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Wednesday, June 21, 2017

आसाम मेघालय यात्रा: सरयू स्नान अयोध्या ।।

प्राकृतिक तत्वों का सानिध्य मुझे मंदिरों की अपेक्षा कहीं अधिक अच्छा लगता है। सरयू में जल का फैलाव देखकर दिल खुश हो गया। वोटिगं भी मात्र बीस रुपये की। गजब । सरयू जैसी पावन नदी में जिसमें रघुवंश ने जल समाधि ली थी, घूमने का अवसर मिल रहा हो तो क्यूं छोडा जाय ? आधे घंटे तक हम नदी में घूमते रहे । नदी के एक तरफ बने घाट तो दूसरे तरफ फैला हुआ सफेद सीमेंट जैसा रेत। हालांकि घाट इतने साफ नहीं हैं फिर भी गंदे नहीं कह सकते। सरकार इस पर थोडा ध्यान दे तो घाट बहुत सुंदर लगने लगेगें। नदी पर बना पुल घाट को दो हिस्सों में विभाजित करता है लेकिन घाट आपस में जुडा हुआ है। दूर दूर तक फैली रंगबिरंगी नावें और उनमें लगे हुये केशरिया झंडे घाटों की शोभा में चार चांद लगाते हैं। घाट के किनारे ही कुछ प्राचीन मंदिर भी हैं तो कुछ अन्य भवन भी। जबकि दूसरी ओर दूर दूर तक फैली सफेद उजियारी। यदि सियासतदानों ने इसी जगह मंदिर निर्माण करा होता तो ना तो इतना बडा विवाद होता और ना देश की जनता की आस्था के साथ मजाक होता। पर हमारी भावनाओं की चिंता किसे है सबको अपनी अपनी रोटियां जो सेंकनी हैं। 
घाट के किनारे पंडो की दुकानें भी खूब लगी हैं जो जन्म मरण के बंधन से मुक्त करा कर मोक्ष प्रदान कराने का वायदा करते नजर आते हैं। हम तो इन ठगों से दूर दूर से ही राम राम कर निकल लेते हैं। भगवान और भक्त के बीच हमें किसी बिचौलिये की जरूरत नहीं है। भारत के प्राकृतिक उपहारों को धार्मिक चोला पहना कर जितना इन ठगों ने कमाया है उतना तो कभी सरकार टैक्स में भी न कमा पाती होगी। भारतभर में जहां भी पहाड गुफा नदी झरने देखता हूं इनकी दुकान सजी मिलती है जहां ये प्राकृतिक अजूबों का टैक्स लेते दिखाई देते हैं।
सरयू नदी जिसे घाघरा भी कहा जाता है, गंगा की सहायक नदी है जो पटना से पहले ही गंगा में मिल जाती है, से लौटते लौटते भूख लग आयी थी। हनुमान गढी में दर्शन करके ही कुछ खाने का सोच रखे थे।इसलिये तुरंत चल दिये हनुमानगढी की तरफ जिसके सामने मेरा होटल भी था और फिर एक मित्र प्रमोद त्रिपाठी भी मेरा इंतजार कर रहा था। ये पंडित मुझे बीएड के दौरान आगरा में मिला था और अपने रुम पर कम रहता था , मेरे घर पर अधिक रहता था। भाभी का दुलारा देवर बहुत साल बाद भाभी से मिलने को बेताब था।






