Thursday, November 3, 2016

My bike tour of Nepal part 7

पशुपतिनाथ मंदिर से जनकपुर की ओर ।।
26 अक्टूवर 2016

नेपाल यात्रा का सबसे बडा आकर्षण है पशुपतिनाथ मंदिर। पशुपतिनाथ मंदिर काठमांडू के तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे पर स्थित है। नेपाल के एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने से पहले यह मंदिर राष्ट्रीय देवता, भगवान पशुपतिनाथ का मुख्य निवास माना जाता था।
यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में सूचीबद्ध है। पशुपतिनाथ में  सिर्फ हिंदुओं को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। गैर हिंदू आगंतुकों बागमती नदी के दूसरे किनारे से इसे बाहर से देख सकते हैं।  यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। मिली हुई जानकारी के अनुसार 15 वीं सदी के राजा प्रताप मल्ल से शुरु हुई परंपरा कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। पशुपतिनाथमें शिवरात्रि त्योहार विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है।
किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक रिकॉर्ड 13वीं शताब्दी के ही हैं। इस मंदिर की कई नकलों का भी निर्माण हुआ है जिनमें भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया।
ऐसे तो लाखों लोग धार्मिक आस्था के बशीभूत पशुपतिनाथ जी के दर्शन मात्र काठमांडू जाते हैं पर मेरे जैसे घुमक्कड आस्था के लिये कम जिज्ञासा के लिये अधिक जाते हैं। बुद्ध जैसे धर्म सुधारक के देश में लोगों ने किस तरह धर्म और अध्यात्म का संयोजन किया हुआ है, यही मेरी सबसे बडी जिज्ञासा थी। बहां जाकर पता चला कि लोगों ने बुद्ध को भी उसी धर्म का एक भाग बना रखा है। " Oh My God " में कांजी भाई, परेश रावल, से एक धर्मगुरु , मिथुन, ने अतं में सच ही कहा था," ये गौड लविगं पीपुल नहीं बल्कि गौड फियरिगं पीपुल हैं। तुम इनसे इनका भगवान छीनोगे तो ये लोग तुम्हें ही अपना नया भगवान बना देंगे।" धर्म विद्रोही/ सुधारक बुद्ध को भी भगवान बुद्ध बना दिया गया और आज अन्य भगवानों के साथ उन्हें भी पूजा जा रहा है जबकि बुद्ध तो नास्तिक थे।
खैर हमें क्या, हम तो ये सब लीलायें देखने निकले हैं। देखेंगे और दुनियां को बतायेंगे। पशुपतिनाथ जी मतलब शिवजी के बारे में यहां जो भी कथायें कहानियां हैं, मैं उनसे कभी सहमत न हो पाऊगां क्यूं कि मेरा मानना है कि प्रकृति पूजक सनातन की शक्ल इन्हीं काल्पनिक कथाओं ने ही बिगाडी है। मेरा मानना है कि शिव और शक्ति, अर्धनारीश्वर, के सैकडों रूप हैं। वो कोई तुच्छ मानव नहीं जिसे हम एक मूर्ति बनाकर इतिश्री कर लें। परमपिता परमेश्वर शिव तो संपूर्ण संसार को बनाने और मिटाने बाली एक रहस्यमयी शक्ति है जिसका न कोई आदि है और न कोई अतं। वो तो अनंत है। वो हर जगह मौजूद है। नदी के जल में, पेड पौधों में, पशुओं में यहां तक कि सृष्टि के हर जीव में मौजूद है। उसका एक रूप पशुपालक भी है। उसी पशुपालक स्वरुप की प्रतिमा एवं नंदी की विशाल मूर्ति यहां मंदिर में स्थित है। पीतल धातु से बने नंदी / बैल मंदिर के मुख्य द्वार पर ही विराजमान हैं जिसका मुख मंदिर में रखी शिवलिगं की ओर है। चूंकि यह सृष्टि लिंग और योनि की बदौलत ही है अत; शिव का एक रुप यह भी है। इस बात को कि हम सब हमारे माता पिता ने कैसे पैदा किया है, जानते हैं लेकिन पर्दे में रखते हैं लेकिन सनातन ने इससे भी पर्दा हटा दिया है और उस लिंग और योनि जिसकी बदौलत हमारा बजूद है, को भी पूज्य बना दिया। सनातनी प्राचीन पंडितो ने कभी भी नग्नता को गंदगी नहीं माना क्यूंकि नग्नता सच बोलती है, प्राकृतिक भी है जबकि कपडे का आवरण मानव मन के भावों को छुपाने का एक साधन।
लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर में लगा बोर्ड, "केवल हिन्दुओं के लिये" भी मुझे सनातनी परंपरा और नियम के विरुद्ध लगा। सनातन परपंरा सबको आत्मसात करने और सबको समा लेने का गुण रखती है तो फिर ये रोक कैसी ? जब अन्य धर्मावलंबियों की परपंरायें उन्हें नहीं रोकती तो हम क्यूं रोकें। परमपिता के घर में रोक ? ये ईश्वर की नहीं , धर्म के ठेकेदारों की ही हो सकती है। हालांकि मुझसे किसी ने मेरे हिंदू होने का सबूत नहीं मांगा और स्वंतंत्र रूप से मंदिर परिसर में विचरण करता रहा। मंदिर के पीछे एक नदी बह रही है जिसके दूसरी और बहुत सारे मंदिरों का समूह है। मंदिर के एक तरफ नदी तट पर ही श्मशान घाट है जो इस सच्चाई को स्वीकार कराता है कि मृत्यु भी एक अटल सत्य है और लौट कर पुन: हमें इसी में विलीन हो जाना है।
मंदिर परिसर में काफी देर घूमने के बाद मंदिर के पीछे नदी तट पर बने मंदिरों और श्मशान घाट जलती हुई चिताओं में मौत रुपी सच्चाई को निहारता रहा। सोचने लगा कि आखिर लोग मौत से डरते क्यूं हैं ? ये शरीर प्रकृति के पंच तत्वों से बना है और एक दिन इन्ही में समा जायेगा तो फिर डर कैसा ? नदी से लौटते हुये दक्षिणी गेट पर भिखारियों की लंबी कतार देखी जो हिन्दुस्तान की हकीकत को बयां कर रही थी। हिन्दुस्तान में धर्म को दुकान यहां की परिस्थितियों ने ही बनाया होगा।
शाम के चार बज चले थे जबकि मंदिर के कपाट करीब छ बजे खुलने बाले थे। भगवान के घर में भी भक्त भगवान के दर्शन के लिये इंतजार कर रहे थे तो सिर्फ भगवान और भक्त के बीच कुछ दुकानदारों के कारण। सही बात तो ये है कि मैं उस मूर्ति की आकृति शिल्प कला को देखने का उत्सुक था ना कि उसे भगवान समझ कर दर्शन करने का क्यूंकि मेरे हिसाब से तो अब तक राह में आयी नदियां पहाड हरी भरी घाटियां जल वायु जीव जन्तु ही असली शिव हैं मंदिर में तो बस एक कलाकार की मेहनत से बनायी हुई कलाकृति है शिव नहीं। सच पूछो तो मुझे तो शिवजी के दर्शन मुख्य द्वार में प्रवेश करते समय ही हो गये थे जब मैंने मंदिर परिसर में दो नन्हे मुन्ने बाल गोपालों को दाना चुग रहे कबूतरों के समूह के साथ मस्ती करते देखा था। रास्ते भर प्रकृति के अजब गजब उपहार पहाड नदी ताल और पेडों को निहारा था। साक्षात ईश्वर तो वही था। ये तो केवल समाज को एकत्रित करने और मिलने मिलाने एवं एक दूसरे को समझने का एक स्थान विशेष था। प्राचीन विद्धानों ने भी समाज की खातिर ही इन स्थानों का निर्माण करवाया होगा क्यूं कि ईश्वर कहां रहते हैं, ये बात तो वो मुझसे ज्यादा जानते थे। आखिर भारत प्रकांड पंडितों का देश है, मैं तो उनके पैरों की धूल भी नहीं। वो बात अलग है कि बाद में आये कुछ स्वार्थी तत्वों ने इसका रुप भी बिगाड दिया।
फिर भी दिल की बात कहूं तो मुझे मंदिर में अच्छा लगा। कोई ज्यादा भीड नहीं और न कोई शोर शराबा। दूर दूर से आये अलग अलग संस्कृतियों के लोगों से मिलना भी एक सुखद अनुभव था।
रात होने से पहले जनकपुर के लिये रवाना होना था अत: निकल पडा मंदिर के नजदीकी ही हाईवे पर जो मुझे धूलिखेल मिथिला होते हुये जनकपुर छोड सकती थी। धूलिखेल तक शाम हो चली थी और मुझे यहीं रुकना था। मैं सोच रहा कि मेरी नेपाल यात्रा का अतं हो चला लेकिन मुझे क्या पता था कि नेपाल की असली खूबसूरती तो मेरा जनकपुर रोड पर इंतजार कर रही थी।


7 comments:

  1. aapki post mein jo vagyanic soch ka ASTIK PAN hai vo vastav mein achha laga .Excellently penned journey.

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  2. आपकी लिखने की जो शैली है वो एक बहुत ही बडे ब्लॉगर की तरह है निसंदेह भविष्य मे को एक असाधारण हिंदी ब्लॉगर मिलने वाला है

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  3. धाराप्रवाह लेखन... मन के उद्गारों के साथ ऐसे ही बेबाक लिखते रहिये। अच्छा लगा।

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