शाम के पांच बजे तक मैं जोशीमठ पहुंच चुका था। जोशीमठ की महत्ता को देखते हुये पहले तो सोचा कि आज की रात यहीं रुक जाऊं और जोशीमठ के बारे में पूरी जानकारी हासिल करुं लेकिन रात होने में अभी दो घंटे थे। बारिस बंद हो चुकी थी। मात्र चालीस किमी की दूरी तय करनी थी। पुलिस वाले से बात हुई उसने भी यही सलाह दी कि बद्रीनाथ ही नाइट स्टे करना, थोडी देर में पहुंच जाओगे। बैसे भी पंजाबी शेर एक के बाद एक बुलेट दौडाये जा रहे थे, बस फिर क्या था हमने भी बाइक दौडा दी जोशीमठ से बद्रीनाथ की तरफ।
जोशीमठ से गोविंद घाट बद्रीनाथ की तरफ बढते हुये मैंने जीवन में पहली वार जन्नत के दर्शन किये। अभी अभी शिलांग चेरापूंजी से लौटा था कितुं इतनी सुंदर घाटी अभी तक ना देखी थी मैंने। ये चालीस किमी का सफर मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सफर रहा। रोमांचक और आनंददायक भी। शाम होती जा रही थी वरना चालीस किमी की दूरी तय करने में चालीस घंटे तो अवश्य लगाता मैं। गोविंद घाट से ही हेमकुंड साहिब के लिये अलग रास्ता निकल जाता है। हेमकुंड साहिब फूलों की घाटी जाने के लिये गोविंद घाट से पैदल ही जाना पडता है। करीब बीस किमी की पहाडी पैदल यात्रा है। चूंकि अभी पैदल चलने की हिम्मत नहीं बची थी बाइक बढा दी मैंने बद्रीनाथ मंदिर की तरफ जो मात्र कुछ ही किमी दूर था। रात होने को थी। बद्रीनाथ में घुसने से पहले ही अंधेरा हो गया था। बद्रीनाथ का हाल सुनाऊं उससे पहले मैं अपने मन में चल रहे एक द्वदं को जरूर शेयर करना चाहूंगा कि मैं चारधाम की यात्रा पर निकला था लेकिन ये भारत के चार धाम नहीं थे बल्कि उत्तराखंड के चार धाम थे। केदारनाथ बद्रीनाथ गंगोत्री और यमुनोत्री को चार धाम किसने कहा मुझे नहीं पता लेकिन मुझे सिर्फ इतना पता है कि ये चार स्थान हैं जहां से निकली हुई नदियों को मिला कर ही गंगा का निर्माण हुआ है। चूंकि गंगा मां का जल हम भारतीयों के लिये जीवन है अत: हम इन चारों स्थानों को ईश्वर के समकक्ष ही रखते हैं। गंगोत्री से भागीरथी, यमुनोत्री से यमुना , केदारनाथ से मंदाकिनी और बद्रीनाथ से अलकनंदा। ये चारों ही मिलकर गंगा मां निर्माण करती हैं। अलकनंदा की पाँच सहायक नदियाँ हैं जो गढ़वाल क्षेत्र में 5 अलग अलग स्थानों पर अलकनंदा से मिलकर 'पंचप्रयाग' बनाती हैं। विष्णु प्रयाग जहाँ धौली गंगा अलकनंदा से मिलती है। नंदप्रयाग जहाँ नंदाकिनी नदी अलकनंदा से मिलती है। कर्णप्रयाग जहाँ पिंडारी अलकनंदा से मिलती है। रुद्रप्रयाग जहाँ मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है। देवप्रयाग जहाँ भागीरथी अलकनंदा से मिलती है और प्रयागराज जहां यमुना गंगा में विलीन हो जाती है।
जहां तक भारत के चार धामों की बात आती है, भारत के चारों दिशाओं में स्थित चार मंदिरों उत्तर में बद्रीनाथ, पूरब में जगन्नाथ , पश्चिम में द्वारका और दक्षिण में रामेश्वर को ही माना जाता है लेकिन मन में बार बार एक ही प्रश्न आता है कि धाम का मतलब घर होता है और ये चार धाम भारत के चार दिशाओं में भगवान के चार घर हैं। लेकिन प्रश्न ये है कि कौनसे भगवान के घर हैं ? विष्णु के या शिव के ? इन चार धामों में से तीन तो वैष्णव धाम मतलब कृष्ण भगवान के मंदिर हैं जबकि दक्षिण धाम रामेश्वर शिव मंदिर है। ऐसा कैसे हो सकता है ? कुछ तो है तो मेरी समझ से परे है।
