Tuesday, October 4, 2016

पुत्र मोह


केवल धैर्यवान ही पढें। पोस्ट लंबी, धार्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक है। छुई मुई जैसी धार्मिक आस्था बाले बंधु न पढें तो ही बेहतर है। डेंगू के मच्छर ने मेरा सारा खून चूस रखा है, आपकी गालियों को सहने लायक भी शक्ति नहीं बची है। फिर भी मन न माने तो मुझे ही देना, घरबालों को न देना क्यूं कि वो भी आपकी तरह धार्मिक बीमार हैं। घरबाली तौ इतनी धार्मिक है कि मेरी पोस्ट पढकर रोज काली देवी की तरह जीभ लपालपाकर चंडी रूप धारण कर छाती पर पैर रख चिल्लाती है," हे दुष्ट राक्षस ! हे महिषासुर के नवीनतम विकृत मौडल, शामत आयी है तेरी!  मैं उसे याद दिलाता हूं कि हे मेरे चरणों की दासी, प्राणों की प्यासी , काली और दुर्गा की सयुंक्तावतार देवी चार दिन बाद करवा चौथ का वृत किसके लिये रखेगी फिर ? तेरी लिये साडी और श्रंगार आइटम कौन लायेगा फिर ? तब जाकर उसका रूख कुछ नरम पडता है और करम फोडते, कजरी सा मुंह बनाते बडबडाती हुई रसोई की तरफ गति कर गयी कि हे भोलेनाथ ये ही दिन देखने लिये तुझपे लोटे लुढकाये थे। ऐसी भी क्या जल्दी थी ? दो चार सोमवार और सब्र कर लेती मैं तो , कम से कम किसी इंसान से तो व्याह कराता मेरा ? मेरे करम फूट गये । ये महाभैंषासुर क्यूं लिख दिया तूने मेरे करम में ?
नवरात्रे की पहली रात को मेरी प्राणप्यारी ने वृत रखा था। पूरे दिन भूखे मरी और मैं खा पीकर मस्त फेसबुक पर काल्पनिक मैया और उसके नकली उपासकों की मजाक बना रहा था। उसी रात मुझे तेज बुखार आया। पर मैंने घर में किसी को न जगाया। दूसरे दिन सुवह ही नीचे से ऊपर तक सब जाम। भयंकर दर्द । पूरी तरह विकलांग । लैट्रिन में भी न बैठ सका। काश खडे खडे निबटने का कोई सिस्टम भी अंग्रेजों ने बनाया होता। बिना फ्रैस हुये ही बाहर आ गया तो मेरी प्रिये प्राणेश्वरी के चेहरे पर चंडी के से भाव देख कर समझ गया कि आपातकाल शुरू होने बाला है। कोई पारिवारिक विपदा आने बाली है। इससे पहले कि उसकी गुस्सा शांत कर पाता,
फूट पडी," और करो मैया का अपमान ! अभी तो देखो क्या क्या होता है ! अभी तो मैया ने डेंगू का मच्छर ही भेजा है, कल को भैंरोबाबा का कुत्ता भी भेजेगी और उसके काटने से भी कुछ न हुआ तो अपना शेर भेजेगी।"
हहहहह अरर मेरी प्रीतम प्यारी, मेरी राजकुमारी, बडी भोली है री तू बेचारी ! नाम भी लिया तो किसका ? उस पियक्कड भैंरो का ? उस राक्षस का जिसकी बजह से तेरी मैया पहाडों की गुफा में नौ महीने तक दुबकी पडी रही ? भला हो उस नारी शक्ति का जिसने उसकी गर्दन उडाकर तीन किमी ऊपर लटका दिया वरना उस कमबख्त राक्षस को भी बाप कहकर पूजना पडता। प्रीतम प्यारी का मुंह सूजकर जयललिता सा हो गया।


