Thursday, July 20, 2017

आसाम मेघालय यात्रा : गुवाहाटी से जोरहाट माजुली द्वीप।

चेरापूंजी से लौटते ही गुवाहाटी स्टेशन से जोरहाट की ट्रैन पकड ली। रात नौ बजे चलकर सुवह तडके ही पहुंचा देती है। माजुली द्वीप के लिये यहीं से फैरी पकडनी होती है लेकिन हम पहले गोलाघाट के नजदीक फरकटियर स्टेशन उतर गये क्यूं कि वहां मेरे मित्र कपिल चौधरी मेरा इंतजार कर रहे थे। झारखंड के रहने बाले घुमक्कड मित्र कपिल रेलवे कर्मचारी हैं यहीं पर। दो तीन घंटे आराम करने के बाद हम तीनों लोग जोरहाट के लिये निकल पडे। दो घंटे में ही पहुंचा दिया। जोरहाट में ही खाना खाया हम लोगों ने। सुभाष चौक से घाट के लिये मैजिक चलती है जो पच्चीस रुपये प्रति सवारी लेती है। फरकटियर से जोरहाट और ब्रम्हपुत्र घाट तक रास्ता ही अपने आप में एक आकर्षण है। चाय के बागानों और हरे भरे खेतों से ट्रैन गुजरती है तो एक अलग ही अहसास कराती है। और इसी प्रकार घाट तक का आधे घंटे का सफर भी असम को जानने का बेहतर मौका उपलब्ध कराता है। घनी हरियाली और शांतप्रिय माहौल के बीच आगे बढना दिल को सुकून पहुंचाता है।सडक के दोनों ओर बांस के घने पेड और बांस की बनी हुई मकानों की बाहरी बाउंड्री वाल। सडक के किनारे बांस को काटपीट कर आकार देते किसान । सब कुछ मंत्र मुग्ध करने बाला। भारत की संस्कृति को ठीक से जानना है तो पैदल या दोपहिया वाहन से निकलना ही ठीक होता है। गुवाहाटी से लेकर अब तक मैं अपनी बाइक को बहुत मिस कर रहा था। हालांकि माजुली पहुंचकर मुझे बाइक मिल जानी थी इसलिये चिंता नहीं थी फिर भी जाने क्यूं ऐसा लगता है कि बंद ट्रेन में बहुत कुछ छूट जाता है हमसे।
सबसे ज्यादा आनंद तो निमाई घाट पहुंचकर आया जहां सरकारी और निजी फेरी उपलब्ध हैं , माजुली पहुंचाने के लिये। माजुली द्वीप अब जिला घोषित किया जा चुका है। घाट पर हम पहुंचे तो फैरी लगी हुई थी। पन्द्रह रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब कपिल जी तीन टिकट ले आये। हालांकि फैरी में अदंर बैठने की बहुत अच्छी व्यवस्था है लेकिन हम बैठने वालों में से कहां हैं , चढ गये छत के ऊपर जहां फैरी चालक बैठा रहता है। कुछ दैनिक यात्री भी चढ गये। उन्हौने तो तुरंत जाकर अपने ताश पत्ते निकाले और शुरू हो गये तीन पत्ती फ्लश खेलने। हमारा मन तो विशाल ब्रम्हपुत्र की गहराईयों में डूबा हुआ था। फैरी में हर रोज सैकडों लोग इधर से उधर आवागमन करते हैं। फैरी से न केवल यात्रियों वरन बाइक्स और फोर व्हीलर्स भी इधर से उधर ले जाया जाता है। थोडी ही देर में फैरी के बडे बडे रस्से खोल दिये गये और फैरी चल पडी ब्रम्हपुत्र की धारा की सीध में। फैरी या नाव हमेशा लंबाई में चलती है। धारा को धीरे धीरे काटते हुये दूसरी ओर पहुंचाती है। इस नद की चौडाई ही इतनी है कि फैरी को पहुंचने में दो घंटे लग गये लेकिन ये दो घंटे का सफर मेरे लिये यादगार बन गया। ब्रम्हपुत्र में ढलते सूरज को देखना बहुत ही अच्छा लगता है। माजुली आजकल चिंता का विषय बना हुआ है सरकार के लिये। लगातार घटता ही जा रहा है। ब्रम्हपुत्र नदी का मिट्टी कटाव तेजी से बढ रहा है। असम में भूकटाव हर नदी के तट पर होने वाली एक प्राकृतिक घटना है क्योंकि यहाँ की मिट्टी रेतीली है और इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियाँ अभी भी विकास के क्रम में हैं। विनाशकारी भूकंप के बाद से द्वीप के दक्षिणी किनारे पर लगातार कटाव से कई गांवों और सत्र नदी की गाल में समा चुके हैं। भूकटाव ने माजुली द्वीप के जनसांख्यिकीय स्वरुप, पारिस्थितिकी, पर्यावरण, सामाजिक संरचना और आर्थिक विकास को खासा प्रभावित किया है ।
