Monday, October 31, 2016

My Nepal bike tour part 5

24 October पांचवा दिन : मालूंग टू पोखरा & पोखरा टू काठमांडू ।।

ट्रैफिक पुलिस पर्यटकों के प्रति जहां एक और बहुत मददगार है तो वहीं दूसरी ओर कानून के मामले में बहुत सख्त भी है। जगह जगह गाडियां चैक की जा रहीं थी पर नेपालगंज बौर्डर से लेकर काठमांडू तक मुझे बस एक जगह रोका गया। पोखरा से सौ किमी पहले । वो भी उत्सुकतावश। मेरी गाडी पर " I love My India " का स्टीकर जो लगा था और " बेटी बचाओ बेटी पढाओ " स्लोगन लिखा था तो सभी लोग मुझे किसी NGO  का सदस्य समझ रहे थे। पुलिसकर्मी ने मुझसे बहुत ही दोस्ताना तरीके से बात की। कागज चैक कर काफी देर बातें करता रहा। काफी देर हंसी मजाक करने के बाद निकल पडा पोखरा की तरफ।
मालुंग नामक गांव में मात्र तीन सौ नेपाली में कमरा मिल गया। नेपाल में पर्यटन ही मुख्य व्यवसाय है तो परिवार के सभी सदस्य इसी कार्य में व्यस्त रहते हैं। बेटे बेटियां बुजुर्ग सभी लोग। यहां तक कि परिवार की महिलायें भी शराब परोषती हैं और उस पर खूल कर हंसी मजाक भी करती हैं। शराब तो पहाडों में पानी जैसी अहमियत रखती है। जल्दवाजी में मेरा चार्जर घर ही छूट गया था। होटल बाले अकंल ने बताया कि बस सौ मीटर पर ही एक दुकान है। सामान और हैलमेट कमरे में ही रखा था। सोचा कि सौ मीटर के लिये क्या हैलमेट लगांऊ, वाईक लेकर दुकान पर पहुंचा। चार्जर लेकर निकल ही रहा था कि पुलिसकर्मी ने रोक लिया। काफी समझाया पर नहीं माना। हैलमेट लाने के लिये होटल तक पैदल ही दौडा दिया। हैलमेट लाने के बाद भी हजार रुपये का चालान करने लगा। काफी निवेदन किया तब जाकर कहीं छोडा । कडी चेतावनी के साथ।
रुम पर बापस आकर एक प्लेट दाल चावल मंगायी जो करीब एक सौ अस्सी रुपये की थी। पहाडों में मंहगाई बहुत है। रात को बहुत गहरी नींद आयी। इतनी गहरी कि सुवह तीन बजे ही जग गया। मुर्गा भी बांग पर बांग दिये जा रहा था। अंधेरा था इसलिये विस्तर में ही पडा रहा और अपना यात्रा वृतांत लिखता रहा।
सुवह सात बजे थोडा उजाला होते ही पोखरा के लिये निकल पडा। सोचा था कि एक घंटे में धूप निकल आयेगी पर उल्टा हो गया। सर्दी बढती गयी। जैसे जैसे पोखरा की तरफ बढ रहा था, ठंड बढती जा रही थी। हालत ये हो गयी कि मुझे रुककर इनर और जैकेट पहनना पडा। पोखरा से तीस किमी पहले ही उमडते घुमडते बादलों ने घेर लिया। देखते ही देखते सफेद सफेद रूई जैसे बादलों ने पहाडों को अपने आगोश में समा लिया। न तो नीचे नदी घाटी दिख रही और न ऊपर की चोटियां। यहां तक कि सडक पर भी काफी नजदीक जाकर दिख रहा था। खतरनाक मोड थे। थोडी सी लापरवाही जानलेवा हो सकती थी।
