अगले दिन सुवह जल्दी ही स्कूटी लेकर निकल पडे मेघालय की ओर । पलटन बाजार से मेघालय की तरफ एक रोड जाता है जो दिसपुर को पार करते ही सीधे अंतराष्ट्रीय राजमार्ग से मिल जाता है।इसी राजमार्ग पर थोडा ही आगे चलते हैं एक रोड शिलागं की तरफ मुड जाता है तो मुख्य राजमार्ग म्यांमार बौर्डर की तरफ चला जाता है।
गुवाहाटी से शिलांग 95 किमी एवं चेरापूंजी करीब 160 किमी दूर है। पलटन बाजार में सुवह चाय पी रहा था पास ही खडे टैक्सी चालकों ने मुझे सावधान किया कि रास्ते बहुत ऊबड खाबड हैं। वर्षा से रोड बहुत रपट भरी हो जाती है। हमारा तो दिल कांप जाता है और तुम लेडीज के साथ स्कूटी पर जा रहे हो ? पर उसे क्या पता कि ये घुमक्कड कोई आम पर्यटक नहीं बल्कि जुनूनी घुमक्कड है। पूरे हिमालय को बाइक से नाप चुका है। बहुत खतरनाक खतरनाक रोड देखे हैं तो ये मेघालय क्या चीज है ? मैंने उसकी चेतावनी से सावधान होने का सबक जरूर लिया और धीमी गति से मेघालय की तरफ रवाना हो लिया। गुवाहाटी शहर निकलते ही मेघालय शुरू हो जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि मेघ + आलय बोले तो बादलों का घर , मेघालय लगते ही हरे भरे पहाड और गहरी घाटियां शुरु हो जाती हैं। मेघालय का हाइवे भी बहुत खूबसूरत है। फोरलेन है। सांप की तरह बलखाता हुआ हरी भरी वादियों में खो जाता है। मेघालय में कोई मंदिर चर्च या किले महल देखने नहीं जा रहा था मैं। मुझे पता था कि यहां सिर्फ प्रकृति की खूबसूरती मिलेगी और कुछ नहीं। और कुदरत के इस चमत्कार को आत्मसात करने के लिये मुझे दो पहिया वाहन की बहुत जरूरत थी। ये तीन किमी की बाइकिगं ही मेरे लिये मेघालय की सबसे बडी यात्रा थी। पूर्वोत्तर राज्यों की यात्रा पर निकलने से पहले ही अपने फेसबुक मित्र श्री वीरेन्द्र परमार जी के लेख पढ लिये थे जो बहुत सालों तक पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति पर अनुसंधान करते रहे हैं। उनके अनुसार मेघालय एक छोटा पर्वतीय प्रदेश है । यहां की अधिकांश भूमि पर्वत-घाटियों और वनों से आच्छादित है । यहां खासी, जयंतिया, गारो तीन प्रमुख आदिवासी समूह रहते हैं । खासी, जयंतिया और गारो प्रदेश की प्रमुख भाषाएं हैं । अंग्रेजी राज्य की राजभाषा है । प्रदेश की वाचिक परंपरा में नृत्य , गीत, मिथक, कहावत आदि की समृद्ध विरासत है । लाहो नृत्य मेघालय की प्रमुख नृत्य शैली है I यह त्योहार नृत्य है I इसमें महिला – पुरुष सभी शामिल होते हैं I नर्तकगण अपने रंग – बिरंगे पारंपरिक परिधानों एवं आभूषणों से सुसज्जित हो पूरी मस्ती और उमंग के साथ नृत्य करते हैं I खासी समुदाय के लिए नृत्य – गीत जीवन का अभिन्न अंग है I शाद नोंगकरेम इस समुदाय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नृत्य है जो पांच दिनों तक चलता है I इस समुदाय द्वारा वसंत ऋतु के समय एक नृत्योत्सव आयोजित किया जाता है जिसे साद सुकमिनसियम कहते हैं I यह धार्मिक से अधिक सामुदायिक उत्सव है I किसी तालाब, झरना