Sunday, January 19, 2020

Kashmir : Heaven Or Hell ?

(1990) मैं नौंवीं कक्षा में था। उसी साल हमारे घर में पहली बार टेलीविजन आया था।

मुझे खाडी युद्ध अच्छे से याद है मगर उससे छ महीने पहले हुई काश्मीर की विभीषिका जरा सी भी ध्यान नहीं है। क्यूँ कि मेरे शहर में इसका कोई जिक्र ही नहीं था। हालांकि मुस्लिमों में अमेरिका को गाली देने और अपने बच्चों का नाम सद्दाम रखने की जैसे होड सी लगी थी मगर उन्हें काश्मीरी पीडितों के लिये कोई गम न था।

चाय की दुकानों पर अमेरिका और ईराक युद्ध की चर्चा खूब होती थीं। मगर देश में पहली बार मजहबी जुनून ने हिंदुओं की सर्वधर्म समभाव विचारधारा का जो जनाजा निकाला था उसका जिक्र कहीं नहीं था।

भले देश के हिंदुओं में काश्मीरी क्रिया की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई मगर इसने भविष्य के लिए जमीन जरूर तैयार कर दी। शायद ये ही वो समय था जब मैंने पहली बार अटल बिहारी बाजपायी जी और उनकी भारतीय जनता पार्टी का नाम सुना था।

समाज में क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं हुई मगर राजनीति में उस वक्त एक ऐसी शक्ति को पैदा हो गयी जो आने वाले समय में देश में सर्वधर्म समभाव विचारधारा वाले हिंदुत्व में भी एक इस्लाम खडा कर सकती थी।

इस घटना के महज दो साल बाद भारत में पहली बार कोई मस्जिद ढहा दी गई। उन हजारों हिंदुओं के द्वारा ये घृणित कार्य हुआ जिन्हौने कभी अपनी जान पर खेलकर 1947 में मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोका था और उनकी जान की रक्षा की थी।

ऐसा क्या और क्यूं हुआ काश्मीर में कि उसने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा ही पलट दी, जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना पडेगा।

इंदिरा गांधी की हत्या की सहानुभूति लहर में अब तक के इतिहास की सर्वाधिक सीटें लेकर राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने मगर एक ही कार्यकाल में जनता ने उन्हें नकार दिया और 2 दिसंबर 1989 को भारत के गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने वीपी सिंह और काश्मीरी मुफ्ती सईद देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने।

सपथ लेने के महज पांच दिन बाद 8 दिसंबर, 1989 को पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया गया। अपहरण करने वालों की मांग पांच आंतकवादियों की रिहाई की थी, जिसमें हामिद शेख, मोहम्मद अल्ताफ बट, शेर खान आदि।

एनएसजी के पूर्व मेजर जनरल ओपी कौशिक ने रूबिया सईद अपहरण मामले में कहा कि रूबिया के पिता और तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी जल्द रिहा हो। उन्होंने बताया कि अपहरण की सूचना मिलने के पांच मिनट के भीतर ही एनएसजी की टीम ने पता लगा लिया था कि रूबिया को कहां रखा गया है। कौशिक ने खुद गृहमंत्री को बताया कि रूबिया को कुछ देर में ही सुरक्षित रिहा करा लिया जाएगा। लेकिन गृहमंत्री ने उनकी बात को अनसुना कर निर्देश दिए कि वे तत्काल मीटिंग से बाहर जाकर एनएसजी को पीछे हटाएं।

गृह मंत्री मुफ्ती सईद से लेकर एम के नारायणन तक उसी माथापच्ची में जुटे थे कि अपहरणकर्ताओं से कैसे रूबिया को छुड़ाया जाए। अपहरणकर्ताओं की मांग को देखते हुए दिल्ली के अकबर रोड स्थित गृहमंत्री के घर पर बैठक बुलाई गई। इस बैठक में उस समय के वाणिज्य मंत्री अरुण नेहरु, कैबिनेट सचिव टी एन शेषन, इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर एम के नारायणन और एनएसजी के डायरेक्टर जनरल वेद मारवाह मौजूद थे। बैठक में हुए फैसले के बाद भारत सरकार पांच आतंकियों को छोड़ने के राजी हो गई।

नेशनल सिक्युरिटी गार्ड के डायरेक्टर जनरल वेद मारवाह को श्रीनगर भेजा गया। 13 दिसंबर को केन्द्र के दो मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और आरिफ मोहम्मद खान भी श्रीनगर पहुंचे। देश के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने उस समय के प्रधानमंत्री वीपी सिंह के साथ मिलकर आतंकवादियों के सामने घुटने टेकते हुए अपनी बेटी को छुड़ाने के लिए पांच खूंखार आतंकियों को छोड़ दिया।

