Sunday, January 13, 2019

South India Tour : Chennai to Mahabalipuram

South India Tour : Chennai to Mahabalipuram.


चेन्नई में मेरा दूसरी दफा आना हुआ था इस बार । इसे महज संयोग ही कहूंगा कि उस दिन दीपावली की रात थी और इस बार क्रिसमस की। 24 दिसंवर की रात को हमने चर्च में सैलीब्रेट किया था और अगले ही सुबह मतलब 25 दिसंबर 2018 को हमें निकलना था चेन्नई से पॉंडिचेरी मार्ग पर जहां अनंत सुंदरता बिखरी पडी है। हालांकि चेन्नई शहर में भी काफी कुछ है देखने को मगर हमें पूरा तमिलनाडु और केरल कवर करना था इसलिये छोटी जगहों को छोड़ना जरूरी था। बैसे चेन्नई का कपालीश्वर मंदिर हमारे रास्ते में ही था। इस पार्वती मंदिर को तमिल में कपार्गम्बल कहते हैं जिसका अर्थ होता है ' कृपा बृक्ष'। सातवीं शताब्दी का यह भव्य मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है। लेकिन मुझे जो सर्वाधिक आकर्षित करने वाला स्थल लगा वो है महाबलीपुरम का शोर टैंपल और समुद्र तट।
ऐसे तो चेन्नई से पॉंडिचेरी तक समुद्र तट के सहारे सहारे बने रोड पर हरे भरे पेडों और जलाशयों के बीच बाइकिंग करना भी किसी अन्य रोमांच से कम नहीं है, मगर मामल्लापुरम के ऐतिहासिक स्थल उस खूबसूरती में और बढोत्तरी कर देते हैं। सातवीं आठवीं शताब्दी में बने पल्लव शासक निर्मित इन खूबसूरत तटीय मंदिरों की खासियत ये है कि समुद्र की लहरें इनसे टकराती हैं। मंदिर परिसर के दोनों ओर काफी दूरी तक फैला हुआ चांदी जैसे रंग का बालुका बीच है तो मंदिर के सामने हरा भरा घास का मैदान। चेन्नई से थोडा बाहर निकलते ही समानांतर दो मार्ग पॉंडिचेरी की तरफ बढते हैं जो महाबलीपुरम पर आकर मिल जाते हैं। हमने समुद्र तटटीय मार्ग को बरीयता दी क्यूं कि महाबलीपुरम के मंदिरों से अधिक आकर्षण इस मार्ग में है। चेन्नई के अडियार चर्च और अष्टलक्षमी मंदिर से खूबसूरत बीच शुरू होते हैं और पॉंडिचेरी तक चलते ही रहते हैं, शायद ही कोई जगह हो जहां बाइक की ब्रेक मारने को दिल न करता हो। थोडा सा आगे बढते ही सीधे हाथ पर ग्रेट साल्ट लेक नाम से बैक वाटर्स शुरू हो जाते हैं और हम दोनों तरफ से पानी से घिर जाते हैं। नारियल के पेडों से आच्छादित हरियाली, शानदार सडक और अगल बगल में फैला विशाल समुद्र एंव बीच में हम।
चेन्नई से महाबलीपुरम का 55 किमी का मात्र एक घंटे का सफर हमने चार घंटे में पूरा किया। इसी बीच मुत्तूकाडी नामक ब्रिज पडता है जो उस विशाल झील को समुद्र से जोडता है। यहां आप चाहें तो वोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। यह स्थान महाबलिपुरम से 21 किलोमीटर की दूरी पर है जो वाटर स्पोट्र्स के लिए लोकप्रिय है। यहां नौकायन, केनोइंग, कायकिंग और विंडसर्फिग जसी जलक्रीड़ाओं का आनंद लिया जा सकता है। यहां से थोडा सा आगे बढते ही कौवलम बीच है जहां आप खूब मस्ती कर सकते हैं, प्लस मछली भी खा सकते हैं। यहां काफी बडा मच्छी बाजार है। यह मुस्लिम बाहुल्य गांव है, यहां एक दरगाह भी है जिसके पीछे ही समुद्री बीच है। कौवलम बीच से और आगे बढेंगे तो आप मगरमच्छों से मुलाकात कर सकते हैं। यहां क्रोकोडाइल बैंक है। महाबलिपुरम से 14 किलोमीटर पहले ही चैन्नई- महाबलिपुरम रोड़ पर क्रोकोडाइल बैंक स्थित है। इसे 1976 में अमेरिका के रोमुलस विटेकर ने स्थापित किया था। स्थापना के 15 साल बाद यहां मगरमच्छों की संख्या 15 से 5000 हो गई थी। इसके नजदीक ही सांपों का एक फार्म भी है।
महाबलीपुरम छोटा सा शहर है मगर है बहुत, खूबसूरत। महाबलीपुरम के इन स्मारकों को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बांटा जाता है- रथ, मंडप, गुफा मंदिर, संरचनात्मक मंदिर और रॉक। कांचीपुरम जिले में महाबलीपुरम शहर बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्थित है।