ना चाहते भी दिन भर प्राणेश्वरी सेवा करती रही। बाबूजी पूरे दिन मेरे साथ बैठे रहे। शाम को दोस्त भगवती शर्मा गाडी में पटक कर डाक्टर के पास ले गया। चार हजार की जांच और दवाई लाया। घर पर उसने ही इंजैक्शन और ड्रिप लगायी। इंजैक्शन इतने हैवी थे कि ड्रिप बहुत स्लो चढानी पडी। रात के तीन बजे तक ड्रिप चढी। मैं फेसबुक पर बकलोली कर टाईम पास करता रहा। बाबूजी हर दस मिनट बाद मेरे कमरे के चक्कर काट रहे थे। नींद और थकान से आखें लाल पडी थीं बाबूजी की। 76 वर्ष की उम्र में इतनी जिंदादिली बहुत कम लोगों में देखी है मैंने।
उसी दिन बडे भैया मम्मी का औपरेशन कराने लखनऊ ले जा रहे थे। बाबूजी का भी रिजर्वेशन था। बुढापे में बेटे की अपेक्षा पत्नि से अधिक प्रेम होता है लेकिन बाबूजी ने लखनऊ जाने से साफ मना कर दिया। बोले कि मैं अपने बेटे को बीमार छोडकर नहीं जा सकता । मेरी लाख जिद करने पर बोले,
" तेरी मम्मी के साथ उसका सिपाई बेटा है न ? "
बाबूजी सुवह चार बजे तक जगते रहे। एक बार मैं ड्रिप लटका कर टायलेट गया तो देखा कि सुवह चार बजे बाबूजी ध्यान मग्न थे । शायद ईश्वर से अपने बेटे की सलामती की दुआ कर रहे थे।
मैं बापस आकर सो गया। सुवह जगा तो पता चला कि मैं काफी हद तक चल फिर सकता हूं। बाबूजी अभी सो रहे थे। सर पर हाथ रखा तो पाया कि बाबूजी बुखार में तप रहे थे।
आपने मुगल बंश के संस्थापक बाबर के इंतकाल की कहानी तो अवश्य सुनी होगी जिसने अपने पुत्र हुमायुं के बीमार पड़ने पर अल्लाह से हुमायुँ को स्वस्थ्य करने तथा उसकी बीमारी खुद को दिये जाने की प्रार्थना की थी। ईश्वर ने बाबर की दुआ कबूल कर ली और हुमांयू ठीक होने लगा। इसके बाद  बाबर का स्वास्थ्य बिगडता गया और अंततः वो 1530 में 48 वर्ष की उम्र में जन्नतनशीं हो गया।
लेकिन मेरे बाबूजी एक जिंदादिल इंसान है। जीवन जाने कितनी मुसीबतों का सामना करके अपनी चारों औलादों को सरकारी नौकर बनाया है। सन्यास आश्रम में भरपूर मस्ती और जिंदादिली है। मरने के नाम पर तो कहते हैं, यमराज की ऐसी तैसी भगा दुंगा मेरे पास फटका भी तो। इसलिये बाबर की पूरी कहानी यहां फिट नहीं होती पर आधी जरूर होती है।
अब सुनाता हूं आपको बाबर की कहानी।

आगरा के चार बाग के बीच में बाबर का अत्‍यन्‍त सुन्‍दर विशाल राजभवन। इसी राजभवन के एक कमरे में बाबर का पुत्र हुमायूँ बीमार पड़ा है। बीमारी धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है और उसके साथ हुमायूँ के जीवन की आशा भी क्षीण पड़ती जाती है। बाबर इस समय आगरे से पचास किमी दूर मेरे शहर धौलपुर में है। हुमायूँ की बीमारी की खबर मिलते ही वह आगरे लौट पड़ता है।
दोपहर का समय है। चारों ओर सन्‍नाटा छाया हुआ है और वातावरण से उदासी टपक रही है। बाग के भीतर घुसते ही वहाँ के सन्‍नाटे से बाबर स्‍तब्‍ध हो जाता है। उसके आते ही राजभवन में कुछ हलचल होती है। वह सीधे उस कमरे में पहुँचता है जहाँ हुमायूँ पड़ा हुआ है। माहम बेगम - हुमायूँ की माँ - उसके पलंग के पास बैठी है और चिन्‍ता से उसका चेहरा उतरा हुआ है। बाबर को आया देखकर वह चुपचाप सिर झुकाकर खड़ी हो जाती है। बाबर एक बार उसकी ओर देखता है और फिर हुमायूँ के बिस्‍तर के नजदीक जाकर खड़ा हो शान्‍त भाव से उसे एकटक देखता रहता है। बाबर [हुमायूँ के सिर पर धीरे से हाथ फेरते हुए धीमी आवाज में] बेटे! बेटे! [हुमायूँ आँखें बन्‍द किए निश्‍चेष्‍ट पड़ा है, कोई उत्तर नहीं देता।"