13 दिसंबर, 1989 को रूबिया रिहा हुईं और लगा कि श्रीनगर में जैसे आज़ादी की खुशबू घुल गई थी। वहां के गलियारे खुशी के जश्न में डूबे हुए थे। बहुत से बाहर वाले भी सड़कों पर निकलकर जश्न मना रहे थे।

20 दिसंबर 1989 को रेजिडेन्सी रोड जैसी सुरक्षित जगह पर यूनियन बैक ऑफ इंडिया लूट लिया गया। 21 दिसंबर को इलाहबाद बैक के सुरक्षाकर्मी की हत्या कर दी गयी। 20 से 25 दिसंबर के बीच श्रीनगर समेत छह जगहो पर पुलिस को आंतकवादियों ने निशाना बनाया। दर्जनों मारे गये।

कश्मीर घाटी के हालात पूरी तरह बिगड़ चुके थे।पाकिस्तान परस्त दर्जनों आतंकी संगठन घाटी में समानांतर सरकार चलाना शुरू कर दिये। इन संगठनों में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट मुख्य था।

14 सितंबर 1989- पंडित टीकालाल टपलू की हत्या, टीकालाल कश्मीर घाटी के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे। लेकिन आतंकियों ने सबसे पहले उन्हें निशाना बनाकर अपने इरादे साफ कर दिये।

4 नवंबर 1989, टपलू की हत्या के मात्र सात सप्ताह बाद जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गयी।
1989 तक पं० नीलकंठ गंजू- जिन्होंने मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी- हाई कोर्ट के जज बन चुके थे। वे 4 नवंबर 1989 को दिल्ली से लौटे थे और उसी दिन श्रीनगर के हरि सिंह हाई स्ट्रीट मार्केट के समीप स्थित उच्च न्यायालय के पास ही आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी थी। इस वारदात से डर कर आसपास के दूकानदार और पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए और खून से लथपथ जस्टिस गंजू के पास दो घंटे तक कोई नहीं आया।

4 जनवरी सन 1990  को स्थानीय उर्दू अखबार में हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस विज्ञप्ति दी कि - "या तो इस्लाम क़ुबूल करो या फिर घर छोड़कर चले जाओ."

5 जनवरी सन 1990 की सुबह गिरिजा पण्डित और उनके परिवार के लिए एक काली सुबह बनकर आयी। गिरजा की 60 वर्षीय माँ का शव जंगल में मिला उनके साथ बलात्कार किया गया था, उनकी आंखों को फोड़ दिया गया था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके साथ गैंगरेप के बाद हत्या की बात सामने आई. उसके अगली सुबह गिरजा की बेटी गायब हो गयी जिसका आजतक कुछ पता नहीं चला।

7 जनवरी सन 1990 को गिरजा पण्डित ने सपरिवार घर छोड़ दिया और कहीं चले गये, ये था घाटी से किसी पण्डित का पहला पलायन, घाटी में पाकिस्तान के पाँव जमना, घाटी में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का राज और भारत सरकार की असफलता और जिन्ना प्रेम ने कश्मीर को एक ऐसे गृहयुद्ध में धकेल दिया था, जिसका अंजाम बर्बादी और केवल बर्बादी थी।

19 जनवरी सन 1990 को सभी कश्मीरी पण्डितों के घर के सामने नोट लिखकर चिपका दिया गया - "कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या इस्लाम अपनाओ."

19 जनवरी सन 1990, इन सब बढ़ते हुए विवादों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और प्रदेश में राज्यपाल शासन लग गया। तत्कालीन राज्यपाल को हटा कर जगमोहन को नया राज्यपाल बनाया गया। जगमोहन की तैनाती राज्यपाल के तौर पर 19 जनवरी 1990 को हुई लेकिन इससे पहले ही हालात काबू से बाहर जा चुके थे।

तत्कालीन राज्यपाल ने केंद्र सरकार से सेना भेजने की संस्तुति भेजी, लेकिन तब तक लाखों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर आ गये, बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तान से रेडियो के माध्यम से भड़काना शुरू कर दिया, स्थानीय नागरिकों को पाकिस्तान की घड़ी से समय मिलाने को कहा गया, सभी महिलाओं और पुरुषों को शरियत के हिसाब से पहनावा और रहना अनिवार्य कर दिया गया।बलात्कार और लूटपाट के कारण जन्नत-ए-हिन्द, जहन्नुम-ए-हिन्द बनता जा रहा था. सैकड़ों कश्मीरी हिंदुओं की बहन बेटियों के साथ सरेआम बलात्कार किया गया फिर उनके नग्न बदन को पेड़ों से लटका दिया गया।

केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के दौरान ही जेकेएलएफ के आतंकियों ने कश्मीरी हिंदूओं पर हमले शुरू कर दिये थे।

