Monday, July 10, 2017

आसाम मेघालय यात्रा : चेरापूंजी सोहरा भाग 1 ।

आखिरकार हम पहुंच गये विश्व के सर्वाधिक वर्षा बाले स्थान चेरापूंजी क्षेत्र में। यहां औसत वर्षा 10,000 मिलीमीटर होती है। पर उस दिन मौसम बहुत शानदार रहा। एलीफेंट गुफा से लेकर सोहरा तक एक बूंद बारिस न हुई। यहां का क्षेत्रीय नाम सोहरा ही है। चेरापूंजी नाम तो अंग्रेजों का दिया हुआ है।  सोहरा में प्रवेश करते ही घनी वादियों में गिरते ऊंचे ऊंचे झरनों ने हमारा स्वागत कर दिया।
चेरापूंजी में जब आप पहुंचेंगे तो आपको चारों ओर सिर्फ झरनों का शोर सुनाई देगा। हरियाली से सजी चेरापूंजी की पहाड़ियां बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींच लेती हैं। जब बारिश होती है तो बसंत अपने शबाब पर होता है। ऊंचाई से गिरते पानी के फव्वारे, कुहासे के समान मेघों को देखने का अपना अलग ही अनुभव है। यहां के स्थानीय निवासियों को बसंत का बड़ी शिद्धत से इंतजार होता है। चेरापूंजी में खासी जनजाति के लोग मानसून का स्वागत अलग ही अंदाज में करते हैं। मेघों को लुभाने के लिए लोक गीत और लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
सोहरा चेरापूंजी सर्किट में प्रवेश करते ही " वाहकाबा" झरने आपका स्वागत करते हैं। रोड के सहारे ही एंन्ट्रीगेट है। बीस रुपये टिकट है। नीचे उतर कर जाओ तो बस मुंह से वाह वाह ही निकलेगा। अभी तो ये पहला झरना था आगे तो लाईन लगी पडी थी। वाहकाबा झरनों पर हमने थोडा ही समय दिया और बढ गये सोहरा शैला रोड पर । सोहरा में थोडा आगे चल कर ही एक तिराहा आता है। इसी तिराहे के सीधे हाथ पर हैं रामकृष्ण मिशन और नोहकालीकाई झरने जो कि चेरापूंजी का मुख्य आकर्षण है और लैफ्ट हैंड पर मुख्य रोड चली जाती शैला की तरफ। पूरा सोहरा शहर इसी रोड पर पडता है। इसी रोड पर आगे चल कर बहुत सारे चर्च, ग्रेवयार्ड, पोस्ट औफिस, बैंक और पैट्रोल पंप के अलावा मुख्य आकर्षण मौसमेव गुफा और खूबसूरत झरने, सेवन सिस्टर फाल्स , हरे भरे पार्क आदि  हैं।
नोहकालीकाई फाल्स शहर से पांच किमी दूर थे , सोचा पहले मौसमेव गुफा की तरफ चलते हैं क्यूं कि अंधेरे होने पर वहां जा नहीं पायेंगे इसलिये हमारी स्कूटी मुड गयी मौसमेई गुफाओं की तरफ। गुफाओं से पहले पार्किगं में ही काफी सारी दुकानें और रैष्ट्रां बने हुये हैं। जहां आप शाकाहारी मांसाहारी भोजन कर सकते हैं। अभी शाम के चार बजे थे। थोडी धूप भी थी। बीस रुपये की टिकट ली और उतर गये नीचे गुफा में। गुफा में घुसने से पहले मानसिक तौर पर तैयार हो जाना चाहिये वरना घबराहट हो सकती है।  150 मीटर लम्बी इस गुफा के अन्दर प्रकाश का समुचित प्रबन्ध है अत: डर तो न लगा किंतु यह अनुभव मेरे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव बन गया। गुफा का प्रवेशद्वार बड़ा है किन्तु जल्द ही यह सँकरा हो जाता है। कई मोड़ों और घुमावों के साथ इसमें काफी रोचक अनुभव होता है, लेकिन यदि काफी भीड़ हो तो साँस लेने में परेशानी हो सकती है। गुफा का अन्दरूनी हिस्सा कई प्रकार के जीव-जन्तु और पौधों की प्रजातियों का घर है और चमगादड़ तथा कीड़े-मकोड़ों के लिये उत्तम पनाहगार है।