माहम: [दीन स्‍वर में] जहाँपनाह! मेरे सरताज! आपके कई लड़के हैं, लेकिन मेरा... मेरा यह एक हुमायूँ ही है। चार औलादों में एक यही बच रहा है। मैं अपनी इन्‍हीं बदनसीब आँखों से, एक के बाद दूसरे को, मौत के मुँह में जाते देखती रही हूँ और सीने पर पत्‍थर रखकर सब बर्दाश्‍त करती गयी हूँ, लेकिन आज... अब नहीं...यह आखिरी औलाद... यह कलेजे का टुकड़ा... ! नहीं...नहीं, माँ का दिल इससे ज्‍यादा तंग...नहीं हो सकता... ! मैं अपनी इन बदनसीब आँखों को फोड़ लूँगी, लेकिन हुमायूँ की मौत नहीं देख सकती... नहीं देख सकती! [सिसकने लगती है।]

बाबर : [प्रेम से उठाकर सिर पर हाथ फेरते हुए] माहम! मलका! घबराओ मत!

माहम: [रोते हुए] सरताज! मैं न घबराऊँ तो और कौन घबराये? काश! आपको एक औरत—एक माँ—का दिल मिला होता! मुझे यह धन-दौलत कुछ नहीं चाहिए लेकिन मेरा बेटा... या खुदा! मेरा यह बेटा मुझसे न छीन! एक माँ का दिल तोड़कर—उसकी दुनिया उजाड़कर—तुझे क्‍या मिल जाएगा? मेरे सरताज! मैं आपके पैरों पड़ती हूँ। जैसे-भी हो, मेरे बेटे को बचाइए। आपको बादशाहत प्‍यारी है, लेकिन मुझे...मुझे मेरा बेटा प्‍यारा है। मेरे सरताज!

बाबर : [रुककर कुछ सोचता हुआ] हजारों आदमियों की जान लेने की ताकत हम में थी लेकिन आज एक आदमी की जान बचाने की ताकत हम में नहीं है। कैसी लाचारी है? [थोड़े आवेश में] किसी इन्‍सान को वह चीज लेने का क्‍या हक है जिसे वह दे नहीं सकता। बादशाहत! बादशाहत! यही बादशाहत है जिसके लिए बचपन से लेकर आज तक हम एक दिन भी चैन की नींद नहीं सो सके। और उसका नतीजा! [लम्‍बी साँस लेकर] सारी दौलत, सारी सल्‍तनत सामने पड़ी है और बादशाह का बेटा दम तोड़ रहा है। कोई तरीका, कोई हिकमत कारगर नहीं हो पाती। यही एक जगह है, जहाँ बादशाह और फकीर में कोई अन्‍तर नहीं रह जाता। हमसे वह कंगाल सौ गुना अच्‍छा जो चैन की नींद तो सोता है, बेफिक्री से जिन्‍दगी बिताता है।

हकीम : बड़े भाई! मैं क्‍या सोचूँ? मेरा सोचना और न सोचना तो दवा पर मुनहसर है और दवा कारगर नहीं हो रही है।

अबू बका : तो तुम क्‍या समझते हो कि दुनिया की तमाम बीमारियों की दवा तुम्‍हारे इन अर्कों, सफूफों और रूहों में ही महदूद है? कभी उस पर भी खयाल किया है कि जो इन दवाओं को ताकत बख्‍शता है? अगर उसकी नजर है तो तुम्‍हारे अर्क और सफूफ आबेहयात हैं; नहीं तो महज मिट्टी या गर्द, बस। तुम भले ही उम्‍मीद हार बैठे हो लेकिन मैं मायूस नहीं हूँ।

हकीम : बड़े भाई! मुर्तजा की ताकत तो अर्कों ओर सफूफों तक ही खत्‍म है।

अबू बका : हुक्‍म हो तो जहाँपनाह की खिदमत में मैं एक दवा अर्ज करूँ ?

अबू बका : मेरे उस्‍ताद, जिनकी बात के खिलाफ आज तक मैंने कुछ होते नहीं देखा और जिन्‍हें जहाँपनाह भी अच्‍छी तरह जानते हैं, कहा करते थे कि ऐसे मौके पर सबसे अजीज चीज खुदाताला को भेंट करने पर अकसर दम तोड़ते हुए मरीज को भी भला-चंगा होते हुए देखा गया है।

बाबर : [खुशी से] सच?