"19 और 20 जनवरी 1990 की कश्मीर घाटी की सर्द रातों में मस्जिदों से एलान किये गए कि सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ कर चले जायें, अपनी पत्नी और बेटियों को भी यहीं छोड़े । हम अपने छह माह पहले अपने खून पसीने से बनाये मकान, दुकान और खेत, बगीचे छोड़कर मुश्किल से जान बचाकर भागे। करीब 1500 मन्दिर नष्ट कर दिए गए। लगभग 5000 कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या कर दी गई।

23 जनवरी 1990 को 235 से भी ज्यादा कश्मीरी पण्डितों की अधजली हुई लाश घाटी की सड़कों पर मिली। छोटे छोटे बच्चों के शव कश्मीर के सड़कों पर मिलने शुरू हो गये, बच्चों के गले तार से घोंटे गये और कुल्हाड़ी से काट दिया गया। महिलाओं को बंधक बना कर उनके परिवार के सामने ही सामूहिक बलात्कार किया गया। आँखों में राड घुसेड़ दिया गया। स्तन काट कर फेंक दिया। हाथ पैर काट कर उनके टुकड़े कर कर फेंके गये, मन्दिरों को पुजारियों की हत्या करके उनके खून से रंग दिया इष्ट देवताओं और भगवान के मूर्तियों को तोड़ दिया गया।

24 जनवरी सन 1990 को तत्कालीन राज्यपाल ने कश्मीर बिगड़ते हालात देखकर फिर से केंद्र सरकार को रिमाइंडर भेजा लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई जवाब नहीं आया उसके बाद राज्यपाल ने विपक्ष के नेता राजीव गाँधी को एक पत्र लिखा जिसमें कश्मीर की बढ़ती समस्याओं का जिक्र था, उस पत्र के जवाब में भी कुछ नहीं आया।

26 जनवरी सन 1990 को भारत अपना 38 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा था उस समय कश्मीर के मूलनिवासी कश्मीरी पण्डित अपने खून एवम् मेहनत से सींचा हुआ कश्मीर छोड़ने को विवश हो गये थे, वो कश्मीर जहाँ की मिट्टी में पले बढ़े थे उस मिट्टी में दफन होने का ख्वाब उनकी आँखों से टूटता जा रहा था।

26 जनवरी की रात कम से कम 35 हजार कश्मीरी पण्डित, ये सिर्फ एक रात का पलायन है। इससे पहले 9 जनवरी, 16 जनवरी, 19 जनवरी को हज़ारों लोग अपना घर बार धंधा पानी छोड़कर कश्मीर छोड़कर जा चुके थे।पलायन करने को विवश हो गये। 29 जनवरी तक घाटी एकदम से कश्मीरी पण्डितों से विहीन हो चुकी थी लेकिन लाशों के मिलने का सिलसिला रुक नहीं रहा था।

2 फरवरी सन 1990 को राज्यपाल ने साफ साफ शब्दों में लिखा - "अगर केंद्र ने अब कोई कदम ना उठाये तो हम कश्मीर गवाँ देंगे."

इस पत्र को सारे राज्यों के मुख्यमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता राजीव गांधी के साथ साथ बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी भेजा गया, पत्र मिलते ही बीजेपी का खेमा चौकन्न्ना हो गया और हज़ारों कार्यकर्ता प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँच कर आमरण अनशन पर बैठ गये।

समस्त विपक्ष ने प्रधानमंत्री से दरख्वास्त की जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कोई कार्यवाही की जाये। 6 फरवरी सन 1990 को केंद्रीय सुरक्षा बल के दो दस्ते अशांत घाटी में जा पहुँचे लेकिन उद्रवियों ने उनके ऊपर पत्थर और हथियारों से हमला कर दिया। सीआरपीएफ ने कश्मीर के पूरे हालात की समीक्षा करते हुए एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी।

तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन ने तुरन्त कार्रवाई करते हुए AFSPA लगाने का निर्देश दे दिया।


देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने सईद मुफ्ती, पद पर बैठने के महज पांच दिन बाद ही खुद की बेटी को अगवा कर पांच आतंकियों को रिहा करते हैं और घाटी से चुन चुन कर हिंदुओं को बाहर करते हैं।

सैकड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया और हजारों माताओं बहनों की इज्जत आबरू लूट ली गयी। आज उस काले दिन को तीस वर्ष पूरे हो गए हैं।