वाईक की स्पीड मुस्किल से बीस रही होगी। हालांकि इतनी खडी चढाई नहीं थी कि पहले दूसरे गियर लगाना पडे।
ठंड बढती जा रही थी। मैं ठंड में ठिठुरने ही जा रहा था कि अचानक से भगवान भाष्कर के दर्शन हुये। साईड में गाडी लगाई और दस मिनट तक धूप सेंकी। सारी ठंड जाती रही।
बडा मनमोहक नजारा था। कोहरे में लिपटी पहाडियों को धूप ने नहला कर और चमकदार बना दिया था। घाटी में नीचे बहती हुई नदी भी चमकने लगी। अब जैसे ही मोड आता, सूरज छिप जाता और फिर वही बादलों का हुजूम फिर अगले मोड पर सूरज की चमक। धूप और बादल हरी भरी पहाडियों में आंख मिचौली का खेल खेल रहे थे।
पोखरा से लगभग चालीस किमी पहले से ही रोड पर स्कूल के लिये जाते बच्चों का आना शुरू हो गया था। समय करीब साढे आठ नौ का रहा होगा। छोटे छोटे मासूम से बच्चे पीठ पर बस्ता लगाये अपनी मम्मी या पापा की उंगली थामे उछलते कूदते स्कूल बस स्टैन्ड की तरफ बढ रहे थे तो कुछ बच्चों का समय पूर्व निर्धारित स्थान पर अपनी बस का इतंजार कर रहे थे। देखकर बहुत खुशी हुई कि पहाडी लोग भी आधुनिक शिक्षा में गहरी रुचि लेने लगे हैं। रंग विरंगी ड्रैस । कोई मेहरूम कलर तो कोई बैंगनी। कोई सफेद तो कोई हरी ड्रैस। ज्यादातर तो मुझे प्राईवेट स्कूल्स के ही बच्चे दिखे।
दस बजे तक अच्छी धूप निकल आयी थी और पोखरा भी पहुंच चला था। पोखरा पहाडों से घिरी हुई काफी चौडी समतल जगह है। पोखरा से बस पांच किमी पहले ही एक बौद्ध शांति स्तूप है। बहुत ऊंचाई पर । उस पहाड की सीधी चडाई पर तो मेरी वाईक भी घनघना उठी। इतनी सीधी चडाई आज तक कभी इस वाईक ने नहीं देखी। करीब दस मिनट की चडाई है पर पहले गियर में ही ले जाना पडा। दस मिनट की चडाई के बाद एक खुला स्थान आया जहां काफी सारे रैस्ट्रांज बने हुये हैं और यहीं गाडी पार्क कर सीढियां चढकर शांति स्तूप पहुंचना होता है। हांफते रुकते रुकाते मैं सीढियां चढ गया और ऊपर पहुंच कर जो नजारा देखा स्तब्ध रह गया। शहर की सबसे पहाडी पर स्तिथ सफेद गोल स्तूप, चारों और सुंद सुंदर फूलों की क्यारियां और हरे भरे पेड पौधे। मन प्रशन्न हो गया। गजब की शांति। खुली हवा। पेड के नीचे बिछाये गये सिटिगं प्लेस से नीचे पोखरा शहर और विशाल फेवा ताल में तैर रही नावों को देखना भी काफी आनंददायक होता है। शांति स्तूप की दस सीढियां उतरने के बाद से ही शानदार होटल्स बने हुये हैं जहां आप पोखरा की खूबसूरती को निहारते हुये चाय काफी या वाईन की चुस्कियां ले सकते हैं। यहां से पूरा शहर दिखता है। पोखरा नेपाल में दूसरी सबसे ज्यादा घूमे जाने वाली जगह है। यह 827 मीटर ऊंचाई पर स्थित है और ट्रेकिंग और रैफ्टिंग के लिए भी प्रसिद्घ है। पोखरा की अद्भुत