महाबलीपुरम प्रसिद्ध पल्लव साम्राज्य का प्राचीन समुद्र बंदरगाह है। पल्लवों ने कांचीपुरम से 3 और 8 वीं सदी के बीच शासन किया था। शिलालेख के अनुसार महाबलीपुरम के स्मारकों को पल्लव राजाओं महेन्द्रवर्मन (580 630 ईस्वी), उनके बेटे नरसिंहवर्मन (638 668 ईसवी ) और उनके वंशजों द्वारा निर्माण किया गया था।मामल्लपुरम को विभिन्न नामों कादल, मल्लै, अर्थसेथू, मल्लावराम, मल्लाई और ममल्लई के रूप में भी जाना जाता है। इस जगह को प्राचीन संगम युग की तमिल साहित्य की किताब पथ्थूपाट्टु में भी उल्लेख किया गया है। यहां के मुख्य आकर्षण हैं, पांच रथ, शोर मंदिर, पहाड़ी की ओर गुफा और घड़ी टावर, बाघ गुफा। महाबलीपुरम में इन गुफाओं और पहाड़ियों की बस-राहतें हैं. यहाँ पर प्राचीन भारत पर विभिन्न ऐतिहासिक, आध्यात्मिक घटनाओं की मूर्तियां हैं। यह स्मारक एक व्यापक क्षेत्र भर में फैले हुए हैं। ये महाबलीपुरम में बड़े स्थानों में से एक है। इनमें मुख्य है - महिषासुरमर्द्दिनि गुफा, वराह गुफाएं, कृष्णा मंडपम और अर्जुन तपस्या। अर्जुन की तपस्या की तपस्या करते हुए एक लंबी 43 फुट और 96 फुट ऊंची मूर्ति खुदी है जो बहुत ऊंची चट्टान पर है और यह दुनिया में सबसे बड़ी है। यह एक ऋषि प्रदर्शन है जिसमें अर्जुन की तपस्या जैसे जमीन पर एक पैर के साथ तपस्या करते हुए मूर्ति सबसे प्रसिद्ध मूर्तियों में से एक है।महाबलीपुरम में एक घड़ी गुफा है जो कि व्यापारियों को पल्लव राज्य के समय के प्राचीन बंदरगाह से व्यापार करने के लिए समुद्र के माध्यम से आने वाले निर्देशित से अलग एक छोटी सी पहाड़ी में स्थित टॉवर है। पल्लव समय के दौरान समुद्री यात्रियों के लिए इस घड़ी टॉवर में आग लगने से उन्हें निर्देश दिए जाते थे. बस इस घड़ी टॉवर के बगल में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया लाइट हाउस है जो वॉच टॉवर से लम्बा है। इस एक लाइट हाउस से महाबलीपुरम का पूरा दृश्य देख सकते हैं। टाइगर गुफा महाबलीपुरम शहर के बाहरी इलाके में सालुवनकुप्पम नामक एक छोटे से गांव में स्थित है। इस गुफा मंदिर का भी 8 वीं शताब्दी में पल्लव द्वारा निर्माण किया गया था। गुफा खोलने के प्रवेश द्वार के आसपास चट्टानों के बाहर खुदी हुई बाघ सिर की कई मूर्तियां है इसलिए इसका नाम बाघ गुफा के रूप में जाना जाता हैं।
बाजार को चीरते हुये हमारी स्कूटी रुकी सीधे शोर टैंपल के मैन गेट पर। पार्किंग में स्कूटी खडी कर 40 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से टिकट लेकर परिसर में प्रवेश किये तो देखा कि समुद्र तट पर खडे मंदिर के आगे बहुत बडा हरा भरा घास का मैदान तैयार किया हुआ जहाँ आप जी भर कर फोटोग्राफी कर सकते हैं। इसके बाद मंदिर में प्रवेश होता है जो उत्खनन में निकला जैसा प्रतीत होता है। यहां मुख्यत: तीन मंदिर हैं। अगल बगल शिव मंदिर और बीच में विष्णु भगवान विराजमान हैं। मंदिर भवन के आगे समुद्र रेत का गलियारा और पत्थरों की चारदीवारी। मंदिर के पीछे काली काली चट्टानों से टकराती समुद्र की लहरें। हालांकि समुद्र में जाने के लिए आपको इस परिसर से बाहर निकल कर उसके बगल से बने गलियारे से बापस आना होगा। अच्छा होगा कि आप अपना वाहन वहीं पार्किंग में छोडकर नंगे पांव ही बीच पर पहुंचे और समुद्री लहरों में खेलने का आनंद उठायें। मैं मंदिरों के पत्थरों में दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली और पल्लव शाषकों का इतिहास ढूंडने में मगन था मगर सुहानी की नजर समुद्री लहरों पर अटकी पडी थी। बच्चों को तो बस अपने नैसर्गिक आनंद से मतलब। जल्दी से बाहर निकल कर हम पहुंचे तट पर और कूद गये समुद्र में। तीनों ने जम कर धमाल मचाया। सुहानी का मन ही न करे निकलने का मगर मुझे अभी पंच रथ देखने थे। दक्षिणी सिरे पर स्थित ये रथ पांडवों के नाम पर पंच रथ कहलाते हैं। पांच में से चार रथों को एक ही विशाल चट्टान को काटछांट कर बनाया गया है। द्रौपदी और अर्जुन वर्गाकार जबकि भीम रथ रेखीय आकार का है। धर्मराज रथ सबसे ऊँचा है। यहां के लिए भी वही 40 रुपये प्रति व्यक्ति टिकट है।