अथवा अन्य जलस्रोतों के निकट यह आनंदोत्सव आयोजित किया जाता है I तीन दिनों तक चलनेवाले इस उत्सव में रंग – बिरंगे पारंपरिक परिधानों एवं आभूषणों से सुसज्जित हो पूरी मस्ती और उमंग के साथ नृत्य प्रस्तुत किया जाता है I महिलाए मुकुट पहनकर नृत्य करती हैं I अविवाहित लड़कियाँ नर्तक दल के बीच में धीरे – धीरे पद संचालन करते हुए नृत्य करती हैं I खासी समुदाय के पुरुषों द्वारा का शाद लिम्मो नृत्य प्रस्तुत किया जाता है I इस नृत्य में नर्तकगण अपने हाथों में वृक्ष की डाली लेकर जीवंतता और तन्मयता के साथ नृत्य करते हैं I मेघालय के अन्य नृत्य हैं – दोरे राता, पोमेलो नृत्य आदि I
मेघालय विश्व का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान माना जाता है तो रेनकोट बहुत जरूरी था। मेरे पास तो हमेशा ही रहता है पर राजो पहली बार निकली थी। सुवह पलटन बाजार भी खुला न था। गुवाहाटी दिसपुर पार करते समय भी मेरी नजर दुकानों पर रही पर कोई रेनकोट न मिला। आखिरकार हमने एक तिरपाल लेकर रख ली। संयोग कुछ ऐसा हुआ कि शिलागं तक वर्षा नहीं हुई।satyapalchahar.blogspot.in
चूंकि सुवह सुवह निकले थे तो रोड पर स्कूल जाते बच्चे देखना स्वाभाविक ही था। रंग बिरंगे स्कूल ड्रेसेस में स्कूल जाते प्यारे प्यारे बच्चे। दिल को खुश कर देना वाला दृश्य । एक जमाना था इन पहाडों के बच्चे आदमी औरत हाथ में भाला लिये हू लाला हू लाला चिल्लाते पहाडों में शिकार करते फिरते होंगे और अब टाई पहन कर स्कूल होने जा रहे हैं। दिल खुश हो गया देखकर। मां अपने नन्हे नन्हे बाल गोपालों का हाथ थामे आगे बढ रही है और बाल गोपाल उछलते कूदते मस्ती करते हंसते मुस्कुराते उछलते हुये बस की तरफ जा रहे हैं। बहुत ही मनमोहक दृश्य था मेरे लिये। यही सब तो देखने आया था मैं। हरी भरी वादियों में मेरी स्कूटी रेंगते रेंगते कब शिलांग के करीब आ पहुंची, पता ही न चला। शिलांग से बीस किमी पहले ही एक उमियाम नाम से बहुत बडी झील आती है रोड किनारे ही। बहुत ही शांत एकांत एवं मनमोहक झील। जो भी जाये ठहर जाये।दस रुपये एंन्ट्री फीस है। झील के किनारे ही खूबसूरत गार्डन बना है और रिसोर्ट भी हैं। वोटिगं बंद पडी थी उस समय। हम इतने धीमे धीमे चल रहे थे कि सौ किमी पार करने में हमें सात घंटे लग गये। शिलांग में घुसते समय दोपहर के बारह बजे थे। भूख बहुत जोरों से लगी थी। संयोगवश एक ट्रांसपोर्ट कंपनी पर रास्ता पूछने के लिये रुका तो देखा सामने ही एक छोटा सा भोजनालय है जिस पर तवे की रोटी और दाल मिल रही है। शिलांग में इस तरह का सात्विक भोजन बिना प्रयास के मिल जाय बहुत बडी बात थी। तुरंत दो तीन रोटी फटकारी और निकल पडे मेघालय की राजधानी शिलांग शहर की ओर जबकि चेरापूंजी के लिये यही रोड सीधे जा रहा था शहर में घुसने की जरूरत न थी पर हमें तो शिलांग भी घूमना था।
शानदार
ReplyDeleteबढ़िया जी
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण
ReplyDeleteबहुत शानदार संस्मरण
ReplyDelete