Saturday, December 15, 2018

उत्तराखंड चार धाम बाइक यात्रा : केदारनाथ दर्शन

3 मई को केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलते ही मोदी जी ने दर्शन किये थे और हम जैसे घुमक्कडों के लिये इस प्रकार के अवसर उकसाऊ होते हैं। बैसे भी कभी हरिद्वार ऋषिकेश से ऊपर नहीं जा पाया था। बाइक से पहाडों में दौडना चाहता था और साथ ही पहाडों में रहने वाले लोगों की जीवन शैली को जानना भी चाहता था। साथ ही यह भी जानने की उत्कंठा थी कि क्या वाकई उत्तराखंड देवभूमि रही होगी ?
शिव के 12 ज्योतिलिंगों में से 11वां ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर में ही है। 15-16 जून 2013 की रात मंदाकिनी नदी के जलप्रलय में केदारनाथ मंदिर के नीचे गौरीकुंड और रामबाड़ा तक सब कुछ तबाह हो गया था। चार साल में सरकार ने आईटीबीपी और सेना की सहायता से अपना पूरा दमखम लगाकर यात्रियों के लिए नया रास्ता तैयार किया है। 2013 के बाद केदारनाथ जाने के लिए दो पैदल रास्ते बना दिए गए हैं। पहला पैदल रास्ता त्रियुगीनारायण से सीधे केदारनाथ मंदिर तक है, जो 15 किलोमीटर लंबा है। वहीं दूसरा रास्ता चौमासी से रामबाड़ा के दूसरी ओर से होते हुए लिनचोली के पास केदारनाथ पैदल मार्ग से मिल जाता है। केदारनाथ रास्ते से गौरीकुंड-रामबाड़ा 2 से 3 किलोमीटर लंबे हैं। यानि पहले 16 किलोमीटर पैदल चलकर केदारनाथ पहुंचा जा सकता था, इसके साथ ही अब बाबा के धाम तक जाने के लिए यात्रियों को पहले के रास्ते के मुकाबले दो किलोमीटर पहले से चढ़ाई शुरू करनी होगी। 
सौनप्रयाग में एक रात इंतजार करने के बाद अगली सुवह जल्दी ही गौरीकुंड से पैदल यात्रा प्रारंभ की। गौरीकुंड में स्नान करने का प्रावधान है। इसके अलावा मार्ग के प्रारंभ में ही नदी किनारे सुलभ शौचालयों की व्यवस्था है और नदी के ठंडे जल में स्नान करने की किसी की हिम्मत हो तो कर सकता है। फिलहाल हम तो बिना स्नान ही आगे बढ लिये। ठंड बहुत थी। हिम्मत ही नहीं पडी। 
गौरीकुंड से जंगलचट्टी चार किलोमीटर है। उसके बाद रामबाड़ा जगह पड़ती है। फिर अगला पड़ाव पड़ता है लिनचौली। गौरीकुण्ड से यह जगह 11 किलोमीटर दूर है। एक बात गौर करने की है कि चढाई के लिये मानसिक ताकत की बहुत जरूरत है। चढते समय एक हाथ में पानी की बोतल हो और मन आसपास की खूबसूरती को निहारने, लोकल लोगों की जीवन शैली को जानने एवं बाहर से आये दर्शनार्थियों की विविधता को जानने में लगा हो तो रास्ता का पता ही नहीं चलता। हालांकि रास्ता कठिन है। क्यूं कि बहुत सी जगह रोड बहुत संकरा है और घोडे बाले धकियाते हुये आगे बढ जाते हैं, पैदल यात्री गिरने से बाल बाल बचते हैं। ऐसी यात्रा में बहुत आराम से आनंद लेते हुये चलना चाहिये। बहुत से लोग भागमभाग में जाते हैं दर्शन करते और फिर भाग लेते हैं। ऐसा लगता है कि आज ही मोक्ष प्राप्त कर लेंगे। मेरी समझ कहती है कि मंदिर में रखी वो मूरत भोले का प्रतीक मात्र है असली शिव तो मंदिर के बाहर है। ये सफेद पहाड , हरे भरे पेड और पहाडों से निकलती अनंत धारायें। ये है शिव । मैं तो इसी शिव को देखने निकलता हूं। मंदिर में तो मुझे धक्कामुक्की के अलावा कुछ मिलता ही नहीं।