काश कभी कोई मानवतावादी इनके दर्द को भी समझ पाता। 😢😢😢

Tuesday, January 15, 2019

South India Tour : महाबलीपुरम से पॉंडिचेरी।

South India Tour : महाबलीपुरम से पॉंडिचेरी। 
चेन्नई और महाबलीपुरम में जहां धमाचौकड़ी करते पर्यटकों की भीड है वहीं पॉंडिचेरी में आध्यात्मिक सुकून की तलाश में निकले धर्मार्थियों की कतार है। दिन डूबने से पहले ही हम पॉंडिचेरी शहर पहुंच चुके थे। शहर पूरा 90 डिग्री पर काटती सडकों से बना है मानो कोई शतरंज की चौपाल हो। गली गिनकर हम निर्धारित स्थान पर पहुंच सकते हैं। हमारा सबसे पहले काम था रूम लेना। पोमेनैंट बीच के करीब एक से एक मंहगे होटल हैं, ज्यादातर विदेशी रुकते हैं तो कोई भी रुम तीन हजार से कम नहीं हैं, इसलिए हम थोडा आगे बढ गये शहर की तरफ जहां हमें मात्र 800 रुपये में रुम मिल गया। 25 दिसंबर की रात को पॉंडिचेरी में इतने कम में कमरा मिलना संयोग ही था। थोडी देर फ्रैस होने के बाद हम स्कूटी लेकर बढ लिए बीच की तरफ। पांडिचेरी की सबसे बड़ी खासियत यहां के समुद्र तट हैं। यहां मुख्य तौर पर चार ‘बीच’ है- प्रोमिनेंट बीच, पेराडाइस बीच, अरोविले बीच, सैरीनिटी बीच। इनमें से प्रोमिनेंट बीच शहर के मुख्य भाग में स्थित है। हालांकि यह एक चट्टान युक्त समुद्री तट है मगर इसके सहारे सहारे शानदार रोड और उसके बगल बालुका फुटपाथ तैयार किया हुआ है। सडक के साइड से लगे हुये पंक्तिबद्ध हरे भरे पेडों की कतार बीच की सुंदरता में चार चाँद लगाते नजर आते हैं। यही बीच है जहां देर रात तक लोगों का मेला लगा रहता है। सडक के एक तरफ बडे बडे सुंदर भवन हैं तो दूसरी तरफ उफान मारती लहरों का सैलाब। क्रिसमस की रात में उस सडक पर घूमना तो जैसे हमारे लिए किसी सौभाग्य से कम न था।
पॉंडिचेरी फ्रांसीसी उपनिवेशीय प्रांत था जो आजाद होने के बाद भी उस अहसास को याद रखे है। पॉंडिचेरी के किसी भी मूल निवासी को फ्रांस में बीजा की आवश्यकता नहीं होती। भारत में ही फ्रांस की अनुभूति लेने के लिये पॉंडिचेरी उपयुक्त जगह है। ये शहर आज भी फ्रांस का चोला ओढ़े है। आपको यहां अधिकतर लोग बड़ी आसानी से फ्रेंच में बात करते मिल जाएंगे और तो और सड़क पर लगे साइन बोर्ड में तमिल, अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रेंच भी चमकती दिखेगी। पांडिचेरी के रेस्ट्रों में आपको बिना किसी दिक्कत के फ्रेंच फूड खाने को मिल जाएगा लेकिन हम तो अपने साथ घर का भोजन लेकर चले थे। कृष्णा ने ढेर सारे डोसा, इडली और बडे पैक कर दिये थे। समुद्र तट पर एकांत स्थल देखकर बैठ गये भोजन करने। ऐसे मस्त माहौल में शायद ही हमने कभी भोजन किया हो। भोजन के बाद तट के सहारे सहारे काफी देर चहलकदमी करने के बाद निकल पडे कमरे की ओर, नींद जो आने लगी थी। रास्ते में देखा कि पॉंडिचेरी शहर जगमगाहट बिखरे है। चर्चेज सजे हैं। चूंकि यहां ईसाई लोग बहुतायत में हैं, बाजार भरे पडे हैं। शहर भर में ढेर सारे चर्च हैं। पांडिचेरी में 32 चर्च हैं जिनमें लेडी ऐंज्लस चर्च, स्केड हॉट चर्च, डूप्लेक्स चर्च, बेस्लिका ऑफ़ स्केर्ड हॉट ऑफ़ जिजस जैसे चर्चेज़ का नाम बड़े व पुराने चर्चेज़ में गिना जाता है। इनकी सुदंरता आपका मन मोह लेगी। और जब बात क्रिसमस की रात की हो तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितनी चमकदार रात होगी। मगर दिन भर की थकान से नींद प्रबल होती जा रही थी और हम बिना रुके सीधे कमरे पर जाकर बैड पर पड गये।


