नेपाल बाईक टूर : दूसरा दिन (21 October)
मथुरा से लखीमपुर खीरी तक :
घुमक्कडी पर निकलते समय हमेशा सुवह जल्दी ही घर छोड देना चाहिये पर मैं मथुरा से निकलते थोडा लेट हो गया था। घुमक्कड को समय का पाबंद होना चाहिये। सुबह पांच बजे तक निकल पडना चाहिये अपने सफर पर जबकि मुझे मथुरा से निकलते निकलते नौ बजे गये थे और फिर रास्ते में एक घुमक्कड मित्र नरेश चौधरी मिल गया। हाईवे पर गांव है। अपने घर ले गया। खाने की बहुत जिद की मगर मैंने खाने की बजाय मट्ठा पीना और बोतल में रखना मुनासिव समझा। मथुरा से निकलते निकलते दस बज गये थे। मथुरा से हाथरस बदायूं कासगंज होते हुये शहजहांपुर मुहम्मदी और फिर लखीमपुर खीरी पहुंचना था। लखीमपुर खीरी तक रात होने से पहले पहुंच जाना चाहिये था कितुं देरी पर देरी होती गयी। बीच में रास्ता भी थोडा खराब मिला था। बीच में गंगा जी का कछला घाट भी पडा। गंगा जी में स्नान किये बिना आगे बढना मेरे लिये नामुमकिन था। पानी का तो कीडा हूं मैं। मैं तो जीता ही पेड पोधों और नदियों के जल में हूं। और फिर गंगाजी की तो बात ही अलग है। गंगाजी को मैया क्यूं कहते हैं इस बात का उत्तर तो आप गंगा तटीय क्षेत्रों का भ्रमण करके ही पायेंगे। पूरे यूपी बिहार बंगाल की धन संपदा गंगा मैया की ही देन है। संयोग कुछ ऐसा रहा कि इस बार मैंने गंगा जी को करीब सात आठ बार पार किया होगा। कछला घाट पर गाडी को भी स्नान कराया और खुद भी किया। घाट तो सोरों में भी है पर जल ठहराव लिये है जबकि कछला में गतिमान है एवं घाट पर समुद्री बीच जैसा है।
सोरों से निकलते निकलते शाम के तीन बज चले थे जबकि लखीमपुर खीरी अभी बहुत दूर था। फिर भी खूब गाडी दौडाई और रात को नौ बजे लखीमपुर खीरी पहुंच गया जहां मेरा दोस्त कौशलेन्द्र गुर्जर मेरा इंतजार कर रहा था।
मथुरा से लखीमपुर खीरी तक :
घुमक्कडी पर निकलते समय हमेशा सुवह जल्दी ही घर छोड देना चाहिये पर मैं मथुरा से निकलते थोडा लेट हो गया था। घुमक्कड को समय का पाबंद होना चाहिये। सुबह पांच बजे तक निकल पडना चाहिये अपने सफर पर जबकि मुझे मथुरा से निकलते निकलते नौ बजे गये थे और फिर रास्ते में एक घुमक्कड मित्र नरेश चौधरी मिल गया। हाईवे पर गांव है। अपने घर ले गया। खाने की बहुत जिद की मगर मैंने खाने की बजाय मट्ठा पीना और बोतल में रखना मुनासिव समझा। मथुरा से निकलते निकलते दस बज गये थे। मथुरा से हाथरस बदायूं कासगंज होते हुये शहजहांपुर मुहम्मदी और फिर लखीमपुर खीरी पहुंचना था। लखीमपुर खीरी तक रात होने से पहले पहुंच जाना चाहिये था कितुं देरी पर देरी होती गयी। बीच में रास्ता भी थोडा खराब मिला था। बीच में गंगा जी का कछला घाट भी पडा। गंगा जी में स्नान किये बिना आगे बढना मेरे लिये नामुमकिन था। पानी का तो कीडा हूं मैं। मैं तो जीता ही पेड पोधों और नदियों के जल में हूं। और फिर गंगाजी की तो बात ही अलग है। गंगाजी को मैया क्यूं कहते हैं इस बात का उत्तर तो आप गंगा तटीय क्षेत्रों का भ्रमण करके ही पायेंगे। पूरे यूपी बिहार बंगाल की धन संपदा गंगा मैया की ही देन है। संयोग कुछ ऐसा रहा कि इस बार मैंने गंगा जी को करीब सात आठ बार पार किया होगा। कछला घाट पर गाडी को भी स्नान कराया और खुद भी किया। घाट तो सोरों में भी है पर जल ठहराव लिये है जबकि कछला में गतिमान है एवं घाट पर समुद्री बीच जैसा है।
सोरों से निकलते निकलते शाम के तीन बज चले थे जबकि लखीमपुर खीरी अभी बहुत दूर था। फिर भी खूब गाडी दौडाई और रात को नौ बजे लखीमपुर खीरी पहुंच गया जहां मेरा दोस्त कौशलेन्द्र गुर्जर मेरा इंतजार कर रहा था।
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