Saturday, December 15, 2018

उत्तराखंड चार धाम बाइक यात्रा : देवभूमि

उत्तराखंड को देवभूमि क्यूं कहा जाता है ये मेरी समझ में आज तक नहीं आया। पुराणों में जिन देवताओं का वर्णन किया जाता है, उनका यहां नामोनिशान तक नहीं मिलता। सुरा सुंदरी के साथ खेलता इन्द्र और उसकी अप्सरायें भी नहीं मिलीं। गणेश कार्तिकेय भी नहीं मिले। ब्रम्हा और विष्णु भी नहीं मिले। देव परिवार का एक भी सदस्य नहीं मिला सिवाय शिव के। शिव तो आदि देव हैं, पशुपतिनाथ हैं, पहाडों जंगलों नदियों और प्रकृति में निवास करने वाले हैं, उनको तो मिलना ही था। पहाडों के लोग या तो शिवपूजक हैं या फिर अपने अपने निजी लोक देवों को मानने वाले हैं। 
अभी तक के लेखबद्ध इतिहास में सबसे पहला धर्म जिसने मोनोथिज़्म को अपनाया वो तिब्ब्त के बॉन लोगो का है , जिसमे शिव को सर्वशक्तिमान देवता बतलाया है । बॉन लोग कई देवताओ को पूजते थे परंतु शिव उनमे सबसे महान थे । कालांतर में बुद्ध धर्म के प्रादुर्भाव और उसको राजकीय प्रश्रय मिलने से बॉन धर्म सिमट गया और आज की तारीख में तिब्ब्त में उसके 264 मठ है ।
जनजातीय धर्म में बहुदेववाद एक साधारण लक्षण हुआ करता था और एक कबीला किसी एक देवता की उपासना करने के बाद किसी दुसरे कबीले के देवता का अनादर नहीं किया करता था । सामान्यतः ये हुआ करता था की जब एक कबीला दुसरे कबीले को विजित कर लेता था तो पराजित कबीले के देवी देवताओ को भी आत्मसात कर लेता था । ऐसी परिस्थिति में में युद्ध के पीछे धर्म प्रेरणा नहीं हुआ करता था ।
आधुनिक नृविज्ञान और मानवविज्ञानियो ने यह धारणा प्रस्तुत की है की है की कालान्तर में जब कबीले राज्यो का रूप लेने लगे और उनके क्षेत्राधिकार के अंदर बहुत सारे मिश्रित विश्वासो के लोग रहने लगे तो एकेश्वरवाद धार्मिक जरूरत से ज्यादा एक राजनितिक जरूरत हो गया । इसके फलस्वरूप राजाओ या अधिपतियों को धार्मिक वैधता के लिए धर्म के ठेकेदारो की जरूरत पड़ने लगी और जिस मत के सबसे ज्यादा या सबसे ताकतवर मतानुयायी होते थे  उस मत के लोग शासक को राजनीतिक वैधता प्रदान कर देते थे । यही से धर्मो में प्रतिस्पर्धा का भाव जागृत हुआ और मजहबो की ब्रांडिंग उसको ज्यादा से ज्यादा दैवीय आवरण दे कर की जाने लगी जिसकी परिणीति एकाधिकारवादी एकेश्वरवाद में हुई जिसने इस बात पर बल दिया की उसके देवता ने खुद कहलवाया है की "देवता एक ही है और वो सर्वश्रेष्ठ है , उसके अलावा और कोई देवता नहीं है "
ऐसा नहीं है की एकेश्वरवाद के विरोधी अवधारणाओं ने संघर्ष नहीं किया , मिश्रा , यूनान , रोम , नॉर्स और भारत में हमेशा इस सर्वाधिकारवादी एकेश्वरवाद के विरुद्ध संघर्ष हुआ परंतु सिर्फ भारत में ही इस अधिनायकवादी एकेश्वरवाद को चुनौती मिली जो आज भी जारी है।


मेरे लिये आज भी ये रहस्य का बिंदु बना हुआ है कि पुराणों में वर्णित देवी देवता असल में रहते कहां थे ? क्या वो किसी अन्य देश की माइथौलौजी से उठाये गये या फिर पूरी तरह काल्पनिक ? मेरे लिये ये भी एक कौतुहल का प्रश्न है कि शिव और शंकर एक ही हैं ? शिव जी भी क्या कोई मानव रुप में थे या फिर वह भी त्रिगुण त्रिदेव एक कल्पना ही है ? शिव यदि कल्पना हैं तो फिर सैंधव सभ्यता की खुदाई में मिली वो योगी की मूर्ति किसकी है ? वो पशुपतिनाथ कौन है ? रुद्र कौन है ? त्रिदेव की कल्पना तो पहली सदी की है। वह योगी वह रुद्र तो उससे तीन हजार पहले के हैं। कुछ तो है जो हमसे छूट रहा है । सत्य की खोज जारी है। 

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