मैं अक्सर लोगों को रोते देखता हूं। कभी किसी पद के लिये कभी दौलत के लिये तो कभी संतान के लिये। फिर अचानक से टीवी पर खबर देखता हूं कि बक्सर के जिला कलैक्टर अवसाद में रेल से कटकर जान दे देते हैं। ऐसे अनगिनत केसेस हैं जिनमें करोडपति लोग या बहुत बडे पद वाले लोग जीवन से निराश होकर घुटन की जिंदगी जी रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिये ? ऐशो आराम ? पद ? दौलत ? या खुशी ?
यदि आपका जवाब खुशी है तो उसके लिये उपरोक्त तीनों चीजों की कोई आवश्यकता नहीं है। बस इच्छा शक्ति चाहिये खुश रहने की। मुझे खरहरी खाट पर सोने से खुशी मिलती है तो मैं डनलप के गद्दे के लिये क्यूं विलाप करुं ? सिर्फ इस बजह से कि मेरा पडौसी डनलप के गद्दों पर करवटें बदलता रहता है ? असंतोष तनाव देता है और तनाव दुख देता है । दुख मौत है जीवन नहीं। जीवन जीने के लिये छोटे छोटे से बहाने ही काफी होते हैं। खुशी का क्या है कहीं भी मिल जाती है। रोते हुये किसी बच्चे को हंसा दिया मिल गयी खुशी। किसी नंगे बच्चे को नेकर बनियान पहना दिया मिल गयी खुशी। ऐसी ही छोटी छोटी खुशियां मैं ढूंडते रहता हूं। ऐसे में अगर कोई नवयुवक दोस्त आकर आपके खुशी लेने की विधि में शरीक हो जाये तो आपकी खुशी डबल हो जाती है। मेरे पिता ने गरीबी देखी थी। मेरी मम्मी हमारी नेकर के पीछे से फटने पर उस पर थेगडी लगा दिया करती थी। हमें उसमें भी बहुत खुशी मिलती थी। आज जब ईश्वर ने हमें किसी लायक बना दिया है तो क्यूं न कुछ बच्चों को ये छोटी छोटी खुशियां जुटायीं जांय।इसके लिये किसी बहुत बडे बजट की जरूरत नहीं होती। किसी भी रंगीन पहाडे की फोटो स्टेट कराईये। मुस्किल से पांच रुपये में पूरा पहाडा जिसमें कक्षा पहली दूसरी और तीसरी की पूरी पढाई होती है, तैयार हो जाता है। मुस्किल से सौ रुपये में बच्चों को वो पहाडा मिल जायेगा। आपके सौ रुपये में बहुतों को खुशी मिल गयी।
ऐसे में सवाल उठता है कि जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिये ? ऐशो आराम ? पद ? दौलत ? या खुशी ?
यदि आपका जवाब खुशी है तो उसके लिये उपरोक्त तीनों चीजों की कोई आवश्यकता नहीं है। बस इच्छा शक्ति चाहिये खुश रहने की। मुझे खरहरी खाट पर सोने से खुशी मिलती है तो मैं डनलप के गद्दे के लिये क्यूं विलाप करुं ? सिर्फ इस बजह से कि मेरा पडौसी डनलप के गद्दों पर करवटें बदलता रहता है ? असंतोष तनाव देता है और तनाव दुख देता है । दुख मौत है जीवन नहीं। जीवन जीने के लिये छोटे छोटे से बहाने ही काफी होते हैं। खुशी का क्या है कहीं भी मिल जाती है। रोते हुये किसी बच्चे को हंसा दिया मिल गयी खुशी। किसी नंगे बच्चे को नेकर बनियान पहना दिया मिल गयी खुशी। ऐसी ही छोटी छोटी खुशियां मैं ढूंडते रहता हूं। ऐसे में अगर कोई नवयुवक दोस्त आकर आपके खुशी लेने की विधि में शरीक हो जाये तो आपकी खुशी डबल हो जाती है। मेरे पिता ने गरीबी देखी थी। मेरी मम्मी हमारी नेकर के पीछे से फटने पर उस पर थेगडी लगा दिया करती थी। हमें उसमें भी बहुत खुशी मिलती थी। आज जब ईश्वर ने हमें किसी लायक बना दिया है तो क्यूं न कुछ बच्चों को ये छोटी छोटी खुशियां जुटायीं जांय।इसके लिये किसी बहुत बडे बजट की जरूरत नहीं होती। किसी भी रंगीन पहाडे की फोटो स्टेट कराईये। मुस्किल से पांच रुपये में पूरा पहाडा जिसमें कक्षा पहली दूसरी और तीसरी की पूरी पढाई होती है, तैयार हो जाता है। मुस्किल से सौ रुपये में बच्चों को वो पहाडा मिल जायेगा। आपके सौ रुपये में बहुतों को खुशी मिल गयी।
ये तो तय है कि आपकी नीयत पाक हो, उद्देश्य पवित्र हो, आपके किसी कार्य में रुकावट नहीं आ सकती। ये दुनियां अच्छे इंसानों से भरी पडी है। आप कोई नेक काम करने निकल पडो, वो आपको खुद ही ढूंड लेंगे।