रात भर गहरी नींद लेने के बाद मैं जल्दी उठ बैठा क्यूं कि मुझे समुद्र तट पर सन राईजिंग को वीडियो में कैद करना था। 6:27 पर सूर्य निकलना था, हम छ बजे ही बीच पर पहुंच गये। सुबह भी मौर्निंग वाक करने वाले काफी लोग थे। सुबह सुबह समुद्र तट पर टहलना भी अपने आप में एक अलग ही आनंद देता है। इसके अलावा आप योगा, मेडिटेशन और समुद्र किनारे बैठ कर अपने जीवन का मतलब भी तलाश सकते हैं। सूर्य की किरणें दिखाई दीं और समुद्र चमक उठा। समुद्र में से बाहर आता लाल रंग का सूर्य आपको एक अलग सुकून देता है। सूर्योदय के इस पल को पांडिचेरी में रह कर गवांना नहीं सकते थे। हमने ढेर सारी फोटोग्राफी करी। मन भर गया तो नजदीक ही गणेश मंदिर के लिए रवाना हो गये। गणेश मंदिर बहुत ही भव्य और खूबसूरत है। मंदिर के नजदीक ही है अरविंदो आश्रम। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी से लेकर एक संत तक की उनकी यात्रा एक कौतूहल पैदा करती है। श्री अरबिंदो ने 1926 में अरबिंदो आश्रम की स्थापना इस दौड़-भाग की जिंदगी से दूर अध्यात्म शक्ति को बढ़ाने के लिए की थी। विश्व भर से लोग यहां अध्यात्म की तलाश में आते हैं। मंदिर में गणेश जी को नमन करने के बाद हम आश्रम पहुंचे। अंदर फोटो की मनाही थी। बोलना भी मना था। अंदर बहुत सारे लोग थे मगर सभी एकदम शांत। शांति से बैठकर ध्यान कर रहे थे। साथ ही एक लाइब्रेरी भी है जहां आप उनकी लिखी पुस्तकों का भंडार देख पढ और खरीद सकते हैं। पॉंडिचेरी शहर से आठ किमी दूर औरिविले नामक एक दर्शनीय स्थल और है। मदर मीरा अल्फासा ने 1968 में श्री अरबिंदो के लिए स्पिरिचुअल कौलॉर्बेट का निर्माण किया था। उनका एकमात्र लक्ष्य था कि विश्व भर के लोग यहां आ कर शांति पा सकें। यहां पर कई प्रकार की वर्कशाप हैं, साथ ही यहां अलग-अलग तरह की थैरपी दी जाती है जो लोगों को शांति की ओर ले जाती है।
पॉंडिचेरी के बाद मेरा विचार वैल्लोर और कांचीपुरम के मंदिर घूमते हुये चेन्नई पहुंचने का था मगर थकान की बजह से सुहानी ने आगे जाने से मना कर दिया। बैसे भी उसकी इच्छा समुद्र पेड पौधों और हरियाली में स्वतंत्र विचरण करने की थी, मंदिरों में उसे आनंद नहीं आता था। इसलिए हम आगे बढने की बजाय बापस चेन्नई की ओर बढ लिए। रास्ते में ही अच्छा सा रेष्टरां देखकर साऊथ इंडियन भोजन भी कर लिया। समुद्र के किनारे होने के कारण यहां सीफूड की भरमार है। यहां के पारंपरिक दक्षिण भारतीय भोजन इडली-डोसे का स्वाद आपको लंबे समय तक याद रहेगा। और तो और आपको यहां के रेस्ट्रोरेंट्स में आसानी से फ्रेंच फूड मिल जाएगा। पॉंडिचेरी में हर तरफ नेचुरल आनंद है। यदि आपको लगे कि समुद्र के किनारे बैठ कर कुछ नहीं होने वाला, तो चुनांबर बोट हाऊस जा कर स्पीड और रेगुलर बोट ले कर समुद्र की हवा खाने पैराडाइस बीच की राइड पर निकल पडें। इसके अलावा ऑस्डयू झील पांडिचेरी से कुछ किलोमीटर दूर है। आप यहां बोट किराये पर ले कर इस झील में पक्षियों के साथ अपना समय बिता सकते हैं।यह झील उन पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग है जो प्रवासी पक्षियों को देखना चाहते हैं।
पॉंडिचेरी एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जो चार टुकडों में विभाजित है। कराईकल जो तमिलनाडु से घिरा है जबकि यानम बंगाल की खाड़ी में (आन्ध्र प्रदेश) और माहे (केरल) अरब सागर में है। पुदुच्चेरी और कराइकल इनमे से सबसे बड़े जिले हैं। तमिल, तेलुगु, मलयालम और फ्रांसीसी यहाँ की आधिकारिक भाषाएँ हैं। जीवन की भागदौड़ से थक चुके लोग जो शांति व आध्यात्म की तलाश में हैं, उनके लिए पुदुचेरी बिल्कुल सही जगह है। प्राचीन काल से ही पुदुचेरी वैदिक संस्कृति का केंद्र रहा है। यह महान ऋषि अगस्त्य की भूमि है।





























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Sunday, January 13, 2019

South India Tour : Chennai to Mahabalipuram

South India Tour : Chennai to Mahabalipuram.


