ऊटी से केरल की ओर ।।
चाय के हरे भरे बागानों में और वौटोनिकल पार्क में चहलकदमी करने के बाद केरल के वैक वाटर्स में नौकायान करने को मन मचलने लगा। अमिताभ बच्चन की ग्रेट गैम्बलर में इटली की शानदार और खूबसूरत नहरों में नौकायन करते हुये एक गाना फिल्माया गया था," दो लव्जों की है यही कहानी ...... " वेनिस की वो नहरें आज भी मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट बनीं हुईं हैं। तभी किसी लेख में पढा कि इटली जैसी नहरें हमारे केरल में भी हैं। केरल की खूवसूरती शब्दों में बयां नहीं की जा सकती, इसे तो केवल जीया जा सकता है।
ऊटी से मेटुपलयम स्टेशन तक चलने बाली पहाडों की रानी टौय ट्रैन खुद में एक जन्नती अनुभव है। नीली नीली पहाडियों के बीच से धुंआ छोडती और सीटी मारती ये ट्रैन गजब का अनुभव है।
मैट्टुपलयम तक बडी गाडियां भी आतीं हैं पर यदि न मिले तो एक घंटे की दूरी पर कोयम्बटूर से कहीं के लिये भी ट्रैन्स मिल जाती है। मैं केरल की नहरों के सपनों में खोया कोयम्बटूर होते हुये कोच्चि जा पहुंचा। कोच्चि में बन्दरगाह पर बने फुटपाथ पर घूमता रहा जहां वोम्वेनाड झील और अरब सागर का मिलता साफ दिखायी देता है। वहीं घूमते हुये बहुत सारे लोगों से बात हुयी जिन्हौने मुझे मंदिर सजेस्ट किये थे। सिटी बस में पूरा शहर भी घूमा। लेकिन कोच्चि में कोई खास आनंद नहीं आया क्यूं कि दिमाग में तो वही नहरें और उनमें दौडती नौकायें थीं। एक बार सोनी टीवी पर सीआईडी बाले किसी अपराधी का पीछा करते हुये केरला के वैक वाटर्स में स्पीड वोट्स दौड लगा रहे थे तभी से मेरे दिमाग में केरला की नहरें घूम रहीं थीं।
केरल उत्तर और दक्षिण दो हिस्सों में बंटा है। हालांकि, केरलम यानी केरा (नारियल) के पेड़ों से लदे इस प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा अरब सागर से लगा है, लेकिन पूर्वी हिस्से पर चाय के बागानों से सजे ऊंचे हरे-भरे पहाड़ हैं। उत्तर और दक्षिण के हिस्सों को जोड़ती हैं 1500 किलोमीटर लंबी नहरें। केरल की 38 बड़ी नदियों और 5 बड़े सरोवरों का पानी इन्हीं नहरों के जरिए समुद्र में जा मिलता है। इस बैकवॉटर वाला हिस्से में सबसे मशहूर है दक्षिण से उत्तर केरल की ओर जाने वाला 85 किलोमीटर लंबा जलमार्ग, जो बड़े हाउसबोट्स और नावों के लिए मुफीद है। भारत में तीन राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। यह जलमार्ग उनमें से एक है। हालांकि केरल की असल खूबसूरती बेहद खूबसूरत चाय बागानों, बैकवॉटर और अरब सागर के समुद्र तटीय बीच के हिस्से हैं।
कोच्चि से ट्रैन से एलप्पी पहुंचने का रास्ता भी खुद अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। केरल की पूरी लम्बाई को यह ट्रैन पार करती है। रेलवे पाथ के दोनों ओर नहरें और घने पेड अपनी ओर खींचते हैं। एलेप्पी में जहां चारों तरफ बडी बडी नहरें ही नहरें हैं और उनमें वोटिगं का गजब का आनंद मिलता है। इन नहरों का पानी बैक वाटर्स के नाम से जाना जाता है। बैकवॉटर्स यानी समुद्र की लहरों के साथ आया वह पानी जो झील के रूप में बदल गया। अलेप्पी स्टेशन से करीब दस मिनट के रास्ते पर वोट जेट्टी है। यदि आप पर्सनल वोट लेना चाहें तो पांच सौ से तीन हजार हजार के बीच है। इसके अलावा सरकारी वोट भी चलती है जो मात्र पच्चीस रूपये में दो घंटे की यात्रा कराती है। वेम्बनाड़ लेक में मोटरबोट से तकरीबन दो घंटे की इस यात्रा का रोमांच हमेशा के लिए हमारे साथ रह जाने वाला था। अरब सागर के किनारे-किनारे बनी इसी लेक में केरल की प्रसिद्घ बोट रेस का आयोजन भी हर साल होता है। दूर दिखाई देते चर्च, पानी के बीच लगे साइन बोर्ड, लेक के बीच उभरा जमीन का कोई हरा-भरा टुकड़ा, उस पर नारियल के पेड़ों के नीचे एक झोंपड़ी और पानी बंधी हवा में हिलती छोटी-सी नाव। ‘अलप्पी को पूर्व का वेनिस’ ऐसे ही नहीं कहा जाता।
