Wednesday, June 21, 2017

आसाम मेघालय यात्रा: दूसरा दिन रामलला दर्शन अयोध्या ।।

यह भी एक इत्तिफाक ही था कि श्रीराम की नगरी में होटल भी हमें श्री राम के नाम का ही मिला था। खैर रात को नींद बहुत गहरी आयी, इतनी गहरी कि बिना अलार्म के सुवह पांच बजे अपने आप नींद खुल गयी। सामान होटल में ही छोडकर बाइक से निकल पडे साकेत नगरी मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की जन्म भूमि की ओर। अयोध्या पहले कौसल जनपद की राजधानी थी। सातवीं शाताब्दी में यहां चीनी यात्री हेनत्सांग भी आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। वर्तमान अयोघ्या के प्राचीन मंदिरों में सीतारसोई तथा हनुमानगढ़ी मुख्य हैं। कुछ मंदिर 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में बने जिनमें कनकभवन, नागेश्वरनाथ तथा दर्शनसिंह मंदिर दर्शनीय हैं। कुछ जैन मंदिर भी हैं। यहाँ पर वर्ष में तीन मेले लगते हैं - मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त तथा अक्टूबर-नंवबर के महीनों में।
जन्म भूमि तो हम दस मिनट में ही पहुंच गये। रामलला से लगभग पांच सौ मीटर पहले ही सीता रसोई के बगल ही मोबाईल घडी पैन ड्राईव जैसी चीजें जमा करनी पडीं। पुलिस और फौज की इतनी चाक चौबंद व्यवस्था तो शायद श्री राम ने भी करवा पायी होगी अपनी सुरक्षा में जितनी हमारी सरकार ने कर रखी है। कभी कभी तो मुझे लगता है कि धर्म के नाम पर जितनी नौटंकी हमारे देश में होती है दुनियां में शायद ही कहीं होती हो। रामलला की सुरक्षा में हर रोज दस बीस करोड खर्च किया जाना भी मुझे सिर्फ सियासी नाटक ही नजर आता है वरना जितना खर्च आज तक रामलला की सुरक्षा में हुआ है उतने में तो अयोध्या में कहीं एक शानदार भव्य मंदिर का निर्माण हो सकता था। क्या उसी बाबरी ढांचे बाली जगह से कोई जिद है ? सरयू नदी के उस पार बीघों जमीन पडी है । ऐसा मंदिर बनता कि अयोध्या में भक्तों और पर्यटकों की लाईन लगी रहती। खैर कुछ बातें ऐसी होती हैं कि हम जैसे तुच्छ बुद्धि बालों के स्तर से ऊपर की होती हैं जिन्हें सिर्फ देश के सियासतदान ही समझ सकते हैं।
शायद श्री राम अपने जीवन में इतनी घुटन कभी मेहसूस न किये होंगे जितनी हजारों फौजियों की कैद में टैंट में बैठे रामलला कर रहे हैं। एक किमी इधर उधर छोटी छोटी गलियों में घुमाने और तीन चार बार पुलिसियों के द्वारा नंगाझोरी लिये जाने के बाद हम पहुंच गये एक खुले से स्थान पर जहां से लोहे की बैरीकेडिगं शुरू होती है। तीन साल पहले गया था तब ये नहीं थीं। सिर्फ खुला मैदान सा था और यहीं से हमें इशारा करके बता दिया गया था कि वो देखो सामने टैंट में रामलला पधारे हैं। इतनी दूर से तो टैंट ही नहीं दिख रहा था तो रामलला कहां से दिखते पर इस बार लोहे की बैरीकेडिंग से होते हुये हम एक पुराने खंडहरनुमा ऊंचे से स्थान पर पहुंचे जिसके पीछे खुली जगह थी। वहीं एक छोटे से टैंट में रामलला बैठे थे। बैरीकेडिगं के दोनों ओर सुरक्षा बल के जवां और महिला सैनिक आपस में गप्पें लगा कर अपना टैम फोड रहे थे तो भक्तों के हाथों में लगी प्रसाद की थैलियों पर झपट्टा मारने की फिराक में तकतकाते