Saturday, July 8, 2017

आसाम मेघालय यात्रा : पूर्व का स्कोटलेंड ; शिलांग।।



पिछले लेख में ही बता चुका हूं कि गुवाहाटी दिसपुर से बाहर निकलते ही जोराबाट के नजदीक अंतर्राष्ट्रीय राजमार्ग छूट जाता है और हम शिलांग के लिये खूबसूरत फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग पर चल देते हैं। मेघालय की हरी भरी वादियों में सांप की तरह बल खाते इस राजमार्ग पर बाइक से घुमक्कडी किसी जन्नत दर्शन से कम नहीं था हमारे लिये। शानदार रोड । इतना खूबसूरत कि हर मोड पर रुकने का मन कर रहा था। और यही कारण था कि शिलांग शहर से बीस किमी पहले सुंदर झील उमियाम तक पहुंचते पहुंचते हमें दिन के बारह बज गये थे। उमियाम झील शिलांग शहर से गुजरती हुयी नदी उमसिरपी एवं एलीफेंटा फाल्स से आती हुई नदी के संगम जल का ठहराव है जो काफी दूर दूर तक फैला हुआ है। यह एक जलक्रीड़ा परिसर है, जो उमियाम जल विद्युत परियोजना की वजह से बनी झील पर स्थित है। यहां वाटर स्पोर्ट्स का आनन्द लिया जा सकता है। इस विशाल जल भंडार को एक वाटर स्पोर्ट्स कांप्लेक्स व पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। यहां पर सुंदर लेक और नेहरू पार्क है। बोटिंग की भी सुविधा है। यहां पर तैरता हुआ एक रेस्तरां भी है। यहां पर वाटर स्पोर्टस जैसे रोइंग बोट, पैडल बोट, पानी का स्कूटर, स्पीड बोट जैसी विशेष सुविधाएं पर्यटकों का मन लुभाती हैं। जैसा कि पिछले लेख में बता चुका हूं कि इस शांत झील पर हम आधे घंटे रुके। हमारे अलावा चार पांच लोग और थे बस। हमें आज ही शिलांग घूमते हुये चेरापूंजी पहुंचना था अत: शिलांग की तरफ रवाना हो लिये। आधे घंटे बाद हम एक ऐसे तिराहे पर खडे थे जहां से राजमार्ग दो भागों में विभाजित हो रहा था। एक तो नागालैंड की तरफ जा रहा था तो दूसरा सीधे चेरापूंजी मनसिवराम डाबकी की तरफ। यहीं से शिलांग शहर की शुरुआत हो जाती है। बारह बजे थे। भूख जोरों से लगी थी तभी ट्रांसपोर्ट स्टैंड पर एक छोटी सा ढाबा दिखाई दिया जो उत्तर भारत के ट्रक ड्राइवर्स के लिये तवे की रोटी और दाल सब्जी बना रहा था। बस फिर क्या था। मन मांगी मुराद मिल गयी हमें। टूट पडे तुरंत। चार दिन से चावल खा खाकर पक गये थे। सूखी रोटी भी मजेदार लगी। खाना खाकर शहर के प्रसिद्ध पुलिस बाजार की तरफ निकल लिये जहां की वार्डस झील मुझे बुला रही थी। शॉपिंग करने के लिए पुलिस बाजार
शिलांग का मुख्य शहरी आकर्षण है। पुलिस बाजार शिलांग का मेन मार्केट है। लकड़ी के सामान और सर्दी के कपड़ों की शॉपिंग यहां अच्छी हो सकती है। साथ ही खाने-पीने के लिए भी आपको यहां अच्छे विकल्प मिल जाते हैं। शाम के समय यहां की रंगीन चहल पहल देखने लायक होती है। प्रेमी जोडे बेखौफ हाथों में हाथ डाले घूमते नजर आयेंगे। नजदीक ही है
वार्डस झील जो शिलांग की एक और चर्चित जगह है। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान विलियम वार्ड असम के मुख्य आयुक्त हुआ करते थे। उसी समय इस झील का निर्माण किया गया, जिससे इसका नाम वार्डस झील पड़ा। घोड़े की नाल के आकार की यह झील कभी राजभवन का हिस्सा हुआ करती थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस झील का निर्माण एक खासी कैदी द्वारा किया गया था, जिन्होंने काम के लिए जेल से बाहर निकालने का अनुरोध किया था। ऐसा कहा जाता है कि उनके शुरुआती काम ने प्रशासन को इस झील के निर्माण के लिए प्रेरित किया। स्थानीय लोग इस झील को ‘नन पोलोक’ या ‘पोलोक झील’ के नाम से भी पुकारते हैं। यहां आप बोटिंग कर सकते हैं। साथ ही झील में मौजूद मछलियों को दाने डालने का भी मजा ले सकते हैं।