हाउसबोट, जिसे मलयालम में यहां केतुवेल्लम कहा जाता है, में भी ठहरने की व्यवस्था रहती है।
अलप्पी बैकवॉटर्स के लिए प्रसिद्घ है, मगर यहां के छोटे से समुद्रतट पर आप अरब सागर के विस्तार कभी नहीं भूलेंगे। बीच पर ही बनी किसी कॉफी शॉप में देर तक बैठें, वहीं बेशक दक्षिण भारतीय खाना खाएं, सोने के जगमगाते गहनों के बाजारों से गुजरें और जेटी पर इंतजार करती बोट से होते हुए अपने रात के ठिकाने पर लौट आएं। रात को पानी के बीच बसी दुनिया की जलती-बुझती रोशनियां होती हैं, कोई देर से घर लौटती नाव या होता है सन्नाटा। सैलानियों की बोट से कभी-कभी उठता संगीत किसी दूसरी दुनिया से आता लगता है।
अलप्पी से कोलम का आठ घंटे का मात्र चार सौ रूपये की टिकट पर नौका सफर केरल की बस्तियों और शहरों के बीच का सफर जन्नत में होने का एहसास कराने बाला होता है। नारियल के झुरमुटों में बसे खूबसूरत घर। डूबता सूरज और लहरों का उठता-जाता शोर। गजब का द्श्य मानो वक्त ठहर गया हो।
तिरूअन्तपुरम से पहले एक बहुत फेमस जगह अम्रतापुरी कोलम आयी जहां जानी मानी आध्यात्मिक हस्ती अम्रतामयी माता उर्फ अम्मा का आश्रम है जहां हजारों श्रद्धालु आते जाते हैं। पूरा दिन अलेप्पी में बिताने के बाद रात को तिरुअन्तपुरम के लिये ट्रैन पकडनी थी। रात को कोलम के रेलवे प्लेटफार्म पर ट्रैन के इतंजार में लेट गया। रेलवे पुलिस अधिकारी मुझे नोटिस कर रहा था। दर असल मुझे लौटते हुये रात हो चुकी थी और मैं सुबह छ बजे तक तिरुअन्तपुरम पहुंचना चाह रहा था इसलिये मैं सुवह के इंतजार में रात की तीन गाडियां निकाल चुका था। उसे ज्यादा शक हुआ तो मुझे पुलिस थाने ले गया।
करीब दो घंटे की कडी पूछताछ के बाद मुझे यह कहते हये छोडा कि बडी किस्मत बाले हो यार , शादीशुदा होने के वावजूद इतनी आजादी से घूम रहे हो।
आखिरकार करीब चार बजे की ट्रैन से एक घंटे मे त्रिअन्तपुरम पहुंच गया। सबसे पहले पदनाभ स्वामी मंदिर गया जो स्टेशन से बस एक किमी की दूरी पर है। ये दक्षिण भारत का वही प्रसिद्ध मंदिर है जहां करोंडों का खजाना छुपा है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल इस ऐतिहासिक मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।
अतं में समुद्र किनारे पहुंचा जहां खूव खुल कर मस्ती की। मछुआरों के साथ बैठ कर घंटे भर बतियाया। बीच पर वोटिगं की। स्विमिगं की।
समुद्र का बेहद खूबसूरत तट। एक जीवंत शाम। हर तट पर समुद्र अलग चेहरे के साथ होता है।
फिर भी बहुत पहचाना-सा। बचपन की भूगोल की किताबों से निकल कर मालाबार तट सामने आ खडा हुआ था। लहरें आ-आ कर लौट रही थीं। मछुआरे समुद्र में उतर पड़े थे, समुद्र के ऊपर बहती हवा कुछ ज्यादा ताजी थी।
रात हो रही थी और मुझे अभी तमिलनाडु की तरफ निकलना था।
