Saturday, December 15, 2018

उत्तराखंड चार धाम बाइक यात्रा : अल्मोडा से जोशीमठ।।

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अल्मोडा शहर से कौसानी की तरफ रोड पर करीब दस किमी आगे निकलने के बाद मुझे नदी के किनारे ही एक सस्ता सा लौज मिल गया। यहीं पर ITBP सेंटर भी है और थोडा आगे चलकर कटारमल मंदिर भी। चूंकि मुझे रात होने से पहले ही बद्रीनाथ पहुंचना था अत: जल्दी सो गया ताकि सुवह दिन निकलते ही यात्रा प्रारंभ कर सकूं। मुझे अभी किमी और चलना था।
मैं थोडा नास्तिक टाइप का सा घुमक्कड हूं। हालांकि खुद को नास्तिक भी नहीं कह सकता क्यूं कि ईश्वर को हरदम अपने पास महसूस करता हूं। भारत भर के धार्मिक स्थलों में जाता रहता हूं इसलिये नास्तिक तो नहीं लेकिन बस सोच थोडी अलग है। मंदिरों में विराजमान मूर्तियों में ईश्वर को ढूंढने की बजाय उसके बाहर फैली हुई अथाह प्राकृतिक खूबसूरती में अपने शिव को तलाशता रहता हूं। मेरी घुमक्कडी का उद्देश्य कभी ईश्वर को पाना नहीं रहा, मैं घर से निकलता हूं अपने भारत को जानने । अपने सनातन को जानने। अपने सनातन की विशालता को जानने। इसके विविध रंगो रूपों को जानने। भारत के कौनों में फैले हुये लोगों की संस्कृति में ही सनातन बसता है। लोगों को जान लो तो सनातन भी समझ आने लगता है। हमारी कूपमंडूकता भी दूर हो जाती है। घर से बाहर निकलने पर पता चलता है कि सनातन तंग गलियों से निकलते वाहनों की किचाहट की तरह नहीं है। इसके हजार रंग है हजार रुप हैं। हर रंग बेमिशाल है। यदि मेरा लक्ष्य केवल बद्रीनाथ मूरत के दर्शन करना ही होता तो मैं हवाई यात्रा से बहुत कम समय में ये काम कर सकता था किंतु मुझे उत्तराखंड को जानना था अत: मैंने रास्ता भी चुना तो ऐसा जिसमें एक तरफ से घुसकर दूसरी तरफ निकल सकता था। अल्मोडा से कौसानी रोड पर सोमेश्वर ग्वालदम थराली बैजनाथ कर्णप्रयाग तक रास्ता अधिकांशत: खराब ही है, इतना खराब कि इससे अच्छा होता कि पैदल चला जाता मैं फिर मुझे आनंद आ रहा था क्यूं कि रोड के अलावा बाकी सब कुछ खूबसूरत था वहां।
सुवह सुवह बैग लटकाये बच्चे, पशुओं को खेतों की तरफ हांकते लोग, मासूम बच्चों को पीठ पर लटकाये महिलायें । देवदार के पेडों की सुंदर घाटी।कौसानी में चाय के बागान।सब कुछ मोहित करने वाला।बैजनाथ में गोमती नदी दो बार रास्ता काटती है तो थराली से पिंडार नदी के सहारे सहारे रोड कर्णप्रयाग में अलकनंदा से संगम करने को व्याकुल हो उठती है। पिंडार नदी के मिलते ही रास्ता भी खूबसूरत हो उठता है। हर पल गाडी रोकने को मन करता है।
अल्मोडा से आगे चलते ही कौसानी जो भारत का स्वीट्जरलैंड बोला जाता है, एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है। विशाल हिमालय के अलावा यहां से नंदाकोट,त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत का भव्य नजारा देखने को मिलता है। यह पर्वतीय शहर चीड़ के घने पेड़ों के बीच एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहां से सोमेश्वर, गरुड़ और बैजनाथ कत्यूरी की सुंदर घाटियों का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। काफी समय पहले कौसानी अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था और वलना के नाम से जाना जाता था। उस समय अल्मोड़ा जिला कत्यूरी के राजा बैचलदेव के क्षेत्रधिकार में आता था। बाद में राजा ने इसका काफी बड़ा हिस्सा एक गुजराती ब्राह्मण श्री चंद तिवारी को दे दिया। महात्मा गांधी ने यहां की भव्यता से प्रभावित हो कर इस जगह को ‘भारत का स्वीट्जरलैंड’ कहा था। खूबसूरत पहाड़ियों और पर्वतों के अलावा कौसानी आश्रमों, मंदिरों और चाय के बगानों के लिए भी जाना जाता है। अनाशक्ति आश्रम यहां का एक प्रसिद्ध आश्रम है, जहां महात्मा गांधी कुछ दिन के लिए रुके थे। अब यह एक अध्ययन और शोध केंद्र के रूप में विकसित हो गया है, जहां रहने और खाने की भी व्यवस्था है। एक और जाना माना आश्रम है लक्ष्मी आश्रम। इसे सरला आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। इस आश्रम का निर्माण 1948 में महात्मा गांधी की एक अनुयायी कैथरीन हिलमन ने करवाया था।पिन्नाथ मंदिर, शिव मंदिर, रुद्रहरि महादेव मंदिर, कोट भ्रामरी मंदिर और बैजनाथ मंदिर कौसानी के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। समुद्र तल से 2750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पिन्नाथ मंदिर हिन्दू देवता भैरों को समर्पित है। शिव मंदिर सोमेश्वर शहर में पड़ता है, जो कौसानी से 11 किमी दूर है। भगवान शिव के इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के संस्थापक सोमचंद ने करवाया था।