जैसा कि आपको मालुम है कि हमारे स्कूलों में अधिकांशत गरीब मजदूरों और किसानों के बच्चे पढते हैं। पिछले पांच साल से अपने बच्चों को सर्दियों में ठिठुरते देख रहा हूं। पिछली साल मैं और मेरा स्टाफ सीमित मदद ही कर पाये थे। इस बार मित्रों से सहायता लेने का विचार बनाया। थोडा सकुचाते हुये एक पोस्ट डाल दी थी। गजब का रैसपौसं मिला। बहुत सारे साथी मदद के लिये आगे आये।
आज बच्चों के लिये स्वेटर खरीदने के लिये निकल रहा था कि बाजार में तीन चार फेसबुक मित्रों ने रोक लिया। साक्षात मुलाकात पहली वार हो रही थी। मित्रों ने बस इतना ही कहा कि आप जिस नेक कार्य के लिये जा रहे हैं, उस पवित्र हवन कुंड में एक छोटी सी आहूति हमारी भी स्वीकार कीजिये। सरस्वती मां के मंदिर में विराजमान छोटे छोटे इन बाल गोपालों के लिये कभी भी कोई जरूरत पडे, हमें जरूर याद किया कीजिये भाई। ऐसा बोलकर तीनों मित्रों ने मुझे कुछ रुपये दे दिये थे। मैं घर चला आया। शाम को मुरादाबाद निकलना था। स्टेशन निकलने से पहले बकील साहब संजीव गुप्ता जी का फौन आया कि थोडी देर के लिये मिलना चाहता हूं। रास्ते में मुलाकात हुई तो कुछ हजार रुपये देते हुये बोले, ये मेरी पत्नि ने भिजवाये हैं। वो एक शिक्षिका हैं और बच्चों में ही भगवान तलाशती हैं। साक्षात भगवानों के लिये इस छोटी सी भेंट को भी स्वीकार कीजिये। दोनों पति पत्नी की नेकनीयती को सलाम करते हुये मैं स्टेशन की तरफ निकल पडा।
आज बच्चों के लिये स्वेटर खरीदने के लिये निकल रहा था कि बाजार में तीन चार फेसबुक मित्रों ने रोक लिया। साक्षात मुलाकात पहली वार हो रही थी। मित्रों ने बस इतना ही कहा कि आप जिस नेक कार्य के लिये जा रहे हैं, उस पवित्र हवन कुंड में एक छोटी सी आहूति हमारी भी स्वीकार कीजिये। सरस्वती मां के मंदिर में विराजमान छोटे छोटे इन बाल गोपालों के लिये कभी भी कोई जरूरत पडे, हमें जरूर याद किया कीजिये भाई। ऐसा बोलकर तीनों मित्रों ने मुझे कुछ रुपये दे दिये थे। मैं घर चला आया। शाम को मुरादाबाद निकलना था। स्टेशन निकलने से पहले बकील साहब संजीव गुप्ता जी का फौन आया कि थोडी देर के लिये मिलना चाहता हूं। रास्ते में मुलाकात हुई तो कुछ हजार रुपये देते हुये बोले, ये मेरी पत्नि ने भिजवाये हैं। वो एक शिक्षिका हैं और बच्चों में ही भगवान तलाशती हैं। साक्षात भगवानों के लिये इस छोटी सी भेंट को भी स्वीकार कीजिये। दोनों पति पत्नी की नेकनीयती को सलाम करते हुये मैं स्टेशन की तरफ निकल पडा।
इस बार तीन दिन की छुट्टियां बहुत ही नेक काम के लिये खर्च की हैं। जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि मुरादाबाद के मेरे फेसबुक मित्र श्री Rajeev Kumar Agarwal जी ने मेरे स्कूली बच्चों के लिये स्वेटर देने का वायदा किया था। राजीव भाई प्रिटिंग प्रैस चलाते हैं। बेटा बैंक अधिकारी है। बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। राजीव भाई गरीब बच्चों की शिक्षा के लिये अक्सर चैरिटी करते रहते हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही एक और स्कूल के बच्चों के लिये इन्होने बीस हजार भेजे हैं। मुरादाबाद में इनके परिवार के सभी सदस्यों से मिला। बहुत ज्यादा प्रेम और सम्मान मिला। जनरल डिब्बे में यात्रा की थकान भी बढ जाती है। राजीव भाई के घर स्नान करते ही थकान दूर हो गयी। फिर साथ में खाना खाया और रात को ही लुधियाने के लिये निकल पडा।