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Sunday, January 29, 2017

Ayodhya tour 24 Dec 2015

मित्रों इस बार आपको ले चलता हूं अयोध्या, लखनऊ, इलाहावाद और बनारस की यात्रा पर जो मैंने पिछली साल दिसंबर 2015 में की थी। विंटर वैकेशन की घोषणा होते ही आगरा फोर्ट से लखनऊ बाली ट्रैन पकड ली क्यूं कि सीधे अयोध्या बाली ट्रैन लेट थी। हालांकि वही ट्रेन मुझे लखनऊ से पकडनी पडी। करीब दस बजे तक अयोध्या पहुंच गया। सुवह फैजाबाद की वजाय सीधे अयोध्या स्टेशन ही उतरा जहां मेरा दोस्त Pramod Tripathi मेरा पहले से ही इतंजार कर रहा था। प्रमोद तिवारी से मित्रता उस दौरान हुयी थी जब वह बी एड करने आगरा आकर मेरे पास रहा था। हमें मिले कई साल हो चुके थे इसलिये दोनों ही एक दूसरे से मिलने के लिये व्याकुल थे। 
चूंकि राम जन्म भूमि जाने से पहले स्नान करना था तो सोचा क्यूं न वहीं डुबकी लगायी जाय जहां रघुकुल ने डुबकी ली है। पास में यदि बाइक हो तो शहर घूमना आसान हो जाता है और निर्भरता भी नहीं रहती। प्रमोद की कोचिंग क्लास डिस्टर्व न हो इसलिये उसकी बाइक लेकर निकल पडा सरयू नदी की तरफ। सबसे पहले नया घाट पहुंचा जहां खूव सारी रंगविरंगी नौकाऐं हमें साथ लेकर जल विचरण करने को मचल रहीं थीं पर पहले स्नान करके तन और मन तरोताजा करना था और यात्रा की थकान भी दूर करनी थी। सबसे पहले तो नदी किनारे ही बने पेड शौचालय जाकर आया।  फिर क्या , उतारे कपडे और कूद पडा सरयू के स्वच्छ शीतल जल में। ठंडे ठंडे पानी ने शरीर का खून दौडा दिया पर ठंड के मारे दस मिनट से ज्यादा न टिक सका।इतना ठंडा पानी कि कंपकपी छूट गयी लेकिन आनंद आ गया। स्नान के बाद नौकायान का आनंद भी लेना था । सुवह ही सुवह कोई साथी न मिला तो अकेले ही लेकर चल पडा नाव बाले को। बहुत सारे नाव बाले खडे रहते हैं यहां। मात्र पचास रुपये में नौकायान करा देते हैं। 
बाकी सब तो ठीक था पर घाट पर फैली गंदगी से मन थोडा व्यथित हो गया। आज श्री राम जिंदा होते तो ये अपने नगर की गंदगी देखकर दुवारा डूब कर मर जाते। शहर घूमने के बाद मन में रोश भी है , कट्टरंथी हठधर्मिता एवं राजनीति  के चलते जन्म भूमि को तो भव्य न बना सके पर क्या इस शहर को स्वच्छ रखने में भी कोई राजनीति आडे आ रही थी, देखकर लग ही नहीं रहा कि कभी ये श्री राम की राजधानी रही होगी।
घाट पर थोडी देर चहलकदमी करने के बाद बापस कोचिंग की तरफ आया कि शायद प्रमोद फ्री हो गया हो लेकिन वो तो बैच पर बैच लिये जा रहा था। इसलिये मैं अकेला ही निकल पडा शहर की तरफ। पहले तो चोखा वाटी का नास्ता किया और फिर बढ चला हनुमानगढी मंदिर की तरफ। मंदिर पहुंचा, दर्शन किये। अयोध्या के सबसे ज्यादा भ्रमण किए जाने वाले स्थलों में हनुमान गढ़ी है जिसे हनुमान जी का घर भी कहा जाता है, यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। यह मंदिर अयोध्या में एक टीले पर स्थित है और यहां से काफी दूर तक साफ - साफ देखा जा सकता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 76 सीढि़यां चढ़नी पडेगी।इस मंदिर के लिए भूमि को अवध के नबाव ने दी थी और इसे लगभग दसवीं शताब्दी के मध्य में उनकी रखैल के द्वारा बनवाया गया था। हनुमान गढ़ी, वास्तव में एक गुफा मंदिर है। इस मंदिर परिसर के चारों कोनो में परिपत्र गढ़ हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोदी में बालक रूप में लेटे है।यह विशाल मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से अच्छा है बल्कि वास्तु पहलू से भी इसे बहुत अच्छा माना जाता है।
हनुमानजी के दर्शन किये और फिर रामलला के दर्शन के लिये निकल पडा, जिसका वहां से मात्र दस बीस मिनट का रास्ता है। सीता रसोई के पास ही वाहन रोके जा रहे थे। कैमरा भी जमा किया जा रहा था। सीता रसोई देखने में लगी नहीं कि ये सीता की रसोई रही होगी। कार्बन डेटिगं पद्धति से इन भवनों की उम्र पता करें तो मुश्किल से पांच सौ बर्ष बैठेगी। खैर हमें क्या । आस्था में प्रश्न करना गुनाह है। सीता रसोई के नजदीक ही अपनी बाइक खडी कर और अपने मोबाइल कैमरा जमा कर पैदल ही निकल लिया राम लला की ओर। प्राचीन भवनों से सुसज्जित गलियों में घूमता हुआ आखिरकार एक चौडे से स्थान पर आ गया। इस पूरे रास्ते में जवान ही जवान तैनात मिले मुझे। और उधर त्रिपाल में बैठे रामलला की सुरक्षा में इतनी पुलिश ??? बाप रे बाप ! मेरा तो दिमाग घूम गया । बेचारे भगवानों के भी अब कितने बुरे दिन आ गये हैं कि अपनी रक्षा एक तुच्छ से मानव से करानी पड रही है, वरना अब तक तो मैंने मानव को ही यह कहते सुना था," हे भगवान मेरी रक्षा करना" और एक हमारे रामलला हैं जो दयनीय प्रार्थना कर रहे थे, हे मानव मेरी रक्षा करना।"
खैर मुझे उन्हें इस तरह मनुष्य के सामने अपनी जान की भीख मांगते हुये देखा न गया और दिल में दर्द, आखों में रोष एवं उनकी दयनीय स्थिति पर अफशोष जताते हुये कनक भवन की तरफ रवाना हो गया।
लेकिन पट बंद मिले जो शाम चार बजे खुलने थे तो ऋषभदेव जी आदिनाथ मंदिर की तरफ बढ गया।
भगवान श्री राम के साथ साथ प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव एवं अन्य चार जैन तीर्थंकरों का जन्म भी अयोध्या की पावन भूमि पर ही हुआ है अतएव जैन धर्म का प्रारम्भ भी यहीं से माना जा सकता है।
इस प्रकार शाम तक सारा अयोध्या कवर कर चुका था। मेरा दोस्त भी कोचिगं पढा के फ्री हो चुका था, अब दोनों दोस्त चल दिये फैजाबाद की तरफ अपने घर भाभी के हाथ की बनी लिट्टी चोखा मेरा इतंजार कर रहीं थीं। 


















अयोध्या के प्रमुख दर्शनीय स्थल
हनुमान गढ़ी, राम जन्म भूमि, सीता की रसोई, ऋषभदेव राजघाट उद्यान कनक भवन चक्र हरजी विष्णु मंदिर, तुलसी उद्यान, तुलसी स्मारक भवन, त्रेता – के – ठाकुर, दशरथ भवन, नागेश्वर नाथ मंदिर, मणि पर्वत, मोती महल, राम कथा पार्क, अयोध्या
राम की पौढ़ी, फैजाबाद संग्रहालय, फैजाबाद
बहू बेगम का मकबरा, कलकत्ता किला, घाट, गुलाब बाड़ी, फैजाबाद