दो घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद हम पहुंचे हैं निमाई घाट जहां से हमें एक जीप मिल जाती है जो हमें बीस रुपये में कमलाबाडी बाजार तक छोड देती है लेकिन जीप ड्राईवर अजय जो देखने में बिल्कुल अरुणाचल प्रदेश या मणिपुरी पहाडी प्रदेश का लग रहा था, कपिल से जल्दी घुलमिल गया और उसी ने हमें बंबू हट कौटेज के बारे में बताया। हालांकि कमलाबाडी बाजार में मात्र पांच सौ रूपये में रुम मिल जाता है लेकिन यह एकदम हरे भरे माहौल में शहर से दूर धान के खेतों के बीच शांतिप्रिय जगह थी तो हजार रुपये प्रति कौटेज हमें ज्यादा न लगे और फिर इसके पास बाइक्स भी थी जिससे हम शहर घूम सकते थे। एक दिन के पांच सौ रुपये पैट्रोल अपना। शाम हो चली थी भूख भी लग आयी थी। पहले तो नहा धोकर हरारत दूर की। खाना चाहे तो आप खुद भी बना सकते हैं और चाहें तो आप और्डर कर सकते हैं। एक सौ पचास रूपये प्रति थाली। हालांकि कमलाबाडी बाजार की अपेक्षा ये कौटेज थोडी मंहगी है लेकिन हम इस समय शहर से दो किमी दूर थे। दूर दूर तक सिर्फ खेत ही खेत। रात को मच्छरों से बचने को मच्छरदानी और कौईल दोनों का ही प्रयोग करना पडा लेकिन नींद बहुत गहरी आयी। अगली सुवह हमें जल्दी ही माजुली दर्शन के लिये निकलना था। श्री वीरेन्द्र परमार जी की दी हुई जानकारी के अनुसार उत्तर – पूर्वी भारत के युगांतरकारी महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव की पुण्यभूमि के रूप में ख्यात माजुली द्वीप विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है I यह असम में जोरहाट के निकट ब्रह्मपुत्र नदी में अवस्थित है I इस द्वीप पर श्रीमंत शंकरदेव का स्पष्ट प्रभाव महसूस किया जा सकता है I इस द्वीप का निर्माण ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों मुख्यतः लोहित द्वारा धारा परिवर्तित करने के कारण हुआ है I समृद्ध विरासत, पर्यावरण अनुकूल पर्यटन और आध्यात्मिकता के कारण माजुली देशी – विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है I यह द्वीप पक्षियों के लिए स्वर्ग है I कार्तिक पूर्णिमा के समय आयोजित होनेवाली रासलीला के अवसर पर यहाँ असमिया संस्कृति जीवंत हो उठती है I इस अवसर पर पारंपरिक नृत्य, गीत और नाटिका की प्रस्तुति पर्यटकों का मन मोह लेती है I यहाँ की संस्कृति और नृत्य – गीत पर आधुनिकता का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है I वैसे तो बरसात को छोड़कर कभी भी इस द्वीप का भ्रमण किया जा सकता है लेकिन जिन्हें असमिया संस्कृति की झलक देखनी हो उन्हें रासलीला के समय अवश्य आना चाहिए I अतीत में माजुली का कुल क्षेत्रफल 1,250 वर्ग किलोमीटर था लेकिन भूक्षरण के कारण इसका क्षेत्र सिमटकर अब मात्र 422 वर्ग किलोमीटर रह गया है I यहाँ की अधिकांश जनसंख्या आदिवासी है I वर्तमान में यहाँ लगभग 22 वैष्णव सत्र हैं जिनमे औनीअति सत्र, दक्षिणपथ सत्र, गरमुर सत्र और कालीबारी सत्र महत्वपूर्ण हैं I यहाँ का सामग्री सत्र मुखौटा निर्माण के लिए प्रख्यात है I इस सत्र में मुखौटा निर्माण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है I पंद्रहवीं शताब्दी में इसी द्वीप पर वैष्णव संत संकरदेव एवं उनके शिष्य माधवदेव का पहली बार मिलन हुआ था I सर्वप्रथम श्रीमंत शंकरदेव ने सत्रों की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य वैष्णव धर्म का प्रसार करना और असमिया संस्कृति को अक्षुण्ण रखना था I सत्र को आसान भाषा में वैष्णव मठ कहा जा सकता है I ये मठ सामाजिक गतिविधियों के प्रमुख केंद्र हैं I माजुली विगत पांच सौ वर्षों से असमिया सभ्यता और संस्कृति की राजधानी बना हुआ है I इस द्वीप पर मुख्यतः तीन जनजातीय समुदाय के लोग निवास करते हैं – मिशिंग, देवरी और सोनोवाल कछारी I द्वीप पर 144 गाँव हैं और कुल जनसंख्या लगभग डेढ़ लाख है I यहाँ चावल की एक सौ से अधिक किस्मे उत्पादित की जाती हैं और इनके उत्पादन के लिए किसी प्रकार के कीटनाशक और रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है I यहाँ शहर का कोलाहल नहीं, प्रदूषण नहीं, शांत वातावरण और सरल जीवन है, आध्यात्मिक शांति हैI






















 satyapalchahar.blogspot.in





3 comments:

  1. क्या बात है सर बहुत ही अच्छी और उपयोगी जानकारी माजुली के लिए...अब मुझे माजुली के बारे में जाते वक़्त सर्च नहीं करना पड़ेगा बढ़िया पोस्ट

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन, मैं पिछले साल अक्तूबर में उधर गया था।

    ReplyDelete
  3. कृपया मेरा ब्लाग देखें - www.daanapaani.blogspot.in

    ReplyDelete