गौरीकुंड से थोडा सा आगे निकलते ही खच्चर काउंटर है। हर खच्चर का रजिस्ट्रेशन होता है। फीस वहीं पर जमा की जाती है। पर मुझे तो पैदल ही चलना था इसलिये आगे बढ गया। करीब पांच सौ मीटर बाद गणेश मंदिर आता है। थोडी थोडी दूर पर रोड के सहारे चाय पानी नास्ता की दुकानें लगी हैं। रूक कर आप आराम कर सकते हैं पर मैं सलाह यही दुंगा कि पसीना सूखना नहीं चाहिये । यदि एक ही स्थान पर आप ज्यादा बैठ गये तो पैर दर्द करने लगेंगे जबकि चलते रहने से शरीर गर्म रहेगा। भले धीमे चलें पर चलते रहें । बीच बीच में पानी के घूंट मारते चलें। सांस फूले तो रुक जायें और नोर्मल होने पर फिर चल दें। थोडा आगे चलने पर भीम मंदिर मिलता है। इस पूरी यात्रा के दो मुख्य आकर्षण हैं एक तो खूबसूरत पहाड और मंदाकिनी नदी और दूसरे दूर दूर से आये विभिन्न संस्कृतियों भाषाओं वाले लोग। ऐसी यात्रा में मैं जानबूझ कर लोगों से बात करता हूं। बुजुर्गों का हाथ पकड उन्हें सहारा देता हूं। बच्चों से मस्ती करता हूं। हां बच्च्चों की मम्मियों से दूर ही रहता हूं क्यूं कि कोई भरोषा नहीं अभी मामा बोल कर गोद वाला बच्चा मेरे कंधे पर ही न बैठ जाये। गोद वाले बच्चे के मांता पिता की हालत तो देखने लायक होती है खासकर पापा की । बच्चे की मम्मी उसके पापा को खच्चर बना देती है । ऐसा लगता है जैसे औलाद पैदा करने का ब्याज समेत शुल्क बसूल रही हो। पानी मांग जाता है बेचारा पापा। बच्चे को लाद लाद कर इतना परेशान हो जाता है कि बगल चल रहे राहगीरों की तरफ देखता है मानो कह रहा हो थोडी देर के लिये इसके पापा बन जाओ यारों । पर राहगीर क्या कम चालू हैं ? ऐसे टाईम पर कौन बनना चाहेगा भला ?
और इस प्रकार हंसते मस्ती करते बतियाते उछलते कूदते जोश ही जोश में हम रामबाडा पहुंच जाते हैं जो इस यात्रा का मध्यबिंदु है।
रामबाडा में खाने पीने रुकने दवाई दारू सबकी व्यवस्था है। नहीं दारू की नहीं है सिर्फ दवा की है। जैसे जैसे ऊपर चढते हैं चाय दस से पन्द्रह और बीस की होती जाती है। पराठा चालीस पर पहूंच जाता है। आलू के पकौडे भी तीस चालीस तक पहुंच जाते हैं। बिस्कुट भी बीस का हो जाता है। पानी फ्री में है। खूब पीयो । नहाओ धोओ लुटाओ । भोले की कृपा से मंदाकिनी में खूब पानी है। हर दस कदम पर आपको रोड साफ करने वाले मिलेंगे। ये सफाई कर्मचारी हैं। मैं आपसे विनती करूंगा कि आप चाहे पांच रुपये ही दें पर इनको जरूर दें। आपके रुपये किसी की जान बचा सकते हैं और किसी को रोजगार भी दे सकते हैं। जान कैसे बचेगी ? वो ऐसे कि कुछ मूर्ख यात्री केले खाकर गंदगी रोड पर फेंक जाते हैं। खच्चर मलमूत्र की गंदगी से रोड को रपटना कर जाते हैं । अगर ये सफाई कर्मी नियमित झाडू न फेरें तो कभी भी हादसा हो सकता है और फिर सुलभ शौचालय में पानी भरना साफ करना नियमित रुप से ये लोग इसी आशा में करते रहते हैं। तो इनको जरूर दीजिये।
रामबाडा निकलते ही केदार पर्वत के दर्शन होते हैं। एकदम सफेद । हालांकि बद्रीनाथ जी से भी थोडी सी झलक देख ली थी पर यहां तो साक्षात खडा था सामने। इसी केदार के नाथ हैं शिव और शक्ति । शिव ही सत्य है और सत्य ही सुंदर है इसलिये मेरे सामने सबकुछ सुंदर ही सुंदर नजर आ रहा था।