बद्रीनाथ जी, जगन्नाथ जी एवं द्वारकाधीश जी की यात्रा कर चुका हूं। चौथा धाम बाकी है। अब कन्फ्यूजन इस बात का है कि भगवान का वह चौथा धाम मतलब घर कौनसा है ? ये उपरोक्त तीनों ही धाम श्री कृष्ण मतलब विष्णु भगवान के हैं तो चौथा घर भी वैष्णव ही होना चाहिये न ? जहां बात रामेश्वरम की है तो वह विष्णु का चौथा धाम नहीं हो सकता। यह ज्योतिर्लिगं है। चारों दिशाओं के शिव मंदिरों की बात करें तो उत्तर में केदारनाथ दक्षिण में रामेश्वरम पूरब में सोमनाथ और पश्चिम में भुवनेश्वर का लिंगराज हैं। जहां तक चार मठों की बात है तो आठवीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के संस्थापक आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित हैं। वेदान्त ज्ञानमठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम में स्थित है। गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ। मंदिरों के हर प्राचीन शहर की तरह जोशीमठ भी ज्ञान पीठ है जहां आदि शंकराचार्य ने भारत के उत्तरी कोने के चार मठों में से पहले मठ की स्थापना की।आदि शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना तथा वहां नम्बूद्रि पुजारियों को बिठाने के समय से ही जोशीमठ बद्रीनाथ के जाड़े का स्थान रहा है और आज भी वह जारी है। जाड़े के 6 महीनों के दौरान जब बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढंका होता है तब भगवान विष्णु की पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में ही होती है। बद्रीनाथ के रावल मंदिर कर्मचारियों के साथ जाड़े में जोशीमठ में ही तब तक रहते हैं, जब कि मंदिर का कपाट जाड़े के बाद नहीं खुल जाता।जोशीमठ एक परंपरागत व्यापारिक शहर है और जब तिब्बत के साथ व्यापार चरमोत्कर्ष पर था तब भोटिया लोग अपना सामान यहां आकर बिक्री करते थे एवं आवश्यक अन्य सामग्री खरीदकर तिब्बत वापस जाते थे। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापारिक कार्य बंद हो गया और कई भोटिया लोगों ने जोशीमठ तथा इसके इर्द-गिर्द के इलाकों में बस जाना पसंद किया।
यहां आठवीं सदी में धर्मसुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की। बद्रीनाथ, औली तथा नीति घाटी के सान्निध्य के कारण जोशीमठ एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन गया है तथा अध्यात्म एवं साहसिकता का इसका मिश्रण यात्रियों के लिए वर्षभर उत्तेजना स्थल बना रहता है।
जोशीमठ में आध्यात्मिता की जड़े गहरी है तथा यहां की संस्कृति भगवान विष्णु की पौराणिकता के इर्द-गिर्द बनी है। पांडुकेश्वर में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी, जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। एक क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा जोशीमठ में अपनी राजधानी बसायी। वासुदेव कत्यूरी ही कत्यूरी वंश का संस्थापक था। जिसने 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर शासन किया।
हिंदुओं के लिये एक धार्मिक स्थल की प्रधानता के रूप में जोशीमठ, आदि शंकराचार्य की संबद्धता के कारण मान्य हुआ।उन्होंने यहां एक शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया और यहीं उन्हें ज्योति या ज्ञान की प्राप्ति हुई। यहीं उन्होंने शंकर भाष्य की रचना की जो सनातन धर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।