

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