Monday, October 31, 2016

My Nepal bike tour part 3

नेपाल बाईक टूर तीसरा दिन (22 October)
लखीमपुर खीरी से नेपाल बौर्डर एवं भालुबांग ।।
नेपाल यात्रा का तीसरा दिन मेरे लिये बहुत ज्यादा मायने रखता है। जीवन में पहली बार विदेशी धरती पर कदम रखने का मौका जो मिलने बाला था मुझे।
सुबह ही
मित्र कौशलेन्द्र को अपने स्कूल निकलना था और मुझे नेपाल की तरफ । पुराने ofसंघर्ष भरे दिनों की याद में हम दोनों इस कदर खो गये थे कि इस बार फिर लेट हो गया मैं। लगभग आठ बजे निकल पाया। लखीमपुर खीरी से ननपारा और ननपारा से नेपाल बौर्डर्। करीब एक सौ दस किमी है। लखीमपुर से ननपारा और भारत नेपाल सीमा तक का हाईवे एकदम शानदार है। गाडी चलती नहीं उडती है। बैसे भी लखीमपुर खीरी जिला काफी हरियाली बाला है। सडक के दोनों ओर काफी घने पेड पौधे और दूर दूर तक फैले हुये हरे भरे खेत। कुछ खेतों में धान की कटाई भी चल रही थी। थोडा आगे निकलते ही शारदा नदी मिली और फिर उससे थोडा आगे चलकर घाघरा नदी। दोनों नदिया थोडा आगे चलकर बहराईच में मिल जातीं हैं और थोडा आगे चलकर अयोध्या फैजाबाद में सरयू नदी कहलाती है। ननपारा से पहले एक घना बन्यजीव अभ्यारण भी मिला। करीब दस बजे ननपारा पहुंच गया था। ननपारा में ही वाईक सर्विस करायी और एटीएम से पैसे भी निकाले। पहली बार परायी धरती पर जा रहे हैं, पर्याप्त रुपये साथ रहते हैं तो हिम्मत रहती है। भारत नेपाल सीमा पर स्थित बहराईच जिले का ननपारा भारत का काफी बडा कस्वा है।
नेपालगंज बौर्डर पर करीब बीस मिनट लगे। वाईक के कागज चैक कराये और एक सौ चौदह नेपाली के हिसाब से वाईक का टैक्स भी दिया। वाईक का टैक्स भरते समय मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मैं विदेश यात्रा पर हूं वरना तो यहां का खान पान रहन सहन बोली भाषा सब कुछ हमारे जैसी ही है। लोग हिंदी और नेपाली खूब बोलते हैं। चूंकि पर्यटन ही नेपाल का सबसे बडा व्यवसाय है लोग बहुत सम्मान करते हैं पर्यटकों का।
भारत से नेपाल की मुद्रा भले ही थोडी कम हो लेकिन बात बराबर ही पडती है। मंहगाई भी उतनी ही है। हर सामान MRP रेट से बढकर ही मिलती है। एक आमलेट सौ नेपाली की है जबकि  भारत में तीस रुपये की है। पैट्रोल सौ नेपाली रुपये प्रति लीटर है, भारत से थोडा सा ही सस्ता पडता है। बौर्डर पर ही भारतीय रुपयों का नेपाली में एक्सचेंज कराना ठीक रहता है। छोटे दुकानदार भारतीय रुपया नहीं लेते। बैसे भी हजार और पांच सौ के नोट इधर चलते नहीं। मैंने चार हजार रुपये के एक्सचेंज कराये थे। करीब चौंसठ सौ नेपाली रुपये मिले मुझे। एक हजार में सोलह सौ नेपाल के हिसाब से। हमारा दस रुपया यहां सोलह रुपये के बराबर होता है। कोहलपुर या पहले ही पैट्रोल फुल करा लेना चाहिये वरना काफी दूर तक पंप न मिलेगा।