इसके अलावा कौसानी प्रसिद्ध हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि भी है। यहां एक संग्राहलय भी है, जिसे सुमित्रानंदन पंथ गैलरी के नाम से जाना जाता है। इसमें इस महान कवि की कविताओं की पांडुलिपि, विभिन्न कृतियां और उन्हें दिए गए पुरस्कारों का संग्रह है। संग्राहल में हर वर्ष उनका जन्मदिन मनाया जाता है और उनके सम्मान में एक सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है।
जोखिम को पसंद करने वाले पर्यटक यहां ट्रेकिंग (लंबी पैदल यात्रा) और रॉक क्लाइंबिंग (चट्टानों की चढ़ाई) का आनंद ले सकते हैं। सुंदर धुंगा ट्रेक, पिण्डारी ग्लेशियर ट्रेक और मिलम ग्लेशियर ट्रेक का शुमार भारत के सबसे अच्छे ट्रेकिंग रूट में होता है। यह जगह हिंदू धर्म के एक त्योहार मकर संक्रांति को मनाने के लिए भी जाना जाता है, जिसे यहां उत्तरायनी कहते हैं। यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर है। सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। सोमेश्वर घाटी, उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित बेहद ही खूबसरूत घाटी है जो कि कोसी और सेई नदी के तट पर बसी है। पर्याप्त मात्रा में पानी होने के कारण यह घाटी खेती के लिये अच्छी मानी जाती है और बारह महीने कोई न कोई फसल खेतों में लगी ही रहती है। दूर-दूर तलक फैले खेत और हिमालय की ओर से आती ठंडी हवायें इसे जन्नत बना देती हैं तो इन फैले हुए खेतों के बीच में छिटके हुए छोटे-छोटे से गाँव इस जगह से आंखें हटने नहीं देते।
कौसानी से 16 किमी दूर बैजनाथ शहर में स्थित बैजनाथ मंदिर धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है। 12वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर का हिन्दू धर्म में खास धार्मिक एंव ऐतिहासिक महत्व है। बैजनाथ शहर को पहले कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था, जो 12वीं और 13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी।
ग्वालदम गढवाल और कुमांयु पहाडियों की सीमा पर स्थित है। हरे भरे जंगलों और सेब के बगीचों से भरपूर है। कौसानी से चालीस किमी दूर ग्वालदम
हिमालयन चोटी Nanda Devi (7817 mt), Trishul (7120 mt) and Nanda Ghuti (6309 mt) का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।
थराली के बाद जैसे ही पिंडार नदी की घाटी में आगे बढा गाडी दौडाने का मजा ही आ गया। दोपहर का एक बजा था। भूख भी लगी थी और नहाना भी था मगर मैंने सोचा कि अलकनंदा के संगम में ही नहाऊंगा इसलिये गाडी दौडा दी। अल्मोडा से 160 किमी गाडी चलाने के बाद कर्णप्रयाग आते ही शहर का कोलाहल वाहनों की चिल्लपों मारामारी, सारा आनंद ही छू मंतर हो गया। हरिद्वार से आने वाला बडा हाईवे आ गया था और हेमकुंड साहिब एवं बद्रीनाथ जी की यात्रा चल रही थी इसलिये पूरी रोड पर पंजाबियों ने कब्जा कर रखा था। बाइकर्स बहुत सारे थे। सारे के सारे खालसा का झंडा लगाये बुलैट दौडाये जा रहे। मैं संगम को भूल गया। शहर की धूल से बाहर निकलना चाहता था। शहर से बाहर निकल कर एक नेचुरल झरना देखा। दो तीन सरदार नहाते दिखे। बस फिर क्या मैं भी शुरू हो गया। जम कर नहाया । कपडे भी धोये और नजदीक ही एक छोटे से होटल पर दो रोटी भी खेंच ली और फिर दौड पडा बद्रीनाथ जी की तरफ। अभी तो कुछ ही किमी ही बढ पाया हुंगा कि बूंदाबांदी शुरू हो गया। मौसम बिगडने लगा। अंधेरा छा गया। जोशीमठ भी अभी अस्सी किमी दूर था। रुकने का बिल्कुल भी मन नहीं था। गाडी चलाने में मजा जो आ रहा था। चमोली गोपेश्वर में केदारनाथ जी वाले तीर्थ यात्री भी जुड गये। अब तो नजारा देखने लायक था। एक तो रोड शानदार और फिर ऊपर से सरदार युवकों की दौडती बुलेट्स से भी पंगा लेने था। कम कैसे पड जाऊं। हम भी जट्ट हैं भाई कोई आंडू पांडू थोडे ना हैं। टक्कर बराबर की होगी। अब तो रात बद्रीनाथ जी में ही होगी , सोच कर गाडी दौडा दी जोशीमठ की तरफ। जोशीमठ से आगे तो यात्रा क्या थी भाई , जन्नत है जन्नत । गजब का नजारा। आगे के ब्लाग में बताता हूं।

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