प्रकृति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महज आठ सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस जगह से आठ हजार मीटर ऊंचाई वाली चोटियां बस हाथ बढ़ाकर छू लेने भर वाले फासले पर स्थित हैं। दुनिया में कहीं और आपको इतनी जल्दी एक हजार मीटर से आठ हजार मीटर ऊंचाई का सफर तय करने को नहीं मिलेगा। फेवाताल का दृश्य और पीछे स्थित माछापुछे (6977 मीटर) पर्वत की शोभा मानो शांति और जादू के सम्मोहन में बाँध लेती है। चारों तरफ पर्वतों से घिरी पोखरा घाटी घने जंगलों, प्रवाही नदियां, स्वच्छ झीलों और विश्वप्रसिद्घ हिमालय के दृश्यों के लिए ख्यात है। पोखरा धौलागिरी, मनासलू, माछापुछे, अन्नपूर्णा जैसा महत्वपूर्ण चोटियों और अन्य हिमालयी दृश्यों का आनंद प्रदान करता है। पोखरा का सबसे विलक्षण दृश्य अन्नपूर्णा पर्वत श्रेणी का है जो रंगमंच के पर्दे की शोभा प्रदान करता है। वैसे अन्नपूर्णा पर्वत श्रेणी में सबसे ऊंची चोटी अन्नपूर्णा (8091 मीटर) है, लेकिन माछापुछे पड़ोस की सभी चोटियों पर शासन करती है। माछापुछे शिखर मेहराबदार शिखर है।
शांति स्तूप पर काफी देर विश्राम करने और पोखरा शहर का अवलोकन करने के बाद नीचे आया। जोरों की भूख लगी थी। रोटी सब्जी तो मिली नहीं। मोमोज खाना नहीं चाहता था। आमलेट का आर्डर दे दिया। सौ रुपये की एक आमलेट पेट भरने के लिये काफी थी। खा पीकर थोडी ताकत आयी शरीर में और फिर चल पडा शहर की ओर जहां अगला पडाव था डेविस फाल और उसी के सामने गुप्तेश्वर गुफा।
मैं समझ रहा था कि डेविस फाल कोई नेचुरल झरना होगा जो पहाडों की गोद से अनवरत बह रहा होगा और लोग उसमें नहा कर मस्ती कर रहे होंगे। मैं भी नहाने को मचल उठा था। सुवह जल्दी निकल पडा था। सर्दी की बजह से नहा नहीं पाया था और अब धूप निकल आयी थी तो गर्मी लग रही थी। अक्टूवर में भी जून की सी गर्मी। ग्लोवल वार्मिंग का असर पहाडों में भी नजर आने लगा है। वो दिन दूर नहीं जब हम वर्फ देखने अन्टार्कटिका का टूर बनाया करेंगे। शांति स्तूप से उतरने के बाद बाजार में पहुंचा तो डेविस फाल के इधर उधर तीन चक्कर लगा लिये पर मुझे दिखाई नहीं दिया। दर असल सडक के दोनों तरफ दुकानें सजी हैं और उन्ही में से एक डेविस फाल का गेट है। डेविस फाल का व्यापारीकरण कर दिया गया है। गेट पर दस रुपये का टिकट काट कर अदंर जाने दिया जाता है जहां कि ढेर सारी दुकानें सजी हैं। दुकानदारों की डिमांड करती निगाहों से बचते हुये कुदरत के अजूबे झरने तक पहुंचा तो देखता ही रह गया। गजब का दृश्य था। एक नदी उफनती हुई आ रही है और रहस्यमयी ढंग से जमीन के अदंर समा गयी है। जमीन में समाते समाते इतनी