Monday, January 7, 2019

बरसाने की लट्ठमार होली

बरसाने की लट्ठमार होली
अगले ही दिन बरसाने में विश्व प्रसिद्ध होली खेली जानी थी। सुवह से ही गाडियों का जमावाडा होना प्रारंभ हो गया था।शहर से तीन किमी पहले ही बैरियर लगा कर बडे वाहनों को रोक दिया गया। हम भी जग कर शौचादि के लिये निकल पडे। गांव से एक किमी दूर हरे भरे खेतों के बीच एक संत बाबा की कुटिया और हैंडपंप दिखाई दिया। बस वहीं रुक गये। खेतों में फ्रैश होने बहुत दिनों बाद आये थे। खेतों पर काली मिट्टी से स्नान भी आनंददायक था। न कोई शोर शरावा न कोई हलचल। सिर्फ पक्षियों की मधुर आवाज और चारों तरफ हरियाली। पेडों के नीचे सिर पर साफी ओढे संत लोग साधना में लीन भी दिखे तो कुछ चिलम खींचते बाबा लोग। घर गृहस्थी के झंझटों से दूर सन्यास का आनंद लेते सनातनी बुजुर्ग। एक घंटे तक स्नान ध्यान हुआ और फिर निकल पडे गांव की ओर। गांव में घुसते ही कचौडी और जलेवी का नास्ता लेकर पेटपूजा भी हो गयी। अभी नास्ते की दुकान से बाजार की तरफ बढे ही थे कि मस्तों की टोली ने ढेर सारा गुलाल फेंक कर मारा और रंग विरंगा कर दिया। टोलियां बढती गयीं और पता ही नहीं चला कि कब रोड लोगों से भर गया। दोपहर होते होते तो सारा बाजार जाम हो चुका था। बाइक को खडा करने की जरूरत थी अब। तुरंत पार्किगं तलाशी और फिर पैदल यात्रा शुरू। 
बरसाना में होली का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ लट्ठमार होली की शुरुआत सोलहवीं शताब्दी में हुई थी। तब से बरसाना में यह परंपरा यूं ही निभाई जा रही है, जिसके अनुसार बसंत पंचमी के दिन मंदिर में होली का डांढ़ा गड़ जाने के बाद हर शाम गोस्वामी समाज के लोग धमार गायन करते हैं। प्रसाद में दर्शनार्थियों पर गुलाल बरसाया जाता है। इस दिन राधा जी के मंदिर से पहली चौपाई निकाली जाती है, जिसके पीछे-पीछे गोस्वामी समाज के पुरुष झांझ-मंजीरे बजाते हुए होली के पद गाते चलते हैं। बरसाना की रंगीली गली से होकर बाज़ारों से रंग उड़ाती हुई यह चौपाई सभी को होली के आगमन का एहसास करा देती है। मंदिर में पंडे की अच्छी ख़ासी खातिर की जाती है। यहाँ तक कि उस पर क्विंटल के हिसाब से लड्डू बरसाए जाते हैं, जिसे पांडे लीला कहा जाता है। श्रद्धालु राधा जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर में होते हैं तो उन पर वहाँ के सेवायत चारों तरफ से केसर और इत्र पड़े टेसू के रंग और गुलाल की बौछार करते हैं। मंदिर का लंबा चौड़ा प्रांगण रंग-गुलाल से सराबोर हो जाता है।
लट्ठमार होली शाम को चार बजे शुरू होनी थी लेकिन उससे पहले बाहर से आये लोगों ने बरसाना रंगीन कर दिया था। वहससमय भी आ गया जब 
राधारानी रुपी गोपियों ने नंदगांव के कृष्ण रुपी हुरियारों पर जमकर लाठियां बरसाईं। हंसी ठिठोली, गाली, अबीर गुलाल तथा लाठियों से खेली गई होली का आनंद देश-विदेश से कौने-कौने से आये श्रद्धालुओं ने जमकर लिया। कान्हा के सखा के रूप में आये नन्द गांव के हुरियारे यहां पीली पोखर पर आकर स्नान करते हैं। अपने सर पर पग (पगड़ी) बांध कर बरसाने की हुरियारिनों को होली के लिए आमंत्रित करते हैं। कहा जाता है जब भगवान कृष्ण बरसाने होली खेलने आये थे तो बरसने वालों ने उन्हें इसी स्थान पर विश्राम कराया था और उनकी सेवा की थी। तब से लेकर आज तक बरसाना की लट्ठमार होली से पहले इसी स्थान पर नन्द गांव से आने वाले हुरियारे यहां आकर परंपरा का निर्वहन करते चले आ रहे हैं। हजारों बरसों से चली आ रही इस परंपरा के तहत नंदगांव के हुरियारे पिली पोखर पर आते हैं जहां उनका स्वागत बरसाना के लोग ठंडाई और भांग से करते हैं। यहां से ये हुरियारे पहुंचते हैं रंगीली गली जहां ये बरसाना की हुरियारिनों को होली के गीत गा कर रिझाते हैं। होली के गीत और गालियों के बाद होता है नाच गाना और फिर खेली जाती है लट्ठमार होली। जिसमें बरसाना की हुरियारिन नन्द गांव के हुरियारों पर लाठियों की बरसात करते हैं। जिसका बचाव नन्द गांव के हुरियारे अपने साथ लायी ढाल से करते हैं। इस होली को खेलने के लिए नन्द गांव से बूढ़ें, जवान और बच्चे भी आते हैं। बरसाना की इस अनोखी लट्ठमार होली को देखने के लिए देश के कौने-कौने से श्रद्धालु आते हैं। ब्रज में चालीस दिन तक चलने वाले इस होली में जब तक बरसाना की हुरियारिन नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों से होली नहीं खेलतीं तब तक होली का आनंद नहीं आता। 













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