बाबर : [बात काटकर] मौलाना! आप शाहजादे की जिन्‍दगी को एक छोटी-सी बात समझते हैं ? जिसे आप शाहंशाहे-हिन्‍दुस्‍तान कहते हैं उसके दिल की एक-एक धड़कन हुमायूँ की जिन्‍दगी की मिन्‍नत की आवाज है। आज आपके सामने शाहंशाहे-हिन्‍दुस्‍तान नहीं, एक इन्‍सान — मामूली इन्‍सान खड़ा है, और जिन्‍दगी से उसके बेटे की जिन्‍दगी कहीं बेशकीमत है।

बाबर : आप जो कहिएगा उसे हम समझ रहे हैं। अगर आप यह सोचते हैं कि हुमायूँ के नहीं रहने पर हम जिन्‍दा रह सकेंगे तो आप धोखे में हैं।

अबू बका : जहाँपनाह! मेरे कहने का मतलब कुछ दूसरा है। मैं अर्ज करना चाहता हूँ कि क्‍यों नहीं उसे ही खुदा को भेंट किया जाए ?

बाबर : [एकाएक हुमायूँ के चेहरे की ओर देखकर घबराई हुई आवाज में] वह देखिए हकीम साहब! शाहजादे के चेहरे पर सफेदी छा रही है। आँख डरावनी लग रही है। [आवेश में] नहीं, नहीं अब ज्‍यादा सोचने का वक्‍त नहीं है। हमारे जीते-जी हुमायूँ को कुछ नहीं हो सकता। हम उसे बचाएँगे, जरूर बचाएँगे। हीरे और पत्‍थर से काम नहीं चलेगा। खुदाताला की खिदमत में हम खुद अपनी जान हाजिर करते हैं।

[बाबर तेजी से गम्‍भीरतापूर्वक हुमायूँ के पलंग की चारों ओर घूमने लगता है।]

अबू बका : [और हकीम घबराकर] आलमपनाह! आलमपनाह! यह क्‍या कर रहे हैं ? खुदा के लिए...।
बाबर : [कठोर स्‍वर में] खामोश! शाहंशाहे-हिन्‍दुस्‍तान का हुक्‍म है कि आप खामोश रहिए। हम जो कर रहे हैं उसमें खलल न डालिए। [तीन बार पलंग की परिक्रमा कर हुमायूँ के सिरहाने जमीन पर घुटने टेक कर बैठ जाता है। हाथ जोड़कर आँखें बन्‍द कर लेता है और मुँह कुछ ऊपर उठाए हुए शांत गम्‍भीर स्‍वर में कहता है।] या खुदा! परवरदिगार! तेरी मेहरबानी से मैंने एक-से-एक मुश्किलों पर फतह हासिल की है। मैं हर गाढ़े वक्‍त पर तुझे पुकारता रहा हूँ और तू मेरी मदद करता रहा है। आज एक बार फिर इस मौके पर तेरी उस मेहरबानी की भीख माँगता हूँ। अपने बेटे की जान के बदले मैं अपनी जान हाजिर करता हूँ। तू मुझे बुला ले, लेकिन उसे अच्‍छा कर दे...।

हकीम : [आश्‍चर्य और प्रसन्‍नता से] आलमपनाह! शाहजादा ने आँखें खोल दीं। आज सात रोज के बाद...।

बाबर : [प्रसन्‍नता से] हमारी आवाज अल्‍लाहताला तक पहुँच गई... पहुँच गई! अल्‍लाहो...अकबर...।

[बाबर धीरे-धीरे उठकर हुमायूँ के सिर पर हाथ फेरता है।]

बाबर अचानक से एक-दो बार जोर से सिर हिलाता है जैसे कोई तकलीफ हो। हकीम साहब! हमारे सर में जोर का चक्‍कर और दर्द मालूम हो रहा है। एक अजीब बेचैनी मालूम हो रही है।

[बाबर कमजोर और सुस्‍त एक पलंग पर पड़ा है। कभी-कभी दर्द से कराह उठता है पर चेहरे पर से अफसोस के बदले खुशी जाहिर हो रही है जैसे इस बीमारी की उसे कोई चिन्‍ता न हो। पलंग के एक बगल में एक तिपाई पर हकीम और दूसरी पर अबू बका बैठे हैं। दूसरे बगल में माहम और हुमायूँ चिन्तित भाव से चुपचाप खड़े हैं।]

बाबर : अब तो कूच की तैयारी है। जितनी देर तक साँस चल रही है, वही बहुत है। पसलियों में बेहद दर्द है, साँस नहीं ली जाती। अल्‍लाहताला बुला रहा है।

