Saturday, October 29, 2016

My bike tour of Nepal : part 1

नेपाल बाईक टूर ।।
20 October  पहला दिन : धौलपुर टू मथुरा ।।।।

जाने कितनी बार नेपाल की यात्रा का प्लान बना होगा किंतु हर बार बस यही सोच कर रह गया कि गोरखपुर के बाद बस या टैक्सी में कैसे चल पाऊंगा मैं। बस हो या बंद कार मुझे काल समान लगती हैं। मनाली से रोहतांग तक के मात्र एक घंटे के सफर में मेरी जान निकल गयी थी जबकि यहां तो पूरे छ दिन सिर्फ बस में ही चलना था, नेपाल में ट्रैन्स हैं ही नहीं। चाहे कुछ भी हो जाय, जाऊंगा तो वाईक से ही, सोच लिया था। तीन हजार की इतनी लम्बी वाईक यात्रा के लिये कोई मेरे जैसा पागल घुमक्कड ही मेरा पार्टनर बन सकता है, आम शौकिया पर्यटक तो चक्कर खाकर गिर पडेगा। जैसे तैसे पडौसी शिक्षक भगवती शर्मा साथ चलने को तैयार भी हुआ पर मुझे पता था कि ये ऐन टाईम पर पलटी मार सकता है। जैसे ही इसके घर बालों को पता चलेगा कि तीन हजार किमी वाईक पर चलना है, घरबाले इसकी चुटिया खेंच लेंगे। और हुआ भी वही, बीस की सुवह निकलने से थोडा पहले ही मुंह लटकाता हुआ आया, अरे यार हमारा तो प्रोग्राम कैंसल है, घरबाले डांट रहे हैं। हहहहहह मुझे पहले ही पता था पर हम कहां रुकने बाले हैं, राही को साथी तो मिलते रहते हैं, यहां नहीं तो आगे मिलेंगे। और फिर कोई मिले न मिले, बस बढते जाना है। गब्बर कहता था कि जो डर गया वो मर गया पर मैं कहता हूं जो थम गया वो जम गया।
बीस को मथुरा में संजू की बच्ची का बड्डे फंक्शन था, दिल्ली से दोस्त भी आ रहे थे तो सोचा कि मथुरा होते हुये ही निकला जाय। बैसे भी नेपाल को लम्बाई में पार करने की ठान रखी थी। समय की कमी के चलते हालांकि पूरा तो पार न कर पाया पर तब भी काफी भाग कवर कर लिया।
अधिकांशत: पर्यटक बस लुम्बिनी बुटवल पोखरा काठमांडू के त्रिकोण में ही सिमट कर रह जाते हैं और भ्रमण स्थल हैं भी यही मुख्य तो पर हमें तो सडकें नापने की आदत है।
दिल्ली से आये दोस्तों को यमुना एक्सप्रैस वे पर बंद एसी कार में पता भी न चल पाया होगा कि यात्रा कहते किसे हैं ? मथुरा आने पर सोचा कि इन शहरी लोगों को गांव की गलियों में वाईक पर घुमा लाऊं । गांव भी कोई ऐसा बैसा नहीं , वो गलियां जिनमें बाल गोपाल बंशीवारे मोहन प्यारे अपनी सखियों सखाओं के साथ खूब मौज मस्ती किया करते थे, गायें चराया करते थे, यमुना के किनारे किनारे गोकुल की कुंज गलियों में घूमते हुये और रमण रेती की हरियाली में विचरण करते हुये मन को जो आनंद प्राप्त होता है उसे शहरी आदमी कुछ ज्यादा मेहसूस कर सकता है।
लेकिन लौटते हुये कहने लगे, मात्र दस किमी की वाईक यात्रा में हमारा ये हाल है, तुम्हारा हजारों किमी में क्या हाल होता होगा ?
दोस्त लोग कहते हैं कि इतना सफर कर कैसे लेते हो, सफर में तो बहुत सफर करना पडता है। बैसे ये सच भी है। घुमक्कडी में आनंद केवल एक जुनूनी घुमक्कड ही प्राप्त कर सकता है, सामान्य पर्यटक नहीं , घुमक्कडी तो कष्ट का दूसरा नाम है। पर हमें उस दर्द में भी सुकून मिलता है। एक मां भी दर्द झेलती है पर हर मां उस दर्द में आनंद प्राप्त करती है। दर्द न हो तो वो जननी ही न बन पाये।
आनंद भैया के शब्दों में कहूं तो यात्रा... एक अनुभव है, देशकाल का अनुभव। साथी कैसे होंगे, ये तो किस्मत है।
खुली खिड़कियां आपको कुदरत से सीधा जुड़े रहने का मौका देतीं हैं। वातानुकूलित बंद दुनिया में सबकुछ बंद ही होता है। लोगों के दिल भी। सुविधाए जैसे जैसे बढती जातीं हैं, लोग सिमटते जाते हैं, कटते जाते हैं।
बंद डिब्बे की यात्रा में बच्चे, पूरी यात्रा बस फोन पर गेम्स खेलते बिता देते हैं। बदलती जगह के मुताबिक बदलते हालात के बारे में समझ, बढ़ती ही नहीं उनकी। यात्रा केवल दूरी तय करना नहीं है। वो बदलते स्थान के साथ, बदलते तापमान, आवाज, गंध, नजारे, सबके अनुभव की यात्रा होती है।
सूर्यमुखी के खेतों से गुजरते, एक खास गंध से भरे जीवन से गुजरने का अनुभव होता है। फर्क तापमान का भी होता है और आद्रता का भी। ऐसा हर खास स्थान के साथ होता है। यही तो अनुभव है। अन्यथा बच्चों को, टीवी, सिनेमा कंप्यूटर के पर्दे... और सच्चाई में अंतर ही समझ नहीं आता है। हो ऐसा ही रहा है।
भारत एक ठंडा बंद डब्बा नहीं है। वो विविधताओं से भरा बेहद खूबसूरत देश है। और देशप्रेम, कागज, फोन, कंपूटर और क्रिकेट के मैदान में नहीं... देश में फैला है। नये लोग... भारत से प्रेम, इसके अनुभव से नहीं सीख रहे, वे इसे, बस तिरंगा डीपी और प्रोफाइल पिक्चर करने को समझ रहे हैं। और इसी के बूते दुनिया जीतना चाहते है।
फ्लाइट... बस दो घंटे में पूरा शिवालिक, विध्याचल, चंबल और कोंकन रेंज पार कर लेती है। लेकिन इससे, धरती पर लाखों बरस की प्रक्रिया से बनी भौगोलिक रचनाओं का वजूद और अहमियत खत्म नहीं हो जाती। वो वैसे ही प्रभावशाली बनी रहती हैं।
और अगर इन्हें सही से जीना हैं तो सफर में सफर तो होना ही पडेगा।
इस बार श्री राम की ससुराल, सीता मैया की जन्मभूमि और पशुपतिनाथ जी की पावन धरा के भ्रमण का इरादा है।

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