चेन्नई में मेरा दूसरी दफा आना हुआ था इस बार । इसे महज संयोग ही कहूंगा कि उस दिन दीपावली की रात थी और इस बार क्रिसमस की। 24 दिसंवर की रात को हमने चर्च में सैलीब्रेट किया था और अगले ही सुबह मतलब 25 दिसंबर 2018 को हमें निकलना था चेन्नई से पॉंडिचेरी मार्ग पर जहां अनंत सुंदरता बिखरी पडी है। हालांकि चेन्नई शहर में भी काफी कुछ है देखने को मगर हमें पूरा तमिलनाडु और केरल कवर करना था इसलिये छोटी जगहों को छोड़ना जरूरी था। बैसे चेन्नई का कपालीश्वर मंदिर हमारे रास्ते में ही था। इस पार्वती मंदिर को तमिल में कपार्गम्बल कहते हैं जिसका अर्थ होता है ' कृपा बृक्ष'। सातवीं शताब्दी का यह भव्य मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है। लेकिन मुझे जो सर्वाधिक आकर्षित करने वाला स्थल लगा वो है महाबलीपुरम का शोर टैंपल और समुद्र तट।
ऐसे तो चेन्नई से पॉंडिचेरी तक समुद्र तट के सहारे सहारे बने रोड पर हरे भरे पेडों और जलाशयों के बीच बाइकिंग करना भी किसी अन्य रोमांच से कम नहीं है, मगर मामल्लापुरम के ऐतिहासिक स्थल उस खूबसूरती में और बढोत्तरी कर देते हैं। सातवीं आठवीं शताब्दी में बने पल्लव शासक निर्मित इन खूबसूरत तटीय मंदिरों की खासियत ये है कि समुद्र की लहरें इनसे टकराती हैं। मंदिर परिसर के दोनों ओर काफी दूरी तक फैला हुआ चांदी जैसे रंग का बालुका बीच है तो मंदिर के सामने हरा भरा घास का मैदान। चेन्नई से थोडा बाहर निकलते ही समानांतर दो मार्ग पॉंडिचेरी की तरफ बढते हैं जो महाबलीपुरम पर आकर मिल जाते हैं। हमने समुद्र तटटीय मार्ग को बरीयता दी क्यूं कि महाबलीपुरम के मंदिरों से अधिक आकर्षण इस मार्ग में है। चेन्नई के अडियार चर्च और अष्टलक्षमी मंदिर से खूबसूरत बीच शुरू होते हैं और पॉंडिचेरी तक चलते ही रहते हैं, शायद ही कोई जगह हो जहां बाइक की ब्रेक मारने को दिल न करता हो। थोडा सा आगे बढते ही सीधे हाथ पर ग्रेट साल्ट लेक नाम से बैक वाटर्स शुरू हो जाते हैं और हम दोनों तरफ से पानी से घिर जाते हैं। नारियल के पेडों से आच्छादित हरियाली, शानदार सडक और अगल बगल में फैला विशाल समुद्र एंव बीच में हम।
चेन्नई से महाबलीपुरम का 55 किमी का मात्र एक घंटे का सफर हमने चार घंटे में पूरा किया। इसी बीच मुत्तूकाडी नामक ब्रिज पडता है जो उस विशाल झील को समुद्र से जोडता है। यहां आप चाहें तो वोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। यह स्थान महाबलिपुरम से 21 किलोमीटर की दूरी पर है जो वाटर स्पोट्र्स के लिए लोकप्रिय है। यहां नौकायन, केनोइंग, कायकिंग और विंडसर्फिग जसी जलक्रीड़ाओं का आनंद लिया जा सकता है। यहां से थोडा सा आगे बढते ही कौवलम बीच है जहां आप खूब मस्ती कर सकते हैं, प्लस मछली भी खा सकते हैं। यहां काफी बडा मच्छी बाजार है। यह मुस्लिम बाहुल्य गांव है, यहां एक दरगाह भी है जिसके पीछे ही समुद्री बीच है। कौवलम बीच से और आगे बढेंगे तो आप मगरमच्छों से मुलाकात कर सकते हैं। यहां क्रोकोडाइल बैंक है। महाबलिपुरम से 14 किलोमीटर पहले ही चैन्नई- महाबलिपुरम रोड़ पर क्रोकोडाइल बैंक स्थित है। इसे 1976 में अमेरिका के रोमुलस विटेकर ने स्थापित किया था। स्थापना के 15 साल बाद यहां मगरमच्छों की संख्या 15 से 5000 हो गई थी। इसके नजदीक ही सांपों का एक फार्म भी है।
महाबलीपुरम छोटा सा शहर है मगर है बहुत, खूबसूरत। महाबलीपुरम के इन स्मारकों को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बांटा जाता है- रथ, मंडप, गुफा मंदिर, संरचनात्मक मंदिर और रॉक। कांचीपुरम जिले में महाबलीपुरम शहर बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्थित है।