टपकते पानी से पत्थरों पर बनी विभिन्न प्रकार की सुन्दर बनावटें प्रकृति का एक और चमत्कार हैं। जैसे गुफा और संकडी हुई , हमें निकलने के लिये अपने शरीर को भी तोडना मोडना पडा। तभी सामने से घबराती हुई महिला और बच्चों ने रोना शुरू कर दिया। ऐसे में उनका तो लौटना ही ठीक था, सांस लेने में तकलीफ हो जाती है तो धीरज रखना चाहिये। घवराहट तो और काम खराब कर सकती है। थोडा आगे चल कर यह गुफा नीचे से और चिकनी हो जाती है। नीचे पानी में होकर चलना पडता है। ऊपर से भी जल टपक रहा है। दीवारों पर टपकते पानी की तरह पत्थर पर धार बनी हैं। गुफा में जैसे जैसे बढते हैं रोमांच आना आरंभ हो जाता है। पत्थरों में अलग अलग तरह की आकृतियां दिखाई देती हैं। कई आकृतियां किसी मनुष्य किसी जानवर तो कई बार किसी देवी देवता सरीखी लगती हैं। चूना पत्थर की ये गुफाएं हजारों साल पुरानी लगती हैं। जगह जगह इनसे पानी टपकता रहता है। कई जगह गुफा में घुटने भर पानी से होकर आगे बढ़ना पड़ता है। कई जगह ऊंचाई कम होने पर सिर बचाना भी पड़ता है। कई जगह तो एक ही आदमी के निकलने पर भर रास्ता होता है। गुफा को पार करते हुए काफी रोमांच आता है। यह पता नहीं होता कि गुफा कहां खत्म होने वाली है और कब हम खुली हवा में बाहर आने वाले हैं। बच्चों रास्ते में डर भी लगने लगता है, गुफा के अंदर आगे पीछे एक दूसरे से संवाद स्थापित करते हुए ही आगे बढना ठीक रहता है। गुफा में जाते समय मेरे पास टार्च न थी तो मैंने मोबाइल से वीडियो बनाना शुरू कर दिया जिससे रोशनी भी हो गयी और अदभुत अनुभव कैद भी हो गया। इससे पहले भी मैं गुफाओं में गया हूं पर इस बार भोले बाबा पधरे नहीं मिले और ना ही कोई पंडित मिला। पहला प्राकृतिक चमत्कार था जिसका टैक्स सरकार पर जा रहा था किसी पंडे पर नहीं। जैसे ही ये गुफा खत्म होने को आती है सीधे हाथ पर दूसरी गुफा दिखाई देती है पर इसमें प्रकाश नहीं है, इसलिये आना जाने की मनाही है। कहते हैं ये गुफा कामाख्या मंदिर गुवाहाटी तक गयी है, सच्चाई भगवान जाने। गुफा में घुसने से पहले एक रेस्ट्रां बाली आंटी के पास अपना बैग जमा करा था और पावरबैंक चार्जिगं पर लगाया था अत: बाहर निकल कर सोचा कि खाना भी यहीं खा लिया जाय बैसे भी शाम होने जा रही है भूख लग आयी थी। सूरज डूबने को था। मौसमेई ईको पार्क रिसोर्ट और उसके खूबसूरत फाल्स नजदीक ही थे।खाना खाकर तुरंत निकल लिये।



















satyapalchahar.blogspot.in

3 comments:

  1. एक दिन में एक लेख लगाओ, वो भी सुबह 6 बजे प्रकाशित करो,
    चाहर साहब आपके मुस्लिम आतंकी संगठन ने अमरनाथ यात्रियों पर हमला कर बहुत को मार डाला है

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  2. बादलो का शहर चेरापूंजी बहुत अच्छे से घूम रहे है जी

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