भारत की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर मैं अमृतसर बाघा बौर्डर भी जा चुका हूं पर पाकिस्तान और नेपाल के साथ हमारी सीमाओं में जमीन आसमान का अतंर है। बाघा बौर्डर पर आप उस जमीन पर पैर रखना तो दूर झांक तक नहीं सकते बिना बीजा के और यहां तो रुपडिहा बौर्डर में अदंर घुसने के बाद मुझे पता चला कि मैं नेपाल में हूं। लोग बेरोक टोक आ जा रहे हैं। ननपारा से नेपालगंज के बीच गाडियों की लाईन लगी है। दस मिनट में लोग गाडी का किराया देते हैं और आगे बढ जाते हैं। बिना बाहन बाले तो बैसे ही आ जा रहे हैं। नेपाली फौजी तैनात हैं पर आम तौर पर कोई सख्ती नहीं बरतते। बौर्डर के बाद हाईवे पर मुझे बहुत सारी फौजी चौकियां मिलीं पर पोखरा तक तो किसी ने रोका भी नहीं। दोस्त और दुश्मन पडौसी में शायद ये ही फर्क है। नेपालगंज बौर्डर पर बैठे कस्टम अधिकारी एकदम जमीन से जुडे बुजुर्ग। मृदुभाषी । कहने लगे आप हमारे मेहमान हैं। आपकी मदद करना हमारा फर्ज है। मैंने साथ फोटो भी खिंचाया पर बगल में बैठी फौजिन शरमा कर दूर चली गयी और मुझे फोटो के लिये मना करने लगी।
बौर्डर से नेपालगंज एवं कोहलपुर तक का रास्ता बहुत जानदार मिला। बहुत चौडा रोड और धूल का नामोनिशां नहीं। चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली। बौर्डर से मात्र बीस किमी दूर कौहलपुर शहर में नेपाल का एकमात्र और सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग महेन्द्र मार्ग मिल जाता है जो नेपाल के पश्चिम में स्थित पीलीभीत खटीमा से लेकर पूर्व में सिक्किम के सिलचर तक पार चला जाता है। नेपाल का महेन्द्र राजमार्ग जिसकी Length: 1,027.67 km (638.56 mi) नैनीताल या पीलीभीत के नजदीकी नेपाली शहर भीमदत्त से सिक्किम सीमावर्ती  कांकरविट्टा या Mechinagar तक जाता है। हालांकि बीच में अन्य राजमार्ग भी इसे क्रास करेंगे। जैसे
Tribhuvan Highway at Hetauda
Prithvi Highway at Bharatpur
Siddhatha Highway at Butwal

बीच में कुछ destinations भी पडेंगे जैसे Damak, Itahari, Hetauda, Bharatpur, Narayangarh, Butwal, Kohalpur ।।
महेन्द्र राजमार्ग को East West Highway पूर्व पश्चिम राजमार्ग नेपाल के तराई क्षेत्र को पार करता हुआ देश का सबसे लंबा हाईवे है जो भारतीय CPWD/PWD India engineers की देन है।
कोहलपुर के चौराहे पर एक तरफ बर्दिया बन्य जीव अभ्यारण का घना जंगल है और दूसरी तरफ बांके राष्ट्रीय निकुंज है। The Bardiya National Park बर्दिया राष्ट्रिय निकुञ्ज, 968 km2 (374 sq mi) में फैला हुआ
नेपाल की तराई क्षेत्र में करनाली नदी के पूर्वी तट पर एवं बबाई नदी द्वारा विभाजित सबसे बडा नेशनल पार्क है जो बांके नेशनल पार्क से जुडा हुआ है और अपने alluvial grasslands, subtropical moist deciduous forests,tigers, wild elephants and one-horned rhinos 30 , species of mammals, 250 species of birds,  endangered Bengal florican and sarus crane, Gharial and marsh mugger crocodiles and Gangetic dolphins के अलावा rafting and canoe trips along the Geruwa River, the eastern channel of the Karnali River के लिये भी जाना जाता है। Bardia National Park , नेपाल के Maoist insurgency के दौरान काफी डिस्टर्ब्ड रहा था किंतु अब सब ठीक है जबकि बांके नेशनल पार्क  550 km2 क्षेत्र में Banke, Salyan and Dang जिलों में फैला हुआ है।
