Saturday, December 15, 2018

उत्तराखंड चार धाम बाइक यात्रा : भारतीय सीमा का अतिंम गांव माणा (बद्रीनाथ)।

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बद्रीनाथ जी के सुवह ही दर्शन के पश्चात यहां की खूबसूरती देखने को निकल पडा। यहां के अन्य धार्मिक स्थल और भी हैं जैसे अलकनंदा के तट पर स्थित अद्भुत गर्म झरना जिसे 'तप्त कुंड' कहा जाता है। एक समतल चबूतरा जिसे 'ब्रह्म कपाल' कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेखित एक 'सांप' शिला है। शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड 'शेषनेत्र' है। भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं- 'चरणपादुका' । बद्रीनाथ से नजर आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊंचा शिखर नीलकंठ, जो 'गढ़वाल क्वीन' के नाम से जाना जाता है। माता मूर्ति मंदिर जिन्हें बदरीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है। और इस सब से अलग देखने लायक है मात्र तीन किमी दूर माणा गाँव जिसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है क्यूं कि यहां से आगे रिहाइस नहीं है, चीन की सीमा शुरू हो जाती है। इस गांव की खास बात है ऊंचे पहाडों की तलहटी में होना। इसके नीचे से ही अलकनंदा बहती हुई बद्रीनाथ पहुंच रही है। अलकनंदा का उदगम स्थल इन्ही पहाडों के ऊपर संतोपथ ग्लेशियर है। यहां से आगे सेना का कब्जा है। सेना की अनुमति लेकर ही ऊपर जा सकते हैं । हालांकि यही रोड चीन सीमा तक जा रही है पर केवल सैनिक ही जा सकते हैं। ट्रेकर्स को जोशीमठ से अनुमति पत्र लाना पढेगा। माणा गांव के निवासी अधिकांशत: राजपूत जाति से है जो यहां गरम कपडों के बेचने के अलावा खेती भी करते हैं। अक्टूवर नबंवर में वर्फवारी होते ही ये सभी लोग जोशीमठ की तरफ पलायन कर जाते हैं।
मेरी बाइक गांव के प्रवेश द्वार तक पहुंच जाती है जहां दो तीन चाय नास्ते की दुकानें हैं। सुवह की ठंड में भारत की अतिंम चाय की दुकान पर नास्ता करना सुखद ही लगा। वहीं बाइक खडी करके पैदल ही गांव में प्रवेश करता हूं। मुश्किल से पचास घर होंगे। गांव के अंत में ऊंचा पहाड है जिसमें से सरस्वती नदी फूट पडी है। पत्थर के अंदर से फूटती धारा और उस पर रखी एक बडी भीमकाय शिला गजब का नजारा दिखाती है। बताया जाता है कि भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है। वो बात अलग है कि पंडों ने इसे भीमकाय की बजाय भीम शिला बना दिया है। पांडूपुत्र भीम निसंदेह बलशाली था पर पंडो ने अपने अविवेकपूर्ण विवरण से उसे कोई राक्षस बनाने में कसर नहीं छोडी। उस भीमकाय पत्थर पर जिसे आज की कोई बहुत बडी क्रेन भी उठाने में दिक्कत मेहसूस करेगी, पंडो ने चौक से लिख दिया है," भीम के पैरों के निशान " । ऐसी ही बेतुकी बातों ने सनातन का मजाक उडवाया है। गांव में ही वेद व्यास गुफा और गणेश गुफा भी हैं जहां वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ बताया जाता है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। वेदव्यास जी गद्दी पर बैठने वाले सभी उनके शिष्य भी ऐसी ही एकांत प्राकृतिक गुफाओं में बैठकर अध्ययन अध्यापन किया करते थे।वसु धारा नामक स्थान पर  अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी। ये जगह माणा से आठ किलोमीटर दूर है।लक्ष्मी वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है। सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) के बारे में कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था। अलकापुरी अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है।
करीब दो घंटे तक गांव वासियों से बतियाने और गांव में घूमने के बाद मैं निकल पडा बापस जोशीमठ होते हुये चमोली गोपेश्वर की तरफ जहां से मुझे तुंगनाथ चौपता होते हुये उखीमठ और केदारनाथ पहुंचना था। 



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