शहर में आप पोलिस बाजार के अलावा बड़ा बाजार भी घूम सकते हैं और यहीं खरीदारी करना भी उपयुक्त होगा। बड़ा बाजार में आपको शुद्ध शहद, हाथ के बुने शाल, तीर कमान, कुछ स्थानीय मसाले, बांस से बनी वस्तुएं आदि मिल जाएंगे। शिलांग में ही स्थित स्वीट फॉल इस शहर का सबसे खूबसूरत वॉटरफॉल माना जाता है लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि ये वॉटरफॉल हॉन्टेड है। मेघालय में सबसे ज्यादा खुदकुशी और मौत की घटनाएं इसी वॉटरफॉल में हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर आप विषम संख्या के लोगों के साथ इस वॉटरफॉल को देखने जाएंगे तो सम संख्या में ही वहां से लौटकर आएंगे। शिलांग निसंदेह बहुत खूबसूरत शहर है। प्रकृति की मेहरबानी तो इस पर है ही, भवन निर्माण भी बहुत खूबसूरत है। यह अब मेघालय की राजधानी है। एक समय था जब पूर्वोत्तर के सातों राज्यों की राजधानी शिलांग हुआ करती थी। तब इसे नेफा प्रांत के नाम से जाना जाता था। पर 1972 में नेफा सात राज्यों में विभाजित हो गया और शिलांग सिर्फ मेघालय की राजधानी बना। पूर्व के स्काटलैंड कहे जाने बाले इस शहर में और भी बहुत सारी जगह हैं जहां समय की उपलब्धता होने पर घूमने जाया जा सकता है लेकिन हमें तो आज ही चेरापूंजी पहुंचना था अत: तुरंत बैक गियर मारा और पुन: चल पडे हाईवे की तरफ। इसी हाईवे पर दस किमी चल कर एक ऊंची पहाडी पर शिलांग व्यू पौईंट है जहां से हम पूरे शिलांग शहर और आसपास की पहाडियों को निहार सकते हैं। इसके लिये हमें मुख्य हाईवे से पांच किमी अदंर चलना पडता है। लेकिन यह रास्ता इतना मजेदार है कि आपका यहां आने का बार बार मन करेगा। हाईवे छोडते ही घने पेडों से घिरा हुआ जंगल और पहाड की चडाई आ जाती है। थोडा ऊपर चडने के बाद खुली जगह आती है तो पहाडी ढलानों पर खेतों में काम करते हुये किसान दिखाई पडते हैं। यहां से मेघालय चाय के बागान प्रारंभ हो जाते हैं जो सोहरा तक भरपूर मात्रा में है। आखिरकार हम व्यू पौईंट के करीब पहुंच ही गये। यह पूरा क्षेत्र वायु सेना के कब्जे में है। मुख्य गेट पर ही मुझसे मेरा आईडी कार्ड मांग लिया गया और साथ ही ये भी हिदायत दे दी गयी कि सीधे व्यू पौईंट ही जाना । इधर उधर झांकने की या भटकने की कोशिष की तो धर लिये जाओगे। हमें जरूरत भी क्या पडी थी सैनिक क्षेत्र में घुसने की इसलिये सीधे पहुंच गये सबसे ऊंची चोटी व्यू पौईंट पर जहां पहले से ही मेला लगा हुआ था। हालांकि दो तीन ही दुकान हैं। एक फोटोग्राफर है जो लोकल खासी भेषभूषा में फोटो लेता है तो दूसरा रैस्ट्रा और तीसरा बांस से बनी कलाकृतियां बेचने बाली सौप। बाकी तो लोगों का मेला खूब रहता है। 
1960 मीटर ऊंची यह चोटी एक पर्यटन स्थल है और हर साल बसंत के समय यहाँ के निवासी शिलांग के देवता की पूजा करते हैं। शाम के समय शहर की रोशनी यहां से देखने पर ऐसी लगता है मानो जमीन पर ही ‘तारा मंडल’ आ गया है। साफ मौसम में इस चोटी से हिमालय की श्रंखलाएं और बांग्लादेश के मैदानी इलाके भी साफ दिखाई देते हैं। ऊंची सी छतरी नुमा रैलिगं में खडे होकर नीचे शिलांग शहर और अपने अगल बगल तैरते बादलों को देखकर आखिर किसका मन प्रशन्न न होगा। लगा मानो रामानंद सागर के धारावाहिक में बादलों के ऊपर उडते शंकर भगवान अपनी बनायी दुनियां का आखों देखा हाल अपनी अर्धागंनी को सुना रहे हैं। मन ठहर सा गया इस जगह पर। इतनी सुंदर हरी