यही हाईवे पश्चिमी राप्ती नदी के सहारे सहारे लालमटिया तक और फिर बुटवल और आगे की तरफ बढता जाता है। राप्ती नदी का साथ लमही, लालमटिया से थोडा आगे भालुबांग तक ही मिलेगा। लालमटिया के नजदीकी पहाडों से ही ये राप्ती नदी निकलती है जो पहले घाघरा में और फिर आगे जाकर गंगा में मिल जाती है। राप्ती नदी (या पश्चिमी राप्ती) मध्य नेपाल के दक्षिणी भाग की निचली पर्वतश्रेणियों में प्यूथान नगर के उत्तर से निकलती है। गंगा के मैदान में उतरने से पूर्व यह कुछ दूर तक शिवालिक पर्वत के समांतर पश्चिम दिशा में बहती है और मैदानी भाग में पूर्व एवं दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशाओं में प्रवाहित होकर बरहज नगर (जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश) के समीप घाघरा नदी से मिलती है। यह उत्तर प्रदेश के बहराइच, गोंडा, बस्ती एवं गोरखपुर जिलों के धान एवं गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के मध्य से होकर बहती है। बाँसी एवं गोरखपुर इस नदी पर स्थित मुख्य नगर हैं। इसकी सहायक नदियों में मुख्यत: उत्तर के तराई प्रदेश से निकलनेवाली छोटी छोटी अनेक नदियाँ हैं। नदी की कुल लंबाई ६०० किलोमीटर है। यह गोरखपुर से नीचे की ओर बड़ी नौकाओं द्वारा नौगम्य है। जबकि पूर्वी राप्ती एक छोटी सी नदी है जो नेपाल के चितवन घाटी (भीतरी तराई) से पश्चिम की ओर प्रवाहित होकर अन्ततः भारतीय सीमा से थोड़ा पहले नारायणी (गण्डकी) में मिल जाती है।
फिर भी दिन भर में काफी कवर कर लिया और दिन भर में करीब तीन सौ किमी वाईक खेंच ली। कोहलपुर से लमही तक बांके बन्य जीव अभ्यारण का घना जंगल और ऊंची नीची रोड चलती रही और मैं नेपाल की हरी भरी पहाडियों में दौडता रहा। सोचा था कि रात होने से पहले लुम्बिनी वन , महात्मा बुद्ध की जन्म स्थली, पहुंच जाऊंगा पर लमही निकलते निकलते अंधेरा हो चला था और सामने करीब चालीस किमी का पहाडी घना जंगल था। घने जंगल और पहाडों में रात को चलना ठीक न होगा,ये सोच कर लमही से थोडा आगे लालमटिया पार कर राप्ती नदी के तट पर भालुबांग नामक तिराहे पर मात्र तीन सौ नेपाली रुपये में कमरा मिल गया। यहां लोगों ने घर को ही होटल दुकान आदि बना रखा है। इस दुकान पर रहने खाने से लेकर सभी सुविधायें मिलेंगी। शराब और मांसाहारी भोजन तो यहां आम बात है लेकिन शाकाहारी भोजन हर जगह मिलेगा। शराब तो इतनी कौमन है कि लगभग हर दुकान पर मिलेगी। एक क्वार्टर साठ से लेकर पांच सौ नेपाली तक हर ब्रांड मौजूद है। अंग्रेजी की बजाय नेपाली शराब ज्यादा चलती है। अंग्रेजी में रौयल स्टेग का एक क्वार्टर साढे तीन सौ नेपाली में आता है। नास्ते में आमलेट फिश मोमोज पकौडे आदि हैं। आमलेट सौ रुपये की है। शाकाहारी भोजन भी मिलेगा। सारा सामान भारत से ही आता है इसलिये थोडा मंहगा पडता है।
सुवह के पांच बजे ही लुम्बिनी के लिये निकलने बाला था पर  थोडा अंधेरा था। जंगल भी पार करना था। थोडा उजाला हो जाय तब चलना ठीक रहेगा। बैसे तो कोई डर नहीं है, नेपाली लोग काफी मेहनती और ईमानदार होते हैं पर जंगली जानवरों का कोई ईमान नहीं होता। भूख लगी हो तो आदमी का भी नास्ता कर डालते हैं।


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