पंच रथ परिसर के सामने ही एक बडा सा हरा भरा मैदान और उसे लगा हुआ छोटा सा बाजार भी है। पेडों की छाँव में बैठे कर हरी भरी घास पर बैठकर हमने खाना खाया, थोडा आराम किया और फिर चल पडे आगे की ओर। अभी थोडा ही चल पाये थे कि हरे भरे पेडों से घिरा कुछ चट्टानों और उन पर चढता हुआ पर्यटकों का हुजूम दिखाई पडा। एक बार फिर स्कूटी पार्क की और हम चढ गये उन चट्टानों पर। यह बहुत बडा चट्टानों का बगीचा है, जैसे जैसे आप आगे बढते जायेंगे आपको विभिन्न गुफाओं और मंडपों के दर्शन होते जायेंगे। एक चढाई चढने के बाद उतार शुरू हो जाता है और आप पार्क के दूसरे छोर पर पहुंच जाते हैं जहां आप नजदीक ही अर्जुन्स पेनेन्स नामक एक और दर्शनीय स्थल को देख आनंदित होते है जो अपनी विशाल नक्काशी के लिए लोकप्रिय है। यह 27 मीटर लंबा और 9 मीटर चौड़ा है। इस व्हेल मछली के पीठ के आकार की विशाल शिलाखंड पर ईश्वर, मानव, पशुओं और पक्षियों की आकृतियां उकेरी गई हैं। अर्जुन्स् पेनेन्स को मात्र महाबलिपुरम या तमिलनाडु की गौरव ही नहीं बल्कि देश का गौरव माना जाता है। इसी बीच आप कृष्ण मंडपम मंदिर को भी देख सकते हैं जो महाबलिपुरम के प्रारंभिक पत्थरों को काटकर बनाए गए मंदिरों में एक है। मंदिर की दीवारों पर ग्रामीण जीवन की झलक देखी जा सकती है। एक चित्र में भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाए दिखाया गया है। इसी परिसर में विशाल गोल चट्टान को जरा सी जगह पर टिका हुआ पाकर आश्चर्यचकित जरूर होते हैं। घूमते घामते परिसर से बाहर निकलते हैं तो एक बार फिर विशाल चट्टान पर बने हाथियों पशु पक्षियों को देखकर खुद को सैल्फी लेने से रोक नहीं पाते हैं। व्हेल मछली के आकार की विश्व की सबसे बड़ी चट्टान मानी जाती है। इसके एक तरफ देवी−देवताओं की मूर्तियां तथा दूसरी ओर विभिन्न जानवरों की मूर्तियां उकेरी गई हैं। इसकी शिल्पकला देखने लायक है। महिषासुर मर्दिनी की गुफा और मंडप की गुफाओं में महिषासुर का वध करते हुए मां दुर्गा की एक मूर्ति है और दूसरी गुफा में नाग देवता पर लेटे हुए भगवान विष्णु की मूर्ति है। यहां आठ मंडप भी हैं जिनकी कला अवर्णनीय है। 
कुल मिलाकर प्राकृतिक रुप से कहूं या ऐतिहासिक रुप से बोलूं, महाबलीपुरम का सफर बहुत जानदार शानदार रहा। ऐसा स्थान है जहां बार बार आने का मन करेगा।महाबलिपुरम नृत्य के लिए भी जाना जाता है। यह नृत्य पर्व सामान्यत: जनवरी या फरवरी माह में मनाया जाता है। भारत के जाने माने नृत्यकार शोर मंदिर के निकट अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। पर्व में बजने वाले वाद्ययंत्रों का संगीत और समुद्र की लहरों का प्राकृतिक संगीत की एक अनोखी आभा यहां देखने को मिलती है। यदि आप पक्षी प्रेमी हैं तो महाबलीपुरम से लगभग 53 किलोमीटर दूर स्थित वेदंगतल नामक स्थल पक्षी अभयारण्य के लिए प्रसिद्ध है। यहां नवंबर से फरवरी तक पक्षी नए आते हैं। 
रात होने से पहले हमें यदि पॉंडिचेरी न पहुंचना न होता तो हम और ज्यादा समय यहीं व्यतीत करते। समय की नजाकत को देखते हुये हम जल्दी से पॉंडिचेरी की तरफ दौड लिये जो अभी करीब 90 किमी था। हालांकि इस बीच भी बहुत सारे केव्ज, टैंपल्स, बीचेज थे मगर हम उन सबको अनदेखा करते हुये दौड लिये और आखिरकार शाम सात बजे तक हम पॉंडिचेरी पहुंच भी लिये।

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