महाबलीपुरम प्रसिद्ध पल्लव साम्राज्य का प्राचीन समुद्र बंदरगाह है। पल्लवों ने कांचीपुरम से 3 और 8 वीं सदी के बीच शासन किया था। शिलालेख के अनुसार महाबलीपुरम के स्मारकों को पल्लव राजाओं महेन्द्रवर्मन (580 630 ईस्वी), उनके बेटे नरसिंहवर्मन (638 668 ईसवी ) और उनके वंशजों द्वारा निर्माण किया गया था।मामल्लपुरम को विभिन्न नामों कादल, मल्लै, अर्थसेथू, मल्लावराम, मल्लाई और ममल्लई के रूप में भी जाना जाता है। इस जगह को प्राचीन संगम युग की तमिल साहित्य की किताब पथ्थूपाट्टु में भी उल्लेख किया गया है। यहां के मुख्य आकर्षण हैं, पांच रथ, शोर मंदिर, पहाड़ी की ओर गुफा और घड़ी टावर, बाघ गुफा। महाबलीपुरम में इन गुफाओं और पहाड़ियों की बस-राहतें हैं. यहाँ पर प्राचीन भारत पर विभिन्न ऐतिहासिक, आध्यात्मिक घटनाओं की मूर्तियां हैं। यह स्मारक एक व्यापक क्षेत्र भर में फैले हुए हैं। ये महाबलीपुरम में बड़े स्थानों में से एक है। इनमें मुख्य है - महिषासुरमर्द्दिनि गुफा, वराह गुफाएं, कृष्णा मंडपम और अर्जुन तपस्या। अर्जुन की तपस्या की तपस्या करते हुए एक लंबी 43 फुट और 96 फुट ऊंची मूर्ति खुदी है जो बहुत ऊंची चट्टान पर है और यह दुनिया में सबसे बड़ी है। यह एक ऋषि प्रदर्शन है जिसमें अर्जुन की तपस्या जैसे जमीन पर एक पैर के साथ तपस्या करते हुए मूर्ति सबसे प्रसिद्ध मूर्तियों में से एक है।महाबलीपुरम में एक घड़ी गुफा है जो कि व्यापारियों को पल्लव राज्य के समय के प्राचीन बंदरगाह से व्यापार करने के लिए समुद्र के माध्यम से आने वाले निर्देशित से अलग एक छोटी सी पहाड़ी में स्थित टॉवर है। पल्लव समय के दौरान समुद्री यात्रियों के लिए इस घड़ी टॉवर में आग लगने से उन्हें निर्देश दिए जाते थे. बस इस घड़ी टॉवर के बगल में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया लाइट हाउस है जो वॉच टॉवर से लम्बा है। इस एक लाइट हाउस से महाबलीपुरम का पूरा दृश्य देख सकते हैं। टाइगर गुफा महाबलीपुरम शहर के बाहरी इलाके में सालुवनकुप्पम नामक एक छोटे से गांव में स्थित है। इस गुफा मंदिर का भी 8 वीं शताब्दी में पल्लव द्वारा निर्माण किया गया था। गुफा खोलने के प्रवेश द्वार के आसपास चट्टानों के बाहर खुदी हुई बाघ सिर की कई मूर्तियां है इसलिए इसका नाम बाघ गुफा के रूप में जाना जाता हैं।
बाजार को चीरते हुये हमारी स्कूटी रुकी सीधे शोर टैंपल के मैन गेट पर। पार्किंग में स्कूटी खडी कर 40 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से टिकट लेकर परिसर में प्रवेश किये तो देखा कि समुद्र तट पर खडे मंदिर के आगे बहुत बडा हरा भरा घास का मैदान तैयार किया हुआ जहाँ आप जी भर कर फोटोग्राफी कर सकते हैं। इसके बाद मंदिर में प्रवेश होता है जो उत्खनन में निकला जैसा प्रतीत होता है। यहां मुख्यत: तीन मंदिर हैं। अगल बगल शिव मंदिर और बीच में विष्णु भगवान विराजमान हैं। मंदिर भवन के आगे समुद्र रेत का गलियारा और पत्थरों की चारदीवारी। मंदिर के पीछे काली काली चट्टानों से टकराती समुद्र की लहरें। हालांकि समुद्र में जाने के लिए आपको इस परिसर से बाहर निकल कर उसके बगल से बने गलियारे से बापस आना होगा। अच्छा होगा कि आप अपना वाहन वहीं पार्किंग में छोडकर नंगे पांव ही बीच पर पहुंचे और समुद्री लहरों में खेलने का आनंद उठायें। मैं मंदिरों के पत्थरों में दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली और पल्लव शाषकों का इतिहास ढूंडने में मगन था मगर सुहानी की नजर समुद्री लहरों पर अटकी पडी थी। बच्चों को तो बस अपने नैसर्गिक आनंद से मतलब। जल्दी से बाहर निकल कर हम पहुंचे तट पर और कूद गये समुद्र में। तीनों ने जम कर धमाल मचाया। सुहानी का मन ही न करे निकलने का मगर मुझे अभी पंच रथ देखने थे। दक्षिणी सिरे पर स्थित ये रथ पांडवों के नाम पर पंच रथ कहलाते हैं। पांच में से चार रथों को एक ही विशाल चट्टान को काटछांट कर बनाया गया है। द्रौपदी और अर्जुन वर्गाकार जबकि भीम रथ रेखीय आकार का है। धर्मराज रथ सबसे ऊँचा है। यहां के लिए भी वही 40 रुपये प्रति व्यक्ति टिकट है।