गहरी घाटी बना गयी है कि हम उसे ऊपर से देख भी नहीं पाते। हमें तो बस ऊपर उठता हुआ धुंआ ही दिखता है। मैंने उसके कुछ फोटो और वीडियो भी बनाया है उसे आप फेसबुक पर देख सकते हैं। झरने के चारों ओर एक रैलिगं लगी है जिसकी बजह से उसका पूरा आनंद नहीं ले पाया पर जितना भी लिया मन को राहत दे गया। उसमें नहा न पाने का मलाल था पर इतने खतरनाक झरने में न नहाना ठीक था क्यूं कि एक बार डेविस नाम के व्यक्ति नहाते समय झरने में समा गये थे और दो दिन की मशक्कत के बाद उनकी लाश मिली थी तभी से इस झरने का नाम डेविस फाल पड गया। झरने के आसपास शेष जो भी सजावट है वो बनाबटी है अत: मुझे कोई खास आकर्षित न कर सकी। हम तो नेचुरलिस्ट जो ठहरे। खैर थोडी बहुत देर अदंर चहलकदमी करने के बाद बाहर आये तो पार्किगं बाले लडके ने पांच रुपये मांगने से पहले ही सलाह दी कि सर आप गाडी यहीं खडी रहने दो सामने ही गुप्तेश्वर गुफा भी देख आईये। उसकी बात में दम थी। नेपाल में यदि कुछ सस्ता है तो वो है पार्किगं । बस पांच रुपये। हैलमेट और सामान गाडी पर ही छोड दो। कोई हाथ तक न लगायेगा। सामान वहीं रख सामने ही मंदिर की ओर बढ गया।
गुप्तेश्वर एक धार्मिक गुफा है। इस गुफा के लिये गोल बाबडी टाईप सीढियां हैं और उसके ऊपर ही एक सुंदर मंदिर भी बना है। यह गुफा तीन किमी लंबी है लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे थोडा अदंर जाकर रोक रखा है। गुफा के अंदर एक शिवलिंग स्थित होने के कारण हिंदुओं के लिए इस गुफा का विशेष महत्व है। सीढियां उतरते गया और आखिर में एक दरवाजे में प्रवेश करते ही अंधेरा ही ही अंधेरा। ऊपर से टपकती छत। रपटती सीढियां। साईड में प्राचीन मूर्तियां। अतं में उतरकर गुफा का सबसे चौडा स्थान और उसके बीचों बीच शिवलिगं और कुर्सी डाले पंडज्जी। प्रकृति के उपहारों की दुकानदारी करना तो हमने बखूबी सीख लिया है और यही कारण है कि लोग सनातन की तरफ आकर्षित नहीं हो पाते। इस दुकानदारी से घवरा कर दूर भाग जाते हैं। खैर कुछ भी हो नजारा बडा मनमोहक था। थोडी देर अदंर घूमने के बाद ऊपर मंदिर पर आया। साफ सुथरा मंदिर जिसमें नेपाली लोग भजन कीर्तन कर रहे थे और महिलायें भक्ति में चूर नृत्य कर रहीं थी। मेरे साथ ही एक जर्मनी का पेयर भी वीडियो रिकौर्डिगं कर रहा था जिसमें उस महिला को भजन की धुन पर नाचते देख जर्मन महिला भी खडे खडे ठुमकने लगी थी। नाचती महिला ने हम दोनों को भी आमंत्रित किया लेकिन थकावट बहुत ज्यादा थी मेरी तो हिम्मत न पडी। जर्मन महिला थोडा संकुचा गयी और मुझसे बोली , मैं ऐसा कैसे कर पाऊंगी ? ओह काश मैं नाच पाती। लवली बंडरफुल ! अमेजिंग ! व्हाट अ कल्चर !