बाबर : आज हमें एक ही बात का अफसोस है। जिसकी सारी उम्र लड़ाई के मैदान में कटी उसकी मौत बिस्‍तर पर हो रही है। [खाँसता है] हम लड़ते-लड़ते मरने के ख्‍वाहिशमंद थे। खुशकिस्‍मती से एक ऐसे मुल्‍क में पहुँच भी गए थे जहाँ बहादुरों की कमी नहीं थी — लेकिन वह अरमान... [खाँसता है। हिन्‍दुस्‍तान बड़ा बुलन्‍द मुल्‍क है। यहाँ के राजपूतों के लिए हमारे दिल में बड़ी इज्‍जत है। वे दरसअल दिलेर और बहादुर हैं। मरना या मारना किसी को इनसे सीखना चाहिए।

बाबर : हकीम साहब! अब दवा न दीजिए। यह हिचकी है या खुदा का पैगाम है। [फिर हिचकी आती है]

माहम : [करुण स्‍वर में] या खुदा, यह कैसा इम्तिहान है ? एक ओर लख्‍तेजिगर को जिन्‍दगी बख्‍शी तो दूसरी ओर सरताज को इतनी तकलीफ दे रहा है।

बाबर : मलका! परवरदिगार के शुक्र के बदले शिकवा ? अल्‍लाहताला का हजार-हजार शुक्र है कि उसने हमारी इल्‍तजा सुन ली, हमारी उम्‍मीद और अरमानों के चमन को सरसब्‍ज रहने दिया, हमारी आँखों की मिटती हुई रोशनी लौटा दी। तभी तो हम आज शहजादे को भला-चंगा देख रहे हैं।

बाबर : [बात काटकर] हमारी फिक्र छोड़ो, मलका! हमने तो खुद यह तकलीफ माँगी है। हमें बहुत बड़ा फख्र है कि हमारे मालिक ने अपने ऐसे नाचीज बंदे की अदना-सी भेंट कबूल फर्मा ली। [दर्द से करवट बदलता है]
बाबर : सेहत! बेचारे हकीम साहब! बेटा! हमने हिन्‍दुस्‍तान को फतह किया, हकूमत की बुनियाद भी डाली मगर सल्‍तनत की ऊँची इमारत तैयार करने के पहले ही हमें जाना पड़ रहा है। अब उस इमारत को पूरा करना और कायम रखना तुम्‍हारा काम है। [हिचकी आती है।] जंग के मैदान में हमारी तलवार के वार कभी ओछे नहीं पड़े और अमन के जमाने में हमारी दानिशमंदी ने कोई गलत रवैया भी अख्तियार नहीं किया। बादशाहत के लिए दोनों चीजें एकसाँ जरूरी हैं। [दर्द से करवट बदलता है।] आह, सिर फटा जा रहा है।

बाबर : मलका! हम माँ-बेटे को एक-दूसरे को सुपुर्द करते हैं। [माहम सिसक-सिसककर रोने लगती है] बेटा, सिपहसालार को बुलाओ। [एक आदमी बाहर जाता है] और सुनो। इधर नजदीक आओ। [आवाज पहले से धीमी पड़ जाती है] आज से इस सल्‍तनत के तुम मालिक हो। [खाँसता है] तुम नेक और आजादखयाल हो। अपने भाइयों और बहनों को मुहब्‍बत की नजर से देखना। उनसे कोई गलती भी हो तो माफ करना। [हिचकी आती है] आह! साँस लेने में बड़ी तकलीफ है। [जोर से साँस लेता है]

बाबर : हम कूच कर रहे हैं। हमारे बाद शाहजादा हुमायूँ हिन्‍दुस्‍तान के बादशाह होंगे। [खाँसता है] आप सबों से उन्‍हें उसी तरह मदद मिलनी चाहिए जिस तरह हमें मिलती है। आह! बेटा! पानी! [हुमायूँ मुँह में पानी देता है] बेटा, यहाँ जितने हैं सबों का हाथ पकड़ो। [हिचकी आती है] सबों की परवरिश करना। [जोर से साँस लेता है] या खुदा! और हाँ, हमारी आखिरी ख्‍वाहिश... [हिचकी आती है] हमें यहाँ न दफना कर काबुल की मिट्टी में दफनाना। यह हमारा आखिरी हुक्‍म... और... ख्‍वाहिश है। [हिचकी] तुम सब... आबाद रहो [जोर की हिचकी] अल...विदा। अल्‍लाहो...अ...क...ब...र... [हिचकी के साथ शांत हो जाता है।]

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