पंच रथ परिसर के सामने ही एक बडा सा हरा भरा मैदान और उसे लगा हुआ छोटा सा बाजार भी है। पेडों की छाँव में बैठे कर हरी भरी घास पर बैठकर हमने खाना खाया, थोडा आराम किया और फिर चल पडे आगे की ओर। अभी थोडा ही चल पाये थे कि हरे भरे पेडों से घिरा कुछ चट्टानों और उन पर चढता हुआ पर्यटकों का हुजूम दिखाई पडा। एक बार फिर स्कूटी पार्क की और हम चढ गये उन चट्टानों पर। यह बहुत बडा चट्टानों का बगीचा है, जैसे जैसे आप आगे बढते जायेंगे आपको विभिन्न गुफाओं और मंडपों के दर्शन होते जायेंगे। एक चढाई चढने के बाद उतार शुरू हो जाता है और आप पार्क के दूसरे छोर पर पहुंच जाते हैं जहां आप नजदीक ही अर्जुन्स पेनेन्स नामक एक और दर्शनीय स्थल को देख आनंदित होते है जो अपनी विशाल नक्काशी के लिए लोकप्रिय है। यह 27 मीटर लंबा और 9 मीटर चौड़ा है। इस व्हेल मछली के पीठ के आकार की विशाल शिलाखंड पर ईश्वर, मानव, पशुओं और पक्षियों की आकृतियां उकेरी गई हैं। अर्जुन्स् पेनेन्स को मात्र महाबलिपुरम या तमिलनाडु की गौरव ही नहीं बल्कि देश का गौरव माना जाता है। इसी बीच आप कृष्ण मंडपम मंदिर को भी देख सकते हैं जो महाबलिपुरम के प्रारंभिक पत्थरों को काटकर बनाए गए मंदिरों में एक है। मंदिर की दीवारों पर ग्रामीण जीवन की झलक देखी जा सकती है। एक चित्र में भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाए दिखाया गया है। इसी परिसर में विशाल गोल चट्टान को जरा सी जगह पर टिका हुआ पाकर आश्चर्यचकित जरूर होते हैं। घूमते घामते परिसर से बाहर निकलते हैं तो एक बार फिर विशाल चट्टान पर बने हाथियों पशु पक्षियों को देखकर खुद को सैल्फी लेने से रोक नहीं पाते हैं। व्हेल मछली के आकार की विश्व की सबसे बड़ी चट्टान मानी जाती है। इसके एक तरफ देवी−देवताओं की मूर्तियां तथा दूसरी ओर विभिन्न जानवरों की मूर्तियां उकेरी गई हैं। इसकी शिल्पकला देखने लायक है। महिषासुर मर्दिनी की गुफा और मंडप की गुफाओं में महिषासुर का वध करते हुए मां दुर्गा की एक मूर्ति है और दूसरी गुफा में नाग देवता पर लेटे हुए भगवान विष्णु की मूर्ति है। यहां आठ मंडप भी हैं जिनकी कला अवर्णनीय है। 
कुल मिलाकर प्राकृतिक रुप से कहूं या ऐतिहासिक रुप से बोलूं, महाबलीपुरम का सफर बहुत जानदार शानदार रहा। ऐसा स्थान है जहां बार बार आने का मन करेगा।महाबलिपुरम नृत्य के लिए भी जाना जाता है। यह नृत्य पर्व सामान्यत: जनवरी या फरवरी माह में मनाया जाता है। भारत के जाने माने नृत्यकार शोर मंदिर के निकट अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। पर्व में बजने वाले वाद्ययंत्रों का संगीत और समुद्र की लहरों का प्राकृतिक संगीत की एक अनोखी आभा यहां देखने को मिलती है। यदि आप पक्षी प्रेमी हैं तो महाबलीपुरम से लगभग 53 किलोमीटर दूर स्थित वेदंगतल नामक स्थल पक्षी अभयारण्य के लिए प्रसिद्ध है। यहां नवंबर से फरवरी तक पक्षी नए आते हैं। 
रात होने से पहले हमें यदि पॉंडिचेरी न पहुंचना न होता तो हम और ज्यादा समय यहीं व्यतीत करते। समय की नजाकत को देखते हुये हम जल्दी से पॉंडिचेरी की तरफ दौड लिये जो अभी करीब 90 किमी था। हालांकि इस बीच भी बहुत सारे केव्ज, टैंपल्स, बीचेज थे मगर हम उन सबको अनदेखा करते हुये दौड लिये और आखिरकार शाम सात बजे तक हम पॉंडिचेरी पहुंच भी लिये।

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