लुधियाने में सुवह से शाम तक स्वेटर की रेट लेते हुये बाजार में घूमता रहा। बहुत बडा बाजार है। करीब दस बीस किमी तो पैदल चल लिया हुंगा। लुधियाने में बडे भाई जैसे मित्र G N Singh Grewal जी शिक्षक हैं जो शाम को स्कूल से फ्री होने थे। तब तक मुझे बाजार में रेट ट्राई करना था। शाम को उन्हौने अपने जानकार मित्र की फैक्ट्री से मुझे 114 स्वेटर इतनी कम कीमत पर दिलवाये कि मैंने उन्ही रुपयों में से बच्चों के लिये टोपे भी खरीद लिये। जब फैक्ट्री मालिक अनिल सहगल जी को पता लगा कि हम लोग गरीब बच्चों के लिये चैरिटी कर रहे हैं तो काफी भावुक हो गये और लागत कीमत पर ही हमें गर्म कपडे देना स्वीकार किया। सहगल जी के पास हम करीब दो घंटे बैठे । उसी दौरान उन्हौने हमें बताया कि कभी मैं भी इन्ही बच्चों की तरह था। बहुत कठोर परिस्थितियों से गुजरते हुये रात दिन मेहनत करके आज इस स्थिति में पहुंचा हूं। सहगल साहब का बेटा लंदन का जाना माना फैशन डिजायनर है।
" बेटी बचाओ बेटी पढाओ" का स्टीकर हर ड्रैस पर चिपकाते हैं सहगल साहब। ये बहुत अच्छा लगा मुझे। व्यापार के साथ साथ आप समाज को कोई मैसेज भी दे जांयें तो इससे अच्छी बात कोई हो नहीं सकती। इस छोटी सी यात्रा में मैंने एक बात सीखी है कि हमको दुनियां में बुराई केवल तभी दिखती है जब हम खुद बुरे होते हैं। और जब हम अपने मन को साफ कर पवित्र मन से नेकनीयती के साथ कोई नेक कार्य करने निकल पडते हैं, इतने सारे अच्छे लोग मिलते हैं कि संभालना मुश्किल हो जाता है।
संजीव गुप्ता परिवार, कमलजीत सिंह , मुकेश सक्सैना जी, राजीव अग्रवाल जी, अनिल सहगल जी और बडे भाई ग्रेवाल जी ने तो इस पवित्र कार्य में अपना सहयोग प्रदान किया ही है, इसके अलावा बहुत सारे मित्र और भी हैं जो गरीब बच्चों के लिये मदद हेतु आगे आये।
लुधियाना जाते समय मैं मथुरा में था तभी रू देश में रहने वाले मित्र ठा उमेश प्रताप सिंह जी का मैसेज मिला कि मैंने वैस्टर्न यूनियन से बच्चों के लिये कुछ मदद भेजी है, आप कलेक्ट कर लीजिये। मैसेज देखा । 11334 रुपये थे। दिल खुश हो गया। क्यूं कि अभी तक जुटाये पैसों से स्वेटर टोपे ही आ रहे थे , अब मैं उनके लिये बैग भी खरीद सकता था। उमेश भैया को फेसबुक से ही जानता हूं। अभी तक मुझे बस इतना ही पता था कि ये स्पैनिश टीचर हैं। स्पैनिश और हिंदी संवाद पढाते हैं। बाद में जाना कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यवसाय करते हैं। दवाइयों की ट्रेडिंग और फार्मासूटिकल रेगुलेटरी कन्सल्टन्सी का व्यक्तिगत मुख्य कार्य है , आयुर्वेदिक प्रचार प्रसार , हिंदी का प्रचार प्रसार सम सामायिक कार्य है जो कि भारतीय दूतावास के साथ मिलकर करते हैं। हालांकि शैक्षणिक योग्यता रसायन विज्ञान में परास्नातक है। और बिना डिग्री के इनकी योग्यता एक मोटिवेटर- काउंसलर की है।भारतीय दर्शन और व्यवसायिक प्रबंधन इनके पसंदीदा विषय है , भारतीय वैदिक ज्योतिष और आयुर्वेद में गहरी रूचि रखते हैं। विदेश आने का कोई प्लांड प्रोग्राम नहीं था बस नौकरी करते करते आ गये और आगये तो बस टिक गये।
satyapalchahar.blogspot.in
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मैंने इस पूरी यात्रा बस एक बात का अनुभव किया है कि अच्छाई भी बहुत तेजी से फैलती है। मथुरा के एक सज्जन के यहां वहां के स्कूलों में बंटने वाली कुछ ड्रेसेस रखी थीं। बंट भी न पायी कि सरकार बदल गयी और ड्रेस भी। दो महीने से रखी थीं। मुझे फौन आया कि आप इन गरीब बच्चों तक पहुंचवा दीजिये। नंगे बदन पर कुछ तो आयेगा।
कहने का मतलब है एक बार आप निकल पडो। रास्ते बनते चले जाते हैं। शुरूआत छोटी से छोटी भी हो सकती है। बस मकसद बडा होना चाहिये और दिल भी बडा होना चाहिये।
इस सब काम का श्रेय मैं अपने दो नवयुवक शिक्षक साथियों रोहित गर्ग और अरविंद कुमार को देना चाहूंगा जो बहुत कठिन मेहनत और संघर्ष के बाद नियुक्त हुये हैं। इस नेक पहल की शुरूआत उन दोनों ने ही करी थी। दो दो हजार रुपये देकर हमारे सामने प्रस्ताव रखा जिसे बाकी हम तीनों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
घुमक्कड़ी किस्मत से मिलती है।
ReplyDeleteबैंकों में लाखों होने के बाद भी जाने का मौका नहीं लग पाता है।