चाय के हरे भरे बागानों में और वौटोनिकल पार्क में चहलकदमी करने के बाद केरल के वैक वाटर्स में नौकायान करने को मन मचलने लगा। अमिताभ बच्चन की ग्रेट गैम्बलर में इटली की शानदार और खूबसूरत नहरों में नौकायन करते हुये एक गाना फिल्माया गया था," दो लव्जों की है यही कहानी ...... " वेनिस की वो नहरें आज भी मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट बनीं हुईं हैं। तभी किसी लेख में पढा कि इटली जैसी नहरें हमारे केरल में भी हैं। केरल की खूवसूरती शब्दों में बयां नहीं की जा सकती, इसे तो केवल जीया जा सकता है।
ऊटी से मेटुपलयम स्टेशन तक चलने बाली पहाडों की रानी टौय ट्रैन खुद में एक जन्नती अनुभव है। नीली नीली पहाडियों के बीच से धुंआ छोडती और सीटी मारती ये ट्रैन गजब का अनुभव है।
मैट्टुपलयम तक बडी गाडियां भी आतीं हैं पर यदि न मिले तो एक घंटे की दूरी पर कोयम्बटूर से कहीं के लिये भी ट्रैन्स मिल जाती है। मैं केरल की नहरों के सपनों में खोया कोयम्बटूर होते हुये कोच्चि जा पहुंचा। कोच्चि में बन्दरगाह पर बने फुटपाथ पर घूमता रहा जहां वोम्वेनाड झील और अरब सागर का मिलता साफ दिखायी देता है। वहीं घूमते हुये बहुत सारे लोगों से बात हुयी जिन्हौने मुझे मंदिर सजेस्ट किये थे। सिटी बस में पूरा शहर भी घूमा। लेकिन कोच्चि में कोई खास आनंद नहीं आया क्यूं कि दिमाग में तो वही नहरें और उनमें दौडती नौकायें थीं। एक बार सोनी टीवी पर सीआईडी बाले किसी अपराधी का पीछा करते हुये केरला के वैक वाटर्स में स्पीड वोट्स दौड लगा रहे थे तभी से मेरे दिमाग में केरला की नहरें घूम रहीं थीं।
केरल उत्तर और दक्षिण दो हिस्सों में बंटा है। हालांकि, केरलम यानी केरा (नारियल) के पेड़ों से लदे इस प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा अरब सागर से लगा है, लेकिन पूर्वी हिस्से पर चाय के बागानों से सजे ऊंचे हरे-भरे पहाड़ हैं। उत्तर और दक्षिण के हिस्सों को जोड़ती हैं 1500 किलोमीटर लंबी नहरें। केरल की 38 बड़ी नदियों और 5 बड़े सरोवरों का पानी इन्हीं नहरों के जरिए समुद्र में जा मिलता है। इस बैकवॉटर वाला हिस्से में सबसे मशहूर है दक्षिण से उत्तर केरल की ओर जाने वाला 85 किलोमीटर लंबा जलमार्ग, जो बड़े हाउसबोट्स और नावों के लिए मुफीद है। भारत में तीन राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। यह जलमार्ग उनमें से एक है। हालांकि केरल की असल खूबसूरती बेहद खूबसूरत चाय बागानों, बैकवॉटर और अरब सागर के समुद्र तटीय बीच के हिस्से हैं।
कोच्चि से ट्रैन से एलप्पी पहुंचने का रास्ता भी खुद अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। केरल की पूरी लम्बाई को यह ट्रैन पार करती है। रेलवे पाथ के दोनों ओर नहरें और घने पेड अपनी ओर खींचते हैं। एलेप्पी में जहां चारों तरफ बडी बडी नहरें ही नहरें हैं और उनमें वोटिगं का गजब का आनंद मिलता है। इन नहरों का पानी बैक वाटर्स के नाम से जाना जाता है। बैकवॉटर्स यानी समुद्र की लहरों के साथ आया वह पानी जो झील के रूप में बदल गया। अलेप्पी स्टेशन से करीब दस मिनट के रास्ते पर वोट जेट्टी है। यदि आप पर्सनल वोट लेना चाहें तो पांच सौ से तीन हजार हजार के बीच है। इसके अलावा सरकारी वोट भी चलती है जो मात्र पच्चीस रूपये में दो घंटे की यात्रा कराती है। वेम्बनाड़ लेक में मोटरबोट से तकरीबन दो घंटे की इस यात्रा का रोमांच हमेशा के लिए हमारे साथ रह जाने वाला था। अरब सागर के किनारे-किनारे बनी इसी लेक में केरल की प्रसिद्घ बोट रेस का आयोजन भी हर साल होता है। दूर दिखाई देते चर्च, पानी के बीच लगे साइन बोर्ड, लेक के बीच उभरा जमीन का कोई हरा-भरा टुकड़ा, उस पर नारियल के पेड़ों के नीचे एक झोंपड़ी और पानी बंधी हवा में हिलती छोटी-सी नाव। ‘अलप्पी को पूर्व का वेनिस’ ऐसे ही नहीं कहा जाता।