भरी पहाडियां और उनके ऊपर तैरते रुई जैसे सफेद बाद और इन सबसे ऊपर हम भोले पार्वती के आधुनिक मौडल। मन तो नहीं कर रहा था वहां से निकलने का पर अभी हमें पचास किमी और चलना था। रास्ता इतना खूबसूरत था कि हर एक किमी बाद गाडी की ब्रेक लग जाती। शिलांग पीक से बापस मुख्य गेट की तरफ चलने लगा तो गौर किया एअरफोर्स बालों ने रोड पर जगह स्पीकर लगा रखे हैं जिन पर सत्तर के दशक के रफी साहब के तराने छेड रखे थे। हाय हाय कसम से आज तो ये मार ही डालेंगे। इतनी खूबसूरत वादियां और इतने खूबसूरत तराने सुनकर बुढ्ढे बुढिया भी जवां होने लगे। आज पहली वार लग रहा था कि हनीमून का मतलब क्या होता है । हमारी शादी के समय तो घर में रिश्तेदारों की इतनी भीड होती थी कि हनीमून मनाने के लिये काका काकी की छत तलाशनी पडती थी। खैर बुढापे में ही सही। जीवन में रोमांस नहीं तो कुछ नहीं। बाहर आकर अपना आईडी कार्ड बापस लिया और चल पडे इसी राजमार्ग पर स्थित एलीफेंटा फाल्स की तरफ। समय की कमी की बजह से भले ही हम शिलांग शहर को पूरा न घूम सके पर अपने पाठक मित्रों की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा कि शिलांग में पर्यटकों के लिए अच्छे होटल, खेल सुविधाएं, मछली पकड़ने, पहाड़ों पर पैदल चलने व हाईकिंग की भी सुविधाएं हैं। शिलांग शहर में और भी कई दर्शनीय स्थान हैं। वाडर्स झील का पानी इतना साफ है कि अंदर से तैरती मछलियां नजर आती हैं। इससे साथ ही जुड़ा बोटैनिकल गार्डन भी अवश्य देखें। यहां पर रंगबिरंगी चिडि़यों मन को मोह लेती हैं।लेडी हैदरी पार्क व मिनी जूयह पार्क भी शिलांग शहर में ही है। इस पार्क का नाम अकबर हैदरी की पत्नी के नाम पर रखा गया है। बच्चों के लिए यहां पर एक मिनी जू भी है साथ ही एक खूबसूरत झरना और स्वीमिंग पूल भी। साथ ही एक रेस्तरां भी है जहां पर्यटकों के लिए शाम को कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शिलांग में पोलो ग्राउंड अपनी एक अलग ही विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर तीर का खेल खेला जाता है। इस खेल के जरिये खासी जनजाति के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े प्रतीत होते हैं। इस खेल के लिए लाटरी की तरह टिकट खरीदे जाते हैं और खासी आरचरी एसोसिएशन के तीरंदाज एक बांस के टार्गेट पर चार मिनट में 1500 तीर छोड़ते हैं जिसके तीर निशाने पर लगते हैं वे गिने जाते हैं और वही नंबर सट्टेबाजी में खोला जाता है। इसका जन्म प्राचीन जनजातीय खेलों से हुआ हैं।शिलांग गोल्फ कोर्स भी शिलांग शहर में है और भारत का तीसरा सबसे बड़ा और सबसे पुराना 18 होल का गोल्फ कोर्स है। इसको पूर्व का ‘ग्लैनईगल’ कहा जाता है।मेघालय स्टेट म्यूजियम में मेघालय राज्य के लोगों के सांस्कृतिक जीवन और मानवजातीय अध्ययन से जुड़ी वस्तुएं रखी हुई है। इस संग्रहालय के ठीक सामने सबसे पुराना सेंट कैथोलिक चर्च भी है। स्वीट फाल शिलांग से आठ किलोमीटर दूर हैप्पी वैली के पास यह स्थित है। इसको देख कर ऐसा आभास होता है कि पेंसिल के आकार के एक मोटे वाटर पाईप से 200 फुट नीचे पानी गिर रहा है। यह दिनभर की आउटिंग और पिकनिक के लिए अच्छी जगह है।














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5 comments:

  1. साउथ के कुर्ग को भी स्कॉटलैंड कहा जाता है

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  2. शिलांग बहुत जबरदस्त जगह है..बढ़िया पोस्ट सर

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