जब अंग्रेज लोग सनातनी संस्कृति और गीत संगीत की तारीफ करते हैं तो दिल खुश हो जाता है। आखिर में यही तो हमारी कुल जमा पूंजी है जो हमने दुनियां को सिखाया है। सनातन का मतलब है , प्रकृति गीत संगीत भक्ति आनंद मौज मस्ती जिसके लिये कि ये भौतिकवादी लोग तरषते हैं। नजदीक ही विन्ध्यवासिनी मंदिर है । वो देवी भगवती जो शक्ति का ही एक दूसरा स्वरूप समझी जाती हैं यह मंदिर उनकी पूजा का स्थल है।
डेविस फाल पर न नहा पाया था , सोचा फेवा ताल पर नहाऊंगा। पूछते पूछते फेवा ताल पहुंचा पता चला कि चार पांच किमी तक फैला हुआ है आप कहीं भी वोटिगं कर सकते हैं पर मैं तो सबसे फेमस स्पाट जगह ढूंड रहा था और वो थी बाराही मंदिर बाला वोटिगं प्लेस। फेवा झील नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी झील है जो पोखरा के आकर्षण का केंद्र है। उसका पूर्वी किनारा जो बैडैम या लेकसाइड के नाम से लोकप्रिय है। यह पर्यटकों के पसन्द का निवास स्थल है जहां अधिकतर होटल, रेस्तरां और हैंडिक्राफ्ट की दुकानें अवस्थित हैं। यह सबसे भीड भाड बाला किनारा हैं जहां हजारों नाव हैं । मात्र सौ रुपये से लेकर छ हजार तक की रेट्स हैं। चार साथी हों तो आप नाविक लेकर निकल पडें और घंटे के हिसाब से पेमेंट करें। अधिकांशत पर्यटक फेवा ताल के बीचों बीच बने वाराही मंदिर तक ही जाते हैं और लौट आते हैं। शाम के समय वोटिगं का आनंद ही कुछ और है। ताल के बीचों बीच बना वाराही मंदिर फेवा झील के मध्य भाग में निर्मित यह पैगोडा शैली का दोमंजिला मंदिर देवी शक्ति का उपासना स्थल है जो चारों से घने बृक्षों से आच्छादित है। बहुत ही रमणीक और सुंदर स्थान।
पोखरा को झीलों की नगरी भी कह सकते हैं आप। फेवा ताल के अलावा भी बहुत सारी झीलें हैं जिनमें बेगनास और रूपा झील खास हैं। ये दोनों झील पोखरा से 15 किमी दूरी पर स्थित हैं और अपने चारों ओर स्वच्छ वातावरण के कारण पूर्णतया नैसर्गिक अनुभूति प्रदान करते हैं। पोखरा को झीलों का शहर कहते हैं। पोखरा में आठ झीलें हैं-फेवा, बनगास, रूपा, मैदी, दीपपांग, गुंडे, मालदी, खास्त. फेवा झील में तो बाराही मंदिर भी है, जहां लोग दर्शन करने जाते हैं। इसके अलावा बर्ड वाचिंग, स्विमिंग, सनबाथिंग आदि को अपना बना सकते हैं।
फेवा ताल भ्रमण के बाद सारंगकोट नाम का स्थान मेरी लिस्ट में था जहां से पैराग्लाडिगं का आनंद लिया जा सकता है। शहर के दूसरे कोने पर स्थित सबसे ऊंची पहाडी पर बना यह स्थान पहुंचने के हिसाब से बडा खतरनाक और एडवेंचरस है। कोई हिम्मतबाला ही वाईक चला कर बहां पहुंच सकता है। बाप रे बाप! इतनी ऊंची चढाई ! और वो भी एकदम सीधी ! मैं जोश ही जोश ही जोश में चड तो गया पर मुझे पसीना आ गया। दर असल रोड खराब है। मोटे मोटे गिट्टी कंकड पडे हैं। सीधी चडाई पर डाबर रोड न हो तो चडाई दूभर हो जाती है। बाइक उछलते उछलते चड रही थी। एक तरफ गहरी खाई । गिरने फिसलने का डर । चडाई खत्म न होने का नाम नहीं ले रही थी। ऐसी चडाई पर  बाइक तीन सौ सीसी ही होनी चाहिये। फिर भी मैं अपनी सौ सीसी होंडा की तारीफ करूगां कि उसने मुझे पहुंचा दिया सबसे ऊंची चोटी पर जहां से पोखरा के मकान चींटी जैसे दिख रहे थे। फेवा ताल के ऊपर मंडराते पैराग्लाईड किसी चील जैसे दिखाई दे रहे थे। खुली हवा । हरी भरी बादियां। एकांत पहाडियां। दिल खुश हो गया। सारी थकान जाती रही। सूर्य छिपने को था। फेवा ताल में चमकती लाल लाल किरणें मन को उद्वेलित कर रहीं थी। मन कर रहा था आज यहीं रुक जाऊं कितुं शहर से निकल कर रास्ते में रुकना सस्ता भी रहता है और आरामदायक भी। पैराग्लाडिगं सात हजार में हो रही थी जो मनाली में दो हजार की थी। इसलिये बस बैठ कर ही आनंद लेता रहा और थोडी देर बाद ही निकल पडा काठमांडू की ओर।