हाउसबोट, जिसे मलयालम में यहां केतुवेल्लम कहा जाता है, में भी ठहरने की व्यवस्था रहती है।
अलप्पी बैकवॉटर्स के लिए प्रसिद्घ है, मगर यहां के छोटे से समुद्रतट पर आप अरब सागर के विस्तार कभी नहीं भूलेंगे। बीच पर ही बनी किसी कॉफी शॉप में देर तक बैठें, वहीं बेशक दक्षिण भारतीय खाना खाएं, सोने के जगमगाते गहनों के बाजारों से गुजरें और जेटी पर इंतजार करती बोट से होते हुए अपने रात के ठिकाने पर लौट आएं। रात को पानी के बीच बसी दुनिया की जलती-बुझती रोशनियां होती हैं, कोई देर से घर लौटती नाव या होता है सन्नाटा। सैलानियों की बोट से कभी-कभी उठता संगीत किसी दूसरी दुनिया से आता लगता है।
अलप्पी से कोलम का आठ घंटे का मात्र चार सौ रूपये की टिकट पर नौका सफर केरल की बस्तियों और शहरों के बीच का सफर जन्नत में होने का एहसास कराने बाला होता है। नारियल के झुरमुटों में बसे खूबसूरत घर। डूबता सूरज और लहरों का उठता-जाता शोर। गजब का द्श्य मानो वक्त ठहर गया हो।
तिरूअन्तपुरम से पहले एक बहुत फेमस जगह अम्रतापुरी कोलम आयी जहां जानी मानी आध्यात्मिक हस्ती अम्रतामयी माता उर्फ अम्मा का आश्रम है जहां हजारों श्रद्धालु आते जाते हैं। पूरा दिन अलेप्पी में बिताने के बाद रात को तिरुअन्तपुरम के लिये ट्रैन पकडनी थी। रात को कोलम के रेलवे प्लेटफार्म पर ट्रैन के इतंजार में लेट गया। रेलवे पुलिस अधिकारी मुझे नोटिस कर रहा था। दर असल मुझे लौटते हुये रात हो चुकी थी और मैं सुबह छ बजे तक तिरुअन्तपुरम पहुंचना चाह रहा था इसलिये मैं सुवह के इंतजार में रात की तीन गाडियां निकाल चुका था। उसे ज्यादा शक हुआ तो मुझे पुलिस थाने ले गया।
करीब दो घंटे की कडी पूछताछ के बाद मुझे यह कहते हये छोडा कि बडी किस्मत बाले हो यार , शादीशुदा होने के वावजूद इतनी आजादी से घूम रहे हो।
आखिरकार करीब चार बजे की ट्रैन से एक घंटे मे त्रिअन्तपुरम पहुंच गया। सबसे पहले पदनाभ स्वामी मंदिर गया जो स्टेशन से बस एक किमी की दूरी पर है। ये दक्षिण भारत का वही प्रसिद्ध मंदिर है जहां करोंडों का खजाना छुपा है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल इस ऐतिहासिक मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।
अतं में समुद्र किनारे पहुंचा जहां खूव खुल कर मस्ती की। मछुआरों के साथ बैठ कर घंटे भर बतियाया। बीच पर वोटिगं की। स्विमिगं की।
समुद्र का बेहद खूबसूरत तट। एक जीवंत शाम। हर तट पर समुद्र अलग चेहरे के साथ होता है।
फिर भी बहुत पहचाना-सा। बचपन की भूगोल की किताबों से निकल कर मालाबार तट सामने आ खडा हुआ था। लहरें आ-आ कर लौट रही थीं। मछुआरे समुद्र में उतर पड़े थे, समुद्र के ऊपर बहती हवा कुछ ज्यादा ताजी थी।
रात हो रही थी और मुझे अभी तमिलनाडु की तरफ निकलना था।
बहुत खूब ! :)
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर।
Deleteआपका वर्णन पढ़कर केरल जाने के लिए जी मचल रहाँ हे
ReplyDeleteबहुत सुंदर
शुक्रिया
Deleteबहुत अच्छा लगा ।
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