रुद्रपुर गुरुद्वारे में सुवह जल्दी ही नींद खुल गयी। नहा धोकर मत्था टेकने ऊपर गया। थोडी देर वहां बैठा और फिर निकल लिया नैनीताल की तरफ। रुद्रपुर से निकलते ही रास्ता एकदम मस्त हो चला था। सडकें भी जानदार और हरा भरा माहौल भी। काठगोदाम में चाय नास्ता लिया और बढ गया ऊपर की तरफ। काठगोदाम के बाद हिल ऐरिया शुरू हो जाता है। घने जंगल में बल खाती सडकों पर गाडी चलाने में बहुत ध्यान रखना पडता है। थोडी सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है इसलिये घुमक्कडों को यही सलाह दुंगा कि जब भी कोई प्राकृतिक सुंदरता आपको अपनी ओर खींचे, बाइक तुरंत रोक लो। मन भर कर सुंदरता को समेट लो और फिर दौड पडो। चलते हुये निगाह सामने ही रखो। जैसे जैसे ऊपर चडता जा रहा था, पहाडों की सुंदरता बढती ही जा रही थी। खूब धीमे चला फिर भी आठ बजे तक नैनीताल पहुंच गया। रुद्रपुर से नैनीताल 80 किमी है जिसे कवर करने में मुझे दो घंटे लगे। मेरा डेस्टीनेशन अल्मोडा से आगे जालेश्वर महादेव था इसलिये नैनीताल को बस नजर भर देखना ही था। बैसे भी मैं नैनीताल पहले आ चुका हूं। बस पुरानी यादें ताजा करनी थीं।
नैसर्गिक सौंदर्यता को अपने आप में समेटे हुए नैनीताल एक बेहद खूबसूरत जगह है । नैनीताल दो भागों में बटा हुआ है दक्षिण की तरफ तल्लीताल और उत्तर की तरफ मल्लीताल । बस और टैक्सी स्टैंड, गवर्नर हाउस और गोल्फ कोर्स तल्लीताल में स्थित है जबकि मल्लीताल में रिक्शा स्टैंड ,हाई कोर्ट ,तिब्बती बाजार ,बड़ा बाजार और केव गार्डन स्थित है। पुराणों के अनुसार जब प्रजापति दक्ष ने शिव को अपने यहां यज्ञ का निमंत्रण नहीं दिया , तब सती ने अपने पति का अपमान देखकर यज्ञ में कूद अपनी जान दे दी। इससे क्रोधित होकर शिव सती का पार्थिव शरीर लेकर इधर-उधर घूमने लगे। शिव की इस दयनीय स्थिति को देख कर, चिंतित होकर सभी देवतागण चिंतित होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और कुछ उपाय करने को कहा ,जिसको सुनकर विष्णु भगवान ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया जिससे सती के पार्थिव शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े होते चले गए माना जाता है कि यह टुकड़े जहां भी गिरे वहां शक्तिपीठ बनते चले गए और नैनीताल भी इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है। देवी सती की बाई आंख नैनीताल में गिरने से यहां की ताल का आकार आंख की तरह है। नैनीझील ही इस जगह का मुख्य आकर्षण है। हरे पानी की ये झील चारो तरफ हरे और ऊँचे पहाड़ो से घिरी हुई है। इस पर चलती हुई पाल नौकाए इस खूबसूरत जगह म चार चांद लगा देती है। बिना नौकायान के नैनीताल की यात्रा अधूरी है। नैनीझील को त्री”- ऋषि सरोवर” के नाम से भी जाना जाता है।नैनी झील की उत्तरी छोर पर बने बोट हाउस क्लब पर्यटको के लिए एक अच्छा स्थल है। यहां की मधुशाला में लकड़ी से निर्मित फर्श और झील की तरफ लगे हुए फर्नीचर पर बैठ कर झील को निहारना एक अलग ही एहसास देता है।नैनीताल को पूरा घूमने के लिये कम से कम दो दिन चाहिये। ताल का पानी बेहद साफ है और इसमें तीनों ओर के पहाड़ों और पेड़ों की परछाई साफ दिखती है। आसमान में छाए बादलों को भी ताल के पानी में साफ देखा जा सकता है। रात में नैनीताल के पहाड़ों पर बने मकानों की रोशनी ताल को भी ऐसे रोशन कर देती है, जैसे ताल के अंदर हजारों बल्ब जल रहे हों। ताल में बत्तखों के झुंड, रंग-बिरंगी नावें और ऊपर से बहती ठंडी हवा यहां एक अदभुत नजारा पेश करते हैं। ताल का पानी गर्मियों में हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला दिखाई देता है।तल्लीताल से मल्लीताल को जोडने वाली सडक पर झील के किनारे किनारे हरे भरे पेडों की छांव में चलना एक अलग ही आनंद प्रदान करता है। झील के ऊपरी हिस्से की तरफ एक बडा सा मैदान है जिसके एक तरफ मंदिर और गुरुद्वारे हैं तो दूसरी तरफ मस्जिद। यहीं पर भोटिया मार्केट है जहां सैलानियों की भीड लगी रहती है। यहां खाने पीने की चीजों से लेकर गर्म कपडों तक हर चीज मिल जायेगी आपको।
मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं चाईना पीक या डोरोथी सीट जा पाता। केबल कार में बैठ पाता। मुझे तो अल्मोडा से आगे जागेश्वर धाम पहुंचना था अत: भुवाली होते हुये अल्मोडा की तरफ निकल लिया। नैनीताल से अल्मोडा करीब 70 किमी पडता है और फिर वहां से 35 किमी जागेश्वर धाम। कुमाऊं क्षेत्र के पहाड़ों की ओर जाने वाली सड़कों का भुवाली में चौराहा है और यह नैनीताल से करीब 11 किमी दूर है। भुवाली को उसकी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। घोड़ाखाल में ग्वेल (गोलू) देवता का विशाल मंदिर है।यहां भक्त आकर उनसे अपनी मनोकामना पूरी करने की अर्जी लगाते हैं। इसके अलावा घोड़ाखाल को सैनिक स्कूल के लिए भी जाना जाता है।घोड़ाखाल का सैनिक स्कूल देश के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक है। अल्मोडा से जागेश्वर धाम की तरफ बढते हुये करीब दस किमी बाद चित्तई गांव में एक ऐसा मंदिर दिखाई देता है जिसमें चारों ओर घंटियां ही घंटियां नजर आती हैं । लोग कागज पर अपनी अपनी अर्जियां यहां टांग जाते हैं। गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का चितई मंदिर बिनसर वन्य जीवन अभयारण्य से भी नजदीक ही है और अल्मोड़ा से तो मात्र दस किमी दूर है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि वह कत्यूरी के राजा झाल राय और कलिद्रा की बहादुर संतान थे। ऐतिहासिक रूप से गोलू देवता का मूल स्थान चम्पावत में स्वीकार किया गया है। एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की गई। चमोली में गोलू देवता को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। चमोली में नौ दिन के लिए गोलू देवता की विशेष पूजा की जाती है। इन्हें गौरील देवता के रूप में भी जाना जाता है।
जागेश्वर नजदीक ही था अब। दिन भी बाकी था लेकिन बादल घिर आये थे। हल्की हल्की बूंदो ने मौसम सुहावना बना दिया था। यहां से आगे का वर्णन अगले ब्लाग में होगा।
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