पोखरा ने दिल जीत लिया। निसंदेह बहुत सुंदर शहर है। पहाड़ों की वादियों से सजे शहर में माछेपूछे (फिश टेल) के साथ-साथ पहाड़ों की छाया जब झीलों के लहराते पानी पर पड़ती है तो उस समय का दृश्य ऐसा लगता है मानो किसी कलाकार ने अपनी कला को अंजाम दे दिया है। यहां पर भी सूर्य के उदय के दर्शन के लिए लोग सारंगकोट में 1591 मीटर की ऊंचाई पर अलस्सुबह ही पहुंच जाते हैं जब सूरज की पहली किरण बर्फ जमे पहाड़ों पर पड़ती है तो उस समय का सुनहरापन पहाड़ का श्रृंगार कर देता है और पर्यटकों का दिल वाह-वाह कह उठता है। प्रकृति का यह अद्भुत दृश्य कभी न भूलने वाला बन जाता है।
पोखरा नेपाल का दूसरा बड़ा शहर है। पोखरा नेपाल के पश्चिमांचल विकास क्षेत्र, गण्डकी अंचल और कास्की जिला का सदरमुकाम है। यहां पर प्रकृति कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। यहां से हिमालय पर्वत श्रेणियों को अपेक्षाकृत नजदीक से देखा जा सकता है। अन्नपूर्णा, धौलागिरि और मान्सलू चोटियों को यहां निकट से देखा जा सकता है। यह कुदरत का अद्भुत करिश्मा ही है कि 800 मीटर की ऊंचाई पर बसे पोखरा से 8000 मीटर से भी ऊंचे पहाड़ सिर्फ 25-30 किमी. की दूरी पर स्थित है।पहाड़ों के अलावा झालें, नदियां, झरनों के साथ मंदिर, स्तूप और म्यूजियम भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।यहां भी हवाई अड्डा है। सड़कें अच्छी हैं। बाजार भी सजे-धजे रहते हैं। शापिंग का भरपूर मजा लिया जा सकता है।
यहां पर काली-गंडक नदी में विश्व में सबसे सकरी गहराई वाला स्थान है। कई नदियां भी हैं. एक है सेती नदी! नेपाली में सेती का अर्थ सफेद! अर्थात सफेद दुधिया पानी की नदी! खास बात-यह नदी कहीं अंडरग्राउंड, तो कहीं सिर्फ दो मीटर चौड़ी और कहीं-कहीं यह 40 मीटर गहरी है. महेन्द्र पुल, के.एल. सिंह ब्रिज, रामघाट, पृथ्वी चौक से इस नदी का उफान देखा जा सकता है। झीलों, नदियों के साथ डेविस फाल अर्थात मनमोहक झरना दिलोदिमाग को ताजगी देता है। पोखरा में इंटरनेशनल म्यूजियम और गोरखा मेमोरियल म्यूजियम अपनी-अपनी कहानी बताकर इतिहास से परिचित कराते हैं। तितली म्यूजियम का भी मजा लिया जा सकता है लेकिन रात होने से पहले मुझे शहर छोडना था और रास्ते में कोई सस्ता सा लौज लेना था इसलिये निकल पडा काठमांडू की ओर।


4 comments:

  1. कुछ तथ्य गलत हो गए है। स्थान के नाम भी गलत पड़ गए है । पोखरा में राफ्टिंग कहा दिखी आपको,,,

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    1. जी हां सर एक दो तथ्य आसपास के लिख दिये थे।

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  2. अगली बार कभी आइयेगा,,, अन्नपूर्णा रेंज के उस पार ले चलूंगा आपको,,,

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