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Saturday, January 7, 2017

Jaatland journey: जीणमाता से खाटूश्यामजी

Jaatland journey: जीणमाता से खाटूश्यामजी ।।
जीणमाता मंदिर पर साल की अतिंम रात बिताने के बाद अगली सुवह जल्दी ही मुझे खाटू श्याम जी के लिये निकलना था लेकिन नजदीक ही खाचरियावास के एक परिवार में मेरे गोती भाई मान सिंह चाहर की ससुराल है, और वह चाहते थे कि मैं उनके गांव होते हुये निकलूं। मुझे भी शेखावाटी की जाट संस्कृति से रुबरू होना था, पहुंच गया भैडा की ढाणी। रोली चावल से तिलक लगाकर मेहमान का स्वागत किया गया।
खाचरियावास भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति एवं राजस्थान के चार बार मुख्यमंत्री श्री भैंरोंसिंह की जन्मस्थली है, जहां उन्ही के द्वारा एक शिव मंदिर का निर्माण किया गया है।  मैं करीब एक घंटे मित्र की ससुराल रुका, बडे प्रेम से भोजन भी किया और चलते समय विदा भी दी। सम्मान तो खूब मिला कितुं शेखावाटी के जाटों की मेहमानी खाने की भी दम होनी चाहिये। दूध दही घी की कोई कमी नहीं है अतः खिलाते तो हैं ही पेंट में भी घी भर देते हैं। रोटी में घी नहीं होता बल्कि घी में रोटी होती है। इसके बाद बूरे में घी, दही में घी, सब्जी में घी। चूल्हे पर बनी हाथ से बनी गर्मागरम रोटियां खाकर तृप्त हो गया।
आसपास पानी की कमी जरूर नजर आयी, कुछ खेत ऐसे थे जो पानी की कमी के चलते खाली पडे थे। साल में बस एक ही फसल कर पाते हैं। खेजडी के पेडों की भरमार मिली। लोग फसल के समय इन्हें काटते नहीं सिर्फ छांट देते हैं। यहां बच्चों को पढाने के प्रति विशेष ध्यान है। इस परिवार के अधिकतर बच्चे चिकित्सा क्षेत्र में सलंग्न मिले। खाफी सारा सम्मान और प्रेम पाकर बहुत खुशी हुई और फिर मैं खाचरियावास के शिवमंदिर में ढोक देते हुये निकल पडा खाटू की ओर जो मात्र तीस किमी ही था।
लोक मान्यताओं के अनुसार खाटू श्याम जी मध्यकालीन महाभारत के योद्धा बर्बरीक हैं, अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र, श्री कृष्ण ने जिनका सिर काट कर पेड पर रख दिया था। भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य नागालैंड का एक शहर दीमापुर या हिडिंबापुर में महाभारत काल में हिडिंब राक्षस और उसकी बहन हिडिंबा रहा करते थे। यही पर हिडिंबा ने भीम से विवाह किया था। यहां बहुलता में रहनेवाली डिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानती है। हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। उसी घटोत्कच के पुत्र थे बर्बरीक जो बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। भगवान् शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्निदेव प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुए तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्घ में विजय पाण्डवों की होनी चाहिये और माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी।
इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की और बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है ….तथा, महाभारत युद्घ को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है।  ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा।
नयी साल का पहला दिन था, लोगों को उत्सव मनाने का बहुत अच्छा मौका मिला था, बस फिर क्या, परिवार सहित टूट पडे खाटूश्याम जी पर। भयंकर भीड थी। श्यामबाबा के जयकारों से शहर गूंज उठा।
 बहुत कोशिष की अंदर जाने की । लाईन में लगूं तो गयी चार घंटे की, घुमक्कडों के पास इतना समय कहां रहता है, दूर से हाथ जोडे और निकल लिया रींगस होते हुये चालीस किमी दूर अजीतगढ की तरफ जहां मेरा मित्र अनिल बांगर मेरा इंतजार कर रहा था।

जारी है.....