यहां के बाद थकावट बढती जाती है। ऊंचाई के साथ साथ औक्सीजन भी कम होती जाती है। रोड भी संकरा होता जाता है। कुछ जगह रोड इतना संकरा होता है कि खच्चरों से टकराने का भय बना रहता है।ऐसे समय में खडे हो जाओ और इंतजार करो। ज्यादा जल्दी नहीं । निकल जा भाई तू पहले। तू ही मोक्ष प्राप्त कर ले । हम तो कीडे मकौडे का जन्म ले लेंगे । ये दुनियां बहुत खूबसूरत है फिर आ जायेंगे । तू जा पहले । भोले ने तेरे लिये भांग घोंटकर तैयार कर रखी है चल निकल। कुल मिलाकर उतरते चढते मंदिर के नजदीक आ चले । सेना के तंबू नजर आने लगते हैं। एक तंबू चार सौ रुपये में एक आदमी के लिये। खाना थाली साठ रुपये लेकिन अभी जाकर तुरंत लौटे कौन ? चार किमी बाकी है अभी तो । मंदिर पर ही रुकेंगे हम तो । सोच कर बढ लिये। दिन ढल चुका था। सूरज डूबने को था। ठंड और बढ आयी थी। हल्की हल्की बारिस ने मौसम और मजेदार बना दिया था। कपडे भीग चुके थे। फिर भी डंडे का सहारा लेते जय भोले जय भोले करते बढ चले हम तो। ग्लेशियर पार कर पहुंच गये खच्चर स्टैंड । सोचा मंदिर आ गया पर अभी दो किमी और था हालांकि समतल था। इतना चढ लिया तो ये क्या है। मेडीकल कैंप से दो टैबलेट लीं। भोले का मंदिर था वरना दो टैबलेट की जगह दो पैग लेता और सारी थकान दूर । खैर भोले दारु नहीं पीते इसलिये नाराज होने का खतरा था। मंदिर के नजदीक पहुंचे तो लाईन लगी पडी थी। हिंदुस्तान लाईन का बहुत तगडा लफडा है । मरने जाओ तो वहां भी लंबी लाईन मिलेगी ये तो भोले से मिलने का मौका था। खैर हमने लाईन में लगने की बजाय टैंट ढूंडा। धर्मशालायें फुल मिलीं। जो खाली थीं वो फैमिली वालों को दे रहे थे हम ठहरे फुकडंड । भगा दिया । जा बच्चों के साथ आना। बात भी कायदा की थी। बजरंगबली होते तो एक बार को चल भी जाती पर ये तो भोले थे घरवाली को साथ लेकर चलते हैं। खैर हमने तुरंत टैंट की जुगाड की । फौजी टैंट मिल गया। सैनिकों वाला। एकदम फ्री में । सामान पटका। हाथ मुंह पर पानी मारा और सीधे मंदिर । तभी पट बंद होने की घोषणा हुई और अफरातफरी मच गयी। उसी का फायदा उठाकर सीधे अंदर । भोले के यहां भी जुगाड चलती है। भीड इतनी कि पता ही नहीं चले कि अंदर कौनसे कौने में तो भोले बैठे हैं और कौनसे में पांडव । पूरा एक चक्कर लगा कर भोले के सामने पहुंच गये। अभी ठीक से देख भी न पाये कि पंडे ने धकिया दिया।आगे बढो । क्यूं बढें भाई ? भोले के क्या तेरे पापा के हैं ? आराम से मिलने तो दे ? सुखदुख की बात तो करने दे ? पर पंडा नहीं माना । बोला दाम हो तो ही दामोदर से बात आगे बढेगी वरना तू आगे बढ। बैसे भी हमें कौनसा अपना ब्याह कराना था हम तो आगे बढ गये। दाम देकर भोले से मिले तो क्या मिले । उसके बाद तो पूरे दो घंटे मंदिर के आस पास चक्कर लगाने और लोगों से बतियाने में बीते । हल्की हल्की ठंड । रोशनी में नहाता मंदिर परिसर। अपनी अपनी दुकान सजाये साधु संत और पंडे। भोले ने भी न जाने कितनों को रोजगार दे रखा है। खैर थके हारे हम तो टैंट में पसर गये। रात में जमकर बारिस हुई । खोपडी पर टपाटप होती रही पर हम न जगे। सुवह ही नींद खुली। सुवह ही एक पंडे से यारी हो गयी। नहा धोकर तैयार हुये । थकान भी गायब। पंडे की यारी काम आयी और फिर घुस गये अंदर जुगाड से। इस बार ढंग से बताया कर आये भोले से। मजा आ गया। अंदर जाकर हमने एक बात जरूर पूछी आपको ठंड काहे नहीं लगती हमारी तो एक ही रात में झाम बन गयी प्रभू ? वो भी जानते थे कि नादां बच्चा है जो पंडो के वहकावे में आकर मुझे भी मानव समझ बैठा है। पूरी कायनात का रचियेता तो सर्दी गर्मी बरसात का मालिक है तो ये उसका क्या बिगाड लेंगी। प्रकृति ही शिव है। यही सत्य है। तभी तो सुंदर है। 
जय केदारनाथ ।

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