हनुमान जी महाराज बैरीकेडिगं पर अधर अटके पडे थे। टैंट के सामने ना तो कोई पंडत न घंटा ना तिलक और न नारियल फूल की कोई धार्मिक गतिविधि। भला हो सजीव हनुमान जी महाराज का जो राजो के हाथ से झपट्टा मार कर ले गये वरना बापस ही आ जाता हमारे साथ। उन्ही हनुमानजी महाराज की बजह से हमें रामलला के दर्शन हुये वरना हम तो आगे बढे ही चले जा रहे थे। जैसे ही बंदर ने झपट्टा मार कर थैली छीनी , एक फौजी भाई हंसते हुये बोला , आपकी दुआ कुबूल हुई। श्रीराम सामने हैं दर्शन कर लो। ये उन्ही के भेजे हुये हैं। हम भी खुश थे चलो प्रसाद किसी के तो काम आया। मैं तो मंदिर के दर्शनों में इतनी ज्यादा रुचि नहीं रखता। पंडो के धार्मिक चोंचलों से ऊब चुका हूं इसलिये मंदिर की चौखट तक या मंदिर की शिल्पकला को निहारने तक ही अपनी घुमक्कडी को सीमित रखता हूं। ज्यादा भीड होती है तो दर्शन भी नहीं करता। बाहर से घूम कर ही चले आता हूं लेकिन इस बार पूर्ण धार्मिक आस्थावान धर्मपत्नि जो साथ थीं। श्री कृष्ण की नगरी मथुरा की रहने बाली राजो तो बस अयोध्या में पैर रखते ही अपने को धन्य समझने लगी थी। मैं भले ही ज्यादा धार्मिक न हूं पर दूसरों की भावनाओं की बहुत इज्जत करता हूं। राजो खुश थी मेरे लिये यही बहुत था।
मंदिर परिसर का चक्कर लगाते हुये हम दूसरी ओर वहीं आ निकले जहां सीता रसोई के बगल हमने मोबाईल आदि जमा कराये थे और बाइक खडी करी थी। इस पूरे भ्रमण में मैंने मकानों की बनावट और प्रयुक्त ईंटों आदि को बहुत गौर से देखा था। मुझे एक भी मकान अधिकतम पांच छ सौ साल से पुराना न लगा। सीता रसोई बाले पंडज्जी हमें बुला कर कह रहे थे कि यह देखो रसोई यहां सीता माता भोजन बनाया करती थी। आस्था का बास्तविक फायदा तो ये पंडे ही उठाते हैं। एक चक्रवर्ती सम्राट की पत्नी भोजन बनायेगी ? कहां ये पांच सौ पहले का मकान और कहां हजारों साल पहले की मिथिला नरेश की पुत्री ? कोई कौम्बीनेशन ही नहीं बैठता। पर चलो ठीक है। सबका अपना अपना धंधा है। बैसे भी भारत में धर्म का विश्व का सबसे बडा बाजार है, आस्थाओं से ही चलता है। पंडज्जी को पता नहीं होगा कि कार्बन डेटिगं पद्धति से सीता रसोई का आयुकाल भी निकाला जा सकता है। और अगर ये मुगल काल का भवन निकला तो पौराणिक गृंथों का समय निर्धारण गडबडा जायेगा। 
रामलला के दर्शन कर हम सीधे बढ गये सरयू नदी की ओर।







satyapalchahar.blogspot.in

4 comments:

  1. गुरुदेव, आपकी लेखनी गजब है। मन करता है पढता ही चला जाऊँ।
    आप यह सीरीज पूरी करिये, मैं इसे एक साथ ही पढना चाहता हूँ। किस्तों में पढने से यात्रा का स्वाद किरकिरा हो जाता है। लिखिये फटाफट लिखिये।

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  2. जी जरूर भाई जी

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  3. मेरी भी आस्था ज्यादा नदिरो में नही है अभी जगन्नाथपुरी से बहुत कड़वा अनुभव मिला है।

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  4. मेरी भी आस्था ज्यादा नदिरो में नही है अभी जगन्नाथपुरी से बहुत कड़वा अनुभव मिला है।

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